Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 22nd dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


बाईसवीं दुआ
षदाएद (षिद्दत) व मुष्किलात के मौक़े पर यह दुआ पढ़ते थे

ऐ मेरे माबूद! तूने (इस्लाह व तहज़ीबे नफ़्स के बारे में) जो तकलीफ़ मुझ पर आयद की है उस पर तू मुझसे ज़्यादा क़ुदरत रखता है और तेरी क़ूवत व तवनाई उस अम्र पर और ख़ुद मुझ पर मेरी क़ूवत व ताक़त से फ़ज़ोंतर है लेहाज़ा मुझे उन आमाल की तौफ़ीक़ दे जो  तेरी ख़ुषनूदी का बाएस हों। और सेहत व सलामती की हालत में अपनी रज़ामन्दी के तक़ाज़े मुझसे पूरे कर ले।
बारे इलाहा! मुझमें मषक़्क़त के मुक़ाबले में हिम्मत, मुसीबत के मुक़ाबले में सब्र और फ़क्ऱ व एहतियाज के मुक़ाबले में क़ूवत नहीं है। लेहाज़ा मेरी रोज़ी को रोक न ले अैर मुझे अपनी मख़लूक़ के हवाले न कर। बल्कि बिला वास्तामेरी हाजत बर ला और ख़ुद ही मेरा कारसाज़ बन और मुझ पर नज़रे षफ़क़्क़त फ़रमा और तमाम कामों के सिलसिले में मुझ पर नज़रे करम रख। इसलिये के अगर तूने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया तो मैं अपने उमूर की अन्जामदेही से आजिज़ रहूंगा। और जिन कामों में मेरी बहबूदी है उन्हें अन्जाम न दे सकूंगा। और अगर तूने मुझे लोगों के हवाले कर दिया तो वह त्येवरियों पर बल डालकर मुझे देखेंगे। और अगर अज़ीज़ों की तरफ़ धकेल दिय तो वह मुझे नाउम्मीद रखेंगे। और अगर कुछ देंगे तो क़लील व नाख़ुषगवार, और उसके मुक़ाबले में एहसान ज़्यादा रखेंगे। और बुराई भी हद से बढ़ कर करेंगे। लेहाज़ा ऐ मेरे माबूद। तू अपने फ़ज़्ल व करम के ज़रिये मुझे बेनियाज़ कर और अपनी बुज़ुर्गी व अज़मत के वसीले से मेरी एहतियाज को बरतरफ़ फ़रमा और अपनी तवंगरी व वुसअत से मेरा हाथ कुषादा कर दे और अपने हाँ की नेमतों के ज़रिये मुझे (दूसरों से) बेनियाज़ बना दे। 
ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर मुझे हसद से निजात दे और गुनाहों के इरतेकाब से रोक दे और हराम कामों से बचने की तौफ़ीक़ दे और गुनाहों पर जुरअत पैदा न होने दे और मेरी ख़्वाहिष व रग़बत अपने से वाबस्ता रख और मेरी रज़ामन्दी उन्हीं चीज़ों में क़रार दे जो तेरी तरफ़ से मुझ  पर वारिद हों, और रिज़्क़ व बख़्षिष व इनआम में  मेरे लिये अफ़ज़ाइष फ़रमा और मुझे हर हाल में अपने हिफ़्ज़ व निगेहदाष्त, हिजाब व निगरानी और पनाह व अमान में रख,

ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे हर क़िस्म की इताअत के बजा लाने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा जो तूने अपने लिये या मख़लूक़ात में से किसी के लिये मुझ पर लाज़िम व वाजिब की हो। अगरचे उसे अन्जाम देने की सकत मेरे जिस्म में न हो, और मेरी क़ूवत उसके मुक़ाबले में कमज़ोर साबित हो और मेरी मुक़दरत से बाहर  हो और मेरा माल व असास उसकी गुन्जाइष न रखता हो। वह मुझे याद हो या भूल गया हूँ। वह तो ऐ मेरे परवरदिगार! उन चीज़ों में से है जिन्हें तूने मेरे ज़िम्मे षुमार किया है और मैं अपनी सहल अंगारी की वजह से उसे बजा न लाया। लेहाज़ा अपनी वसीअ बख़्षिष और कसीर रहमत के पेषे नज़र इस (कमी) को पूरा कर दे। इसलिये के तू तवंगर व करीम है। ताके ऐ मेरे परवरदिगार! जिस दिन मैं तेरी मुलाक़ात करूं उसमें से कोई ऐसी बात मेरे ज़िम्मे बाक़ी न रहे के तू उसके मुक़ाबले में यह चाहे के मेरी नेकियों में कमी या मेरी बदियों में इज़ाफ़ा कर दे।

ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और आख़ेरत के पेषे नज़र सिर्फ़ अपने लिये अमल की रग़बत अता कर यहां तक के मैं अपने दिल में उसकी सेहत का एहसास कर लूं और दुनिया में ज़ोहद व बे रग़बती का जज़्बा मुझ पर ग़ालिब आ जाए और नेक काम षौक़ से करूं और ख़ौफ़ व हेरास की वजह से बुरे कामों से महफ़ूज़ रहूं। और मुझे ऐसा नूर (इल्म व दानिष) अता कर जिसके परतो में लोगों के दरमियान (बेखटके) चलूं फिरूं और उसके ज़रिये तारीकियों में हिदायत पाऊं और षुकूक व षुबहात के धुन्धलकों में रोषनी हासिल करूं।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अन्दोह अज़ाब का ख़ौफ़ और सवाबे आख़ेरत का षौक़ मेरे अन्दर पैदा कर दे ताके जिस चीज़ का तुझसे तालिब हूँ उसकी लज़्ज़त और जिससे पनाह मांगता हूं उसकी तल्ख़ी महसूस कर सकूँ। बारे इलाहा! जिन चीज़ों से मेरे दीनी और दुनियवी उमूर की बहबूदी वाबस्ता है तू उन्हें ख़ूब जानता है। लेहाज़ा मेरी हाजतों की तरफ़ ख़ास तवज्जो फ़रमा।

ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और ख़ुषहाली व तंगदस्ती और सेहत व बीमारी में जो नेमतें तूने बख़्षी हैं उन पर अदाए षुक्र में कोताही के वक़्त मुझे एतराफ़े हक़ की तौफ़ीक़ अता कर ताके मैं ख़ौफ़ व अमन, रिज़ा व ग़ज़ब और नफ़ा व नुक़सान के मौक़े पर तेरे हुक़ूक़ व वज़ाएफ़ के अन्जाम देने में मसर्रत क़ल्बी व इत्मीनाने नफ़्स महसूस करूं।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरे सीने को हसद से पाक कर दे ताके मैं मख़लूक़ात में से किसी एक पर इस चीज़ की वजह से जो तूने अपने फ़ज़्ल व करम से अता की है, हसद न करूं यहां तक के मैं तेरी नेमतें में से कोई नेमत, वह दीन से मुताल्लिक़ हो या दुनिया से, आफ़ियत से मुताल्लिक़ हो या तक़वा से, वुसअते रिज़्क़ से मुताल्लिक़ हे या आसाइष से। मख़लूक़ात में से किसी एक के पास न देखूं मगर यह के तेरे वसीले से। और तुझसे, और तुझसे ऐ ख़ुदाए यगाना व लाषरीक इससे बेहतर की अपने लिये आरज़ू करूं। 

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और दुनिया व आख़ेरत के उमूर में ख़्वाह ख़ुषनूदी की हालत हो या ग़ज़ब की, मुझे ख़ताओं से तहफ़्फ़ुज़ और लग़्िज़षों से इजतेनाब की  तौफ़ीक़ अता फ़रमा यहां तक के ग़ज़ब व रिज़ा की जो हालत पेष आए मेरी हालत यकसां रहे और तेरी इताअत पर अमल पैरा रहूं। और दोस्त व दुष्मनी के बारे में तेरी रेज़ा और इताअत को दूसरी चीज़ों पर मुक़द्दम करूं यहां तक के दुष्मन को मेरे ज़ुल्म व जोर का कोई अन्देषा न रहे और मेरे दोस्त को भी जन्बादरी और दोस्ती की रू में बह जाने से मायूसी हो जाए और मुझे उन लोगों में क़रार दे जो राहत व आसाइष के ज़माने में पूरे इख़लास के साथ उन मुख़लेसीन की तरह दुआ मांगते हैं जो इज़तेरार व बेचारगी के आलम में दस्त-

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