Thursday 20 September 2012

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सैंतालीसवीं दुआ
दुआए रोज़े अरफ़ा


सब तारीफ़ उस अल्लाह तआला के लिये हैं जो तमाम जहानों का परवरदिगार है। बारे इलाहा! तेरे ही लिये तमाम तारीफ़ें हैं ऐ आसमान व ज़मीन के पैदा करने वाले, ऐ बुज़ुर्गी व एज़ाज़ वाले! ऐ पालने वालों के पालने वाले। ऐ हर परस्तार के माबूद! ऐ हर मख़लूक़ के ख़ालिक़ और हर चीज़ के मालिक व वारिस। उसके मिस्ल कोई चीज़ नहीं है और न कोई चीज़ इसके इल्म से पोषीदा है। वह हर चीज़ पर हावी और हर षै पर निगरां है। तू ही वह अल्लाह है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं जो एक अकेला और यकता व यगाना है। और तू ही वह अल्लाह है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं जो बख़्षने वाला और इन्तेहाई बख़्षने वाला अज़मत वाला और इन्तेहाई अज़मत वाला और बड़ा और इन्तेहाई बड़ा है। और तू ही वह अल्लाह है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं जो बलन्द व बरतर और बड़ी क़ूवत व तदबीर वाला है और तू ही वह अल्लाह है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं जो फ़ैज़े रसां, मेहरबान और इल्म व हिकमत वाला है और तू ही वह माबूद है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं, जो करीम और सबसे बढ़कर करीम और दाएम व जावेद है। और तू ही वह माबूद है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। जो हर षै से पहले और हर षुमार में आने वाली षै के बाद है। और तू ही वह माबूद है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। जो हर षै से पहले और हर षुमार में आने वाली षै के बाद है। और तू ही वह माबूद है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं जो (कायनात के दस्तेरस) से बाला होने के बावजूद नज़दीक और नज़दीक होने के बावजूद (फ़हम और इदराक से) बलन्द है। और तू ही वह माबूद है के तेरे सिवा कोई माबूद नहीं जो जमाल व बुज़ुर्गी और अज़मत व सताइष वाला है और तू ही वह अल्लाह (ज0) है के तेरे अलावा कोई माबूद नहीं। जिसन बग़ैर मवाद के तमाम चीज़ों को पैदा किया और बगैर किसी नमूना व मिसाल के सूरतों की नक़्ष आराई की और बग़ैर किसी की पैरवी के मौजूदात को ख़लअते वजूद बख़्षा। तू ही वह है जिसने हर चीज़ का एक अन्दाज़ा ठहराया है और हर चीज़ को उसके वज़ाएफ़ की अन्जाम देही पर आमादा किया है और कायनाते आलम में से हर चीज़ की तद्बीर व कारसाज़ी की है। तो वह है के आफ़रीन्ष आलम में किसी षरीके कार ने तेरा हाथ नहीं बटाया और न किसी मआवुन ने तेरे काम में तुझे मदद दी है और न कोई तेरा देखने वाला और न कोई तेरा मिस्ल व नज़ीर था और तूने जो इरादा किया वह हतमी व लाज़मी और जो फ़ैसला किया वह अद्ल के तक़ाज़ों के ऐन मुताबिक़ और जो हुक्म दिया वह इन्साफ़ पर मबनी था। तू वह है जिसे कोई जगह घेरे हुए नहीं है और न तेरे इक़्तेदार का कोई इक़्तेदार मुक़ाबेला कर सकता है। और न तू दलील व बुरहान और किसी चीज़ को वाज़ेअ तौर पर पेश करने से आजिज़ है। तू वह है जिसने एक एक चीज़ को षुमार कर रखा है और हर चीज़ की एक मुद्दत मुक़र्रर कर दी है और हर शै का एक अन्दाज़ा ठहरा दिया है। तू वह है के तेरी कन्ह ज़ात को समझने से वाहमे क़ासिर और तेरी कैफ़ियत को जानने से अक़्लें आजिज़ हैं। और तेरी कोई जगह नहीं है के आंखें उसका खोज लगा सकें। तू वह है के तेरी कोई हद व नेहायत नहीं है के तू महदूद क़रार पाए और न तेरा तसव्वुर किया जा सकता है के तू तसव्वुर की हुई सूरत के साथ ज़ेहन में मौजूद हो सके और न तेरे कोई औलाद है के तेरे मुताल्लिक़ किसी की औलाद होने का एहतेमाल हो। तू वह है के तेरा कोई मद्दे मुक़ाबिल नहीं है के तुझसे टकराए और न तेरा कोई हमसर है के तुझ पर ग़ालिब आए और न तेरा कोई मिस्ल व नज़ीर है के तुझसे बराबरी करे। तू वह है जिसने ख़ल्के कायनात की इब्तिदा की आलम को ईजाद किया और उसकी बुनियाद क़ायम की। और बग़ैर किसी मादा व अस्ल के उसे वजूद में लाया और जो बनाया उसे अपने हुस्ने सनअत का नमूना बनाया। तू हर ऐब से मुनज़्ज़ह है। तेरी शान किस क़द्र बुज़ुर्ग और तमाम जगहों में तेरा पाया कितना बलन्द और तेरी हक़ व बातिल में इम्तियाज़ करने वाली किताब किस क़द्र हक़ को आशकारा करने वाली है। तू मुनज़्ज़ह है ऐ साहेबे लुत्फ़ व एहसान तू किस क़द्र लुत्फ़ फ़रमाने वाला है। ऐ मेहरबान तू किस क़द्र मेहरबानी करने वाला है। ऐ हिकमत वाले तू कितना जानने वाला है। पाक है तेरी ज़ात ऐ साहबे इक़्तेदार! तू किस क़द्र क़वी व तवाना है। ऐ करीम! तेरा दामने करम कितना वसीअ है। ऐ बलन्द मरतबा तेरा मरतबा कितना बलन्द है तू हुस्न व ख़ूबी, शरफ़ व बुज़ुर्गी, अज़मत व किबरियाई और हम्द व सताइश का मालिक है। पाक है तेरी ज़ात तूने भलाइयों के लिये अपना हाथ बढ़ाया है तुझ ही से हिदायत का इरफ़ान हासिल हुआ है। लेहाज़ा जो तुझे दीन या दुनिया के लिये तलब करे तुझे पा लेगा। तू मुनज़ज़ह व पाक है। जो भी तेरे इल्म में है वह तेरे सामने सरनिगूं और जो कुछ अर्श के नीचे है वह तेरी अज़मत के आगे सर ब ख़म और जुमला मख़लूक़ात तेरी इताअत का जुवा अपनी गर्दन में डाले हुए है। पाक है तेरी ज़ात के न हवास से तुझे जाना जा सकता है न तुझे टटोला और छुआ जा सकता है। न तुझ पर किसी का हीला चल सकता है न तुझे दूर किया जा सकता है। न तुझसे निज़ाअ हो सकती है न मुक़ाबला, न तुझसे झगड़ा किया जा सकता है और न तुझे धोका और फ़रेब दिया जा सकता है। पाक है तेरी ज़ात, तेरा रास्ता सीधा और हमवार, तेरा फ़रमान सरासर हक़ व सवाब और तू ज़िन्दा व बेनियाज़ है। पाक है तू, तेरी गुफ़तार हिकमत आमेज़, तेरा फै़सला क़तई और तेरा इरादा हतमी है। पाक है तू, न तो कोई तेरी मषीयत को रद्द कर सकता है और न कोई तेरी बातों को बदल सकता है। पाक है तू ऐ दरख़शिन्दा निशानियों वाले। ऐ आसमानों के ख़ल्क़ फ़रमाने वाले और ज़ी रूह चीज़ों के पैदा करने वाले तेरे ही लिये तमाम तारीफ़ें हैं। ऐसी तारीफ़ें जिनकी हमेशगी तेरी हमेशगी से वाबस्ता है और तेरे ही लिये सताइष है। ऐसी सताइष जो तेरी नेमतों के साथ हमेषा बाक़ी रहे और तेरे ही लिये हम्द व सना है। ऐसी जो तेरे करम व एहसान के बराबर हो और तेरे ही लिये हम्द है ऐसी जो तेरी रज़ामन्दी से बढ़ जाए। और तेरे ही लिये हम्द व सिपास है ऐसी जो हर हम्दगुज़ारी की हम्द पर मुश्तमिल हो और जिसके मुक़ाबले में हर शुक्रगुज़ार का शुक्र पीछे रह जाए। ऐसी हम्द जो तेरे अलावा किसी के लिये सज़ावार न हो और न तेरे सिवा किसी के तक़र्रूब का वसीला बने। ऐसी हम्द जो पहली हम्द के दवाम का सबब क़रार पाए और उसके ज़रिये आखि़री हम्द के दवाम की इल्तिजा की जाए ऐसी हम्द जो ज़माने की गर्दिशों के साथ बढ़ती जाए और पै दरपै इज़ाफ़ों से ज़्यादा होती रहे। ऐसी हम्द के निगेहबानी करने वाले फ़रिश्ते उसके शुमार से आजिज़ आ जाएं। ऐसी हम्द जो कातिबाने आमाल ने तेरी किताब में लिख दिया है इससे बढ़ जाए। ऐसी हम्द जो तेरे अर्शे बुज़ुर्ग को हमवज़न और तेरी बलन्द पाया कुर्सी के बराबर हो। ऐसी हम्द जिसका अज्र व सवाब तेरी तरफ़ से कामिल और जिस की जज़ा तमाम जज़ाओं को शामिल हो। ऐसी हम्द जिसका ज़ाहिर बातिन से हमनवा और बातिन सिद्क़े नीयत से हमआहंग हो। ऐसी हम्द के किसी मख़लूक़ ने वैसी तेरी हम्द न की हो और तेरे सिवा कोई उसकी फ़ज़ीलत व बरतरी से आषना न हो। ऐसी हम्द के जो उसंे बकसरत बजा लाने के लिये कोशां हो उसे (तेरी तरफ़ से) मदद हासिल हो और जो उसे अन्जाम तक पहुंचाने के लिये सई बलीग़ करे। उसे तौफ़ीक़ व ताईद नसीब हो। ऐसी हम्द जो तमाम इक़सामे हम्द की जामेअ हो जिन्हें तू मौजूद कर चुका है और उन इक़साम को भी शामिल हो जिन्हें तू बाद में मौजूद करेगा। सरगर्मे अमल, उनके ज़मानाए इक़्तेदार के मुन्तज़िर और उनके लिये चश्मे बराह हैं। ऐसी रहमत जो बाबरकत, पाकीज़ा और बढ़ने वाली और हर सुबह व शाम नाज़िल होने वाली हो और उन पर और उनके अरवाहे (तय्यबा) पर सलामती नाज़िल फ़रमा और उनके कामों को सलाह व तक़वा की बुनियादों पर क़ायम कर और उनके हालात की इस्लाह फ़रमा और उनकी तौबा क़ुबूल फ़रमा बेशक तू तौबा क़ुबूल करने वाला, रहम करने वाला और सबसे बेहतर बख़्शने वाला है। और हमें अपनी रहमत के वसीले से उनके साथ दारूस्सलाम (जन्नत) में जगह दे, ऐ सब रहीमों से ज़्यादा रहीम, परवरदिगारा! यह रोज़े अरफ़ा वह दिन है जिसे तूने शरफ़, इज़्ज़त और अज़मत बख़्शी है जिसमें अपनी रहमतें फैला दीं और अपने अफ़ो व दरगुज़र से एहसान फ़रमाया। अपने अतियों को फ़रावां किया और उसके वसीले से अपने बन्दों पर तफ़ज़्ज़ुल फ़रमाया है। ऐ अल्लाह! मैं तेरा वह बन्दा हूं जिसपर तूने उसकी खि़लक़त से पहले और खि़लक़त के बाद इनाम व एहसान फ़रमाया है। इस तरह के उसे उन लोगों में से क़रार दिया जिन्हें तूने अपने दीन की हिदायत की, अपने अदाए हक़ की तौफ़ीक़ बख़्शी जिनकी अपनी रीसमां के ज़रिये हिफ़ाज़त की जिन्हें अपनी जमाअत में दाखि़ल किया और अपने दोस्तों की दोस्ती और दुश्मनों की दुश्मनी की हिदायत फ़रमाई है। बाई हमह तूने उसे हुक्म दिया तो उसने हुक्म न माना, और मना किया तो वह बाज़ न आया और अपनी मासियत से रोका तो वह तेरे हुक्म के खि़लाफ़ अम्रे ममनूअ का मुरतकब हुआ। यह तुझसे अनाद और तेरे मुक़ाबले में तकब्बुर की रू से न था बल्कि ख़्वाहिशे नफ़्स ने उसे ऐसे कामों की दावत दी जिनसे तूने रोका और डराया था। और तेरे दुश्मन और उसके दुश्मन (शैतान मलऊन) ने उन कामों में उसकी मदद की। चुनांचे उसने तेरी धमकी से आगाह होने के बावजूद तेरे अफ़ो की उम्मीद करते हुए और तेरे दरगुज़र पर भरोसा रखते हुए गुनाह की तरफ़ इक़दाम किया। हालांके उन एहसानात की वजह से जो तूने उस पर किये थे। तमाम बन्दों में वह उसका सज़ावार था के ऐसा न करता। अच्छा फिर मैं तेरे सामने खड़ा हूं बिल्कुल ख़्वार व ज़लील, सरापा अज्ज़ व नियाज़ और लरज़ां व तरसां। इन इज़ीम गुनाहों का जिनका बोझ अपने सर उठाया है और उन बड़ी ख़ताओं का जिनका इरतेकाब किया है एतराफ़ करता हुआ तेरे दामने अफ़ो में पनाह चाहता हुआ और तेरी रहमत का सहारा ढूंढता हुआ और यह यक़ीन रखता हुआ के कोई पनाह देने वाला (तेरे अज़ाब से) मुझे पनाह नहीं दे सकता और कोई बचाने वाला (तेरे ग़ज़ब से) मुझे बचा नहीं सकता। लेहाज़ा (इस एतराफ़े गुनाह व इज़हारे निदामत के बाद) तू मेरी पर्दापोशी फ़रमा जिस तरह गुनाहगारों की पर्दापोशी फ़रमाता है और मुझे माफ़ी अता कर जिस तरह उन लोगों को माफ़ी अता करता है। जिन्होंने अपने आप को तेरे हवाले कर दिया हो और मुझ पर इस बख़्शिश व आमज़िश के साथ एहसान फ़रमा के जिस बख़्शिश व आमज़िश से तू अपने उम्मीदवार पर एहसान करता है तो तुझे बड़ी नही मालूम होती। और मेरे लिये आज के दिन ऐसा हिज़ व नसीब क़रार दे के जिसके ज़रिये तेरी रज़ामन्दी का कुछ हिस्सा पा सकूं और तेरे इबादतगुज़ार बन्दे जो (अज्र व सवाब के) तहाएफ़ ले कर पलटे हैं मुझे उनसे ख़ाली हाथ न फेर। अगरचे वह नेक आमाल जो उन्होंने आगे भेजे हैं मैंने आगे नहीं भेजे लेकिन मैंने तेरी वहदत व यकताई का अक़ीदा और यह के तेरा कोई हरीफ़ शरीक और मिस्ल व नज़ीर नहीं है पेश किया है और इन्हीं दरवाज़ों से जिन दरवाज़ों से तूने आने का हुक्म दिया है आया हूं और ऐसी चीज़ के ज़रिये जिसके बग़ैर कोई तुझसे तक़र्रूब हासिल नहीं कर सकता तक़र्रूब चाहा है। फिर तेरी तरफ़ रूजू व बाज़गश्त, तेरी बारगाह में तज़ल्लुल व आजिज़ी और तुझसे नेकगुमान और तेरी रहमत पर एतमाद को तलब तक़र्रूब के हमराह रखा है और उसके साथ ऐसी उम्मीद का ज़मीमा भी लगा दिया है जिसके होते हुए तुझसे उम्मीद रखने वाला महरूम नहीं रहता और तुझसे उसी तरह सवाल किया है जिस तरह कोई बेक़द्र ज़लील षिकस्ता हाल तही दस्त ख़ौफ़ ज़दा और तलबगारे पनाह सवाल करता है और इस हालत के बावजूद मेरा यह सवाल ख़ौफ़, अज्ज़ व नियाज़मन्दी, पनाहतलबी और अमानख़्वाही की रू से है न मुतकब्बिरों के तकब्बुर के साथ बरतरी जतलाते, न इताअतगुज़ारों के (अपनी इबादत पर) फ़ख्ऱ व एतमाद की बिना पर इतराते और न सिफ़ारिश करने करने वालों की सिफ़ारिश पर सर बलन्दी दिखाते हुए। और मैं इस एतराफ़ के साथ तमाम कमतरों से कमतर, ख़्वार व ज़लील लोगों से ज़लीलतर और एक च्यूंटी के मानिन्द बल्कि उससे भी पस्ततर हूं। ऐ वह जो गुनाहगारों पर अज़ाब करने में जल्दी नहीं करता और न सरकशों को (अपनी नेमतों से) रोकता है। ऐ वह जो लग़्िज़श करने वालों से दरगुज़र फ़रमाकर एहसान करता है और गुनहगारों को मोहलत देकर तफ़ज़्ज़ुल फ़रमाता है। मैं वह हूं जो गुनहगार गुनाह का मोतरफ़, ख़ताकार और लग्ज़िश करने वाला हूं मैं वह हूं जिसने तेरे मुक़ाबले में जराअत से काम लेते हुए पेश क़दमी की। मैं वह हूं जिसने दीदा दानिस्ता गुनाह किये मैं वह हूं जिसने (अपने गुनाहों को) तेरे बन्दों से छुपाया और तेरे सामने खुल्लम खुल्ला मुख़ालफ़त की। मैं वह हूं जो तेरे बन्दों से डरता रहा और तुझसे बेख़ौफ़ रहा। मैं वह हूं जो तेरी हैबत से हरासां और तेरे अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा न हुआ। मैं ख़ुद ही अपने हक़ में मुजरिम और बला व मुसीबत के हाथों में गिरवीं हूं मैं ही शर्म व हया से आरी और तवील रंज व तकलीफ़ में मुब्तिला हूं। मैं तुझे उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसे तूने मख़लूक़ात में से मुन्तख़ब किया। उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसे तूने अपने लिये पसन्द फ़रमाया, उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसे तूने कायनात में से बरगुज़ीदा किया और जिसे अपने एहकाम (की तबलीग़) के लिये चुन लिया। उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसकी इताअत को अपनी इताअत से मिला दिया और जिसकी नाफ़रमानी को अपनी नाफ़रमानी के मानिन्द क़रार दिया। उसके हक़ का वास्ता देता हूं जिसकी मोहब्बत को अपनी मोहब्बत से मक़रून और जिसकी दुश्मनी को अपनी दुश्मनी से वाबस्ता किया है। मुझे आज के दिन इस दामने रहमत में ढांप ले जिससे ऐसे शख़्स को ढांपता है जो गुनाहों से दस्तबरदार होकर तुझसे नाला व फ़रियाद करे और ताएब होकर तेरे दामने मग़फ़ेरत में पनाह चाहे और जिस तरह अपने इताअत गुज़ारों और और क़ुर्ब व मन्ज़िलत वालों की सरपरस्ती फ़रमाता है इसी तरह मेरी सरपरस्ती फ़रमा और जिस तरह उन लोगों पर जिन्होंने तेरे अहद को पूरा किया तेरी ख़ातिर अपने को ताब व मशक़्क़त में डाला और तेरी रज़ामन्दियों के लिये सख़्तियों को झेला। ख़ुद तनो तन्हा एहसान करता है उसी तरह मुझ पर भी तनो तन्हा एहसान फ़रमा और तेरे हक़ में कोताही करने तेरे हुदूद से मुतजावज़ होने और तेरे एहकाम के पसे पुश्त डालने पर मेरा मोवाख़ेज़ह न कर और मुझे उस शख़्स के मोहलत देने की तरह मोहलत देकर रफ़ता रफ़ता अपने अज़ाब का मुस्तहक़ न बना जिसने अपनी भलाई को मुझसे रोक लिया और समझता यह है के बस वही नेमत का देने वाला है यहां तक के तुझे भी उन नेमतों के देने में षरीक न समझा हो।  मुझे ग़फ़लत शआरों की नीन्द, बेराहरवों के ख़्वाब और हरमां नसीबों की ग़फ़लत से होशियार कर दे और मेरे दिल को इस राहे अमल पर लगा जिस पर तूने इताअत गुज़ारों को लगाया है और इस इबादत की तरफ़ माएल फ़रमा जो इबादत गुज़ारों से तूने चाही है। और उन चीज़ों की हिदायत कर जिनके वसीले से सहल अंगारों को रिहाई बख़्शी है। और जो बातें तेरी बारगाह से दूर कर दीं और मेरे और तेरे हां के हज़ व नसीब के दरम्यान हाएल और तेरे हां के मक़सद व मुराद से मानेअ हो जाएं उनसे महफ़ूज़ रख और नेकियों की राह पैमाई और उनकी तरफ़ सबक़त जिस तरह तूने हुक्म दिया है और उनकी बढ़ चढ़ कर ख़्वाहिश जैसा के तूने चाहा है मेरे लिये सहल व आसान कर और अपने अज़ाब व वईद को सुबुक समझने वालों के साथ के जिन्हें तू तबाह करेगा, मुझे तबाह न करना और जिन्हें दुश्मनी पर आमादा होने की वजह से हलाक करेगा, उनके साथ मुझे हलाक न करना और अपनी सीधी राहों से इन्हेराफ़ करने वालों के ज़मरह में के जिन्हें तू बरबाद करेगा मुझे बरबाद न करना और फ़ित्ना व फ़साद के भंवर से मुझे निजात दे और बला के मुंह से छुड़ा ले और ज़मानाए मोहलत (की बदआमालियों) पर गिरफ़्त से पनाह दे और उस दुश्मन के दरम्यान जो मुझे बहकाए, और उस ख़्वाहिशे नफ़्स के दरम्यान जो मुझे तबाह व बरबाद करे, और उस नक़्स व ऐब के दरम्यान जो मुझे घेर ले, हाएल हो जा। और जैसे उस शख़्स से के जिस पर ग़ज़बनाक होने के बाद तू राज़ी न हो रूख़ फेर लेता है इसी तरह मुझ से रूख़ न फ़ेर और जो उम्मीदें तेरे दामन से वाबस्ता किये हुए हों उनमें मुझे बे आस न कर के तेरी रहमत से यास व नाउम्मीदी मुझ पर ग़ालिब आ जाए और मुझे इतनी नेमतें भी न बख़्श के जिनके उठाने की मैं ताक़त नहीं रखता के तू फ़रावानी, मोहब्बत से मुझ पर वह बार लाद दे जो मुझे गरां बार कर दें और मुझे इस तरह अपने हाथ से न छोड़ दे जिस तरह उसे छोड़ देता है जिसमें कोई भलाई न हो और न मुझे उससे कोई मतलब हो और न उसके लिये तौबा व बाज़गश्त हो। और मुझे इस तरह न फेंक दे जिस तरह उसे फेंक देता है जो तेरी नज़र तवज्जो से गिर चुका हो। और तेरी तरफ़ से ज़िल्लत व रूसवाई उस पर छाई हुई हो बल्कि गिरने वालों के गिरने से और कजरूओं ख़ौफ़ व हेरास से और फ़रेबख़ोर्दा लोगों के लग्ज़िश खाने से और हलाक होने वालों के वरतए हलाकत में गिरने से मेरा हाथ थाम ले और अपने बन्दों और कनीज़ों के मुख़तलिफ़ तबक़ों को जिन चीज़ों में मुब्तिला किया है उन से मुझे आफ़ियत व सलामती बख़्श। और जिन्हें तूने मूरिदे इनायत क़रार दिया, जिन्हें नेमतें अता कीं, जिनसे राज़ी व ख़ुशनूद हुआ। जिन्हें क़ाबिले सताइश ज़िन्दगी बख़्शी। और सआदत व कामरानी के साथ मौत दी उनके मरातब व दरजात पर मुझे फ़ाएज़ कर और वह चीज़ें जो नेकियों को महो और बरकतों को ज़ाएल कर दें उनसे किनाराकशी उस तरह मेरे लिये लाज़िम कर दे जिस तरह गर्दन में पड़ा हुआ तौक़। और बुरे गुनाहों और रूसवा करने वाली मासियतों से अलाहेदगी व नफ़रत को मेरे दिल के लिये इस तरह ज़रूरी क़रार दे जिस तरह बदन से चिमटा हुआ लिबास और मुझे दुनिया में मसरूफ़ करके के जिसे तेरी मदद के बग़ैर हासिल नही कर सकता उन आमाल से के जिनके अलावा तुझे कोई और चीज़ मुझसे ख़ुश नहीं कर सकती, रोक न दे और इस पस्त दुनिया की मोहब्बत के जो तेरे हां की सआदते अबदी की तरफ़ मुतवज्जो होने से मानेअ और तेरी तरफ़ वसीला तलब करने से सद्दे राह और तेरा तक़र्रूब हासिल करने से ग़ाफ़िल करने वाली है मेरे दिल से निकाल दे। आौर मुझे वह मुल्के इस्मत अता फ़रमा जो मुझे तेरे ख़ौफ़ से क़रीब, इरतेकाबे मोहर्रमात से अलग और कबीरा गुनाहों के बन्धनों से रिहा कर दे। और मुझे गुनाहों की आलूदगी से पाकीज़गी अता फ़रमा और मासियत की कसाफ़तों को मुझसे दूर कर दे और अपनी आफ़ियत का जामा मुझे पहना दे और अपनी सलामती की चादर उढ़ा दे और अपनी वसीअ नेमतों से मुझे ढांप ले और मेरे लिये अपने अताया व इनआमात का सिलसिला पैहम जारी रख और अपनी तौफ़ीक़ व राहे हक़ की राहनुमाई से मुझे तक़वीयत दे और पाकीज़ा नीयत, पसन्दीदा गुफ़तार और शाइस्ता किरदार के सिलसिले में मेरी मदद फ़रमा। और अपनी क़ूवत व ताक़त के बजाए मुझे मेरी क़ूवत व ताक़त के हवाले न कर और जिस दिन मुझे अपनी मुलाक़ात के लिये उठाए मुझे ज़लील व ख़्वार और अपने दोस्तों के सामने रूसवा न करना, और अपनी याद मेरे दिल से फ़रामोश न होने दे और अपना शुक्र व सिपास मुझसे ज़ाएल न कर, बल्कि जब तेरी नेमतों से बेख़बर, सहो व ग़फ़लत के आलम में हूं, मेरे लिये अदाए शुक्र लाज़िम क़रार दे। और मेरे दिल में यह बात डाल दे के जो नेमतें तूने बख़्शी हैं उन पर हम्द व तौसीफ़ और जो एहसानात मुझ पर किये हैं उनका एतराफ़ करूं और अपनी तरफ़ मेरी तवज्जो को तमाम तवज्जो करने वालों से बालातर और मेरी हम्द सराई को तमाम हम्द करने वालों से बलन्दतर क़रार दे और जब मुझे तेरी एहतियाज हो तो मुझे अपनी नुसरत से महरूम न करना और जिन आमाल को तेरी बारगाह में पेश किया है उन को मेरे लिये वजहे हलाकत न क़रार देना। और जिस अमल व किरदार के पेशे नज़र तूने अपने नाफ़रमानों को ध्ुात्कारा है यूं मुझे अपनी बारगाह से धुत्कार न देना। इसलिये के मैं तेरा मुतीअ व फ़रमाबरदार हूं और यह जानता हूं के हुज्जत व बुरहान तेरे ही लिये है और तू फ़ज़्ल व बख़्शिश का ज़्यादा सज़ावार और लुत्फ़ व एहसान के साथ फ़ायदा रसां और इस लाएक़ है के तुझसे डरा जाए और इसका अहल है के मग़फ़ेरत से काम ले और इसका ज़्यादा सज़ावार है के सज़ा देने के बजाय माफ़ कर दे और तशहीर करने के बजाए पर्दापोशी तेरी रोश से क़रीबतर है तो फिर मुझे ऐसी पाकीज़ा ज़िन्दगी दे जो मेरे हस्बे दिल ख़्वाह उमूर पर मुश्तमिल और मेरी और मेरी दिलपसन्द चीज़ों पर मुन्तही हो। उस तरह के जिस काम को तू नापसन्द करे उसे बजा न लाउं और जिससे मना करे उसका इरतेकाब न करूं। और मुझे उस शख़्स की सी मौत दे जिसका नूर उसके आगे और उसके दाहेनी तरफ़ चलता हो और मुझे अपनी बारगाह में आजिज़ व निगोंसार और लोगों के नज़दीक बावेक़ार बना दे और जब तुझसे तख़लिया में राज़ व नियाज़ करूं, तू मुझे पस्त और सराफ़गन्दा और अपने बन्दों में बलन्द मरतबा क़रार दे और जो मुझसे बेनियाज़ हो उससे मुझे बेनियाज़ कर दे और मेरे फ़क्ऱ व एहतियाज को अपनी तरफ़ बढ़ा दे और दुश्मनों के ख़ज़ाए (वीरलब) बलाओं के दुरूद और ज़िल्लत व सख़्ती से पनाह दे और मेरे उन गुनाहों के बारे में के जिन पर तू मुतलाअ है उस शख़्स के मानिन्द मेरी परदापोशी फ़रमा के अगर उसका हिल्म मानेअ न होता तो वह सख़्त गिरफ़्त पर क़ादिर होता और अगर उसकी रविश में नर्मी न होती तो वह गुनाहो पर मुवाख़ेज़ा करता। और जब किसी जमाअत को तू मुसीत में गिरफ़्तार या बला व नकहत से दो-चार करना चाहे तो दरसूरती के मैं तुझसे पनाह तलब हूं इस मुसीबत से निजात दे और जबके तूने मुझे दुनिया में रूसवाई के मौक़फ़ में खड़ा नहीं किया तो इसी तरह आख़ेरत में भी रूसवाई के मक़ाम पर खड़ा न करना और मेरे लिये दुनयवी नेमतों को अख़रवी नेमतों से और क़दीम फ़ायदों को जदीद फ़ाययदों से मिला दे और मुझे इतनी मोहलत न दे के उसके नतीजे में मेरा दिल सख़्त हो जाए और ऐसी मुसीबत में मुब्तिला न कर जिससे मेरी इज़्ज़त व आबरू जाती रहे और ऐसी ज़िल्लत से दोचार न कर जिससे मेरी क़द्र व मन्ज़िलत कम हो जाए और ऐसी ऐब में गिरफ़्तार न कर जिससे मेरा मरतबा व मक़ाम जाना न जा सके। और मुझे इतना ख़ौफ़ज़दा न कर के मैं मायूस हो जाउं और ऐसा ख़ौफ़ न दिला के हरासां हो जाऊं।
मेरे ख़ौफ़ को अपनी वईद व सरज़न्श में और मेरी अन्देशे को तेरे उज़्र तमाम करने और डराने में मुनहसिर कर दे और मेरे ख़ौफ़ व हेरास को आयाते (क़ुरानी) की तिलावत के वक़्त क़रार दे और मुझे अपनी इबादत के लिये बेदार रखने, ख़लवत व तन्हाई में दुआ व मुनाजात के लिये जागने सबसे अलग रहकर तुझसे लौ लगाने, तेरे सामने अपनी हाजतें पेश करने, दोज़ख़ से गुलू ख़लासी के लिये बार बार इल्तिजा करने और तेरे उस अज़ाब से जिसमें अहले दोज़ख़ गिरफ़्तार हैं पनाह मांगने के वसीले से मेरी रातों को आबाद कर और मुझे सरकशी में सरगरदां छोड़ न दे और न ग़फ़लत में एक ख़ास वक़्त तक ग़ाफ़िल व बेख़बर पड़ा रहने दे और मुझे नसीहत हासिल करने वालों के लिये नसीहत इबरत हासिल करने वालों के लिये इबरत और देखने वालों के लिये फ़ित्ना व गुमराही का सबब न क़रार दे और मुझे उन लोगों में जिनसे तू (उनके मक्र की पादाश में) मक्र करेगा शुमार न कर और (इनआम व बख़्शिश के लिये) मेरे एवज़ दूसरे को इनतेख़ाब न कर। मेरे नाम में तग़य्युर और जिस्म में तब्दीली न फ़रमा और मुझे मख़लूक़ात के लिये मज़हका और अपनी बारगाह में लाएक़े इस्तेहज़ा न क़रार दे। मुझे सिर्फ़ उन चीज़ों का पाबन्द बना जिनसे तेरी रज़ामन्दी वाबस्ता है और सिर्फ़ उस ज़हमत से दो चार कर जो (तेरे दुश्मनों से) इन्तेक़ाम लेने के सिलसिले में हो और अपने अफ़ो व दरगुज़र की लज़्ज़त और रहमत, राहत व आसाइश गुल व रैहान और जन्नते नईम की शीरीनी से आशना कर और अपनी वुसअत व तवंगरी की बदौलत ऐसी फ़राग़त से रूशिनास कर जिसमें तेरे पसन्दीदा कामों को बजा ला सकूं, और ऐसी सई व कोशिश की तौफ़ीक़ दे जो तेरी बारगाह में तक़र्रूब का बाएस हो और अपने तोहफ़ों में से मुझे नित नया तोहफ़ा दे और मेरी अख़रवी तिजारत को नफ़ाबख़्श और मेरी बाज़गश्त को बेज़रर क़रार दे और मुझे अपने मक़ाम व मौक़फ़ से डरा और अपनी मुलाक़ात का मुश्ताक़ बना और ऐसी सच्ची तौबा की तौफ़ीक़ अता फ़रमा के जिसके साथ मेरे छोटे और बड़े गुनाहों को बाक़ी न रखे और खुली और ढकी मासियतों को महो कर दे और अहले ईमान की तरफ़ से मेरे दिल से कीना व बुग़्ज़ को निकाल दे और इन्केसार व फ़रवतनी करने वालों पर मेरे दिल को मेहरबान बना दे और मेरे लिये तू ऐसा हो जा जैसा नेकोकारों के लिये है और परहेज़गारों के ज़ेवर से मुझे आरास्ता कर दे और आईन्दा आने वालों में मेरा ज़िक्रे ख़ैर और बाद में आने वाली नस्लों में मेरा ज़िक्र रोज़े अफ़ज़ों बरक़रार रख और साबिकूनल अव्वलून के महल व मक़ाम में मुझे पहुंचा दे और फ़राख़ी नेमत को मुझ पर तमाम कर और उसकी मनफ़अतों का सिलसिला पैहम जारी रख। अपनी नेमतों से मेरे हाथों को भर दे। और अपनी गरां क़द्र बखि़शशों को मेरी तरफ़ बढ़ा दे और जन्नत में जिसे तूने अपने बरगुज़ीदा बन्दों के लिये सजाया है मुझे अपने पाकीज़ा दोस्तों का हमसाया क़रार दे और उन जगहों में जिन्हें अपने दोस्तदारों के लिये मुहय्या किया है, मुझे उम्दा व नफ़ीस अतियों के ख़लअत ओढ़ा दे और मेरे लिये वह आरामगाह के जहां मैं इत्मीनान से बेखटके रहूं और वह मन्ज़िल के जहां मैं ठहरूं और वह मन्ज़िल के जहां मैं ठहरूं और अपनी आंखों को ठण्डा करूं, अपने नज़दीक क़रार दे। और मुझे मेरे अज़ीम गुनाहों के लेहाज़ से सज़ा न देना और जिस दिन दिलों के भेद जांचे जाएंगे, मुझे हलाक न करना हर शक व शुबह को मुझसे दूर कर दे और मेरे लिये हर सिम्त से हक़ पहुंचने की राह पैदा कर दे और अपनी अता व बख़्शिश के हिस्से मेरे लिये ज़्यादा कर दे और अपने फ़ज़्ल से नेकी व एहसान से हिज़ फ़रावां अता कर। और अपने हां की चीज़ों पर मेरा दिल मुतमईन और अपने कामों के लिये मेरी फ़िक्र को यक सू कर दे और मुझसे वही काम ले जो अपने मख़सूस बन्दों से लेता है। और जब अक़्लें ग़फ़लत में पड़ जाएं उस वक़्त मेरे दिल में इताअत का वलवला समो दे और मेेरे लिये तवंगरी, पाक दामनी, आसाइश, सलामती, तन्दरूस्ती, फ़िराख़ी, इत्मीनान और आफ़ियत को जमा कर दे और मेरी नेकियों को गुनाहों की आमेज़िश की वजह से और मेरी तन्हाइयों को उन मफ़सदों के बाएस जो अज़ राहे इम्तेहान पेश आते हैं, तबाह न कर, और अहले आलम में से किसी एक के आगे हाथ फैलाने से मेरी इज़्ज़त व आबरू को बचाए रख और उन चीज़ों की तलब व ख़्वाहिश से जो बद किरदारों के पास हैं मुझे रोक दे और मुझे ज़ालिमों का पुश्त पनाह न बना और न (एहकामे) किताब के महो करने पर उनका नासिर व मददगार क़रार दे और मेरी उस तरह निगेहदाश्त कर के मुझे ख़बर भी न होने पाए ऐसी निगेहदाश्त के जिसके ज़रिये तू मुझे (हलाकत व तबाही) से बचा ले जाए और मेरे लिये तौबा व रहमत, लुत्फ़ व राफ़त और कुशादा रोज़ी के दरवाज़े खोल दे। इसलिये के मैं तेरी जानिब रग़बत व ख़्वाहिश करने वालों में से हूं, और मेरे लिये अपनी नेमतों को पायाए तकमील तक पहुंचा दे इसलिये के इन्आम व बख़्शिश करने वालों में सबसे बेहतर है और मेरी बक़िया उम्र को हज व उमरा और अपनी रज़ाजोई के लिये क़रार दे ऐ तमाम जहानों के पालने वाले! रहमत करे अल्लाह तआला मोहम्मद (स0) और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ0) पर और उन पर और उनकी औलाद पर हमेशा हमेशा दुरूद व सलाम हो।

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