अढ़सठवीं (68) दुआ
दुआए रोज़े शम्बा
मदद अल्लाह तआला के नाम से जो हिफ़ाज़त चाहने वालों का कलमए कलाम और पनाह ढूंढने वालों का विर्दे ज़बान है और ख़ुदावन्दे आलम से पनाह चाहता हूं। सितमगारों की सितमरानी, हासिदरों की फ़रेबकारी और ज़ालिमों के ज़ुल्मे नादवा से। मैं उसकी हम्द करता हूं (और सवाल करता हूं के वह इस हम्द को) तमाम हम्द करने वालों की हम्द पर फ़ौक़ियत दे,
बारे इलाहा! तू एक अकेला है। जिसका कोई शरीक नहीं है और बग़ैर किसी मालिक के बनाए, तू मालिक व फ़रमानरवा है, तेरे हुक्म के आगे कोई रोक खड़ी नहीं की जा सकती और न तेरी सल्तनत व फ़रमानरवाई में तुझ से टक्कर ली जा सकती है। मैं तुझसे सवाल करता हूं के तू अपने अब्दे ख़ास और रसूल (स0) हज़रत मोहम्मद (स0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपनी नेमतों पर ऐसा शुक्र मेरे दिल में डाल दे जिससे तू अपनी ख़ुशनूदी की आखि़री हद तक मुझ पहुंचा दे और अपनी नज़रे इनायत से इताअत, इबादत की पाबन्दी और सवाब का इस्तेहक़ाक़ हासिल करने में मेरे मदद फ़रमाए और जब तक मुझे ज़िन्दा रखे, गुनाहों से बाज़ रखने में मुझ पर रहम करे, और जब तक मुझे बाक़ी रखे इन चीज़ों की तौफ़ीक़ दे जो मेरे लिये सूदमन्द हों और अपनी किताब के ज़रिये मेरा सीना खोल दे और उसकी तिलावत के वसीले से मेरे गुनाह छांट दे और जान व ईमान की सलामती अता फ़रमाए और मेरे दोस्तों को (मेरे गुनाहों के बाएस) वहशत में न डाले और जिस तरह मेरी गुज़िश्ता ज़िन्दगी में एहसानात किये हैं उसी तरह बक़िया ज़िन्दगी में मुझ पर अपने एहसानात किये हैं उसी तरह बक़िया ज़िन्दगी में मुझ पर अपने एहसानात की तकमील फ़रमाए। ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।