Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 38th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



 अढ़तीसवीं दुआ
बन्दों की हक़तलफ़ी और उनके हुक़ूक़ में कोताही से माज़ेरत तलबी और दोज़ख़ से गुलू ख़लासी के लिये यह दुआ पढ़ते
 

 
बारे इलाहा! मैं उस मज़लूम की निस्बत जिस पर मेरे सामने ज़ुल्म किया गया हो और मैंने उसकी मदद न की हो और मेरे साथ कोई नेकी की गई हो और मैंने उसका शुक्रिया अदा न किया हो और उस बदसुलूकी करने वाले की बाबत जिसने मुझसे माज़ेरत की हो और मैंने उसके उज़्र को न माना हो, और फ़ाक़ाकश के बारे में जिसने मुझसे मांगा हो और मैंने उसे तरजीह न दी हो और उस हक़दार मोमिन के हक़ के मुताल्लिक़ जो मेरे ज़िम्मे हो और मैंने अदा न किया हो और उस मर्दे मोमिन के बारे में जिसका कोई ऐब मुझ पर ज़ाहिर हुआ हो और मैंने उस पर पर्दा न डाला हो। और हर उस गुनाह से जिससे मुझे वास्ता पड़ा हो और मैंने उससे किनाराकशी न की हो, तुझसे उज़्रख़्वाह हूं। 

बारे इलाहा! मैं उन तमाम बातों से और उन जैसी दूसरी बातों से शर्मसारी व निदामत के साथ ऐसी माज़ेरत करता हूं जो मेरे लिये उन जैसी पेश आईन्द चीज़ों के लिये पन्द व नसीहत करने वाली हो। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और लग़्िज़शों से जिनसे मैं दो-चार हुआ हूं मेरी पशेमानी को और पेश आने वाली बुराईयों से दस्तबरदार होने के इरादे को ऐसी तौबा क़रार दे जो मेरे लिये तेरी मोहब्बत का बाएस हो। ऐ तौबा करने वालों को दोस्त रखने वाले।

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