Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 23rd dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


तेईसवीं दुआ
जब तलबे आफ़ियत करते और उस पर शुक्र अदा करते तो यह दुआ पढ़ते।
 
ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे अपनी आफ़ियत का लिबास पहना, अपनी आफ़ियत की रिदा ओढ़ा, अपनी आफ़ियत के ज़रिये महफ़ूज़ा रख, अपनी आफ़ियत के ज़रिये इज़्ज़त व वेक़ार दे, अपनी आफ़ियत के ज़रिये बेनियाज़ कर दे। अपनी आफ़ियत की भीक मेरी झोली में डाल दे, अपनी आफ़ियत मुझे मरहमत फ़रमा। अपनी आफ़ियत को मेरा ओढ़ना बिछोना क़रार दे। अपनी आफ़ियत की मेरे लिये इस्लाह व दुरूस्ती फ़रमा और दुनिया व आख़ेरत में मेरे और अपनी आफ़ियत के दरम्यान जुदाई न डाल।
 
ऐ मेरे माबूद! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे ऐसी आफ़ियत दे जो बेनियाज़ करने वाली, शिफ़ा बख़्शने वाली (इमराज़ के दस्तरस से) बाला और रोज़े अफ़ज़ों हो। ऐसी आफ़ियत जो मेरे जिस्म में दुनिया व आख़ेरत की आफ़ियत को जनम दे। और सेहत, अमन, जिस्म व ईमान की सलामती, क़ल्बी बसीरत, निफ़ाज़े उमूर की सलाहियत, हम व ख़ौफ़ का जज़्बा और जिस इताअत का हुक्म दिया है उसके बजा लाने की क़ूवत और जिन गुनाहों से मना किया है उनसे इजतेनाब की तौफ़ीक़ बख़्श कर मुझ पर एहसान फ़रमा।
 
बारे इलाहा! मुझ पर यह एहसान भी फ़रमा के जब तक तू मुझे ज़िन्दा रखे हमेषा इस साल भी और हर साल हज व उमरा और क़ब्रे रसूल सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम और क़ुबूरे आले रसूल (स0) समामुल्लाहे अलैहिम की ज़ियारत करता रहूँ और उन इबादतों को मक़बूल व पसन्दीदा क़ाबिले इलतेफ़ात और अपने हाँ ज़ख़ीरा क़रार दे, और हम्द व शुक्र व ज़िक्र और सनाए जीमल के नग़मों से मेरी ज़बान को गोया रख और दीनी हिदायतों के लिये मेरे दिल की गिरहें खोल दे और मुझे और मेरी औलाद को षैतान मरदूद और ज़हरीले जानवरों, हलाक करने वाले हैवानों और दूसरे जानवरों के गज़न्द और चश्मेब द से पनाह दे और हर सरकश शैतान, हर ज़ालिम हुकमरान, हर जमा जत्थे वाले मग़रूर, हर कमज़ोर और ताक़तवर, हर आला व अदना, हर छोटे बड़े और हर नज़दीक और दूर वाले और जिन्न व इन्स में से तेरे पैग़म्बर और उनके अहलेबैत से बरसरे पैकार होने वाले और हर हैवान के शर से जिन पर तुझे तसल्लत हासिल है, महफ़ूज़ रख। इसलिये के तू हक़ व अद्ल की राह पर है।
 
 
ऐ अल्लाह मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और जो मुझसे बुराई करना चाहे उसे मुझसे रूगर्दा कर दे, उसका मक्र मुझसे दूर, उसका असर मुझसे दफ़ा कर दे और उसके मक्र व फ़रेब (के तीर) उसी के सीने की तरफ़ पलटा दे और उसके सामने एक दीवार खड़ी कर दे यहाँ तक के उसकी आंखों को मुझे देखने से नाबीना और उसके कानों को मेरा ज़िक्र सुनने से बहरा कर दे और उसके दिल पर क़फ़्ल चढ़ा दे ताके मेरा उसे ख़याल न आए। और मेरे बारे में कुछ कहने सुनने से उसकी ज़बान को गंग कर दे, उसका सर कुचल दे, उसकी इज़्ज़त पामाल कर दे, उसकी तमकनत को तोड़ दे। उसकी गर्दन में ज़िल्लत का तौक़ डाल दे उसका तकब्बुर ख़त्म कर दे और मुझे उसकी ज़रर रसानी, शर पसन्दी, तानाज़नी, ग़ीबत, ऐबजोई, हसद, दुश्मनी और उसके फन्दों, हथकण्डों, प्यादों और सवारों से अपने हिफ़्ज़ व अमान में रख। यक़ीनन तू ग़लबा व इक़तेदार का मालिक है।

No comments:

Post a Comment