Thursday 20 September 2012

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छप्पनवीं दुआ
बुज़ुर्गी व अज़मते इलाही के बयान में हज़रत (अ0) की दुआ


तमाम तारीफ़ उस अल्लाह तआला के लिये हैं जो अपनी अज़मत के साथ दिलों पर रोशन व दरख़शां है और अपनी इज़्ज़त के साथ आंखों से पिनहां है। और तमाम चीज़ों पर अपने इक़्तेदार से क़ाबू रखता है। न आंखें उसके दीदार की ताब ला सकती हैं और न अक़्लें उसकी अज़मत की हद तक पहुंच सकती हैं। वह अपनी अज़मत व बुज़ुर्गी के साथ हर चीज़ पर ग़ालिब है और इज़्ज़त व एहसान व जलालत की रिदा ओढ़े हूए है हुस्न व जमाल के साथ नक़ाएस से बुरी है और फ़ख़्रव सरबलन्दी के साथ शरफ़ व बुज़ुर्गी का मालिक है और ख़ैर व बख़्शिश की फ़रावानी और (अताए) नेमात से ख़ुश होता है और नूर व रोशनी के साथ (तमाम आलम से) इम्तियाज़ रखता है। वह ऐसा ख़ालिक़ है जिससका कोई नज़ीर नहीं। वह ऐसा यकता है जिसका कोई मिस्ल नहीं। वह ऐसा यगाना है जिसका कोई मद्दे मुक़ाबिल नहीं। वह ऐसा बेनियाज़ है जिसका कोई हमसर नहीं। वह ख़ुदा जिसका कोई दूसरा नहीं। वह पैदा करने वाला है जिसका कोई शरीकेकार नहीं। वह रिज़्क़ देने वाला है जिसका कोई मददगार नहीं। वह ऐसा अव्वल है जिसे ज़वाल नहीं। वह ऐसा बाक़ी व जावेद है जिसे फ़ना नहीं। वह दाएम व क़ायम है बग़ैर किसी रन्ज व मशक़्क़त के वह अम्न व अमान का बख़्शने वाला है। बगै़र किसी  हद व निहायत के वह ईजाद करने वाला है। बगै़र किसी मुद्दत की हदबन्दी के वह सानेअ व मौजूद है। बगै़र किसी एक (की एआनत) के वह परवरदिगार है । बगै़र किसी  शरीक के वह पैदा करने वाला है । बगै़र किसी ज़हमत व दुश्वारी के वह काम करने वाला है। बग़ैर अज्ज़ व दरमान्दगी के उसकी कोई हद नहीं। मकान में और न उसकी कोई इन्तेहा है ज़माने में। वह हमेशा से है, हमेशा रहेगा। यूंही हमेशा हमेशा उसे कभी ज़वाल न होगा। वही ख़ुदा है जो ज़िन्दा व क़ायम व दायम, क़दीम क़ादिर और इल्म व हिकमत वाला है। बारे इलाहा! तेरा एक बन्दाए हक़ीर तेरे साहते क़ुद्स में हाज़िर है। तेरा साएल तेरे आस्ताने पर हाज़िर है। तेरा मोहताज व दस्तंगर तेरी बारगाह में हाज़िर है (इन तीनों जुमलों को तीन मरतबा दोहराए) ऐ मेरे अल्लाह (ज0) तुझ ही से इबादतगुज़ार डरते हैं और तेरे ख़ौफ़ और उम्मीद व अफ़ो व बख़्शिश के पेशे नज़र आजिज़ी से इल्तिजा करने वाले तुझसे लौ लगाते हैं। ऐ सच्चे माबूद! इस्तेग़ासा व फ़रयाद करने वालों की पुकार पर रहम फ़रमा और ग़फ़लत में गिरफ़्तार होने वालों के गुनाहों से दरगुज़र फ़रमा और ऐ करीम अपनी बारगाह में तौबा करने वालों के साथ उस दिन के ज बवह तेरे सामने पेश हों, नेकी और एहसान में इज़ाफ़ा फ़रमा।

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