छार्छठवीं (66) दुआ
दुआए रोज़े पंज शंबा
सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसने अपनी क़ुदरत से अन्धेरी रात को रूख़सत किया और अपनी रहमत से रौशन दिन निकाला और उसकी रौशनी का ज़रतार जामा मुझे पहनाया और उसकी नेमत से बहरामन्द किया। बारे इलाहा! जिस तरह तूने इस दिन के लिये मुझे बाक़ी रखा इसी तरह इस जैसे दूसरे दिनों के लिये ज़िन्दा रख और अपने पैग़म्बर मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और इस दिन में और इसके अलावा और रातों और दिनों में हराम उमूर के बजा लाने और गुनाह व मआसी के इरतेकाब करने से रन्जीदा ख़ातिर न कर और मुझे इस दिन की भलाई और जो इसके बाद है उसकी भलाई अता कर और इस दिन की बुराई और जो कुछ इस दिन में है उसकी बुराई और जो इसके बाद है उसकी बुराई मुझसे दूर कर दे। ऐ अल्लाह! मैं सलाम के अहद व पैमान के ज़रिये तुझसे तवस्सुल चाहता हूं और क़ुरान की इज़्ज़त व हुरमत के वास्ते तुझ पर भरोसा करता हूं अैर मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के वसीले के तेरी बारगाह में शिफ़ाअत का तलबगार हूं।
तो ऐ मेरे माबूद! मेरे इस अहद व पैमान पर नज़र कर जिसके वसीले से हाजत बर आरी का उम्मीदवार हूं। ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले। बारे इलाहा! इस रोज़े पन्जशम्बा में मेरी पांच हाजतें बर ला जिनकी समाई तेरे ही दामने करम में है और तेरी ही नेमतों की फ़रावानी उनकी मुतहम्मिल हो सकती है। ऐसी सलामती दे जिससे तेरी फ़रमानबरदारी की क़ूवत हासिल कर सकूं। ऐसी तौफ़ीक़े इबादत दे जिससे तेरे सवाबे अज़ीम का मुस्तहेक़ क़रार पाऊं। अैर सरे दस्त रिज़्क़े हलाल की फ़रावानी और ख़ौफ़ व ख़तरे के मवाक़े पर अपने अमन के ज़रिये मुतमइन कर दे और ग़मों और फ़िक्रों के हुजूम से अपनी पनाह में रख। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और उनसे मेरे तवस्सुल को क़यामत के दिन सिफ़ारिश करने वाला, नफ़ा बख़्शने वाला क़रार दे। बेशक तू रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाला है।
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