Thursday 20 September 2012

sahifa-e-kamila-sajjadia-44th-dua--urdu-tarjuma-in-hindi--by-imam-zainul-abedin-a.s



चौवालीसवीं दुआ
दुआए इस्तेक़बाले माहे रमज़ान


तमाम तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसने अपनी हम्द व सेपास की तरफ़ हमारी रहनुमाई की और हमें हम्दगुज़ारों में से क़रार दिया ताके हम उसके एहसानात पर शुक्र करने वालों में महसूब हों और हमें इस शुक्र के बदले में नेकोकारों का अज्र दे। उस अल्लाह तआला के लिये हम्द व सताइश है जिसने हमें अपना दीन अता किया और अपनी मिल्लत में से क़रार देकर इम्तियाज़ बख़्शा और अपने लुत्फ़ व एहसान की राहों पर चलाया। ताके हम उसके फ़ज़्ल व करम से उन रास्तों पर चल कर उसकी ख़ुशनूदी तक पहुंचें। ऐसी हम्द जिसे वह क़ुबूल फ़रमाए और जिसकी वजह से हम से वह राज़ी हो जाएं। तमाम तारीफ़ें उस अल्लाह के लिये है जिसने अपने लुत्फ़ व एहसान के रास्तों में से एक रास्ता अपने महीने को क़रार दिया। यानी रमज़ान का महीना, सेयाम का महीना, इस्लाम का महीना, पाकीज़गी का महीना, तसफ़ीह और ततहीर का महीना, इबादत व क़याम का महीना, वह महीना जिसमें क़ुरान नाज़िल हुआ। जो लोगों के लिये रहनुमा है। हिदायत और हक़ व बातिल के इम्तियाज़ की रौशन सदाक़तें रखता है। चुनांचे तमाम महीनों पर इसकी फ़ज़ीलत व बरतरी को आशकारा किया। इन फ़रावां इज़्ज़तों और नुमायां फ़ज़ीलतों की वजह से जो इसके लिये क़रार दीं। और इसकी अज़मत के इज़हार के लिये जो चीज़ें दूसरे महीनों में जाएज़ की थें इसमें हराम कर दीें और इसके एहतेराम के पेशे नज़र खाने-पीने की चीज़ों से मना कर दिया और एक वाज़ेअ ज़माना इसके लिये मुअय्यन कर दिया। ख़ुदाए बुज़ुर्ग व बरतर यह इजाज़त नहीं देता के इसे उसके मुअय्यना वक़्त से आगे बढ़ाया जाए और न क़ुबूल करता है के इससे मोहर कर दिया जाए। फिर यह के इसकी रातों में से एक रात को हज़ार महीनों की रातों नी फज़ीलत दी और इसका नाम शबे क़द्र रखा। इस रात में फ़रिश्ते और रूह अलक़ुद्स हर उस अम्र के साथ जो उसका क़तई फ़ैसला होता है। इसके बन्दों में से जिसपर वह चाहता है नाज़िल होते हैं। वोह रात सरासर सलामती की रात है जिसकी बरकते तुलूए फ़ज्र तक दाएम व बरक़रार है। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें हिदायत फ़रमा के हम इस महीने के फ़ज़्ल व शरफ़ को पहचानें, इसकी इज़्ज़त व हुरमत को बलन्द जानें और इसमें इन चीज़ों से जिनसे तूने मना किया है इज्तेनाब करें और इसके रोज़े रखने में हमारे आज़ा को नाफ़रमानियों से रोकने और कामों में मसरूफ रखने से जो तेरी ख़ुशनूदी का बाएस हों हमारी एआनत फ़रमा, ताके हम न बेहूदा बातों की तरफ़ कान लगाएं न फ़िज़ूल ख़र्ची की तरफ़ बे महाबा निगाहें उठाएं, न हराम की तरफ़ हाथ बढ़ाएं न अम्रे ममनूअ की तरफ़ पेश क़दमी करें न तेरी हलाल की हुई चीज़ों के अलावा किसी चीज़ को हमारे शिकम क़ुबूल करें और न तेरी बयान की हुई बातों के सिवा हमारी ज़बानें गोया हों। सिर्फ़ उन चीज़ों के बजा लाने का बार उठाएं जो तेरे सवाब से क़रीब करें और सिर्फ़ उन कामों को अन्जाम दें जो तेरे अज़ाब से बचा ले जाएं फिर उन तमाम आमाल को रियाकारों की रियाकारी और शोहरत पसन्दों की शोहरत पसन्दी से पाक कर दे इस तरह के तेरे अलावा किसी को इनमें शरीक न करें और तेरे सिवा किसी से कोई मतलब न रखें। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें इसमें नमाज़हाए पन्जगाना के औक़ात से इन हुदूद के साथ जो तूने मुअय्यन किये हैं और उन वाजेबात के साथ जो तूने क़रार दिये हैं और उन लम्हात के साथ जो तूने मुक़र्रर किये हैं आगाह फ़रमा और हमें उन नमाज़ों में उन लोगों के मरतबे पर फ़ाएज़ कर जो इन नमाज़ों के दरजाते आलिया हासिल करने वाले, इनके वाजेबात की निगेहदाश्त करने वाले और उन्हें इनके औक़ात में इसी तरीक़े पर जो तेरे अब्दे ख़ास और रसूल सल्लल्लाहो अलैह वालेही वसल्लम ने रूकूअ व सुजूद और उनके तमाम फ़ज़ीलत व बरतरी के पहलुओं में जारी किया था, कामिल और पूरी पाकीज़गी और नुमायां व मुकम्मल ख़ुशू व फ़रवतनी के साथ अदा करने वाले हैं। और हमें इस महीने में तौफ़ीक़ दे के नेकी व एहसान के ज़रिये अज़ीज़ों के साथ सिलाए रहमी और इनआम व बख़्शिश से हमसायों की ख़बरगीरी करें और अपने अमवाल को मज़लूमों से पाक व साफ़ करें और ज़कात देकर उन्हें पाकीज़ा तय्यब बना लें और यह के जो हमसे अलाहेदगी इख़्तियार करे उसकी तरफ़ दस्ते मसालेहत बढ़ाएं, जो हम पर ज़ुल्म करे उस से इन्साफ़ बरतें जो हमसे दुश्मनी करे उससे सुलह व सफ़ाई करें सिवाए उसके जिससे तेरे लिये और तेरी ख़ातिर दुश्मनी की गयी हो। क्योंके वह ऐसा दुश्मन है जिसे हम दोस्त नहीं रख सकते और ऐसे गिरोह का (फ़र्द) है जिससे हम साफ़ नहीं हो सकते। और हमें इस महीने में ऐसे पाक व पाकीज़ा आमाल के वसीले से तक़र्रूब हासिल करने की तौफ़ीक़ दे जिनके ज़रिये तू हमें गुनाहों से पाक कर दे और अज़ सरे नौ बुराइयों के इरतेकाब से बचा ले जाए। यहां तक के फ़रिश्ते तेरे तेरी बारगाह में जो आमाल नामे पेश करें वह हमारी हर क़िस्म की इताअतों और हर नौअ की इबादत के मुक़ाबले में सुबुक हों। ऐ अल्लाह मैं तुझसे इस महीने के हक़ व हुरमत और नीज़ उन लोगों का वास्ता देकर सवाल करता हूं जिन्होंने इस महीने में शुरू से लेकर इसके ख़त्म होने तक तेरी इबादत की हो वह मुक़र्रब बारगाह फ़रिश्ता हो या नबी मुरसल  या कोई मर्द सालेह व बरगुज़ीदा के तू  मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमाए और जिस इज़्ज़त व करामत का तूने अपने दोस्तों से वादा किया है उसका हमें अहल बना और जो इन्तेहाई इताअत करने वालों के लिये तूने अज्र मुक़र्रर किया है वह हमारे लिये मुक़र्रर फ़रमा और हमें अपनी रहमत से उन लोगों में शामिल कर जिन्होंने बलन्दतरीन मर्तबे का इस्तेहक़ाक़ पैदा किया। ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें इस चीज़ से बचाए रख के हम तौहीद में कज अन्देशी तेरी तमजीद व बुज़ुर्गी में कोताही, तेरे दीन में शक, तेरे रास्ते से बे राहरवी और तेरी हुरमत से लापरवाही करें और तेरे दुश्मन शैतान मरदूद से फ़रेबख़ोर्दगी का शिकार हों। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और जब के इस महीने की रातों में हर रात में तेरे कुछ ऐसे बन्दे होते हैं जिन्हें तेरा अफ़ो व करम आज़ाद करता है या तेरी बख़्शिश व दरगुज़र उन्हें बख़्श देती है। तू हमें भी उन्हीं बन्दों में दाखि़ल कर और इस महीने के बेहतरीन एहल व असहाब में क़रार दे। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और इस चान्द के घटने के साथ हमारे गुनाहों को भी महो कर दे और जब इसके दिन ख़त्म होने पर आएं तो हमारे गुनाहों का वबाल हमसे दूर कर दे ताके यह महीना इस तरह तमाम हो के तू हमें ख़ताओं से पाक और गुनाहों से बरी कर चुका हो। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और इस महीने में अगर हम हक़ से मुंह मोड़े ंतो हमें सीधा रास्ते पर लगा दे और कजरवी इख़्तियार करें तो हमारी इस्लाह व दुरूस्तगी फ़रमा और अगर तेरा दुश्मन शैतान हमारे गिर्द एहाता करे तो उसके पन्जे से छुड़ा ले। बारे इलाहा! इस महीने का दामन हमारी इबादतों से जो तेरे लिये बजा लाई गई हों, भर दे और इसके लम्हात को हमारी इताअतों से सजा दे और इसके दिनों में रोज़े रखने और इसकी रातों में नमाज़ें पढ़ने, तेरे हुज़ूर गिड़गिड़ाने तेरे सामने अज्ज़ व इलहाह करने और तेरे रू बरू ज़िल्लत व ख़्वारी का मुज़ाहेरा करने, इन सबमें हमारी मदद फ़रमा। ताके इसके दिन हमारे खि़लाफ़ ग़फ़लत की और इसकी रातें कोताही व तक़स्बर की गवाही न दें। ऐ अल्लाह! तमाम महीनों और दिनों में जब तक तू हमें ज़िन्दा रखे, ऐसा ही क़रार दे। और हमें उन बन्दों में शामिल फ़रमा जो फ़िरदौसे बरीं की ज़िन्दगी के हमेशा हमेशा के लिये वारिस होंगे। और व हके जो कुछ वह ख़ुदा की राह में दे सकते हैं, देते हैं। फिर भी उनके दिलों को यह खटका लगा रहता है के उन्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ पलट कर जाना है। और उन लोगों में से जो नेकियों में जल्दी करते हैं और वोही तो वह लोग हैं जो भलाइयों में आगे निकल जाने वाले हैं। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर हर वक़्त और हर घड़ी और हर हाल में इस क़द्र रहमत नाज़िल फ़रमा जितनी तूने किसी पर नाज़िल की हो और उन सब रहमतों से दोगुनी चौगनी के जिसे तेरे अलावा कोई शुमार न कर सके। बेशक तू जो चाहता है वही करने वाला है। 

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