पैसठवीं दुआ
दुआए रोज़े चहारशम्बा
तमाम तारीफ़ उस तआला के लिये है जिसने रात को पर्दा बनाया और नीन्द को आराम व राहत का ज़रिया और दिन को हरकत व अमल के लिये क़रार दिया। तमाम तारीफ़ तेरे ही लिये है के तूने मुझे मेरी ख़्वाबगाह से ज़िन्दा और सलामत उठाया। और अगर तू चाहता तो उसे दाएमी ख़्वाबगाह बना देता। ऐसी हम्द जो हमेशा हमेशा रहे, जिसका सिलसिला क़ता न हो और न मख़लूक़ उसकी गिनती का शुमार कर सके।
बारे इलाहा! तमाम तारीफ़ तेरे ही लिये है के तूने पैदा किया, तो हर लेहाज़ से दुरूस्त पैदा किया। अन्दाज़ा मुक़र्रर किया और हुक्म नाफ़ि़ज़ किया, मौत दी और ज़िन्दा किया। बीमार डाला और शिफ़ा भी बख़्शी, आफ़ियत दी और मुब्तिला भी किया अैर तू अर्श पर मुतमकिन हुआ और मुल्क पर छा गया। मैं तुझसे दुआ मांगने में उस शख़्स का सा तर्ज़े अमल इख़्तियार करता हूं जिसका वसीला कमज़ोर, चाराए कार ख़त्म और मौत का हंगाम नज़दीक हो। दुनिया में उसकी उम्मीदों का दामन सिमट चुका हो और तेरी रहमत की जानिब उसकी एहतियाज शदीद हो और अपनी कोताहियों की वजह से उसे बड़ी हसरत और उसकी लग्ज़िशों और ख़ताओं की कसरत हो और तेरी बारगाह में सिद्क़े नीयत से उसकी तौबा हो चुकी हो तो अब ख़ातेमुल अम्बियाा मोहम्मद (स0) और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे मोहम्मद (स0) सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की शिफ़ाअत नसीब कर और मुझे उनकी हमनशीनी से महरूम न कर। इसलिये के तू तमाम रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाला है। बारे इलाहा! इस रोज़े चहारशम्बा मेंमेरी चार हाजतें पूरी कर दे। यह के इत्मीनान हो तो तेरी फ़रमाबरदारी में, सुरूर हो तो तेरी इबादत में, ख़्वाहिश हो तो तेरे सवाब की जानिब, और किनाराकशी हो तो उन चीज़ों से जो तेरे दर्दनाक अज़ाब का बाएस हैं। बेशक तू जिस चीज़ के लिये चाहे अपने लुत्फ़ को कार फ़रमा करता है।
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