Thursday 20 September 2012

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अढ़तालीसवीं दुआ
ईदुल अज़हा और रोज़े जुमा की दुआ


बारे इलाहा! यह मुबारक व मसऊद दिन है जिसमें मुसलमान मामूरा ज़मीन के हर गोशे में मुज्तमअ हैं। उनमें साएल भी हैं और तलबगार भी। मुलतजी भी हैं और ख़ौफ़ज़दा भी वह सब ही तेरी बारगाह में हाज़िर हैं और तू ही उनकी हाजतों पर निगाह रखने वाला है। लेहाज़ा तेरे जूद व करम को देखते हुए और इस ख़याल से के मेरी हाजत बरआरी तेरे लिये आसान है तुझसे सवाल करता हूं के तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर। ऐ अल्लाह! ऐ हम सबके परवरदिगार! जबके तेरे ही लिये बादशाही और तेरे ही लिये हम्द व सताइश है और कोई माबूद नहीं तेरे अलावा, जो बुर्दबार, करीम, मेहरबानी करने वाला, नेमत बख़्शने वाला, बुज़ुर्गी व अज़मत वाला और ज़मीन व आसमान का पैदा करने वाला। तो मैं तुझसे सवाल करता हूं के जब भी तू अपने ईमान वाले बन्दों में नेकी या आफ़ियत या ख़ैर व बरकत या अपनी इताअत पर अमल पैरा होने की तौफ़ीक़ तक़सीम फ़रमाए या ऐसी भलाई जिससे तू उन पर एहसान करे और उन्हें अपनी तरफ़ रहनुमाई फ़रमाए या अपने हां उनका दरजा बलन्द करे या दुनिया व आख़ेरत की भलाई में से कोई भलाई उन्हें अता करे तो इसमें मेरा हिस्सा व नसीब फ़रावां कर। ऐ अल्लाह! तेरे ही लिये जहांदारी और तेरे ही लिये हम्द व सताइश है और कोई माबूद नहीं तेरे सिवा। लेहाज़ा मैं तुझसे सवाल करता हूं के तू रहमत नाज़िल फ़रमा अपने अब्द, रसूल (स0), हबीब, मुन्तख़ब और बरगुज़ीदा ख़लाएक़ मोहम्मद (स0) पर और उनके अहलेबैत (अ0) पर जो नेकोकार, पाक व पाकीज़ा और बेहतरीन ख़ल्क़ हैं। ऐसी रहमत जिसके शुमार पर तेरे अलावा कोई क़ादिर न हो और आज के दिन तेरे ईमान लाने वाले बन्दों में से जो भी तुझसे कोई नेक दुआ मांगे तो हमें उसमें शरीक कर दे ऐ तमाम जहानों के परवरदिगार, और हमें और उन सबको बख़्श दे इसलिये के तू हर चीज़ पर क़ादिर है।

ऐ अल्लाह! मैं अपनी हाजतें तेरी तरफ़ लाया हूं और अपने फ़क्ऱ व फ़ाक़ा व एहतियाज का बारे गरां तेरे दर पर ला उतारा है और मैं अपने अमल से कहीं ज़्यादा तेरी आमरज़िश व रहमत पर मुतमईन हूं और बेशक तेरी मग़फ़ेरत व रहमत का दामन मेरे गुनाहों से कहीं ज़्यादा वसीअ है। लेहाज़ा तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी हर हाजत तू ही बर ला। अपनी उस क़ुदरत की बदौलत जो तुझे उस पर हासिल है और यह तेरे लिये सहल व आसान है और इस लिये के मैं तेरा मोहताज और तू मुझसे बे नियाज़ है। और इसलिये के मैं किसी भलाई को हासिल नहीं कर सकता मगर तेरी जानिब से और तेरे सिवा कोई मुझ से दुख दर्द दूर नहीं कर सका। और मैं दुनिया व आख़ेरत के कामों में तेरे अलावा किसी से उम्मीद नहीं रखता।

ऐ अल्लाह! जो कोई सिला व अता की उम्मीद और बख़्शिश व इनआम की ख़्वाहिश लेकर किसी मख़लूक़ के पास जाने के लिये कमरबस्ता व आमादा और तैयार व मुस्तअद हो तो ऐ मेरे मौला व आक़ा! आज के दिन मेरी आमादगी व तैयारी और सरो सामान की फ़राहेमी व मुस्तअदी तेरे अफ़ो व अता की उम्मीद और बख़्शिश व इनआम की तलब के लिये है। लेहाज़ा ऐ मेरे माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और आज के दिन मेरी उम्मीदों में मुझे नाकाम न कर। ऐ वह जो मांगने वाले के हाथों तंग नहीं होता और न बख़्शिश व अता से जिसके हां कमी होती है। मैं अपने किसी अमले ख़ैर पर जिसे आगे भेजा हो और सिवाए मोहम्मद (स0) और उनके अहलेबैत सलवातुल्लाह अलैह व अलैहिम की शिफ़ाअत के किसी मख़लूक़ की सिफ़ारिश पर जिसकी उम्मीद रखी हो इत्मीनान करते हुए तेरी बारगाह में हाज़िर नहीं हुआ। मैं तो अपने गुनह और अपने हक़ में बुराई का इक़रार करते हुए तेरे पास हाज़िर हुआ हूं। दरआंहालियाके मैं तेरे इस अफ़वे अज़ीम का उम्मीदवार हूं जिसके ज़रिये तूने ख़ताकारों को बख़्श दिया। फिर यह के उनका बड़े बड़े गुनाहों पर अरसे तक जमे रहना तुझे उन पर मग़फ़ैरत व रहमत की अहसान फ़रमाई से मानेअ न हुआ। ऐ वह जिसकी रहमत वसीअ और अफ़ो व बख़्शिश अज़ीम है, ऐ बुज़ुर्ग! ऐ अज़ीम!! ऐ बख़शन्दा! ऐ करीम!! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपनी रहमत से मुझ पर एहसान और अपने फ़ज़्ल व करम के ज़रिये मुझ पर मेहरबानी फ़रमा और मेरे हक़ में दामने मग़फ़ेरत को वसीअ कर। बारे इलाहा! यह मक़ाम (ख़ुत्बा व इमामते नमाज़े जुमा) तेरे जानशीनों और बरगुज़ीदा बन्दों के लिये था और तेरे अमानतदारों का महल था दरआंहालियाके तूने इस बलन्द मन्सब के साथ उन्हें मख़सूस किया था। (ग़स्ब करने वालों ने) उसे छीन लिया। और तू ही रोज़े अज़ल से उस चीज़ का मुक़द्दर करने वाला है। न तेरा अम्रो फ़रमान मग़लूब हो सकता है और न तेरी क़तई तदबीर (क़ज़ा व क़द्र) से जिस तरह तूने चाहा हो और जिस वक़्त चाहा हो तजावुज़ मुमकिन है। इस मसलेहत की वजह से जिसे तू ही बेहतर जानता है। बहरहाल तेरी तक़दीर और तेरे इरादे व मशीयत की निस्बत तुझ पर इल्ज़ाम आयद नहीं हो सकता। यहां तक के (इस ग़स्ब के नतीजे में) तेरे बरगुज़ीदा और जानशीन मग़लूब व मक़हूर हो गए, और उनका हक़ उनके हाथ से जाता रहा। वह देख रहे हैं के तेरे एहकाम बदल दिये गए। तेरी किताब पसे पुश्त डाल दी गयी। तेरे फ़राएज़ व वाजेबात तेरे वाज़ेह मक़ासिद से हटा दिये गये और तेरे नबी (स0) के तौर व तरीक़े मतरूक हो गए। बारे इलाहा! तू इन बरगुज़ीदा बन्दों के अगले और पिछले दुश्मनों पर और उन पर जो उन दुश्मनों के अमल व किरदार पर राज़ी व ख़ुशनूद हों और जो उनके ताबेअ और पैरोकार हों लानत फ़रमा।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा ‘‘बेशक तू क़ाबिले हम्द व सना बुज़ुर्गी वाला है।’’ जैसी रहमतें बरकतें और सलाम तूने अपने मुन्तख़ब व बरगुज़ीदा इबराहीम (अ0) और आले इबराहीम पर नाज़िल किये हैं और उन के लिये कशाइश राहत, नुसरत, ग़लबा और ताईद में ताजील फ़रमा। बारे इलाहा! मुझे तौहीद का अक़ीदा रखने वालों, तुझ पर ईमान लाने वालों और तेरे रसूल (स0) और आईम्मा (अ0) की तस्दीक़ करने वालों में से क़रार दे जिनकी इताअत को तूने वाजिब किया है। इन लोगों में से जिनके वसीले और जिनके हाथों से (तौहीद, ईमान और तस्दीक़) यह सब चीज़ें जारी करें। मेरी दुआ को क़ुबूल फ़रमा ऐ तमाम जहानों के परवरदिगार! बारे इलाहा! तेरे हिल्म के सिवा कोई चीज़ तेरे ग़ज़ब को टाल नहीं सकती और तेरे अफ़ो व दरगुज़र के सिवा कोई चीज़ तेरी नाराज़गी को पलटा नहीं सकती और तेरी रहमत के सिवा कोई चीज़ तेरे अज़ाब से पनाह नहीं दे सकती और तेरी बारगाह में गिड़गिड़ाहट के अलावा कोई चीज़ तुझसे रिहाई नहीं दे सकती है। लेहाज़ा तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपनी इस क़ुदरत से जिससे तू मुर्दों को ज़िन्दा और बन्जर ज़मीनों को शादाब करता है। मुझे अपनी जानिब से ग़मो अन्दोह से छुटकारा दे। बारे इलाहा! जब तक तू मेरी दुआ क़ुबूल न फ़रमाए और उसकी क़ुबूलियत से आगाह न कर दे मुझे ग़म व अन्दोह से हलाक न करना, और ज़िन्दगी के आख़री लम्हों तक मुझे सेहत व आफ़ियत की लज़्ज़त से शाद काम रखना। और दुश्मनों को (मेरी हालत पर) ख़ुश होने और मेरी गर्दन पर सवार और मुझ पर मुसल्लत होने का मौक़ा न देना। बारे इलाहा! अगर तू मुझे बलन्द करे तो कौन पस्त कर सकता है और तू पस्त करे तो कौन बलन्द कर सकता है और तू इज़्ज़त बख़्शे तो कौन ज़लील कर सकता है, और तू ज़लील करे तो कौन इज़्ज़त दे सकता है। और तू मुझ पर अज़ाब करे तो कौन मुझ पर तरस खा सकता है और अगर तू हलाक करे तो कौन तेरे बन्दे के बारे में तुझ पर मोतरज़ हो सकता है या इसके मुताल्लिक़ तुझसे कुछ पूछ सकता है। और मुझे ख़ूब इल्म है के तेरे फ़ैसले में न ज़ुल्म का शाएबा होता है और न सज़ा देने में जल्दी होती है। जल्दी तो वह करता है जिसे मौक़े के हाथ से निकल जाने का अन्देशा हो और ज़ुल्म की उसे हाजत होती है जो कमज़ोर व नातवां हो, और तू ऐ मेरे माबूद! इन चीज़ों से बहुत बलन्द व बरतर है। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे बलाओं का निशाना और अपनी उक़ूबतों का हदफ़ न क़रार दे, मुझे मोहलत दे और मेरे रंज व ग़म को दूर कर, मेरी लग़्िज़शों को माफ़ कर दे और मुझे एक मुसीबत के बाद दूसरी मुसीबत में मुब्तिला न कर, क्योंके तू मेरी नातवानी, बेचारगी और अपने हुज़ूर मेरी गिड़गिड़ाहट को देख रहा है। बारे इलाहा! मैं आज के दिन तेरे ग़ज़ब से तेरे ही दामन में पनाह मांगता हूं। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे पनाह दे और मैं आज के दिन तेरी नाराज़गी से अमान चाहता हूं। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे अमान दे और तेरे अज़ाब से अमन तलबगार हूं। तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे (अज़ाब से) मुतमईन कर दे। और तुझसे हिदायत का ख़्वास्तगार हूं, तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे हिदायत फ़रमा। और तुझसे मदद चाहता हूं। तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मेरी मदद फ़रमा। और तुझसे रहम की दरख़्वास्त करता हूं, तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझ पर रहम कर। और तुझसे बेनियाज़ी का सवाल करता हूं, तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे बेनियाज़ कर दे और तुझसे रोज़ी का सवाल करता हूं, तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे रोज़ी दे, और तुझसे कमंग का तालिब हूं तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मेरी कमंग फ़रमा। और गुज़िश्ता गुनाहों की आमर्ज़िश का ख़्वास्तगार हूं तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे बख़्श दे, और तुझसे (गुनाहों के बारे में) बचाव का ख़्वाहा हूं, तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे (गुनाहों से) बचाए रख। इसलिये के अगर तेरी मशीयत शामिले हाल रही तो किसी ऐसी काम का जिसे तू मुझसे नापसन्द करता हो, मुरतकिब न हूंगा, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार! ऐ मेहरबान, ऐ नेमतों के बख़्शने वाले ऐ जलालत व बुज़ुर्गी के मालिक तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और जो कुछ मैंने मांगा और जो कुछ तलब किया है और जिन चीज़ों के हुसूल के लिये तेरी बारगाह का रूख़ किया है। उनसे अपना इरादा, हुक्म और फैसला मुताल्लिक़ कर और उन्हें जारी कर दे। और जो भी फ़ैसले करे उसमें मेरे लिये भलाई क़रार दे और मुझे उसमें बरकत अता कर और इसके ज़रिये मुझ पर एहसान फ़रमा और जो अता फ़रमाए उसके वसीले से मुझे ख़ुशबख़्त बना दे और मेरे लिये अपने फ़ज़्ल व कशाइश को जो तेरे पास है, ज़्यादा कर दे इसलिये के तू तवंगर व करीम है। और इसका सिलसिला आख़ेरत की ख़ैर व नेकी और वहां की नेमते फ़रावां से मिला दे। ऐ तमाम रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले।

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