Thursday 23 February 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 21st dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


इक्कीसवीं दुआ
जब किसी बात से ग़मगीन या गुनाहों की वजह से परेषान होते तो यह दुआ पढ़ते


ऐ अल्लाह! ऐ यक व तन्हा और कमज़ोर व नातवान की किफ़ायत करने वाले और ख़तरनाक मरहलों से बचा ले जाने वाले! गुनाहों ने मुझे  बे यार व मददगार छोड़ दिया है। अब कोई साथी नहीं है और तेरे ग़ज़ब के बरदाष्त करने से आजिज़ हूँ अब कोई सहारा देने वाला नहीं है। तेरी तरफ़ बाज़गष्त का ख़तरा दरपेष है। अब इस दहषत से कोई तस्कीन देने वाला नहीं है। और जबके तूने मुझे ख़ौफ़ज़दा किया है तो कौन है जो मुझे तुझसे मुतमईन करे और जबके तूने मुझे तन्हा छोड़ दिया है तो कौन है जो मेरी दस्तगीरी करे, और जबके तूने मुझे नातवां कर दिया है तो कौन है जो मुझे क़ूवत दे। ऐ मेरे माबूद! परवरदा को कोई पनाह नहीं दे सकता सिवाए उसके परवरदिगार के और षिकस्त ख़ोरदा को कोई अमान नहीं दे सकता सिवाए उस पर ग़लबा पाने वाले के। और तलबकरदा की कोई मदद नहीं कर सकता सिवाए उसके तालिब के। यह तमाम वसाएल ऐ मेरे माबूद तेरे ही हाथ में हैं और तेरी ही तरफ़ राहे फ़रार व गुरेज़ है। लेहाज़ा तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरे गुरेज़ को अपने दामन में पनाह दे और मेरी हाजत बर ला। ऐ अल्लाह! अगर तूने अपना पाकीज़ा रूख़ मुझसे मोड़ लिया और अपने एहसाने अज़ीम से दरीग़ किया या अपने रिज़्क़ को बन्द कर दिया, या अपने रिष्तए रहमत को मुझसे क़ता कर लिया तो मैं अपनी आरज़ूओं तक पहुंचने का वसीला तेरे सिवा कोई पा नहीं सकता और तेरे हाँ की चीज़ों पर तेरी मदद के सिवा दस्तेरस हासिल नहीं कर सकता। क्योंके मैं तेरा बन्दा और तेरे क़ब्ज़ए क़ुदरत में हूँ और तेरे ही हाथ में मेरी बागडोर है। तेरे हुक्म के आगे मेरा हुक्म नहीं चल सकता, मेरे मेरे बारे में तेरा फ़रमान जारी और मेरे हक़ में तेरा फ़ैसला अद्ल व इन्साफ पर मबनी है। तेरे क़लम व सलतनत से निकल जाने का मुझे यारा नहीं और तेरे अहाताए क़ुदरत से क़दम बाहर रखने की ताक़त नहीं और न तेरी मोहब्बत को हासिल कर सकता हूं। न तेरी रज़ामन्दी तक पहुंच सकता हूं और न तेरे हां की नेमतें पा सकता हूँ मगर तेरी इताअत और तेरी रहमते ज़ाववाल के वसीले से। ऐ अल्लाह! मैं हर हाल में तेरा ज़लील बन्दा हूं, तेरी मदद के बग़ैर मैं अपने सूद व ज़ेयाँ का मालिक नहीं। मैं इस अज्ज़ व बेबज़ाअती की अपने बारे में गवाही देता हूँ और अपनी कमज़ोरी व बेचारगी का एतराफ़ करता हूँ। लेहाज़ा जो वादा तूने मुझसे किया है उसे पूरा कर और जो दिया है उसे तकमील तक पहुंचा दे इसलिये के मैं तेरा वह बन्दा हूं जो बेनवा, आजिज़, कमज़ोर, बे सरोसामान, हक़ीर, ज़लील, नादार, ख़ौफ़ज़दा और पनाह का ख़्वास्तगार है।

ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझे उन अतियों में जो तूने बख़्षे हैं फ़रामोष कार और उन नेमतों में जो तूने अता की हैं एहसान नाषिनास न बना दे और मुझे दुआ की क़ुबूलियत से ना उम्मीद न कर अगरचे उसमें ताख़ीर हो जाए। आसाइष में हूं या तकलीफ़ में तंगी में हूं या फ़ारिग़ुलबाली में तन्दरूस्ती की हालत में हूँ या बीमारी की। बदहाली में हूँ या ख़ुषहाली में, तवंगरी में हूं या उसरत में। फ़क्ऱ में हूं या दौलतमन्दी में।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे हर हालत में मदह व सताइष व सपास में मसरूफ़ रख यहां तक के दुनिया में से जो कुछ तू दे उस पर ख़ुष न होने लगूँ और जो रोक ले उस पर रन्जीदा न हों। और परहेज़गारी को मेरे दिल का षुआर बना और मेरे जिस्म से वही काम ले जिसे तू क़ुबूल फ़रमा और अपनी इताअत में इन्हेमाक के ज़रिये तमाम दुनियवी इलाएक़ से फ़ारिग़ कर दे ताके उस चीज़ को जो तेरी नाराज़ी का सबब है दोस्त न रखूं और जो चीज़ तेरी ख़ुषनूदी का बाएस है उसे नापसन्द न करूं।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और ज़िन्दगी भर मेरे दिल को अपनी मोहब्बत के लिये फ़ारिग़ कर दे। अपनी याद में उसे मषग़ूल रख। अपने ख़ौफ़ व हेरास के ज़रिये (गुनाहों की) तलाफ़ी का मौक़ा दे, अपपनी तरफ़ रूजू होने से उसको क़ूवत व तवानाई बख़्ष। अपनी इताअत की तरफ़ से माएल और अपने पसन्दीदातरीन रास्ते पर चला और अपनी नेमतों की तलब पर उसे तैयार कर आौर परहेज़गारी को मेरा तोषह, अपनी रहमत की जानिब मेरा सफ़र अपनी ख़ुषनूदी में मेरा गुज़र और अपनी जन्नत में मेरी मन्ज़िल क़रार दे और मुझे ऐसी क़ूवत अता फ़रमा जिससे तेरी रज़ामन्दियों का बोझ उठाऊं और मेरे गुरेज़ को अपनी जानिब और मेरी ख़्वाहिष को अपने हाँ की नेमतों की तरफ़ क़रार दे और बुरे लोगों से मेरे दिल को मतोहिष और अपने और अपने दोस्तों और फ़रमाबरदारों से मानूस कर दे और किसी बदकार और काफ़िर का मुझ पर एहसान न हो। न इसकी निगाहे करम मुझ पर हो और न उसकी मुझे कोई एहतियाज हो बल्कि मेरे दिली सुकून, क़ल्बी लगाव और मेरी बे नियाज़ी व कारगुज़ारी को अपने और अपने बरगुज़ीदा बन्दों से वाबस्ता कर।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे उनका हमनषीन व मददगार क़रार दे और अपने षौक़ व वारफ़्तगी और उन आमाल के ज़रिये जिन्हें तू पसन्द करता और जिनसे ख़ुष होता है। मुझ पर एहसान फ़रमा इसलिये के तू हर चीज़ पर क़ादिर है और यह काम तेरे लिये आसान है। 

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 20th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


बीसवीं दुआ
पसन्दीदा एख़लाक़ व शाइस्ता किरदार के सिलसिले में हज़रत अ0 की दुआ

बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरे ईमान को कामिल तरीन ईमान की हद तक पहुंचा दे और मेरे यक़ीन को बेहतरीन यक़ीन क़रार दे और मेरी नीयत को पसन्दीदातरीन नीयत और मेरे आमाल को बेहतरीन आमाल के पाया तक बलन्द कर दे। ख़ुदावन्द! अपने लुत्फ़ से मेरी नीयत को ख़ालिस व बेरिया और अपनी रहमत से मेरे यक़ीन को इस्तवार और अपनी क़ुदरत से मेरी ख़राबियों की इस्लाह कर दे।

बारे इलाहा। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे उन मसरूफ़ीन से जो इबादत में मानेअ हैं बेनियाज़ कर दे और उन्हीं चीज़़ों पर अमल पैरा होने की तौफ़ीक़ दे जिनके बारे में मुझसे कल के दिन सवाल करेगा और मेरे अय्यामे ज़िन्दगी को ग़रज़े खि़लक़त की अन्जामदेही के लिये मख़सूस कर दे और मुझे (दूसरों से) बेनियाज़ कर दे और मेरे रिज़्क़ में कषाइष व वुसअत फ़रमा। एहतियाज व दस्तंगरी में मुब्तिला न कर। इज़्ज़त व तौक़ीर दे, किब्र व ग़ुरूर से दो चार न होने दे। मेरे नफ़्स को बन्दगी व इबादत के लिये राम कर और ख़ुदपसन्दी से मेरी इबादत को फ़ासिद न होने दे और मेरे हाथों से लोगों को फ़ैज़ पहुंचा दे और उसे एहसान जताने से राएगाना न होने दे। मुझे बलन्दपाया एख़लाक़ मरहमत फ़रमा और ग़ुरूर और तफ़ाख़ुर से महफ़ूज़ रख।

बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और लोगों में मेरा दरजा जितना बलन्द करे उतना ही मुझे ख़ुद अपनी नज़रों में पस्त कर दे और जितनी ज़ाहेरी इज़्ज़त मुझे दे उतना ही मेरे नफ़्स में बातिनी बेवक़अती का एहसास पैदा कर दे।

बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे ऐसी नेक हिदायत से बहरामन्द फ़रमा के जिसे दूसरी चीज़ से तबदील न करू और ऐसे सही रास्ते पर लगा जिससे कभी मुंह न मोड़ूं, और ऐसी पुख़्ता नीयत दे जिसमें ज़रा षुबह न करूं और जब तक मेरी ज़िन्दगी तेरी इताअत व फ़रमाबरदारी के काम आये मुझे ज़िन्दा रख और जब वह षैतान की चरागाह बन जाए तो इससे पहले के तेरी नाराज़गी से साबक़ा पड़े या तेरा ग़ज़ब मुझ पर यक़ीनी हो जाए, मुझे अपनी तरफ़ उठा ले, ऐ माबूद! कोई ऐसी ख़सलत जो मेरे लिये मोईब समझी जाती हो उसकी इस्लाह किये बग़़ैर न छोड़ और कोई ऐसी बुरी आदत जिस पर मेरी सरज़न्ष की जा सके उसे दुरूस्त किये बग़ैर न रहने दे और जो पाकीज़ा ख़सलत अभी मुझमें नातमाम हो उसे तकमील तक पहुंचा दे।

ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मेरी निसबत कीनातोज़ दुष्मनों की दुष्मनी को उलफ़त से, सरकषों के हसद को मोहब्बत से, नेकियों से बेएतमादी को एतमाद से, क़रीबों की अदावत को दोस्ती से, अज़ीज़ों की क़तअ ताल्लुक़ी को सिलए रहमी से, क़राबतदारों की बेएतनाई को नुसरत व तआवुन से, ख़ुषामदियों की ज़ाहेरी मोहब्बत को सच्ची मोहब्बत से और साथियों के एहानत आमेज़ बरताव को हुस्ने मआषेरत से और ज़ालिमों के ख़ौफ़ की तल्ख़ी को अमन की षीरीनी से बदल दे।

ख़ुदावन्दा! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और जो मुझ पर ज़ुल्म करे उस पर मुझे ग़लबा दे, जो मुझसे झगड़ा करे उसके मुक़ाबले में ज़बान (हुज्जत षिकन) दे, जो मुझ से दुष्मनी करे उस पर मुझे फ़तेह व कामरानी बख़्ष। जो मुझसे मक्र करे उसके मक्र का तोड़ अता कर, जो मुझे दबाए उस पर क़ाबू दे। जो मेरी बदगोई करे उसे झुटलाने की ताक़त दे और जो डराए धमकाए, उससे मुझे महफ़ूज़ रख। जो मेरी इस्लह करे उसकी इताअत और जो राहे रास्त दिखाए उसकी पैरवी की तौफ़ीक़ अता फ़रमा।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे उस अम्र की तौफ़ीक़ दे के जो मुझसे ग़ष व फ़रेब करे मैं उसकी ख़ैरख़्वाही करूं, जो मुझे छोड़ दे उससे हुस्ने सुलूक से पेष आऊं, जो मुझे महरूम करे उसे अता व बख़्षिष के साथ एवज़ दूँ और जो क़तए रहमी करे उसे सिलए रहमी के साथ बदला दूँ और जो पसे पुश्त मेरी बुराई करे मैं उसके बरखि़लाफ़ उसका ज़िक्रे ख़ैर करूं और हुस्ने सुलूक पर षुक्रिया बजा लाऊं और बदी से चष्मपोषी करूं।

बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अद्ल के नश्र, ग़ुस्से के ज़ब्त और फ़ितने के फ़रो करने, मुतफ़र्रिक़ व परागान्दा लोगों को मिलाने, आपस में सुलह व सफ़ाई कराने, नेकी के ज़ाहिर करने, ऐब पर पर्दा डालने, नर्म जोई व फ़रवतनी और हुस्ने सीरत के इख़्तेयार करने, रख रखाव रखने हुस्ने एख़लाक़ से पेष आने, फ़ज़ीलत की तरफ़ पेषक़दमी करने, तफ़ज़्ज़ल व एहसान को तरजीह देने, ख़ोरदागीरी से किनारा करने और मुस्तहक़ के साथ हुस्ने सुलूक के तर्क करने और हक़ बात के कहने में अगरचे वह गराँ गुज़रे, और अपनी गुफ़्तार व किरदार की भलाई को कम समझने में अगरचे वह ज़्यादा हो और अपनी क़ौल और अमल की बुराई को ज़्यादा समझने में अगरचे वह कम हो। मुझे नेकोकारों के ज़ेवर और परहेज़गारों की सज व धज से आरास्ता कर और उन तमाम चीज़ों को दाएमी इताअत और जमाअत से वाबस्तगी और अहले बिदअत और ईजाद करदा राइयों पर अमल करने वालों से अलाहेदगी के ज़रिये पायाए तकमील तक पहुंचा दे।

बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और जब मैं बूढ़ा हो तो अपनी वसीअ रोज़ी मेरे लिये क़रार दे और जब आजिज़ व दरमान्दा हो जाऊं तो अपनी क़वी ताक़त से मुझे सहारा दे और मुझे इस बात में मुब्तिला न कर के तेरी इबादत में सुस्ती व कोताही करूं तेरी राह की तषख़ीस में भटक जाऊं, तेरी मोहब्बत के तक़ाज़ों की खि़लाफ़वर्ज़ी करूं और जो तुझसे मुतफ़र्रिक़ व परागान्दा हों उनसे मेलजोल रखूं और जो तेरी जानिब बढ़ने वाले हैं उनसे अलाहीदा रहूं।
ख़ुदावन्द! मुझे ऐसा क़रार दे के ज़रूरत के वक़्त तेरे ज़रिये हमला करूं, हाजत के वक़्त तुझसे सवाल करूं और फ़क्ऱ व एहतियाज के मौक़े पर तेरे सामने गिड़गिड़ाऊं और इस तरह मुझे न आज़माना के इज़तेरार में तेरे ग़ैर से मदद मांगूं और फ़क्ऱ व नादारी के वक़्त तेरे ग़ैर के आगे आजिज़ाना दरख़्वास्त करूं और ख़ौफ़ के मौक़े पर तेरे सिवा किसी दूसरे के सामने गिड़गिड़ाऊं के तेरी तरफ़ से महरूमी, नाकामी और बे एतनाई का मुस्तहक़ क़रार पाऊं। ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।

ख़ुदाया! जो हिरस, बदगुमानी और हसद के जज़्बात षैतान मेरे दिल में पैदा करे उन्हें अपनी अज़मत की याद अपनी क़ुदरत में तफ़क्कुर और दुष्मन के मुक़ाबले में तदबीर व चारासाज़ी के तसव्वुरात से बदल दे और फ़हष कलामी या बेहूदा गोई, या दुषनाम तराज़ी या झूटी गवाही या ग़ाएब मोमिन की ग़ीबत या मौजूद से बदज़बानी और उस क़बील की जो बातें मेरी ज़बान पर लाना चाहे उन्हें अपनी हम्द सराई मदह में कोषिष व इन्हेमाक, तमजीद व बुज़ुर्गी के बयान, षुक्रे नेमत व एतराफ़े एहसान और अपनी नेमतों के षुमार से तबदील कर दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझ पर ज़ुल्म न होने पाए जबके तू उसके दफ़ा करने पर क़ादिर है, और किसी पर ज़ुल्म न करूं जबके तू मुझे ज़ुल्म से रोक देने की ताक़त रखता है और गुमराह न हो जाऊं जब के मेरी राहनुमाई तेरे लिये आसान है और मोहताज न हूँ  जबके मेरी फ़ारिग़ुल बाली तेरी तरफ़ से है। और सरकष न हो जाऊ ँ जबके मेरी ख़ुषहाली तेरी जानिब से है।

बारे इलाहा! मैं तेरी मग़फ़ेरत की जानिब आया हूं और तेरी मुआफ़ी का तलबगार और तेरी बख़्षिष का मुष्ताक़ हूं। मैं सिर्फ़ तेरे फ़ज़्ल पर भरोसा रखता हूं और मेरे पास कोई चीज़ ऐसी नहीं है जो मेरे लिये मग़फ़ेरत का बाएस बन सके और न मेरे अमल में कुछ है के तेरे अफ़ो का सज़वार क़रार पाऊं और अब इसके बाद के मैं ख़ुद ही अपने खि़लाफ़ फ़ैसला कर चुका हूं तेरे फ़ज़्ल के सिवा मेरा सरमायाए उम्मीद क्या हो सकता है। लेहाज़ा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल कर और मुझ पर तफ़ज़्ज़ुल फ़रमा, ख़ुदाया मुझे हिदायत के साथ गोया कर, मेरे दिल में तक़वा व परहेज़गारी का अलक़ा फ़रमा, पाकीज़ा अमल की तौफ़ीक़ दे, पसन्दीदा काम में मषग़ूल रख। ख़ुदाया मुझे बेहतरीन रास्ते पर चला और ऐसा कर के तेरे दीन व आईन पर मरूं और उसी पर ज़िन्दा रहूं।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे (गुफ़तार व किरदार में) मयानारवी से बहरामन्द फ़रमा और दुरूस्तकारों और हिदायत के रहनुमाओं और नेक बन्दों में से क़रार दे और आख़ेरत की कामयाबी और जहन्नम से सलामती अता कर ख़ुदाया मेरे नफ़्स का एक हिस्सा अपनी (इबतेलाओ आज़माइष के) लिये मख़सूस कर दे ताके उसे (अज़ाब से) रेहाई दिला सके और एक हिस्सा के जिससे उसकी (दुनयवी) इस्लाह व दुरूस्ती वाबस्ता है, मेरे लिये रहने दे क्योंके मेरा नफ़्स तो हलाक होने वाला है मगर यह के तू उसे बचा ले जाए।

ऐ अल्लाह! अगर मैं ग़मगीन हूं तो मेरा साज़ व सामाने (तसकीन) तू है, और अगर (हर जगह से) महरूम रहूं तो मेरी उम्मीदगाह तू है, और अगर मुझ पर ग़मों का हुजूम हो तो तुझ ही से दादफ़रयाद है। जो चीज़ जा चुकी, उसका एवज़ और जो षै तबाह हो गई उसकी दुरूस्ती और जो तू नापसन्द करे उसकी तबदीली तेरे हाथ में है। लेहाज़ा बला के नाज़िल होने से पहले आफ़ियत, मांगने से पहले ख़ुषहाली और गुमराही से पहले हिदायत से मुझ पर एहसान फ़रमा और लोगों की सख़्त व दुरषत बातों के रंज से महफ़ूज़ रख और क़यामत के दिन अम्न व इतमीनान अता फ़रमा और हुस्ने हिदायत व इरषाद की तौफ़ीक़ मरहमत फ़रमा।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपने लुत्फ़ से (बुराइयों को) मुझसे दूर कर दे और अपनी नेमत से मेरी परवरिष और अपने करम से मेरी इस्लाह फ़रमा और अपने फ़ज़्ल व एहसान से (जिस्मानी व नफ़्सानी अमराज़ से) मेरा मदावा कर। मुझे अपनी रहमत के साये में जगह दे, और अपनी रज़ामन्दी में ढांप ले और जब उमूर मुष्तबा हो जाएं तो जो उनमें ज़्यादा क़रीने सवाब हो और जब आमाल में इष्तेबाह वाक़ेअ हो जाए तो जो उनमें पाकीज़ातर हो और जब जब मज़ाहिब में इख़्तेलाफ़ पड़ जाए तो जो उनमें पसन्दीदातर हो उस पर अमल पैरा होने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे बेनियाज़ी का ताज पहना और मुतअल्लुक़ा कामों और अहसन तरीक़ से अन्जाम देने पर मामूर फ़रमा और ऐसी हिदायत से सरफ़राज़ फ़रमा जो दवाम व साबित लिये हुए हो और ग़ना व ख़ुषहाली से मुझे बेराह न होने दे और आसूदगी व आसाइष अता फ़रमा, और ज़िन्दगी को सख़्त दुष्वार न बना दे।  मेरी दुआ को रद्द न कर क्योंके मैं किसी को तेरा मद्दे मुक़ाबिल नहीं क़रार देता और न तेरे साथ किसी को तेरा हमसर समझते हुए पुकारता हूँ।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे फ़ुज़ूलख़र्ची से बाज़ रख और मेरी रोज़ी को तबाह होने से बचा और मेरे माल में बरकत देकर इसमें इज़ाफ़ा कर और मुझे इसमें से उमूरे ख़ैर में ख़र्च करने की वजह से राहे हक़ व सवाब तक पहुंचा।

बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे कस्बे माषियत के रंज व ग़म से बेनियाज़ कर दे और बेहिसाब रोज़ी अता फ़रमा ताके तलाषे मआष में उलझ कर तेरी इबादत से रूगर्दान न हो जाऊं और (ग़लत व नामषरूअ) कार व कस्ब का ख़मयाज़ा न भुगतूं।

ऐ अल्लाह! मैं जो कुछ तलब करता हूं उसे अपनी क़ुदरत से मुहय्या कर दे और जिस चीज़ से ख़ाएफ़ हूं उससे अपनी इज़्ज़त व जलाल के ज़रिये पनाह दे।

ख़ुदाया! मेरी आबरू को ग़ना व तवंगरी के साथ महफ़ूज़ रख और फ़क्ऱ व तंगदस्ती से मेरी मन्ज़ेलत को नज़रों से न गिरा के तुझसे रिज़्क़ पाने वालों से रिज़्क़ मांगने लगूं और तेरे पस्त बन्दों की निगाहे लुत्फ़ व करम को अपनी तरफ़ मोड़ने की तमन्ना करूं और जो मुझे दे उसकी मदह व सना और जो न दे उसकी बुराई करने में मुब्तिला हो जाऊं। और तू ही अता करने और रोक लेने का इख़्तेयार रखता है न के वह।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे ऐसी सेहत दे जो इबादत में काम आए और ऐसी फ़ुरसत जो दुनिया से बेताअल्लुक़ी में सर्फ़ हो और ऐसा इल्म जो अमल के साथ हो और ऐसी परहेज़गारी जो हद्दे एतदाल में हो (के वसवास में मुब्तिला न हो जाऊं)

ऐ अल्लाह! मेरी मुद्दते हयात को अपने अफ़ो व दरगुज़र के साथ ख़त्म कर और मेरी आरज़ू को रहमत की उम्मीद में कामयाब फ़रमा और अपनी ख़ुषनूदी तक पहुंचने के लिये राह आसान कर और हर हालत में मेरे अमल को बेहतर क़रार दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे ग़फ़लत के लम्हात में अपने ज़िक्र   के लिये होषियार कर और मोहलत के दिनों में अपनी इताअत में मसरूफ़ रख और अपनी मोहब्बत की सहल व आसान राह मेरे लिये खोल दे और उसके ज़रिये मेरे लिये दुनिया व आख़ेरत की भलाई को कामिल कर दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी औलाद पर बेहतरीन रहमत नाज़िल फ़रमा। ऐसी रहमत जो उससे पहले तूने मख़लूक़ात में से किसी एक पर नाज़िल की हो और उसके बाद किसी पर नाज़िल नाज़िल करने वाला हो और हमें दुनिया में भी नेकी अता कर और आख़ेरत में भी और अपनी रहमत से हमें दोज़ख़ के अज़ाब से महफ़ूज़ रख।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 19th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


उन्नीसवीं दुआ
क़हतसाली के मौक़े पर तलबे बाराँ की दुआ
बारे इलाहा! अब्रे बारां से हमें सेराब फ़रमा और इन अब्रों के ज़रिये हम पर दामने रहमत फैला जो मूसलाधारा बारिषों के साथ ज़मीन के सब्ज़ाए ख़ुषरंग की रूदीदगी का सरो सामान लिये हुए एतराफ़े आलम में रवाना किये जाते हैं और फलों के पुख़्ता होने से अपने बन्दों पर एहसान फ़रमा और षगूफ़ों के खिलने से अपने षहरों को ज़िन्दगी बख़्ष और अपन मोअजि़्ज़ज़ व बावेक़ार फ़रिष्तों और सफ़ीरों को ऐसी नफ़ा रसां बारिष पर आमादा कर जिसकी फ़रावान दाएम और रवानी हमहगीर हो। और बड़ी बून्दों वाली तेज़ी से आने वाली और जल्द बरसने वाली हो जिससे तू मुर्दा चीज़ों में ज़िन्दगी दौड़ा दे गुज़री हुई बहारें पलटा दे और जो चीज़ें आने वाली हैं उन्हें नमूदार कर दे और सामाने माषियत में वुसअत पैदा कर दे ऐसा अब्र छाए जो तह ब तह ख़ुषआईन्द ख़ुषगवार ज़मीन पर मोहीत और घन गर्ज वाला हो और उसकी बारिष लगातार न बरसे (के खेतों और मकानों को नुक़सान पहुंचे) और न उसकी बिजली धोका देने वाली हो (के चमके, गरजे और बरसे नहीं)। बारे इलाहा! हमें उस बारिष से सेराब कर जो ख़ुष्कसाली को दूर करने वाली (ज़मीन से) सब्ज़ा उगाने वाली (दष्त व सहरा को) सरसब्ज़ करने वाली बड़े फैलाव और बढ़ाव और अनथाह गहराव वाली हो जिससे तू मुरझाई हुई घास की रौनक़ पलटा दे और सूखे पड़े सब्ज़े में जान पैदा कर दे। ख़ुदाया! हमें ऐसी बारिष से सेराब कर जिससे तू टीलों पर से पानी के धारे बहा दे, कुंए छलका दे, नहरें जारी कर दे, दरख़्तों को तरो ताज़ा व षादाब कर दे, षहरों में नरख़ों की अरज़ानी कर दे, चौपायों और इन्सानों में नई रूह फूंक दे, पाकीज़ा रोज़ी का सरो सामान हमारे लिये मुकम्मल कर दे। खेतों को सरसब्ज़ व षादाब कर दे और चौपायों के थनों को दूध से भर दे और उसके ज़रिये हमारी क़ूवत व ताक़त में मज़ीद क़ूवत का इज़ाफ़ा कर दे। बारे इलाहा! इस अब्र की साया अफ़गनी को हमारे लिये झुलसा देने वाला लू का झोंका उसकी ख़नकी को नहूसत का सरचष्मा और उसके बरसने को अज़ाब का पेषख़ेमा और उसके पानी को (हमारे काम व दहन के लिये) षूर न क़रार देना। बारे इलाहा! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें आसमान व ज़मीन की बरकतों से बहरामन्द कर इसलिये के तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 18th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


अठारहवीं दुआ
जब कोई मुसीबत बरतरफ़ होती या कोई हाजत पूरी होती तो यह दुआ पढ़ते
 
ऐ अल्लाह! तेरे ही लिये हम्दो सताइश है तेरे बेहतरीन फै़सले पर और इस बात पर के तूने बलाओं का रूख़ मुझसे मोड़ दिया। तू मेरा हिस्सा अपनी रहमत में से सिर्फ़ उस दुनियवी तन्दरूस्ती में मुनहसिर न कर दे के मैं अपनी इस पसन्दीदा चीज़ की वजह से (आख़ेरत की) सआदतों से महरूम रहूँ और दूसरा मेरी नापसन्दीदा चीज़ की वजह से ख़ूशबख़्ती व सआदत हासिल कर ले जाए और अगर यह तन्दरूस्ती के जिसमें दिन गुज़ारा है या रात बसर की है किसी लाज़वाल मुसीबत का पेशख़ेमा और किसी दाएमी वबाल की तम्हीद बन जाए तो जिस (रहमत व अन्दोह) को तूने मोअख़्ख़र किया है उसे मुक़द्दम कर दे और जिस (सेहत व आफ़ियत को मुक़द्दम किया उसे मोअख़्ख़र कर दे क्योंके जिस चीज़ का नतीजा फ़ना हो वह ज़्यादा नहीं और जिसका अन्जाम बक़ा हो वह कम नहीं। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 17h dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


सत्रहवीं दुआ
जब षैतान का ज़िक्र आता तो उससे और उसके मक्रो अदावत से बचने के लिये यह दुआ पढ़ते
 
ऐ अल्लाह! हम षैतान मरदूद के वसवसों, मक्रों और हीलों से और उसकी झूटी तिफ़्ल तसल्लियों पर एतमाद करने और उसके हथकण्डों से तेरे ज़रिये पनाह मांगते हैं और इस बात से के उसके दिल में यह तमअ व ख़्वाहिष पैदा हो के वह हमें तेरी इताअत से बहकाए और तेरी मासियत के ज़रिये हमारी रूसवाई का सामान करे या यह के जिस चीज़ को वह रंग व रौग़न से आरास्ता करे वह हमारी नज़रों में खुब जाए या जिस चीज़ को वह बदनुमा ज़ाहिर करे वह हमें षाक़ गुज़रे। ऐ अल्लाह! तू अपनी इबादत के ज़रिये उसे हमसे दूर कर दे और तेरी मोहब्बत में मेहनत व जाँफ़िषानी करने के बाएस उसे ठुकरा दे और हमारे और उसके दरमियान एक ऐसा परदा जिसे वह चाक न कर सके, और एक ऐसी ठोस दीवार जिसे वह तोड़ न सके हाएल कर दे। ऐ अल्लाह रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और उसे हमारे बजाए अपने किसी दुष्मन के बहकाने में मसरूफ़ रख और हमें अपने हुस्ने निगेहदाष्त के ज़रिये उससे महफ़ूज़ कर दे। उसके मक्रो फ़रेब से बचा ले और हमसे रूगर्दां कर दे और हमारे रास्ते से उसके नक़्षे क़दम मिटा दे। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें वैसी ही (महफ़ूज़) हिदायत से बहरामन्द फ़रमा जैसी उसकी गुमराही (मुस्तहकम) है और हमें उसकी गुमराही के मुक़ाबले में तक़वा व परहेज़गारी का ज़ादे राह दे और उसकी हलाकत आफ़रीन राह के खि़लाफ़ रष्द और तक़वा के रास्ते पर ले चल। ऐ अल्लाह! हमारे दिलों में उसे अमल व दख़ल का मौक़ा न दे और हमारे पास की चीज़ों में उसके लिये मन्ज़िल मुहय्या न कर। ऐ अल्लाह वह जिस बेहूदा बात को ख़ुषनुमा बनाके हमें दिखाए वह हमें पहचनवा दे और जब पहचनवा दे तो उससे हमारी हिफ़ाज़त भी फ़रमा। और हमें उसको फ़रेब देने के तौर तरीक़ों में बसीरत और उसके मुक़ाबले में सरो सामान की तैयारी की तालीम दे और इस ख़्वाबे ग़फ़लत से जो उसकी तरफ़ झुकाव का बाएस हो, होषियार कर दे और अपनी तौफ़ीक़ से उसके मुक़ाबले में कामिले नुसरत अता फ़रमा। बारे इलाहा! उसके आमाल से नापसन्दीदगी का जज़्बा हमारे दिलों में भर दे और उसके हीलों को तोड़ने की तौफ़ीक़ करामत फ़रमा। ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और षैतान (लानतुल्लाह) के तसर्रूत को हमसे हटा दे और इसकी उम्मीदें हमसे क़ता कर दे और हमें गुमराह करने की हिरस व आज़ से उसे दूर कर दे। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे बाप दादाओं, हमारी माओं, हमारी औलादों, हमारे क़बीले वालों, अज़ीज़ों, रिष्तेदारों और हमसाये में रहने वाले मोमिन मर्दों और मोमिना औरतों को उसके षर से एक मोहकम जगह हिफ़ाज़त करने वाले क़िला और रोक थाम करने वाली पनाह में रख और उससे बचा ले जाने वाली ज़र हैं उन्हें पहना और उसके मुक़ाबले में तेज़ धार वाले हथियार उन्हें अता कर, बारे इलाहा! इस दुआ में उन लोगों को भी षामिल कर जो तेरी रूबूबियत की गवाही दें और दुई के तसव्वुर के बग़ैर तुझे यकता समझें और हक़ीक़ते उबूदियत की रोषनी में तेरी ख़ातिर उसे दुष्मन रखें और इलाही उलूम के सीखने में उसके बरखि़लाफ़ तुझसे मदद चाहें। ऐ अल्लाह! जो गिरह वह लगाए उसे खोल दे, जो जोड़े उसे तोड़ दे। और जो तदबीर करे उसे नाकाम बना दे, और जब कोई इरादा करे उसे रोक दे और जिसे फ़राहम करे उसे दरहम बरहम कर दे। ख़ुदाया! उसके लष्कर को षिकस्त दे, उसके मक्रो फ़रेब को मलियामेट कर दे, उसकी पनाहगाह को ढा दे और उसकी नाक रगड़ दे।
 
ऐ अल्लाह। हमें उसके दुष्मनों में षामिल कर और उसके दोस्तों में षुमार होने से अलैहदा कर दे ताके वह हमें बहकाए तो उसकी इताअत न करें और जब हमें पुकारे तो उसकी आवाज़ पर लब्बैक न कहें और जो हमारा हुक्म माने हम उसे इससे दुष्मनी रखने का हुक्म दें और जो हमारे रोकने से बाज़ आए उसे इसकी पैरवी से मना करें। ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) पर जो तमाम नबियों के ख़ातम और सब रसूलों के सरताज हैं और उनके अहलेबैत पर जो तय्यब व ताहिर हैं और हमारे अज़ीज़ों, भाइयों और तमाम मोमिन मर्दों और मोमिना औरतों को उस चीज़ से पनाह में रख जिससे हमने पनाह मांगी है और जिस चीज़ से ख़ौफ़ खाते हुए हमने तुझसे अमान चाही है उससे अमान दे और जो दरख़्वास्त की है उसे मन्ज़ूर फ़रमा और जिसके तलब करने में ग़फ़लत हो गई है उसे मरहमत फ़रमा और जिसे भूल गए हैं उसे हमारे लिये महफ़ूज़ रख और इस वसीले से हमें नेकोकारों के दरजों और अहले ईमान के मरतबों तक पहुंचा दे। हमारी दुआ क़ुबूल फ़रमा, ऐ तमाम जहान के परवरदिगार।

Wednesday 8 February 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 16th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

सोलहवीं दुआ
जब गुनाहों से मुआफ़ी चाहते या अपने ऐबों से दरगुज़र की इल्तेजा करते तो यह दुआ पढ़ते

ऐ ख़ुदा! ऐ वह जिसे गुनहगार उसकी रहमत के वसीले से फ़रयादरसी के लिये पुकारते हैं। ऐ वह जिसके तफ़ज़्ज़ुल व एहसान की याद का सहारा बेकस व लाचार ढूंढते हैं। ऐ वह जिसके ख़ौफ़ से आसी व ख़ताकार नाला व फ़रयाद करते हैं। ऐ हर वतन आवारा व दिल गिरफ्ता के सरमाया ‘अनस’ हर ग़मज़दा दिल षिकस्ता के ग़मगुसार, हर बेकस व तन्हा के फ़रयदरस और हर रान्दा व मोहताज के दस्तगीर, तू वह है जो अपने इल्म व रहमत से हर चीज़ पर छाया हुआ है और तू वह है जिसने अपनी नेमतों में हर मख़लूक़ का हिस्सा रखा है। तू वह है जिसका अफ़ो व दरगुज़र उसके इन्तेक़ाम पर ग़ालिब है, तू वह है जिसकी रहमत उसके ग़ज़ब से आगे चलती है, तू वह है जिसकी अताएं फ़ैज़ व अता के रोक लेने से ज़्यादा हैं। तू वह है जिसके दामने वुसअत में तमाम कायनाते हस्ती की समाई है, तू वह है के जिस किसी को अता करता है उससे एवज़ की तवक़्क़ो नहीं रखता और तू वह है के जो तेरी नाफ़रमानी करता है उसे हद से बढ़ कर सज़ा नहीं देता। ख़ुदाया! मैं तेरा वह बन्दा हूँ जिसे तूने दुआ का हुक्म दिया तो वह लब्बैक लब्बैक पुकर उठा। हाँ तो वह मैं हूं ऐ मेरे माबूद! जाो तेरे आगे ख़ाके मज़ल्लत पर पड़ा है, मैं वह हूँ जिसकी पुष्त गुनाहों से बोझिल हो गई है, मैं वह हूँ जिसकी उम्र गुनाहों में बीत चुकी है, मैं वह हूँ जिसने अपनी नादानी व जेहालत से तेरी नाफ़रमानी की, हालांके तू मेरी जानिब से नाफ़रमानी का सज़ावार न था। ऐ मेरे माबूद! जो तुझसे दुआ मांगे आया तू उस पर रहम फ़रमाएगा ताके मैं लगातार दुआ मांगूं या जो तेरे आगे रोए उसे बख़्ष देगा ताके मैं रोने पर जल्द आमादा हो जाऊँ। या जो तेरे सामने अज्ज़ व नियाज़ से अपना चेहर ख़ाक पर मले उससे दरगुज़र करेगा, या जो तुझ पर भरोसा करते हुए अपनी तही दस्ती का षिकवा करे उसे बेनियज़ करेगा। बारेइलाहा! जिसका देने वाला तेरे सिवा कोई नहीं है उसे नाउम्मीद न कर और जिसका तेरे अलावा और कोई ज़रियाए बेनियाज़ी नहीं है उसे महरूम न कर। ख़ुदावन्दा! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मुझसे रूगरदानी इख़्तेयार न कर जबके मैं तेरी तरफ़ ख़्वाहिष लेकर आया हूं और मुझे सख़्ती से धुतकार न दे जबके मैं तेरे सामने खड़ा हूं। तू वह है जिसने अपनी तौसीफ़ रहम व करम से की है लेहाज़ा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझ पर रहम फ़रमा और तूने अपन नाम दरगुज़र करने वाला रखा है लेहाज़ा मुझसे दरगुज़र फ़रमा। बारे इलाहा! तू मेरे अष्कों की रवाने को जो तेरे ख़ौफ़ के बाएस है, मेरे दिल की धड़कन को जो तेरे डर की वजह से है और मेरे आज़ा की थरथरी को जो तेरी हैबत के सबब से है देख रहा है। यह सब अपनी बदआमालियों को देखते हुए तुझसे षर्म व हया महसूस करने का नतीजा है यही वजह है के तज़रूअ व ज़ारी के वक़्त मेरी आवाज़ रूक जाती है और मुनाजात के मौक़े पर ज़बान काम नहीं देती। ऐ ख़ुदा तेरे ही लिये हम्द व सपास है के तूने मेरे कितने ही ऐबों पर पर्दा डाला और मुझे रूसवा नहीं होने दिया और कितने ही मेरे गुनाहों को छुपाया और मुझे बदनाम नहीं किया और कितनी ही बुराइयों का मैं मुरतकिब हुआ मगर तूने परदा फ़ाष न किया और न मेरे गले में तंग व आर की ज़िल्लत का तौक़ डाला और न मेरे ऐबों की जुस्तजू में रहने वाले हमसायों और उन नेमतों पर जो मुझे अता की हैं हसद करने वालों पर उन बुराइयों को ज़ाहिर किया। फिर भी तेरी मेहरबानियां मुझे उन बुराइयों के इरतेकाब से जिनका तू मेरे बारे में इल्म रखता है रोक न सकीं। तो ऐ मेरे माबूद! मुझसे बढ़कर कौन अपनी सलाह व बहबूद से बेख़बर अपने हिज़्ज़ व नसीब से ग़ाफ़िल और इस्लाहे नफ़्स से दूर होगा जबके मैं उस रोज़ी को जिसे तूने मेरे लिये क़रार दिया है उन गुनाहों में सर्फ़ करता हूं जिनसे तूने मना किया है और मुझसे ज़्यादा कौन बातिल की गहराई तक उतरने वाला और बुराइयों पर एक़दाम की जराअत करने वाला होगा जबके मैं ऐसे दोराहे पर खड़ा हूं के जहां एक तरफ़ तू दावत दे अैर दूसरी तरफ़ षैतान आवाज़ दे, तो मै। उसकी कारस्तानियों से वाक़िफ़ होते हुए और उसकी षरअंगेज़ियों को ज़ेहन में महफ़ूज़ रखते हुए उसकी आवाज़ पर लब्बैक कहता हूँ। हालांके मुझे उस वक़्त भी यक़ीन होता है के तेरी दावत का मआल जन्नत और उसकी आवाज़ पर लब्बैक कहने का अन्जाम दोज़ख़ है। अल्लाहो अकबर! कितनी यह अजीब बात है जिसकी गवाही मैं ख़ुद अपने खि़लाफ़ दे रहा हूँ और अपने छुपे हुए कामों को एक-एक करके गिन रहा हूं और इससे ज़्यादा अजीब तेरा मुझे मोहलत देना और अज़ाब में ताख़ीर करना है। यह इसलिये नही ंके मैं तेरी नज़रों में बावेक़ार हूँ, बल्कि यह मेरे मामले में तेरी बुर्दबारी और मुझ पर लुत्फ़ो एहसान है ताके मैं ततुझे नाराज़ करने वाली नाफ़रमानियों से बाज़ आ जाऊँ और ज़लील व रूसवा करने वाले गुनाहों से दस्तकष हो जाऊं और इसलिये है के मुझसे दरगुज़र करना सज़ा देने से तुझे ज़्यादा पसन्द है, बल्कि मैं तो ऐ मेरे माबूद! बहुत गुनहगार बहुत बदसिफ़ात व बदआमाल और ग़लतकारियों में बेबाक और तेरी इताअत के वक़्त सुस्तगाम और तेरी तहदीद व सरज़न्ष से ग़ाफ़िल और उसकी तरफ़ बहुत कम निगरान हूँ तो किस तरह मैं अपने उयूब तेरे सामने षुमार कर सकता हूं या अपने गुनाहों का ज़िक्र व बयान से एहाता कर सकता हूं और जो इस तरह मैं अपने नफ़्स को मलामत व सरज़न्ष कर रहा हूँ तो तेरी इस षफ़क़्क़त व मरहमत के लालच में जिससे गुनहगारों के हालात इस्लाह पज़ीद होते हैं और तेरी उस रहमत की तवक़्क़ोमें जिसके ज़रिये ख़ताकारों की गरदनें (अज़ाब से) रिहा होती हैं। बारे इलाहा! यह मेरी गरदन है जिसे गुनाहों ने जकड़ रखा है, तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपने अफ़ो व दरगुज़र से इसे आज़ाद कर दे। और यह मेरी पुष्त है जिसे गुनाहों ने बोझिल कर दिया है तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपने लुत्फ़ो इनआम के ज़रिये इसे हलका कर दे। बारे इलाहा! अगर मैं तेरे सामने इतना रोऊं के मेरी आंखों की पलकें झड़ जाएं और इतना चीख़ चीख़ कर गिरया करूं के आवाज़ बन्द हो जाए और तेरे सामने इतनी देर खड़ा रहूं के दोनों पैरों पर वरम आ जाए और इतने रूकू करूं के रीढ़ की हड्डियां अपनी जगह से उखड़ जाएं और इस क़द्र सजदे करूं के आंखें अन्दर को धंस जाएं और उम्र भर ख़ाक फांकता रहूं और ज़िन्दगी भर गन्दला पानी पीता रहूँ और इस आसना में तेरा ज़िक्र इतना करूं के ज़बान थक कर जवाब दे जाए फिर षर्म व हया की वजह से आसमान की तरफ़ निगाह न उठाऊं तो इसके बावजूद मैं अपने गुनाहों में से एक गुनाह के बख़्षे जाने का भी सज़ावार न होंगा और अगर तू मुझे बख़्ष दे जबके मैं तेरी मग़फ़ेरत के लाएक़ क़रार पाऊं और मुझे माफ़ कर दे जबके मैं तेरी माफ़ी के क़ाबिल समझा जाऊं तो यह मेरा इसतेहक़ाक़ की बिना पर लाज़िम नहीं होगा और न मैं इस्तेहक़ाक़ की बिना पर इसका अहल हूँ क्योंके जब मैंने पहले पहल तेरी मासियत की तो मेरी सज़ा जहन्नम तय थी, लेहाज़ तू मुझ पर अज़ाब करे तो मेरे हक़ में ज़ालिम नहीं होगा। ऐ मेरे माबूद! जबके तूने मेरी पर्दापोषी की और मुझे रूसवा नहीं किया और अपने लुत्फ़ व करम से नर्मी बरती और अज़ाब में जल्दी नहीं की और अपने फ़ज़्ल से मेरे बारे में हिल्म से काम लिया और अपनी नेमतों में तबदीली नहीं की और न अपने एहसान को मुकद्दर किया है तू मेरी इस तवील तज़रूअ व ज़ारी और सख़्त एहतियाज और मौक़ूफ़ की बदहाली पर रहम फ़रमा। ऐ अल्लाह मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे गुनाहों से महफ़ूज़ और इताअत में सरगर्मे अमल रख और मुझे हुस्ने रूजू की तौफ़ीक़ दे और तौबा के ज़रिये पाक कर दे और अपनी हुस्ने निगहदास्त से नुसरत फ़रमा और तन्दरूस्ती से मेरी हालत साज़गार कर और मग़फ़ेरत की षीरीनी से काम व दहन को लज़्ज़त बख़्ष और मुझे अपने अफ़ोका रेहाषदा और अपनी रहमत का आज़ादकर्दा क़रार दे और अपने अज़ाब से रेहाई का परवाना लिख दे और आख़ेरत से पहले दुनिया ही में निजात की ऐसी ख़ुषख़बरी सुना दे जिसे वाज़ेह तौर से समझ लूँ और उसकी ऐसी अलामत दिखा दे जिसे किसी षाहेबा इबहाम के बग़ैर पहचान लूँ और यह चीज़ तेरे हमहगीर इक़तेदार के सामने मुष्किल और तेरी क़ुदरत के मुक़ाबले में दुष्वार नहीं है, बेषक तेरी क़ुदरत हर चीज़ पर महीत है।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 15th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

पन्द्रहवीं दुआ
जब किसी बीमारी या कर्ब व अज़ीयत में मुब्तिला होते तो यह दुआ पढ़ते

ऐ माबूद! तेरे ही लिये हम्द व सपास है इस सेहत व सलामतीए बदन पर जिसमें हमेषा ज़िन्दगी बसर करता रहा और तेरे ही लिये हम्द व सपास है उस मर्ज़ पर जो अब मेरे जिस्म में तेरे हुक्म से रूनुमा हुआ है। ऐ माबूद! मुझे नही मालूम के इन दोनों हालतों में से कौन सी हालत पर तू षुक्रिया का ज़्यादा मुस्तहेक़ है और इन दोनों वक़्तों में से कौन सा वक़्त तेरी हम्द व सताइश के ज़्यादा लाएक़ है। आया सेहत के लम्हे जिनमें तूने अपनी पाकीज़ा रोज़ी को मेरे लिये ख़ुषगवार बनाया और अपनी रज़ा व ख़ुषनूदी और फ़ज़्ल व एहसान के तलब की उमंग मेरे दिल में पैदा की और उसके साथ अपनी इताअत की तौफ़ीक़ देकर उससे ओहदाबरा होने की क़ूवत बख़्षी या यह बीमारी का ज़माना जिसके ज़रिये मेरे गुनाहों को दूर किया और नेमतों के तोहफ़े अता फ़रमाए ताके उन गुनाहों का बोझ हल्का कर दे जो मेरी पीठ को गराँबार बनाए हुए हैं और उन बुराइयों से पाक कर दे जिनमें डूबा हुआ हूँ और तौबा करने पर मुतनब्बे कर दे और गुज़िष्ता नेमत (तन्दरूस्ती) की याददेहानी से (कुफ्राने नेमत के) गुनाह को महो कर दे और इस बीमारी के असना में कातिबाने आमाल मेरे लिये वह पाकीज़ा आमाल भी लिखते रहे जिनका न दिल में तसव्वुर हुआ था न ज़बान पर आए थे और न किसी अज़ो ने उसकी तकलीफ़ गवारा की थी। यह सिर्फ़ तेरा तफ़ज़्ज़ुल व एहसान था जो मुझ पर हुअ। ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और जो कुछ तूने मेरे लिये पसन्द किया है वही मेरी नज़रों में पसन्दीदा क़रार दे और जो मुसीबत मुझ पर डाल दी है उसे सहल व आसान कर दे और मुझे गुज़िष्ता गुनाहों की आलाइष से पाक और साबेक़ा बुराइयों को नीस्त व नाबूद कर दे और तन्दरूस्ती की लज़्ज़त से कामरान अैर सेहत की ख़ुषगवारी से बहराअन्दोज़ कर और मुझे इस बीमारी से छुड़ाकर अपने अफ़ो की जानिब ले और इस हालते उफ़तादगी से बख़्षिष व दरगुज़र की तरफ़ फेर दे और इस बेचैनी से निजात देकर अपनी राहत तक और इस षिद्दत व सख़्ती को दूर करके कषाइष व वुसअत की मन्ज़िल तक पहुंचा दे इसलिये के तू बे इस्तेहक़ाक़ एहसान करने वाला और गरांबहा नेमतें बख़्षने वला है और तू ही बख़्षिष व करम का मालिक और अज़मत व बुज़ुर्गी का सरमायादार है।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 14th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

चौदहवीं दुआ
जब आप पर कोई ज़्यादती होती या ज़ालिमों से कोई नागवार बात देखते तो यह दुआ पढ़ते थे
ऐ वह जिससे फ़रियाद करने वालों की फ़रयादें पोशीदा नहीं हैं। ऐ वह जो उनकी सरगुज़िश्तों के सिलसिले में गवाहों की गवाही का मोहताज नहीं है, ऐ वह जिसकी नुसरत मज़लूमों के हम रकाब और जिसकी मदद ज़ालिमों से कोसों दूर है। ऐ मेरे माबूद! तेरे इल्म में हैं वह ईज़ाएं जो मुझे फ़लाँ इब्ने फ़लाँ से उसके तेरी नेमतों पर इतराने और तेरी गिरफ़्त से ग़ाफ़िल होने के बाएस पहुँची हैं। जिन्हें तूने उस पर हराम किया था और मेरी हतके इज़्ज़त का मुरतकिब हुआ, जिससे तूने उसे रोका था। ऐ अल्लाह रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी क़ूवत व तवानाई से मुझ पर ज़ुल्म करने वाले और मुझसे दुश्मनी करने वाले को ज़ुल्म व सितम से रोक दे और अपने इक़्तेदार के ज़रिये उसके हरबे कुन्द कर दे और उसे अपने ही कामांे में उलझाए रख और जिससे आमादा दुश्मनी है उसके मुक़ाबले में उसे बेदस्त व पा कर दे। ऐ माबूद! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और उसे मुझ पर ज़ुल्म करने की खुली छूट न दे और उसके मुक़ाबले में अच्छे असलूब से मेरी मदद फ़रमा और उसके बुरे कामों जैसे कामों से मुझे महफ़ूज़ रख और उसकी हालत ऐसी हालत न होने दे। ऐ अल्लाह मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और उसके मुक़ाबले में ऐसी बरवक़्त मदद फ़रमा जो मेरे ग़ुस्से को ठण्डा कर दे और मेरे ग़ैज़ व ग़ज़ब का बदला चुकाए। ऐ अल्लाह रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और उसके ज़ुल्म व सितम के एवज़ अपनी मुआफ़ी और उसकी बदसुलूकी के बदले में अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा क्योंके हर नागवार चीज़ तेरी नाराज़गी के मुक़ाबले में हैच है और तेरी नाराज़गी न हो तो हर (छोटी बड़ी) मुसीबत आसान है। बारे इलाहा! जिस तरह ज़ुल्म सहना तूने मेरी नज़रों में नापसन्द किया है, यूँ ही ज़ुल्म करने से भी मुझे बचाए रख। ऐ अल्लाह! मैं तेरे सिवा किसी से शिकवा नहीं करता और तेरे अलावा किसी हाकिम से मदद नहीं चाहता। हाशा के मैं ऐसा चाहूँ तो रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मेरी दुआ को क़ुबूलियत से और मेरे शिकवे को सूरते हाल की तबदीली से जल्दी हमकिनार कर और मेरा इस तरह इम्तेहान न करना के तेरे अद्ल व इन्साफ़ से मायूस हो जाऊँ और मेरे दुश्मन को इस तरह न आज़माना के वह तेरी सज़ा से बेख़ौफ़ होकर मुझ पर बराबर ज़ुल्म करता रहे और मेरे हक़ पर छाया रहे और उसे जल्द अज़ जल्द उस अज़ाब से रू शिनास कर जिससे तूने सितमगारों को डराया धमकाया है और मुझे क़ुबूलियते दुआ का वह असर दिखा जिसका तूने बेबसों से वादा किया है। ऐ अल्लाह मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे तौफ़ीक़ दे के जो सूद-ओ-ज़ियां तूने मेरे लिये मुक़द्दर कर दिया है उसे (बतय्यब ख़ातिर) क़ुबूल करूं और जो कुछ तूने दिया है और जो कुछ लिया है उस पर मुझे राज़ी व ख़ुशनूद रख और मुझे सीधे रास्ते पर लगा और ऐसे काम में मसरूफ़ रख जो आफ़त व ज़ियाँ से बरी हों। ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक मेरे लिये यही बेहतर हो के मेरी दादरसी को ताख़ीर में डाल दे और मुझ पर ज़ुल्म ढाने वाले से इन्तेक़ाम लेने को फ़ैसले के दिन और दावेदारों के महले इजतेमाअ के लिये उठा रखे तो फिर मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल कर और अपनी जानिब से नीयत की सच्चाई और सब्र की पाएदारी से मेरी मदद फ़रमा और बुरी ख़्वाहिश और हरीसों की बेसब्री से बचाए रख और जो सवाब तूने मेरे लिये ज़ख़ीरा किया है और जो सज़ा व उक़ूबत मेरे दुश्मन के लिये मुहय्या की है उसका नक़्शा मेरे दिल में जमा दे और उसे अपने फ़ैसले क़ज़ा व क़द्र पर राज़ी रहने का ज़रिया और अपनी पसन्दीदा चीज़ों पर इत्मीनान व वसूक़ का सबब क़रार दे। मेरी दुआ को क़ुबूल फ़रमा ऐ तमाम जहान के पालने वाले। बेशक तू फ़ज़्ले अज़ीम का मालिक है और तेरी क़ुदरत से कोई चीज़ बाहर नहीं है।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 13th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

तेरहवीं दुआ
 ख़ुदावन्द आलम से तलबे हाजात के सिलसिले में हज़रत की दुआ

ऐ माबूद! ऐ वह जो तलबे हाजात की मन्ज़िले मुन्तहा है ऐ वह जिसके यहां मुरादों तक रसाई होती है। ऐ वह जो अपनी नेमतें क़ीमतों के एवज़ फ़रोख़्त नहीं करता और न अपने अतियें को एहसान जताकर मुकद्दर करता है, ऐ वह जिसके ज़रिये बेनियाज़ी हासिल होती है और जिससे बेनियाज़ नहीं रहा जा सकता। ऐ वह जिसकी ख़्वाहिश व रग़बत की जाती है और जिससे मुंह मोड़ा नहीं जा सकता। ऐ वह जिसके ख़ज़ाने तलब व सवाल से ख़त्म नहीं होते और जिसकी हिकमत व मसलेहत को वसाएल व असबाब के ज़रिये तबदील नहीं किया जा सकता। ऐ वह जिससे हाजतमन्दों का रिश्ताए एहतियाज क़ता नहीं होता और जिसे पुकारने वालों की सदा ख़स्ता व मलोल नहीं करती। तूने ख़ल्क़ से बेनियाज़ होने की सिफ़त का मुज़ाहेरा किया है और तू यक़ीनन इनसे बेनियाज़ है और तूने उनकी तरफ़ फ़क्र व एहतियाज की निस्बत दी है और वह बेशक तेरे मोहताज हैं लेहाज़ा जिसने अपने इफ़लास के रफ़ा करने के लिये तेरा इरादा किया और अपनी एहतियाज के दूर करने के लिये तेरा क़स्द किया उसने अपनी हाजत को उसके महल व मुक़ाम से तलब किया और अपने मक़सद तक पहुंचने का सही रास्ता इख़्तेयार किया। और जो अपनी हाजत को लेकर मख़लूक़ात में से किसी एक की तरफ़ मुतवज्जोह हुआ या तेरे अलावा दूसरे को अपनी हाजत बरआरी का ज़रिया क़रार दिया वह हरमाँनसीबी से दो चार और तेरे एहसान से महरूमी का सज़ावार हुआ। बारे इलाहा। मेरी तुझसे एक हाजत है जिसे पूरा करने से मेरी ताक़त जवाब दे चुकी है और मेरी तदबीर व चाराजोई भी नाकाम होकर रह गई है और मेरे नफ़्स ने मुझे यह बात ख़ुशनुमा सूरत में दिखाई के मैं अपनी हाजत को उसके सामने पेश करूँ जो ख़ुद अपनी हाजतें तेरे सामने पेश करता है और अपने मक़ासिद में तुझसे बेनियाज़ नहीं है। यह सरासर ख़ताकारों की ख़ताओं में से एक ख़ता और गुनाहों की लग़्िज़शों में से एक लग़्िज़श थी लेकिन तेरे याद दिलाने से मैं अपनी ग़फ़लत से होशियार हुआ और तेरी तौफ़ीक़ ने सहारा दिया तो ठोकर खाने से संभल गया और तेरी राहनुमाई की बदौलत ग़लत एक़दाम से बाज़ आया और वापस पलट आया और मैंने कहा वाह सुबहान अल्लाह। किस तरह एक मोहताज दूसरे मोहताज से सवाल कर सकता है, और कहां एक रादार दूसरे नादार से रूजू कर सकता है (जब यह हक़ीक़त वाज़ेह हो गई) तो मैंने ऐ मेरे माबूद। पूरी रग़बत के साथ तेरा इरादा किया और तुझ पर भरोसा करते हुए अपनी उम्मीदें तेरे पास लाया हूँ और मैंने इस अम्र को बख़ूबी जान लिया है के मेरी कसीर हाजतें तेरी वुसअते रहमत के सामने हैच हैं, तेरे दामने करम की वुसअत किसी के सवाल करने से तंग नहीं होती और तेरा दस्ते करम अता व बख़्शिश में हर हाथ से बलन्द है। ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपने करम से मेरे साथ तफ़ज़्ज़ल व एहसान की रविश इख़्तेयार और अपने अद्ल से काम लेते हुए मेरे इस्तेहक़ाक़ की रू से फ़ैसला न कर क्योंके मैं पहला वह हाजतमन्द नहीं हूँ जो तेरी तरफ़ मुतवज्जोह हुआ और तूने उसे अता किया हो हालांके वह दर किये जाने का मुस्तहेक़ हो और पहला वह साएल नहीं हूं जिसने तुझसे मांगा हो और तूने उस पर अपना फ़ज़्ल किया हो हालांके वह महरूम किये जाने के क़ाबिल हो। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी दुआ का क़ुबूल करने वाला, मेरी पुकार पर इत्तेफ़ात फ़रमाने वाला, मेरी अज्ज़वज़ारी पर रहम करने वाला और मेरी आवाज़ का सुनने वाला साबित हो और मेरी उम्मीद जो तुझसे वाबस्ता है उसे न तोड़ और मेरा वसीला अपने से क़ता न कर। और मुझे इस मक़सद और दूसरे मक़ासिद में अपने सिवा दूसरे की तरफ़ मुतवज्जोह न होने दे। और इस मक़ाम से अलग होने से पहले मेरी मुश्किल कुशाई और मुआमलात में हुस्ने तक़दीर की कारफ़रमाई से मेरे मक़सद के बर लाने, मेरी हाजत के रवा करने और मेरे सवाल के पूरा करने का ख़ुद ज़िम्मा ले। और मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा। ऐसी रहमत जो दाएमी और रोज़ाफ़्ज़ो हो, जिस का ज़माना ग़ैर मोहतमिम और जिसकी मुद्दत बेपायां हो। और उसे मेरे लिये मुअय्यन और मक़सद बरआरी का ज़रिया क़रार दे। बेशक तू वसीअ रहमत और जूद व करम की सिफ़त का मालिक है। ऐ मेरे परवरदिगार! मेरी कुछ हाजतें यह हैं (इस मक़ाम पर अपनी हाजतें बयान करो, फिर सजदा करो और सजदे की हालत में यह कहो) तेरे फ़ज़्ल व करम ने मेरी दिले जमई और तेरे एहसान ने रहनुमाई की, इस वजह से मैं तुझसे तेरे ही वसीले से मोहम्मद (स0) व आले मोहम्मद अलैहिस्सलातो वस्सलाम के ज़रिये सवाल करता हूं के मुझे (अपने दर से) नाकाम व नामुराद न फेर।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 12th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

 बारहवीं दुआ
एतराफ़े गुनाह और तलबे तौबा के सिलसिले में हज़रत (अ0) की दुआ
 
ऐ अल्लाह! मुझे तीन बातें तेरी बारगाह में सवाल करने से रोकती हैं और एक बात इस पर आमादा करती है। जो बातें रोकती हैं उनमें से 
  1. एक यह है के जिस अम्र का तूने हुक्म दिया मैंने उसकी तामील में सुस्ती की
  2. दूसरे यह के जिस चीज़ से तूने मना किया उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ा। 
  3. तीसरे जो नेमतें तूने मुझे अता कीं उनका शुक्रिया अदा करने में कोताही की 
और जो बात मुझे सवाल करने की जराअत दिलाती है वह तेरा तफ़ज़्जुल व एहसान है जो तेरी तरफ़ रूजूअ होने वालों और हुस्ने ज़न के साथ आने वालों के हमेशा शरीके हाल रहा है। क्योंके तेरे तमाम एहसानात सिर्फ़ तेरे तफ़ज़्ज़ल की बिना पर हैं और तेरी हर नेमत बग़ैर किसी साबेक़ा इस्तेहक़ाक़ के है। अच्छा फिर ऐ मेरे माबूद! मैं तेरे दरवाज़ा-ए-इज़्ज़ो जलाल पर एक अब्दे मुतीअ व ज़लील की तरह खड़ा हूँ और शर्मिन्दगी के साथ एक फ़क़ीर व मोहताज की हैसियत से सवाल करता हूँ इस अम्र का इक़रार करते हुए के तेरे एहसानात के वक़्त तर्के मासियत के अलावा और कोई इताअत (अज़ क़बीले हम्द व शुक्र) न कर सका, और मैं किसी हालत में तेरे इनआम व एहसान से ख़ाली नहीं रहा। तो क्या ऐ मेरे माबूद! यह बदआमालियों का इक़रार तेरी बारगाह में मेरे लिये सूदमन्द हो सकता है और वह बुराइयां जो मुझसे सरज़द हुई हैं उनका एतराफ़ तेरे अज़ाब से निजात का बाएस क़रार पा सकता है। या यह के तूने इस मक़ाम पर मुझ पर ग़ज़ब करने का फ़ैसला कर लिया है और दुआ के वक़्त अपनी नाराज़गी को मेरे लिये बरक़रार रखा है। तू पाक व मुनज़्ज़ह है। मैं तेरी रहमत से मायूस नहीं हूँ इसलिये के तूने अपनी बारगाह की तरफ़ मेरे लिये तौबा का दरवाज़ा खोल दिया है, बल्कि मैं उस बन्दए ज़लील की सी बात कह रहा हूँ जिसने अपने नफ़्स पर ज़ुल्म किया और अपने परवरदिगार की हुरमत का लेहाज़ न रखा। जिसके गुनाह अज़ीम रोज़ अफ़ज़ोर हैं। जिसकी ज़िन्दगी के दिन गुज़र गए और गुज़रे जा रहे हैं। यहाँ तक के जब उसने देखा के मुद्दते अमल तमाम हो गई और उम्र अपनी आख़ेरी हद को पहुँच गई और यह यक़ीन हो गया के अब तेरे हाँ हाज़िर हूए बग़ैर कोई चारा और तुझ से निकल भागने की सूरत नहीं है। तो वह हमहतन तेरी तरफ़ रूजु हुआ और सिदक़े नीयत से तेरी बारगाह में तौबा की। अब वह बिलकुल पाक व साफ़ दिल के साथ तेरे हुज़ूर खड़ा हुआ। फिर कपकपाती आवाज़ से और दबे लहजे में तुझे पुकारा इस हालत में तुझे पुकारा इस हालत में के ख़ुशू व तज़ल्लुल के साथ तेरे सामने झुक गया और सर को न्योढ़ा कर तेरे आगे ख़मीदा हो गया। ख़ौफ़ से इसके दोनों पावों थर्रा रहे हैं और सीले अश्क उसके रूख़सारों पर रवाँ है और तुझे इस तरह पुकार रहा है:- 
 
ऐ सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले, ऐ उन सबसे बढ़कर रहम करने वाले जिनसे तलबगाराने रहम व करम बार बार रहम की इल्तिजाएं करते हैं, ऐ उन सबसे ज़्यादा मेहरबानी करने वाले जिनके गिर्द माफ़ी चाहने वाले घेरा डाले रहते हैं। ऐ वह जिसका अफ़ो व वरगुज़ाँ के इन्तेक़ाम से फ़ज़ोंतर है। ऐ वह जिसकी ख़ुशनूदी उसकी नाराज़गी से ज़्यादा है।
 
ऐ वह जो बेहतरीन अफ़ो व दरगुज़र के बाएस मख़लूक़ात के नज़दीक हम्द व सताइश का मुस्तहक़ है। ऐ वह जिसने अपने बन्दों को क़ुबूले तौबा का ख़ौगीर किया है, और तौबा के ज़रिये उनके बिगड़े हुए कामों की दुरूस्ती चाही है। ऐ वह जो उनके ज़रा से अमल पर ख़ुश हो जाता है और थोड़े से काम का बदला ज़्यादा देता है।
 
ऐ वह जिसने उनकी दुआओं को क़ुबूल करने का ज़िम्मा लिया है। ऐ वह जिसने अज़रूए तफ़ज़्ज़ुल व एहसान बेहतरीन जज़ा का वादा किया है जिन लोगों ने तेरी मासियत की और तूने उन्हें बख़्श दिया मैं उनसे ज़्यादा गुनहगार नहीं हूं जिन्होंने तुझसे माज़ेरत की और तूने उनकी माज़ेरत को क़ुबूल कर लिया उनसे ज़्यादा क़ाबिले सरज़न्श नहीं हूँ और जिन्होंने तेरी बारगाह में तौबा की और तूने (तौबा को क़ुबूल फ़रमाकर) उन पर एहसान किया उनसे ज़्यादा ज़ालिम नहीं हूँ। लेहाज़ा मैं अपने इस मौक़ूफ़ को देखते हुए तेरी बारगाह में तौबा करता हूँ उस शख़्स की सी तौबा जो अपने पिछले गुनाहों पर नादिम और ख़ताओं के हुजूम से ख़ौफ़ज़दा और जिन बुराइयों का मुरतकिब होता रहा है उन पर वाक़ेई शर्मसार हूँ और जानता हूं के बड़े से बड़े गुनाह को माफ़ कर देना तेरे नज़दीक कोई बड़ी बात नहीं है और बड़ी से बड़ी ख़ता से दरगुज़र करना तेरे लिये कोई मुश्किल नहीं है और सख़्त से सख़्त जुर्म से चश्मपोशी करना तुझे ज़रा गराँ नहीं है। यक़ीनन तमाम बन्दों में से वह बन्दा तुझे ज़्यादा महबूब है जो तेरे मुक़ाबले में सरकशी न करे गुनाहों पर मसर न हो और तौबा व अस्तग़फ़ार की पाबन्दी करे। और मैं तेरे हुज़ूर ग़ुरूर व सरकशी से दस्तबरदार होता हूँ और गुनाहों पर इसरार से तेरे दामन में पनाह मांगता हूँ और जहाँ-जहाँ कोताही की है उसके लिये अफ़ो व बख़्शिश का तलबगार हूँ। और जिन कामों के अन्जाम देने से आजिज़ हूँ उनमें तुझ से मदद का ख़्वास्तगार हूँ।
 
ऐ अल्लाह! तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और तेरे जो जो हुक़ूक़ मेरे ज़िम्मे आएद होते हैं उन्हें बख़्श दे और जिस पादाश का मैं सज़ावार हूँ उससे मोआफ़ी दे और मुझे उस अज़ाब से पनाह दे जिससे गुनहगार हरासाँ हैं। इसलिये के तू माफ़ कर देने पर क़ादिर है और तू उस सिफ़ते अफ़ो व दरगुज़र में मारूफ़ है। और तेरे सिवा हाजत के पेश करने की कोई जगह नहीं है और न तेरे अलावा कोई मेरे गुनाहों का बख़्शने वाला है। हाशा व कला कोई और बख़्शने वाला नहीं है। और मुझे अपने बारे में डर है तो बस तेरा। इसलिये के तू ही इसका सज़ावार है के तुझ से डरा जाए। और तू ही इसका अहल है के बख़्शिश व आमरज़िश से काम ले, तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी हाजत बर ला और मेरी मुराद पूरी कर। मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे दिल को ख़ौफ़ से मुतमइन कर दे। इसलिये के तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है और यह काम तेरे लिये सहल व आसान है। मेरी दुआ क़ुबूल फ़रमा ऐ तमाम जहान के परवरदिगार।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 11th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

 ग्यारहवीं दुआ
अन्जाम बख़ैर होने की दुआ
 
ऐ वह ज़ात! जिसकी याद, याद करने वालों के लिये सरमाया-ए-इज़्ज़त, ऐ वह जिसका शुक्र, शुक्रगुज़ारों के लिये वजहे कामरानी, ऐ वह जिसकी फ़रमाबरदारी फ़रमाबरदारों के लिये ज़रियाए नजात है। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमारे दिलों को अपनी याद में और हमारी ज़बानों को अपने शुक्रिया में और हमारे आज़ा को अपनी फ़रमानबरदारी में मसरूफ़ रखकर हर याद, हर शुक्रिया और फ़रमाबरदारी से बेनियाज़ कर दे।
 
और अगर तूने हमारी मसरूफ़ियतों में कोई फ़राग़त का लम्हा रखा है तो उसे सलामती से हमकिनार कर, इस तरह के नतीजे में कोई गुनाह दामनगीर न हो और ख़स्तगी रूनुमा हो ताके बुराइयों को लिखने वाले फ़रिश्ते इस तरह पलटें के नामाए आमाल हमारी बुराईयों के ज़िक्र से ख़ाली हों और नेकियों को लिखने वाले फ़रिश्ते हमारी नेकियों को लिख कर मसरूर व शादाँ वापस होँ और जब हमारी ज़िन्दगी के दिन बीत जाएं और सिलसिलए हयात क़ता हो जाएं और तेरी बारगाह में हाज़िर होने का बुलावा आए, जिसे बहरहाल आना और जिस पर बहरसूरत लब्बैक कहना है।
 
तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे कातिबाने आमाल हमारे जिन आमाल का शुमार करें उनमें आखि़री अमल मक़बूले तौबा को क़रार दे के इसके बाद हमारे इन गुनाहों और हमारी इन मासियतों पर जिन के हम मुरतकिब हुए हैं सरज़न्श न करे और जब अपने बन्दों के हालात जांचे तो उस पर्दे को जो तूने हमारे गुनाहों पर डाला है सब के रू-ब-रू चाक न करे, बेशक जो तुझे बुलाए तू उस पर मेहरबानी करता है और जो तुझे पुकारे तू उसकी सुनता है।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 10th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

 दसवीं दुआ
अल्लाह तआला से पनाह तलब करने के सिलसिले में हज़रत (अ0) की दुआ 
बारे इलाहा! अगर तू चाहे के हमें माफ़ कर दे तो यह तेरे फ़ज़्ल के सबब से है और अगर तू चाहे के हमें सज़ा दे तो यह तेरे अद्ल की रू से है। तू अपने शेवए एहसान के पेशे नज़र हमें पूरी माफ़ी दे और हमारे गुनाहों से दरगुज़र करके अपने अज़ाब से बचा ले। इसलिये के हमें तेरे अद्ल की ताब नहीं है और तेरे अफ़ो के बग़ैर हम में से किसी एक की भी निजात नहीं हो सकती।
ऐ बे नियाज़ों के बे नियाज़! हाँ तो फिर हम सब तेरे बन्दे हैं जो तेरे हुज़ूर खड़े हैं। और मैं सब मोहताजों से बढ़ कर तेरा मोहताज हूँ। लेहाज़ा अपने भरे ख़ज़ाने से हमारे दामने फ़क्ऱ व एहतियाज को भर दे, और अपने दरवाज़े से रद्द करके हमारी उम्मीदों को क़तअ न कर, वरना जो तुझसे ख़ुशहाली का तालिब था वह तेरे हाँ से हरमाँनसीब होगा और जो तेरे फ़ज़्ल से बख़्शिश व अता का ख़्वास्तगार था वह तेरे दर से महरूम रहेगा।
तो अब हम तुझे छोड़कर किसके पास जाएँ और तेरा दर छोड़कर किधर का रूख़ करें। तू इससे मुनज़्ज़ा है (के हमें ठुकरा दे जबके) हम ही वह आजिज़ व बेबस हैं जिनकी दुआएं क़ुबूल करना तूने अपने ऊपर लाज़िम कर लिया है और वह दर्दमन्द हैं जिनके दुख दूर करने का तूने वादा किया है, और तमाम चीज़ों में तेरे मक़तज़ाए मशीयत के मनासिब और तमाम उमूर में तेरी बुज़ुर्गी व अज़मत के शायान यह है के तुझसे रहम की दरख़्वास्त करे तू उस पर रहम फ़रमाए और जो तुझसे फ़रयादरसी चाहे तू उसकी फ़रयाद रसी करे। तू अब अपनी बारगाह में हमारी तज़र्रूअ वज़ारी पर रहम फ़रमा। और जबके हमने अपने को तेरे आगे (ख़ाके मुज़ल्लत पर) डाल दिया है तो हमें (फ़िक्र व ग़म से) निजात दे।
बारे इलाहा! जब हमने तेरी मासीयत में शैतान की पैरवी की तो उसने (हमारी इस कमज़ोरी पर)  इज़हारे मसर्रत किया। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आले (अ0) अतहर पर दुरूद भेज। और जब हमने तेरी ख़ातिर उसे छोड़ दिया और उससे रूगर्दानी करके तुझसे लौ लगा चुके हैं तो कोई ऐसी उफ़ताद न पड़े के वह हम पर शमातत करे।’’

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 9th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

दुआ-9
तलबे मग़फ़ेरत के इश्तियाक़ में हज़रत (अ0) की दुआ
ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमारी ताज्जो उस तौबा की तरफ़ मबज़ूल कर दे जो तुझे पसन्द है और गुनाह के इसरार से हमें दूर रख जो तुझे नापसन्द है। बारे इलाहा! जब हमारा मौक़ूफ़ कुछ ऐसा हो के (हमारी किसी कोताही के बाएस) दीन का ज़याल होता हो या दुनिया का तू नुक़सान (दुनिया में) क़रार दे के जो जल्द फ़ना पज़ीद है आर अफ़ो व दरगुज़र को (दीन के मामले में) क़रार दे जो बाक़ी व बरक़रार रहने वाला है और जब हम ऐसे दो कामों का इरादा करें के इनमें से एक तेरी ख़ुशनूदी का और दूसरा तेरी नाराज़ी का बाएस हो तो हमें उस काम की तरफ़ माएल करना जो तुझे ख़ुश करने वाला हो और उस काम से हमें बे दस्त-व-पा कर देना जो तुझे नाराज़ करने वाला हो। और इस मरहले पर हमें इख़्तेयार देकर आज़ाद न छोड़ दे, क्योंकर नफ़्स तो बातिल ही को एख़्तेयार करने वाला है, मगर जहाँ तेरी तौफ़ीक़ शामिले हाल हो और बुराई का हुक्म देने वाला है मगर जहाँ तेरा रहम कारफ़रमा हो। 
बारे इलाहा! तूने हमें कमज़ोर और सुस्त बुनियाद पैदा किया है और पानी के एक हक़ीर क़तरे (नुत्फे) से ख़ल्क़ फ़रमाया है, अगर हमें कुछ वक़्त व तसर्रूफ़ हासिल है तो तेरी क़ूवत की बदौलत, और इख़्तेयार है तो तो तेरी मदद के सहारे से, लेहाज़ा अपनी तौफ़ीक़ से हमारी दस्तगीरी फ़रमा और अपनी रहनुमाई से इस्तेहकाम व क़ूवत बख़्श और हमारे वीदाए दिल को उन बातों से जो तेरी मोहब्बत के खि़लाफ़ हैं नाबीना कर दे और हमारे आज़ा के किसी हिस्से में मासियत के सरायत करने की गुन्जाइश पैदा न कर। बारे इलाहा! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमारे दिल के ख़यालों, आज़ा की जुम्बिशों, आँख के इशारों और ज़बान के कलमों को उन चीज़ों में सर्फ़ करने की तौफ़ीक़ दे जो तेरे सवाब का बाएस होँ यहाँ तक के हमसे कोई ऐसी नेकी छूटने न पाये जिससे हम तेरे अज्र व सवाब के मुस्तहक़ क़रार पाएँ और न हम में कोई बुराई रह जाए जिससे तेरे अज़ाब के सज़ावार ठहरें।