Showing posts with label sahifae Sajjadia 51st dua (urdu tarjuma / translation in HINDI) by imam zainul abedin sayyade sajjad a.s. zainul eba a.s. ahlebait a.s. (haider alam). Show all posts
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Thursday, 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 51st dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



 इक्यावनवी दुआ
तज़रूअ व फ़रवतनी के सिलसिले में हज़रत (अ0) की दुआ

 
 
ऐ मेरे माबूद! मैं तेरी हम्द व सताइश करता हूं और तू हम्द व सताइश का सज़ावार है इस बात पर के तूने मेरे साथ अच्छा सुलूक किया। मुझ पर अपनी नेमतों का कामिल और अपने अतीयों को फ़रावां किया और इस बात पर के तूने अपनी रहमत के ज़रिये मुझे ज़्यादा से ज़्यादा और अपनी नेमतों को मुझ पर तमाम किया। चुनांचे तूने मुझ पर वह एहसानात किये हैं जिनके शुक्रिया से क़ासिर हूं और अगर तेरे एहसानात मुझ पर न होते और तेरी नेमतें मुझ पर फ़रावां न होतीं तो मैं न अपना हिज्ज़ व नसीब फ़राहम कर सकता था और न नफ़्स की इस्लाह व दुरूस्ती की हद तक पहुंच सकता था लेकिन तूने मेरे हक़ में अपने एहसानात का आग़ाज़ फ़रमाया और मेरे तमाम कामों में मुझे (दूसरों से) बेनियाज़ी अता की। रंज व बला की सख़्ती भी मुझसे हटा दी और जिस हुक्मे क़ज़ा का अन्देशा था उसे मुझसे रोक दिया। ऐ मेरे माबूद! कितनी बलाख़ेज़ मुसीबतें थीं जिन्हें तूने मुझसे दूर कर दिया और कितनी ही कामिल नेमतें थीं जिनसे तूने मेरी आंखों की ख़नकी व सरवर का सामान किया और कितने ही तूने मुझ पर बढ़े एहसानात फ़रमाए हैं। तू वह है जिसने हालते इज़्तेरार में दुआ क़ुबूल की और (गुनाहों में) गिरने के मौक़े पर मेरी लग़्िज़श से दरगुज़र किया और दुश्मनों से मेरे ज़ुल्म व सितम से छने हुए हक़ को ले लिया। बारे इलाहा! मैंने जब भी तुझसे सवाल किया तुझे बख़ील और जब भी तेरी बारगाह का क़स्द किया तुझे रन्जीदा नहीं पाया। बल्कि तुझे अपनी दुआ की निस्बत सुनने वाला और अपने मक़ासिद का बर लाने वाला ही पाया। और मैंने अपने अहवाल में से हर हाल में और अपने ज़मानाए (हयात) के हर लम्हे में तेरी नेमतों को अपने लिये फ़रावां पाया। लेहाज़ा तू मेरे नज़दीक क़ाबिले तारीफ़ और तेरा एहसान लाएक़े शुक्रिया है। मेरा जिस्म (अमलन) मेरी ज़बान (क़ौलन) और मेरी अक़्ल (एतेक़ादन) तेरी हम्द व सिपास करती है। ऐसी हम्द जो हद्दे कमाल और इन्तेहाए शुक्र पर फ़ाएज़ हो। ऐसी हम्द जो मेरे लिये तेरी ख़ुशनूदी के बराबर हो। लेहाज़ा मुझे अपनी नाराज़गी से बचा। ऐ मेरे पनाहगाह जबके (मुतज़र्क़) रास्ते मुझे ख़स्ता व परेशान कर दें। ऐ मेरी लग़्िज़शों के माफ़ करने वाले अगर तू मेरी पर्दापोशी न करता तो मैं यक़ीनन रूसवा होने वालों में से होता। ऐ अपनी मदद से मुझे तक़वीयत देने वाले अगर तेरी मदद शरीके हाल न होती तो मैं मग़ावब व शिकस्त ख़ोरदा लोगों में से होता। ऐ वह जिसकी बारगाह में शाहों ने ज़िल्लत व ख़्वारी का जोवा अपनी गर्दन में डाल लिया है और वह उसके ग़लबे व इक़्तेदार से ख़ौफ़ज़दा हैं। ऐ वह जो तक़वा का सज़ावार है ऐ वह के हुस्न व ख़ूबी वाले नाम बस उसी के लिये हैं, मैं तुझसे ख़्वास्तगार हूं के मुझसे दरगुज़र फ़रमा और मुझे बख़्श दे, क्योंके मैं बेगुनाह नहीं हूं के उज़्र ख़्वाही करूं और न ताक़तवर हूं के ग़लबा पा सकूं और न गुरेज़ की कोई जगह है के भाग सकूं। मैं तुझसे अपनी लग्ज़िशों की माफ़ी चाहता हूं और उन गुनाहों से जिन्होंने मुझे हलाक कर दिया है और मुझे इस तरह घेर लिया है के मुझे तबाह कर दिया है, तौबा व माज़ेरत करता हूं मैं ऐ मेरे परवरदिगार! उन गुनाहों से तौबा करते हुए तेरी तरफ़ भाग खड़ा हूं तो अब मेरी तौबा क़ुबूल फ़रमा, तुझसे पनाह चाहता हूं। मुझे पनाह दे, तुझसे अमान मांगता हूं मुझे ख़्वार न कर तुझसे सवाल करता हूं मुझे महरूम न कर, तेरे दामन से वाबस्ता हूं मुझे मेरे हाल पर छोड़ न दे, और तुझसे दुआ मांगता हूं लेहाज़ा मुझे नाकाम न फेर। ऐ मेरे परवरदिगार! मैंने ऐसे हाल में के मैं बिल्कुल मिस्कीन आजिज़, ख़ौफ़ज़दा, तरसां, हरासां, बेसरो सामान और लाचार हूं, तुझे पुकारा है। ऐ मेरे माबूद! मैं इस अज्र व सवाब की जानिब जिसका तूने अपने दोस्तों से वादा किया है जल्दी करने और उस अज़ाब से जिससे तूने अपने दुश्मनों को डराया है दूरी इख़्तियार करने से अपनी कमज़ोरी और नातवानी का गिला करता हूं तेज़ अफ़कार की ज़ियादती और नफ़्स की परेशान ख़याली का शिकवा करता हूं। ऐ मेरे माबूद! तू मेरी बातेनी हालत की वजह से मुझे रूसवा न करना। और मेरे गुनाहों के बाएस मुझे तबाह व बरबाद न होने देना। मैं तुझे पुकारता हूं तो तू मुझे जवाब देता है और जब तू मुझे बुलाता है तो मैं सुस्ती करता हूं और मैं जो हाजत रखता हूं तुझसे तलब करता हूं और जहां कहीं होता हूं अपने राज़े दिली तेरे सामने आश्कारा करता हूं और तेरे सिवा किसी को नहीं पुकारता और न तेरे अलावा किसी से आस रखता हूं। हाज़िर हूं! मैं हाज़िर हूं! जो तुझसे शिकवा करे तू उसका शिकवा सुनता है और जो तुझ पर भरोसा करे उसकी तरफ़ मुतवज्जो होता है। और जो तेरा दामन थाम ले उसे (ग़म व फ़िक्र) से रेहाई देता है। और जो तुझसे पनाह चाहे उससे ग़म व अन्दोह को दूर कर देता है। ऐ मेरे माबूद! मेरे नाशुक्रेपन की वजह से मुझे दुनिया व आख़ेरत की भलाई से महरूम न कर और मेरे जो गुनाह जो तेरे इल्म में हैं बख़्श दे। और अगर तू सज़ा दे तो इसलिये के मैं ही हद से तजावुज़ करने वाला सुस्त क़दम, ज़ियांकार, आसी, तक़सीर पेशा, ग़फ़लत शुआर और अपने हज़ा व नसीब में लापरवाही करने वाला हूं और अगर तू बख़्शे तो इसलिये के तू सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाला है।