Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 68th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



 अढ़सठवीं (68) दुआ
दुआए रोज़े शम्बा

 
मदद अल्लाह तआला के नाम से जो हिफ़ाज़त चाहने वालों का कलमए कलाम और पनाह ढूंढने वालों का विर्दे ज़बान है और ख़ुदावन्दे आलम से पनाह चाहता हूं। सितमगारों की सितमरानी, हासिदरों की फ़रेबकारी और ज़ालिमों के ज़ुल्मे नादवा से। मैं उसकी हम्द करता हूं (और सवाल करता हूं के वह इस हम्द को) तमाम हम्द करने वालों की हम्द पर फ़ौक़ियत दे,
 
बारे इलाहा! तू एक अकेला है। जिसका कोई शरीक नहीं है और बग़ैर किसी मालिक के बनाए, तू मालिक व फ़रमानरवा है, तेरे हुक्म के आगे कोई रोक खड़ी नहीं की जा सकती और न तेरी सल्तनत व फ़रमानरवाई में तुझ से टक्कर ली जा सकती है। मैं तुझसे सवाल करता हूं के तू अपने अब्दे ख़ास और रसूल (स0) हज़रत मोहम्मद (स0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपनी नेमतों पर ऐसा शुक्र मेरे दिल में डाल दे जिससे तू अपनी ख़ुशनूदी की आखि़री हद तक मुझ पहुंचा दे और अपनी नज़रे इनायत से इताअत, इबादत की पाबन्दी और सवाब का इस्तेहक़ाक़ हासिल करने में मेरे मदद फ़रमाए और जब तक मुझे ज़िन्दा रखे, गुनाहों से बाज़ रखने में मुझ पर रहम करे, और जब तक मुझे बाक़ी रखे इन चीज़ों की तौफ़ीक़ दे जो मेरे लिये सूदमन्द हों और अपनी किताब के ज़रिये मेरा सीना खोल दे और उसकी तिलावत के वसीले से मेरे गुनाह छांट दे और जान व ईमान की सलामती अता फ़रमाए और मेरे दोस्तों को (मेरे गुनाहों के बाएस) वहशत में न डाले और जिस तरह मेरी गुज़िश्ता ज़िन्दगी में एहसानात किये हैं उसी तरह बक़िया ज़िन्दगी में मुझ पर अपने एहसानात किये हैं उसी तरह बक़िया ज़िन्दगी में मुझ पर अपने एहसानात की तकमील फ़रमाए। ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 67th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



 सढ़सठवीं (67) दुआ
दुआए रोज़े जुमा

 
तमाम तारीफ़ उस अल्लाह तआला के लिये है जो पैदा करने और ज़िन्दगी बख़्शने से पहले मौजूद था और तमाम चीज़ों के फ़ना होने के बाद बाक़ी रहेगा। वह ऐसा इल्म वाला है के जो उसे याद रखे उसे भूलता नहीं, जो उसका शुक्र अदा करे उसके हाँ कमी नहीं होने देता, जो उसे पुकारे उसे महरूम नहीं करता, जो उससे उम्मीद रखे उसकी उम्मीद नहीं तोड़ता।
 
बारे इलाहा! मैं तुझे गवाह करता हूं और तू गवाह होने के लेहाज़ से बहुत काफ़ी है, और तेरे तमाम फ़रिश्तों और तेरे आसमानों में बसने वालों और तेरे अर्श के उठाने वालों और तेरे फ़र्सतादा नबियों (अ0) और रसूलों (अ0) और तेरी पैदा की हुई क़िस्म-क़िस्म की मख़लूक़ात को अपनी गवाही पर गवाह करता हूं के तू ही माबूद है और तेरे अलावा कोई माबूद नहीं। तू वहदहू लाशरीक है, तेरा कोई हमसर नहीं है तेरे क़ौल में न वादाखि़लाफ़ी होती है और न कोई तबदीली। और यह के मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम तेरे ख़ास बन्दे और रसूल (स0) हैं जिन चीज़ों की ज़िम्मेदारी तूने उन पर आएद की वह बन्दों तक पहुंचा दीं। उन्होंने ख़ुदाए बुज़ुर्ग व बरतर की राह में जेहाद करके हक़क़े जेहाद अदा किया और सही-सही सवाब की ख़ुशख़बरी दी और वाक़ेई अज़ाब से डराया। बारे इलाहा! जब तक तू मुझे ज़िन्दा रखे अपने दीन पर साबित क़दम रख और जब के तूने मुझे हिदायत कर दी तो मेरे दिल को बेराह न होने दे और मुझे अपने पास से रहमत अता कर। बेशक तू ही नेमतों का बख़्शने वाला है। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें उनके इत्तेबाअ और उनकी जमाअत में से क़रार दे और उनके गिर्दा में महशूर फ़रमा और नमाज़े जुमा के फ़रीज़े और उस दिन की दूसरों इबादतों के बजा लाने और फ़राएज़ पर अमल करने वालों पर क़यामत के दिन जो अताएं तूने तक़सीम की हैं उन्हें हासिल करने की तौफ़ीक़ मरहमत फ़रमा। बेशक तू साहेबे इक़्तेदार और हिकमत वाला है।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 66th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



 छार्छठवीं (66) दुआ
दुआए रोज़े पंज शंबा
 


सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसने अपनी क़ुदरत से अन्धेरी रात को रूख़सत किया और अपनी रहमत से रौशन दिन निकाला और उसकी रौशनी का ज़रतार जामा मुझे पहनाया और उसकी नेमत से बहरामन्द किया। बारे इलाहा! जिस तरह तूने इस दिन के लिये मुझे बाक़ी रखा इसी तरह इस जैसे दूसरे दिनों के लिये ज़िन्दा रख और अपने पैग़म्बर मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और इस दिन में और इसके अलावा और रातों और दिनों में हराम उमूर के बजा लाने और गुनाह व मआसी के इरतेकाब करने से रन्जीदा ख़ातिर न कर और मुझे इस दिन की भलाई और जो इसके बाद है उसकी भलाई अता कर और इस दिन की बुराई और जो कुछ इस दिन में है उसकी बुराई और जो इसके बाद है उसकी बुराई मुझसे दूर कर दे। ऐ अल्लाह! मैं सलाम के अहद व पैमान के ज़रिये तुझसे तवस्सुल चाहता हूं और क़ुरान की इज़्ज़त व हुरमत के वास्ते तुझ पर भरोसा करता हूं अैर मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के वसीले के तेरी बारगाह में शिफ़ाअत का तलबगार हूं।
 
तो ऐ मेरे माबूद! मेरे इस अहद व पैमान पर नज़र कर जिसके वसीले से हाजत बर आरी का उम्मीदवार हूं। ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले। बारे इलाहा! इस रोज़े पन्जशम्बा में मेरी पांच हाजतें बर ला जिनकी समाई तेरे ही दामने करम में है और तेरी ही नेमतों की फ़रावानी उनकी मुतहम्मिल हो सकती है। ऐसी सलामती दे जिससे तेरी फ़रमानबरदारी की क़ूवत हासिल कर सकूं। ऐसी तौफ़ीक़े इबादत दे जिससे तेरे सवाबे अज़ीम का मुस्तहेक़ क़रार पाऊं। अैर सरे दस्त रिज़्क़े हलाल की फ़रावानी और ख़ौफ़ व ख़तरे के मवाक़े पर अपने अमन के ज़रिये मुतमइन कर दे और ग़मों और फ़िक्रों के हुजूम से अपनी पनाह में रख। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और उनसे मेरे तवस्सुल को क़यामत के दिन सिफ़ारिश करने वाला, नफ़ा बख़्शने वाला क़रार दे। बेशक तू रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाला है।

sahifa-e-kamila--sajjadia-65th-dua--urdu-tarjuma-in-hindi--by-imam-zainul-abedin-a.s



पैसठवीं दुआ
दुआए रोज़े चहारशम्बा


तमाम तारीफ़ उस तआला के लिये है जिसने रात को पर्दा बनाया और नीन्द को आराम व राहत का ज़रिया और दिन को हरकत व अमल के लिये क़रार दिया। तमाम तारीफ़ तेरे ही लिये है के तूने मुझे मेरी ख़्वाबगाह से ज़िन्दा और सलामत उठाया। और अगर तू चाहता तो उसे दाएमी ख़्वाबगाह बना देता। ऐसी हम्द जो हमेशा हमेशा रहे, जिसका सिलसिला क़ता न हो और न मख़लूक़ उसकी गिनती का शुमार कर सके।

बारे इलाहा! तमाम तारीफ़ तेरे ही लिये है के तूने पैदा किया, तो हर लेहाज़ से दुरूस्त पैदा किया। अन्दाज़ा मुक़र्रर किया और हुक्म नाफ़ि़ज़ किया, मौत दी और ज़िन्दा किया। बीमार डाला और शिफ़ा भी बख़्शी, आफ़ियत दी और मुब्तिला भी किया अैर तू अर्श पर मुतमकिन हुआ और मुल्क पर छा गया। मैं तुझसे दुआ मांगने में उस शख़्स का सा तर्ज़े अमल इख़्तियार करता हूं जिसका वसीला कमज़ोर, चाराए कार ख़त्म और मौत का हंगाम नज़दीक हो। दुनिया में उसकी उम्मीदों का दामन सिमट चुका हो और तेरी रहमत की जानिब उसकी एहतियाज शदीद हो और अपनी कोताहियों की वजह से उसे बड़ी हसरत और उसकी लग्ज़िशों और ख़ताओं की कसरत हो और तेरी बारगाह में सिद्क़े नीयत से उसकी तौबा हो चुकी हो तो अब ख़ातेमुल अम्बियाा मोहम्मद (स0) और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे मोहम्मद (स0) सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की शिफ़ाअत नसीब कर और मुझे उनकी हमनशीनी से महरूम न कर। इसलिये के तू तमाम रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाला है। बारे इलाहा! इस रोज़े चहारशम्बा मेंमेरी चार हाजतें पूरी कर दे। यह के इत्मीनान हो तो तेरी फ़रमाबरदारी में, सुरूर हो तो तेरी इबादत में, ख़्वाहिश हो तो तेरे सवाब की जानिब, और किनाराकशी हो तो उन चीज़ों से जो तेरे दर्दनाक अज़ाब का बाएस हैं। बेशक तू जिस चीज़ के लिये चाहे अपने लुत्फ़ को कार फ़रमा करता है।

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चौसठवीं दुआ
दुआए रोज़े सेशम्बा


सब तारीफ़ अल्लाह के लिये है और वही तारीफ़ का हक़दार और वही इसका मुस्तहेक़ है। ऐसी तारीफ़ जोकसीर व फ़रावां हो और मैं अपने ज़मीर की बुराई से उसके दामन में पनाह मांगता हूं और बेशक नफ़्स बहुत ज़्यादा बुराई पर उभारने वाला है मगर यह के मेरा परवरदिगार रहम करे और मैं अल्लाह ही के ज़रिये इस शैतान के शर व फ़साद से पनाह चाहता हूं जो मेरे लिये गुनाह पर गुनाह बढ़ाता जा रहा है और मैं हर सरकश, बदकार और ज़ालिम बादशाह और चीरादस्त दुश्मन से उसके दामने हिमायत में पनाह गुज़ीन हूं।
बारे इलाहा! मुझे अपने लश्कर में क़रार दे क्योंके तेरा लश्कर ही ग़ालिब व फ़तेहमन्द है और मुझे अपने गिरोह में क़रार दे क्योंके तेरा गिरोह ही हर लेहाज़ से बेहतरी पाने वाला है और मुझे अपने दोस्तों में से क़रार दे क्योंके तेरे दोस्तों को न कोई अन्देशा होता है और न वह अफ़सर्दा व ग़मगीन होते हैं। ऐ अल्लाह! मेरे लिये मेरे दीन को आरास्ता कर दे इसलिये के वह मेरे हर मामले में हिफ़ाज़त का ज़रिया है और मेरी आख़ेरत को भी संवार दे क्योंके वह मेरी मुस्तक़िल मन्ज़िल और दिनी व फ़रोमाया लोगों से (पीछा छुड़ाकर) निकल भागने की जगह है और मेरी ज़िन्दगी को हर नेकी में इज़ाफ़े का बाएस और मेरी मौत को हर रन्ज व तकलीफ़ से राहत व सुकून का ज़रिया क़रार दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) जो नबीयों (अ0) के ख़ातम और पैग़म्बरों के सिलसिले के फ़र्दे आखि़र हैं उन पर और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ0) और बरगुज़ीदा असहाब पर रहमत नाज़िल फरमा और मुझे इस रोज़े सेशम्बाा में तीन चीज़ें अता फ़रमा। वह यह के मेरे किसी गुनाह को बाक़ी न रहने दे मगर यह के उसे बख़्श दे, और न किसी ग़म को मगर यह के उसे बरतरफ़ कर दे और न किसी दुश्मन को मगर यह के उसे दूर कर दे। बिस्मिल्लाह के वास्ते से जो (अल्लाह तआला के) तमाम नामों में से बेहतर नाम (पर मुश्तमिल) है और अल्लाह तआला के नाम के वास्ते से जो ज़मीन व आसमान का परवरदिगार है, मैं तमाम नापसन्दीदा चीज़ों का दफ़िया चाहता हूं। जिनमें अव्वल दर्जे पर उसकी नाराज़गी है और तमाम पसन्दीदा चीज़ों को समेट लेना चाहता हूं। जिनमें सबसे मुक़द्दम उसकी रज़ामन्दी है ऐ फ़ज़्ल व एहसान के मालिक तू अपनी जानिब से मेरा ख़ातेमा बख़्शिश व मग़फ़ेरत पर फ़रमा।

sahifa-e-kamila--sajjadia-63rd-dua--urdu-tarjuma-in-hindi--by-imam-zainul-abedin-a.s



तिरसठवीं दुआ
दुआए रोज़े दोशम्बा


तमाम तारीफ़ें उस अल्लाह तआला के लिये हैं के जब उसने ज़मीन व आसमान को ख़ल्क़ फ़रमाया तो किसी को गवाह नहीं बनाया, और जब जानदारों को पैदा किया तो अपना कोई मददगार नहीं ठहराया। उलूहियत में कोई उसका शरीक और वहदत (व इन्फ़ेरादियत से मख़सूस होने) में कोई उसका मआवुन नहीं है। ज़बानें उसकी इन्तिहाए सिफ़ात के बयान करने से गंग और अक़्लें उसकी मारेफ़त की तह तक पहुंचने से आजिज़ हैं। जाबिर व सरकश उसकी हैबत के सामने झुके हुए, चेहरे नक़ाबे ख़शयत ओढ़े हुए और अज़मत वाले उसकी अज़मत के आगे सर अफ़गन्दा हैं। तो बस तेरे ही लिये हम्द व सताइश है पै दर पै, लगातार, मुसलसल, पैहम। और उसके रसूल (स0) पर अल्लाह तआला की अबदी रहमत और दाएम व जावेदानी सलाम हो। बारे इलाहा! मेरे इस दिन के इब्तिदाई हिस्से को सलाह व दुरूस्ती, दरमियानी हिस्से को फ़लाह व बहबूदी और आख़ेरी हिस्से को कामयाबी व कामरानी से हमकिनार क़रार दे। और उस दिन से जिसका पहला हिस्सा ख़ौफ़, दरम्यिानी हिस्सा बेताबी और आखि़री हिस्सा दर्द व अलम लिये हुए, तुझसे पनाह मांगता हूं। बारे इलाहा! हर उस नज़र के लिये जो मैंने मानी हो, हर उस वादे की निस्बत जो मैंने किया हो और हर उस अहद व पैमान की बाबत जो मैंने बान्धा हो फिर किसी एक को भी तेरे लिये पूरा न किया हो। तुझसे अफ़ो व बख़्शिश का ख़्वास्तगार हूं और तेरे बन्दों के उन हुक़ूक़ व मज़ालिम की बाबत जो मुझ पर आयद होते हैं, तुझसे सवाल करता हूं के तेरे बन्दों में से जिस बन्दे का और तेरी कनीज़ों में से जिस कनीज़ का कोई हक़ मुझ पर हो, इस तरह के ख़ुद उसकी ज़ात या उसकी इज़्ज़त या उसके माल या उसके अह्लो औलाद की निस्बत में मज़लेमा का मुरतकिब हुआ हूं या ग़ीबत के ज़रिये उसकी बदगोई की हो या (अपने ज़ाती) रूझान या किसी ख़्वाहिश या रउनत या ख़ुद पसन्दी या रिया, या अस्बेयत से उस पर नाजाएज़ दबाव डाला हो, चाहे वह ग़ाएब हो या हाज़िर, ज़िन्दा हो या मर गया हो, और अब उसका हक़ अदा करना या उससे तहल्लुल मेरे दस्तरस से बाहर और मेरी ताक़त से बाला हो तो ऐ वह जो हाजतों के बर लाने पर क़ादिर है और वह हाजतें उसकी मशीयत के ज़ेरे फ़रमान और उसके इरादे की जानिब तेज़ी से बढ़ती हैं। मैं तुझसे सवाल करता हूं के तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमाए और ऐसे शख़्स को जिस तरह तू चाहे मुझसे राज़ी कर दे और मुझे अपने पास से रहमत अता कर। बिला शुबह मग़फ़ेरत व आमरज़िश से तेरे हां कोई कमी नहीं  होती और न बख़्शिश व अता से तुझे कोई नुक़सान पहुंच सकता है। ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले। बारे इलाहा! तू मुझे दोशम्बे के दिन अपनी जानिब से दो नेमतें मरहमत फ़रमा। एक यह के इस दिन के इब्तिदाई हिस्से में तेरी इताअत के ज़रिये सआदत हासिल हो और दूसरे यह के इसके आखि़री हिस्से में तेरी मग़फ़ेरत के बाएस नेमत से बहरामन्द हूं। ऐ व हके वही माबूद है और उसके अलावा कोई गुनाहों की बख़्श नहीं सकता।

sahifa-e-kamila--sajjadia-62nd-dua--urdu-tarjuma-in-hindi--by-imam-zainul-abedin-a.s



बारसठवीं दुआ
हफ़ते के सात दिनों में हज़रत (अ0) के पढ़ने की दुआएं
दुआए रोज़े यकशम्बा


उस अल्लाह के नाम से मदद मांगता हूं जिसके फ़ज़्ल व करम ही का उम्मीदवार हूं और जिसके अद्ल ही से अन्देशा है। उसी की बात पर मुझे भरोसा है और उसी की रस्सी से वाबस्ता हूं। ऐ अफ़ो व ख़ुशनूदी के मालिक! मैं तुझसे ज़ुल्म व जौर, ज़माने के इन्क़ेलाबात, ग़मों के पैहम हुजूम और नाज़िल होने वाली मुसीबतों से पनाह मांगता हूं और इस बात से के आख़ेरत का साज़ व सामान और ज़ादे राह मुहय्या करने से पहले ही मुद्दते हयात ख़त्म हो जाए और तुझ ही से उन चीज़ों की रहनुमाई चाहता हूं जिन में अपनी बहबूदी और दूसरों की फ़लाह व दुरूस्तगी का सामान हो और तुझ ही से मदद मांगता हूं उन बातों की जिनमें अपनी फ़लाह व कामरानी और दूसरे क