Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 50th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



पचासवीं दुआ
ख़ौफ़े ख़ुदा के सिलसिले में हज़रत की दुआ



बारे इलाहा! तूने मुझे इस तरह पैदा किया के मेरा आज़ा बिल्कुल सही व सालिम थे, और जब कमसिन था, तो मेरी परवरिश का सामान किया और बे रन्ज व काविश रिज़्क़ दिया। बारे इलाहा! तूने जिस किताब को नाज़िल किया और जिसके ज़रिये अपने बन्दों को नवेद व बशारत दी, उसमें तेरे इस इरशाद को देखा है के ‘‘ऐ मेरे बन्दों! जिन्होंने अपनी जानों पर ज़्यादती की है, तुम अल्लाह तआला की रहमत से ना उम्मीद न होना। यक़ीनन अल्लाह तुम्हारे तमाम गुनाह मुआफ़ कर देगा’’ इससे पेशतर मुझसे ऐसे गुनाह सरज़द हो चुके हैं जिनसे तू वाक़िफ़ है और जिन्हें तू मुझसे ज़्यादा जानता है। वाए बदबख़्ती व रूसवाई उन गुनाहों के हाथों जिन्हें तेरी किताब क़लमबन्द किये हुए है अगर तेरे हमहगीर अफ़ो व दरगुज़र के वह मवाक़ेअ न होते जिनका मैं उम्मीदवार हूं तो मैं अपने हाथों अपनी हलाकत का सामान कर चुका था। अगर कोई एक भी अपने परवरदिगार से निकल भागने पर क़ादिर होता तो मैं तुझसे भागने का ज़्यादा सज़ावार था। और तू वह है जिससे ज़मीन व आसमान के अन्दर कोई राज़ मख़फ़ी नहीं है मगर यह के तू (क़यामत के दिन) उसे ला हाज़िर करेगा। तू जज़ा देने और हिसाब करने के लिये बहुत काफ़ी है। ऐ अल्लाह! मैं अगर भागना चाहूं तो तू मुझे ढूंढ लेगा, अगर राहे गुरेज़ इख़्तियार करूं, तो तू मुझे पा लेगा। ले देख मैं आजिज़, ज़लील और शिकस्ता हाल तेरे सामने खड़ा हूं, अगर तू अज़ाब करे तो मैं उसका सज़ावार हूं। ऐ मेरे परवरदिगार! यह तेरी जानिब से ऐन अद्ल है और अगर तू मुआफ़ कर दे तो तेरा अफ़ो व दरगुज़र हमेशा मेरे शामिले हाल रहा है। और तूने सेहत व सलामती के लिबास मुझे पहनाए हैं। बारे इलाहा! मैं तेरे उन पोशीदा नामों के वसीले से और तेरी उस बुज़ुर्गी के वास्ते से जो (जलाल व अज़मत के) पर्दों  में मख़फ़ी है  तुझसे यह सवाल करता हूं के इस बेताब नफ़्स और बेक़रार हड्डियों के ढांचे पर तरस खा (इसलिये के) जो तेरे सूरज की तपिश को बरदाश्त नहीं कर सकता वह तेरे जहन्नुम की तेज़ी को कैसे बरदाश्त करेगा और जो तेरे बादल की गरज से कांप उठता है तो वह तेरे ग़ज़ब की आवाज़ को कैसे सुन सकता है। लेहाज़ा मेरे हाले ज़ार पर रहम फ़रमा इसलिये के ऐ मेरे माबूद! मैं एक हक़ीर फ़र्द हूं जिसका मरतबा पस्ततर है और मुझ पर अज़ाब करना तेरी सल्तनत में ज़र्रा भर इज़ाफ़ा नहीं कर सकता और अगर मुझे अज़ाब करना तेरी सल्तनत को बढ़ा देता तो मैं तुझसे अज़ाब पर सब्र व शिकेबाई का सवाल करता और यह चाहता के वह इज़ाफ़ा तुझे हासिल हो। लेकिन ऐ मेरे माबूद! तेरी सल्तनत इससे ज़्यादा अज़ीम और इससे ज़्यादा दवाम पज़ीद है के फ़रमांबरदारों की इताअत इसमें कुछ इज़ाफ़ा कर सके या गुनहगारों की मासियत इसमें से कुछ घटा सके। तो फिर ऐ तमाम रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले मुझ पर रहम फ़रमा और ऐ जलाल व बुज़ुर्गी वाले मुझसे दरगुज़र कर और मेरी तौबा क़ुबूल फ़रमा। बेशक तू तौबा क़ुबूल करने वाला और रहम करने वाला है।

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