Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 32nd dua (tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



 बत्तीसवीं दुआ
एतराफ़े गुनाह के सिलसिले में हज़रत (अ0) की दुआ जिसे नमाज़े शब के बाद पढ़ते

 
 
ऐ अल्लाह! ऐ दाएमी व अबदी बादशाही वाले और लश्कर व ऐवना के बग़ैर मज़बूत फ़रमानरवाई वाले और ऐसी इज़्ज़त व रिफ़अत वाले जो सदियों, सालों, ज़मानों और दिनों के बीतने, गुज़रने के बावजूद पाइन्दा व बरक़रार है। तेरी बादशाही ऐसी ग़ालिब है जिसकी इब्तिदा की कोई हद है और न इन्तेहा का कोई आखि़री किनारा है। और तेरी जहानदारी का पाया इतना बलन्द है के तमाम चीज़ें उसकी बलन्दी को छूने से क़ासिर हैं और तारीफ़ करने वालों की इन्तेहाई तारीफ़ तेरी उस बलन्दी के पस्ततरीन दरजे तक भी नहीं पहुंच सकती। जिसे तूने अपने लिये मखा़सूस किया है। सिफ़तों के कारवाँ तेरे बारे में सरगर्दां हैं। और तौसीफ़ी अलफ़ाज़ तेरे लाएक़े हाल मदह तक पहुंचने से आजिज़ हैं और नाज़ुक तससव्वुरात तेरे मक़ामे किबरियाई में शशदर व हैरान हैं। तू वह ख़ुदाए अज़ली है जो अज़ल ही से ऐसा है और हमेशा बग़ैर ज़वाल के ऐसा ही रहेगा। मैं तेरा वह बन्दा हूं जिसका अमल कमज़ोर और सरमायाए उम्मीद ज़्यादा है, मेरे हाथ से ताल्लुक़ व वाबस्तगी के रिष्ते जाते रहे हैं, मगर वह रिष्ता जिसे तेरी रहमत ने जोड़ दिया है और उम्मीदों के वसीले भी एक-एक करके टूट गए हैं। मगर तेरे अफ़ो व दरगुज़र का वसीला जिस पर सहारा किये हुए हूं, तेरी इताअत जिसे किसी षुमार में ला सकूं,  न होने के बराबर है और वह मासियत जिसमें गिरफ्तार हूं बहुत ज़्यादा है। तुझे अपने किसी बन्दे को माफ़ कर देना अगरचे वह कितना ही बुरा क्यों न हो, दुश्वार नहीं है। तो फिर मुझे भी माफ़ कर दे। ऐ अल्लाह! तेरा इल्म तमाम पोशीदा आमाल पर मोहीत है और तेरे इल्म व इत्तेलाअ के आगे हर मख़फ़ी चीज़ ज़ाहिर व आशकारा है और बारीक से बारीक चीज़ें भी तेरी नज़र से पोशीदा नहीं हैं और न राज़हाए दरवने पर्दा तुझसे मख़फ़ी हैं तेरा वह दुश्मन जिसने मेरे बे राहरौ होने के सिलसिले में तुझसे मोहलत मांगी और तूने उसे मोहलत दी, और मुझे गुमराह करने के लिये रोज़े क़यामत तक फ़ुरसत तलब की और तूने उसे फ़ुरसत दी, मुझ पर ग़ालिब आ गया है। और जबके मैं हलाक करने वाले सग़ीरा गुनाहों और तबाह करने वाले कबीरा गुनाहों से तेरे दामन में पनाह लेने के लिये बढ़ रहा था उसने मुझे आ गिराया। और जब मैं गुनाह का मुरतकिब हुआ और अपनी बदआमाली की वजह से तेरी नाराज़ी का मुस्तहक़ बना तो उसने अपने हीला व फ़रेब की बाग मुझसे मोड़ ली। और अपने कलमए कुफ्र के साथ मेरे सामने आ गया और मुझसे बेज़ारी का इज़हार किया और मेरी जानिब से पीठ फिराकर चल दिया और मुझे खुले मैदान में तेरे ग़ज़ब के सामने अकेला छोड़ दिया। और तेरे इन्तेक़ाम की मन्ज़िल में मुझे खींच तान कर ले आया। इस हालत में के न कोई सिफ़ारिश करने वाला था जो तुझसे मेरी सिफ़ारिश करे और न कोई पनाह देने वाला था जो मुझे तेरे अज़ाब से ढारस दे और न कोई चार दीवारी थी जो मुझे तेरी निगाहों से छिपा सके और न कोई पनाहगाह थी जहां तेरे ख़ौफ़ से पनाह ले सकूं। अब यह मन्ज़िल मेरे पनाह मांगने और यह मक़ाम मेरे गुनाहों का एतराफ़ करने का, लेहाज़ा ऐसा न हो के तेरे दामने फ़ज़्ल (की वुसअतें) मेरे लिये तंग हो जाएं और अफ़ो व दरगुज़र मुझ तक पहुंचने ही न पाए और न तौबागुज़ार बन्दों में सब से ज़्यादा नाकाम साबित हूं और न तेरे पास उम्मीदें लेकर आने वालों में सबसे ज़्यादा नाउम्मीद रहूं (बारे इलाहा!) मुझे बख़्श दे इसलिये के तू बख्शने वालों में सबसे बेहतर है।
 
ऐ अल्लाह! तूने मुझे (इताअत का) हुक्म दिया मगर मैं उसे बजा न लाया और (बुरे आमाल से) मुझे रोका मगर उनका मुरतकिब होता रहा। और बुरे ख़यालात ने जब गुनाह को ख़ुषनुमा करके दिखाया तो (तेरे एहकाम में) कोताही की। मैं न रोज़ा रखने की वजह से दिन को गवाह बना सकता हूं। और न नमाज़े शब की वजह से रात को अपनी सिपर बना सकता हूं और न किसी सुन्नत को मैंने ज़िन्दा किया है के उससे तहसीन व सना की तवक़्क़ो करूं सिवाए तेरे वाजेबात के के जो उन्हें ज़ाया करे वह बहरहाल हलाक व तबाह होगा और नवाफ़िल के फ़ज़्ल व शरफ़ की वजह से भी तुझसे तवस्सुल नहीं कर सकता दरसूरतीके तेरे वाजिबात के बहुत से शराएत से ग़फ़लत करता रहा और तेरे एहकाम के हुदूद से तजावुज़ करता हुआ महारम शरीयत का दामन चाक करता रहा, और कबीरा गुनाहों का मुरतकब होता रहा जिनकी रूसवाइयों से सिर्फ़ तेरा दामने अफ़ो व रहमत परदापोश रहा। यह (मेरा मौक़फ़) उस शख़्स का मौक़फ़ है जो तुझसे षर्म व हया करते हुए अपने नफ्स को बुराइयों से रोकता हो, और उसपर नाराज़ हो और तुझसे राज़ी हो, और तेरे सामने ख़ौफ़ज़दा दिल, ख़मीदा गर्दन और गुनाहों से बोझल पीठ के साथ उम्मीद व बीम की हालत में इसतादा हो और तू उन सबसे ज़्यादा सज़ावार है जिनसे उसने आस लगाई और उन सबसे ज़्यादा हक़दार है जिनसे वह हरासां व ख़ाएफ़ हुआ।
 
ऐ मेरे परवरदिगार! जब यही हालत मेरी है तो मुझे भी वह चीज़ मरहमत फ़रमा, जिसका मैं उम्मीदवार हूं। और उस चीज़ से मुतमईन कर जिससे ख़ाएफ़ हूं और अपनी रहमत के इनआम से मुझ पर एहसान फ़रमा। इसलिये के तू उन तमाम लोगों से जिनसे सवाल किया जाता है ज़्यादा सख़ी व करीम है।
 
ऐ अल्लाह जबके तूने मुझे अपने दामने अफ़ो में छिपा लिया है और हमसरों के सामने इस दारे फ़ना में फ़ज़्ल व करम का जामा पहनाया है। तो दारे बक़ा की रूसवाईयों से भी पनाह दे। इस मक़ाम पर के जहां मुक़र्रब फ़रिश्ते, मोअजि़्ज़ज़ व बावेक़ार पैग़म्बर, षहीद व सालेह अफ़राद सब हाज़िर होंगे, कुछ तो हमसाये होंगे जिनसे मैं अपनी बुराइयों को छिपाता रहा हूं, और कुछ ख़वीश व अक़ारिब होंगे जिनसे मैं अपने पोशीदा कामों में शर्म व हया करता रहा हूं। ऐ मेरे परवरदिगार! मैंने अपनी परदापोशी में उन पर भरोसा नहीं किया और मग़फ़ेरत के बारे में परवरदिगारा तुझ पर एतमाद किया है और तू उन तमाम लोगों से जिन पर एतमाद किया जाता है। ज़्यादा सज़ावार एतमाद है और उन सबसे ज़्यादा अता करने वाला है जिनकी तरफ़ रूजू हो जाता है और उन सबसे ज़्यादा मेहरबान है जिनसे रहम की इल्तेजा की जाती है। लेहाज़ा मुझ पर रहम फ़रमा।
 
ऐ अल्लाह तूने मुझे बाहम पोशीदा हड्डियों और तंग राहों वाली सल्ब से तंग नाए रह्म में के जिसे तूने पर्दों में छिपा रखा है एक ज़लील पानी (नुत्फ़े) की सूरत में उतारा जहां तू मुझे एक हालत से दूसरी हालत की तरफ़ मुन्तक़िल करता रहा यहां तक के तूने मुझे इस हद तक पहुंचा दिया। जहां मेरी सूरत की तकमील हो गयी। फिर मुझमें आज़ाए व जवारेह व दीअत किये। जैसा के तूने अपनी किताब में ज़िक्र किया है। के (मैं) पहले नुत्फ़ा था। फ़िर मुन्जमिद ख़ून हुआ फिर गोश्त का एक लोथड़ा, फिर हड्डियों का एक ढांचा फिर उन हड्डियों पर गोश्त की तहें चढ़ा दीं। फिर जैसा तूने चाहा एक दूसरी तरह की मख़लूक़ बना दिया और जब मैं तेरी रोज़ी का मोहताज हुआ और लुत्फ़ व एहसान की दस्तगीरी से बेनियाज़ न रह सका, तो तूने उस बचे हुए खाने पानी में से जिसे तूने उस कनीज़ के लिये जारी किया था जिसके शिकम में तूने मुझे ठहरा दिया और जिसके रह्म में मुझे वदीअत किया था। मेरी रोज़ी का सरो सामान कर दिया। ऐ मेरे परवरदिगार उन हालात में अगर तू ख़ुद मेरी तदबीर पर मुझे छोड़ देता या मेरी ही क़ूवत के हवाले कर देता तो तदबीर मुझसे किनाराकश और क़ूवतम ुझसे देर रहती, मगर तूने अपने फ़ज़्ल व एहसान से एक शफ़ीक़ व मेहरबान की तरह मेरी परवरिश का एहतेमाम किया जिसका तेरे फ़ज़्ले बेपायां की बदौलत इस वक़्त तक सिलसिला जारी है के न तेरे हुस्ने सुलूक से कभी महरूम रहा और न तेरे एहसानात में कभी ताख़ीर हुई। लेकिन इसके बावजूद यक़ीन व एतमाद क़वी न हुआ के मैं सिर्फ़ उसी काम के लिये वक़्फ़ हो जाता जो तेरे नज़दीक मेरे लिये ज़्यादा सूदमन्द है (इस बेयक़ीनी का सबब यह है के) बदगुमानी और कमज़ोरी यक़ीन के सिलसिले में मेरी बाग शैतान के हाथ में है। इसलिये मैं उसकी बद हमसायगी और अपने नफ़्स की फ़रमाबरदारी का शिकवा करता हूँ और उसके तसल्लुत से तेरे दामन में तहफ़्फ़ुज़ व निगेहदाश्त का तालिब हूँ और तुझसे आजिज़ी के साथ इल्तिजा करता हूँ के इसके मक्र व फ़रेब का रूख़ मुझसे मोड़ दे और तुझसे सवाल करता हूँ के मेरी रोज़ी की आसान सबील पैदा कर दे। तेरे ही लिये हम्द व सताइश है के तूने अज़ख़ुद बलन्दपाया नेमतें अता कीं और एहसान व इनआम पर (दिल में) शुक्र का अलक़ा किया। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरे लिये रोज़ी को सहल व आसान कर दे और जो अन्दाज़ा मेरे लिये मुक़र्रर किया है, उस पर क़नाअत की तौफ़ीक़ दे और जो हिस्सा मेरे लिये मुअय्यन किया है उस पर मुझे राज़ी कर दे और जो जिस्म काम में आ चुका और जो उम्र गुज़र चुकी है उसे अपनी इताअत की राह में महसूब फ़रमा, बिलाशुबह तू असबाबे रिज़्क़ मुहय्या करने वालों में सबसे बेहतरीन है, बारे इलाहा मैं उस आग से पनाह मांगता हूं जिसके ज़रिये तूने अपने नाफ़रमानों की सख़्त गिरफ़्त की है और जिससे तूने उन लोगों को जिन्होंने तेरी रज़ा व ख़ुशनूदी से रूख़ मोड़ लिया, डराया और धमकाया है और उस आतिशे जहन्नम से पनाह मांगता हूं जिसमें रोशनी के बजाए अन्धेरा जिसका ख़फ़ीफ़ लपका भी इन्तेहाई तकलीफ़देह और जो कोसों दूर होने के बावजूद (गर्मी व तपिश के लिहाज़ से) क़रीब है और उस आग से पनाह मांगता हूं जो आपस में एक दूसरे को खा लेती है और एक दूसरे पर हमलावर होती है और उस आग से पनाह मांगता हूं जो हड्डियों को ख़ाकसर कर देगी और दोज़खि़यों को खौलता हुआ पानी पिलाएगी। और उस आग से के जो उसके आगे गिड़गिड़ाएगा, उस पर तरस नहीं खाएगी और जो उससे रहम की इल्तेजा करेगा, उस पर रहम नहीं करेगी और जो उसके सामने फ़रवतनी करेगा और ख़ुदको उसके हवाले कर देगा उस पर किसी तरह की तख़फ़ीफ़ का उसे इख़्तेयार नहीं होगा। वह दर्दनाक अज़ाब और शदीद एक़ाब की शोला सामानियों के साथ अपने रहने वालों का सामान करेगी। (बारे इलाहा!) मैं तुझसे पनाह मांगता हूं जहन्नम के बिच्छुओं से जिनके मुंह खुले होंगे और उन सांपों से जो दांतों को पीस पीस कर फुंकार रहे होंगे और उसके खौलते हुए पानी से जो अन्तड़ियों और दिलों को टुकड़े-टुकड़े कर देगा और (सीनों को चीरकर) दिलों को निकाल लेगा।
 
ख़ुदाया! मैं तुझसे तौफ़ीक़ मांगता हूं उन बातों की जो उस आग से दूर करें, और उसे पीछे हटा दें, ख़ुदावन्दा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे अपनी रहमते फ़रावां के ज़रिये उस आग से पनाह दे और हुस्ने दरगुज़र से काम लेते हुए मेरी लग़्िज़शों को माफ़ कर दे और मुझे महरूम व नाकाम न कर। ऐ पनाह देने वालों में सबसे बेहतर पनाह देने वाले। ख़ुदाया तू सख़्ती व मुसीबत से बचाता और अच्छी नेमतें अता करता और जो चाहे वह करता है और तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
 
ऐ अल्लाह! जब भी नेकोकारों का ज़िक्र आए तो मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और जब तक शब व रोज़ के आने जाने का सिलसिला क़ायम रहे। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा। ऐसी रहमत जिसका ज़ख़ीरा ख़त्म न हो और जिसकी गिनती शुमार न हो सके। ऐसी रहमत जो फ़िज़ाए आलम को पुर कर दे और ज़मीन व आसमान को भर दे। ख़ुदा उन पर रहमत नाज़िल करे इस हद तक के वह ख़ुशनूद हो जाए और ख़ुशनूदी के बाद भी उन पर और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल करता रहे। ऐसी रहमत जिसकी न कोई हद हो और न कोई इन्तेहा, ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।
 

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