Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 49th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



उनचासवीं दुआ
दुश्मनों के मक्रो फ़रेब के दफ़ीया और उनकी शिद्दत व सख़्ती को दूर करने के लिये हज़रत की दुआ


ऐ मेरे माबूद! तूने मेरी रहनुमाई की मगर मैं ग़ाफ़िल रहा, तूने पन्द व नसीहत की मगर मैं सख़्तदिली के बाएस मुतास्सिर न हुआ। तूने मुझे उमदा नेमतें बख़्शीं, मगर मैंने नाफ़रमानी की। फिर यह के जिन गुनाहों से तूने मेरा रूख़ मोड़ा जबके तूने मुझे इसकी मारेफ़त अता की तो मैं ने (गुनाहों की बुराई को) पहचानकर तौबा व अस्तग़फ़ार की जिस पर तूने मुझे माफ़ कर दिया और फिर गुनाहों का मुरतकिब हुआ तो तूने पर्दापोशी से काम लिया ऐ मेरे माबूद! तेरे ही लिये हम्द व सना है। मैं हलाकत की वादियों में फान्दा और तबाही व बरबादी की घाटियों में उतरा। इन हलाकतख़ेज़ घाटियों में तेरी क़हर मानी सख़्तगीरियों और उनमें वर आने से तेरी उक़ूबतों का सामना किया तेरी बारगाह में मेरा ववसीला तेरी वहदत वव यकताई का इक़रार है। और मेरा ज़रिया सिर्फ़ यह है के मैंने किसी चीज़ को तेरा शरीक नहीं जाना और तेरे साथ किसी को माबूद नहीं ठहराया। और मैं अपनी जान को लिये तेरी रहमत व मग़फ़ेरत की जानिब गुरीज़ां हूं। और एक गुनहगार तेरी ही तरफ़ भागकर आता है और एक इल्तेजा करने वाला जो अपने ख़त व नसीब को ज़ाया कर चुका हो तेरे ही दामन में पनाह लेता है कितने ही ऐसे दुश्मन थे जिन्होंने शमशीरे अदावत को मुझ पर बेनियाम किया और मेरे लिये अपनी छुरी की धार को बारीक और अपनी तन्दी व सख़्ती की बाड़ को तेज़ किया और पानी में मेरे लिये मोहलक ज़हरों की आमेज़िश की और कमानों में तीरों को जोड़ कर मुझे निशाने की ज़द पर रख लिया और उनकी तआक़ुब करने वाली निगाहें मुझसे ज़रा ग़ाफ़िल न हुईं और दिल में मेरी ईन्दारसानी के मन्सूबे बान्धने और तल्ख़ जरओं की तल्ख़ी से मुझे पैहम तल्ख़ काम बनाते रहे। तो ऐ मेरे माबूद! इन रन्ज व आलाम की बरदाश्त से मेरी कमज़ोरी और मुझसे आमादा पैकार होने वालों के मुक़ाबले में इन्तेक़ाम से मेरी आजिज़ी और कसीरूततादाद दुश्मनों और ईन्दारसानी के लिये घात लगाने वालों के मुक़ाबले में मेरी तन्हाई तेरी नज़र में थी जिसकी तरफ़ से मैं ग़ाफ़िल और बेफ़िक्र था के तूने मेरी मदद में पहल और अपनी क़ूवत और ताक़त से मेरी कमर मज़बूत की। फिर यह के इसकी तेज़ी को तोड़ दिया और उसके कसीर साथियों (को मुन्तशिर करने) के बाद उसे यको तन्हा कर दिया और मुझे उस पर ग़लबा व सरबलन्दी अता की और जो तीर उसने अपनी कमान में जोड़े थे वह उसी की तरफ़ पलटा दिये। चुनांचे इस हालत में तूने उसे पलटा दिया के न तो वह अपना ग़ुस्सा ठण्डा कर सका और न उसके दिल की पेश फ़रो हो सकी, उसने अपनी बोटियां काटीं और पीठ फिराकर चला गयाा और उसके लश्करवालों ने भी इसे दुनिया दी और कितने ही ऐसे सितमगर थे जिन्होंने अपने मक्रो फ़रेब से मुझ पर ज़ुल्म व तादी की और अपने शिकार के जाल मेरे लिये बिछाए और अपनी निगाहे जुस्तजू का मुझ पर पहरा लगा दिया और इस तरह घात लगाकर बैठ गए जिस तरह दरन्दह अपने शिकार के इन्तेज़ार में मौक़े की ताक में घात लगाकर बैठता है। दरआंहालिया के वह मेरे सामने ख़ुशामदाना तौर पर ख़न्दह पेशानी से पेश आते और (दर पर्दा) इन्तेहाई कीनातोज़ नज़रों से मुझे देखते तो जब ऐ ख़ुदाए बुज़ुर्ग व बरतर उनकी बद बातेनी व बदसरिश्ती को देखा तो उन्हें सर के बल उन्हीं के गढ़े में उलट दिया और उन्हें उन्हीं के ग़ार के गहराव में फेंक दिया, और जिस हाल में मुझे गिरफ्तार देखना चाहते थे ख़ुद ही ग़ुरूर व सरबलन्दी का मुज़ाहेरा करने के बाद ज़लील होकर उसके फन्दों में जा पड़े अैर सच तो यह है के अगर तेरी रहमत शरीके हाल न होती तो क्या बईद था के जो बला व मुसीबत उन पर टूट पड़ी है वह मुझ पर टूट पड़ती और कितने ही ऐसे हासिद थे जिन्हें मेरी वजह से ग़म व ग़ुस्से के उच्छू और ग़ैज़ व ग़ज़ब के गुलूगीर फन्दे लगे और अपनी तेज़ ज़बानी से मुझे अज़ीयत देते रहे और अपने उयूब के साथ मुझे मोतहिम करके तैश दिलाते रहे और मेरी आबरू को अपने तीरों का निशाना बनाया और जिन बुरी आदतों में वह ख़ुद हमेशा मुब्तिला रहे वह मेरे सर मण्ढ दें और अपनी फ़रेबकारियों से मुझे मुश्तअल करते और अपनी दग़ाबाज़ियों के साथ मेरी तरफ़ पर तोलते रहे तो मैंने ऐ मेरे अल्लाह तुझसे फ़रयादरसी चाहते हुए और तेरी जल्द हाजत रवाई पर भरोसा करते हुए तुझे पुकारा दरआंहालिया के यह जानता था के जो तेरे सायाए हिमायत में पनाह लेगा वह शिकस्त ख़ोरदा न होगा और जो तेरे इन्तेक़ाम की पनाहगाहे मोहकम में पनाहगुज़ीं होगा, वह हरासां नहीं होगा, चुनांचे तूने अपनी क़ुदरत से उनकी शिद्दत व शर अंगेज़ी से मुझे महफ़ूज़ कर दिया और कितने ही मुसीबतों के अब्र (जो मेरे अफ़क़े ज़िन्दगी पर छाए हुए) थे तूने छांट दिये और कितने ही नेमतों के बादल बरसा दिये और कितनी ही रहमत की नहरें बहा दीं और कितने ही सेहत व आफ़ियत के जामे पहन दिये, और कितनी ही आलाम व हवादिस की आंखें (जो मेरी तरफ़ निगरान थीं) तूने बेनूर कर दीं और कितने ही ग़मों के तारीक पर्दे (मेरे दिल पर से) उठा दिये और कितने ही अच्छे गुमानें को तूने सच कर दिया और कितने ही तही वसीयतों का तूने चारा किया और कितनी ही ठोकरों को तूने संभाला और कितनी ही नादारियों को तूने (सरवत से) बदल दिया। (बारे इलाहा! ) यह सब तेरी तरफ़ से इनआम व एहसान है और मैं इन तमाम वाक़ेयात के बावजूद तेरी मासीयतों में हमहतन मुनहमिक रहा। (लेकिन) मेरी बदआमालियों ने तुझे अपने एहसानात की तकमील से रोका नहीं और न तेरा फ़ज़्ल व एहसान मुझे उन कामों से जो तेरी नाराज़गी का बाएस हैं बाज़ रख सका और जो कुछ तू करे उसकी बाबत तुझसे पूछगछ नहीं हो सकती। तेरी ज़ात की क़सम! जब भी तुझसे मांगा गया तूने अता किया और जब न मांगा गया तो तूने अज़ख़ुद दिया। और जब तेरे फ़ज़्ल व करम के लिये झोली फैलाई गई तो तूने बुख़ल से काम नहीं लिया। ऐ मेरे मौला व आक़ा! तूने कभी एहसान व बख़्शिश और तफ़ज़्ज़ुल व इनआम से दरीग़ नहीं किया और मैं तेरे मोहर्रमात में फान्दता तेरे हुदूद व एहकाम से मुतजाविज़ होता और तेरी तहदीद व सरज़न्श से हमेशा ग़फ़लत करता रहा। ऐ मेरे माबूद! तेरे ही लिये हम्द व सताइश है जो ऐसा साहबे इक़्तेदार है जो मग़लूब नहीं हो सकता। और ऐसा बुर्दबार है जो जल्दी नहीं करता। यह उस शख़्स का मौक़फ़ है जिसने तेरी नेमतों की फ़रावानी का एतराफ़ किया है और उन नेमतों के मुक़ाबले में कोताही की है और अपने खि़लाफ़ अपनी ज़ियांकारी की गवाही दी है। ऐ मेरे माबूद! मैं मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम) की मन्ज़िलत बलन्द पाया और अली (अलैहिस्सलाम) के मरतबए रौशन व दरख़्शां के वास्ते से तुझसे तक़र्रूब का ख़्वास्तगार हूं और उन दोनों के वसीली से तेरी तरफ़ मुतवज्जो हूं। ताके मुझे उन चीज़ों की बुराई से पनाह दे जिनसे पनाह तलब की जाती है। इसलिये के यह तेरी तवंगरी व वुसअत के मुक़ाबले में दुश्वार और तेरी क़ुदरत के आगे कोई मुश्किल काम नहीं है और तू हर चीज़ पर क़ादिर है। लेहाज़ा तू अपनी रहमत और दाएमी तौफ़ीक़ से मुझे बहरामन्द फ़रमा के जिसे ज़ीना क़रार देकर तेरी रज़ामन्दी की सतह पर बलन्द हो सकूं और उसके ज़रिये तेरे अज़ाब से महफ़ूज़ रहूं। ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे बढ़कर रहम करने वाले।

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