Thursday 12 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 8th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


  आठवीं दुआ

मुसीबतों से बचाव और बुरे एख़लाक़ व आमाल से हिफ़ाज़त के सिलसिले में हज़रत (अ0) की दुआ


ऐ अल्लाह! मैं तुझसे पनाह मांगता हुं हिर्स की तुग़यानी, ग़ज़ब की शिद्दत, हसद की चीरादस्ती, बेसब्री, क़नाअत की कमी, कज एख़लाक़ी, ख़्वाहिशे नफ़्स की फ़रावानी, असबीयत के ग़लबे, हवा व हवस की पैरवी, हिदायत की खि़लाफ़वर्ज़ी, ख़्वाबे ग़फ़लत (की मदहोशी) और तकल्लुफ़ पसन्दी से नीज़ बातिल को हक़ पर तरजीह देने, गुनाहों पर इसरार करने, मासियत को हक़ीर और इताअत को अज़ीम समझने, दौलतमन्दों के से तफ़ाख़ुर, मोहताजों की तहक़ीर और अपने ज़ेर दस्तों की बुरी निगेहदाश्त और जो हमसे भलाई करे उसकी नाशुक्री से और इससे के हम किसी ज़ालिम की मदद करें और मुसीबतज़दा को नज़रअन्दाज़ करें या उस चीज़ का क़स्द करें जिसका हमें हक़ नहीं या दीन में बे जाने बूझे दख़ल दें और हम तुझसे पनाह मांगते हैं इस बात से के किसी को फ़रेब देने का क़स्द करें या अपने आमाल पर नाज़ाँ हों और अपनी उम्मीदों का दामन फैलाएं और हम तुझसे पनाह मांगते हैं, बदबातनी और छोटे गुनाहों को हक़ीर तसव्वुर करने और इस बात से के शैतान हम पर ग़लबा हासिल कर ले जाए या ज़माना हमको मुसीबत में डाले या फ़रमानरवा अपने मज़ालिम का निशाना बनाए और हम तुझसे पनाह मांगते हैं फ़िज़ूलख़र्ची में पड़ने और हस्बे ज़रूरत रिज़्क़ के न मिलने से और हम तुझसे पनाह मांगते हैं दुश्मनों की सेमातत, हमचश्मों की एहतियाज, सख़्ती में ज़िन्दगी बसर करने और तोशए आख़ेरत के बग़ैर मर जाने से और तुझसे पनाह मांगते हैं बड़े तास्सुफ़, बड़ी मुसीबत, बदतरीन बदबख़्ती, बुरे अन्जाम, सवाब से महरूमी और अज़ाब के वारिद होने से। 

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा, और अपनी  हरमत के सदक़े में मुझे और तमाम मोमेनीन व मोमेनात को उन सब बुराइयों से पनाह दे। ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।

Wednesday 11 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 7th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



सातवीं दुआ


जब कोई मुहिम दरपेश होती या कोई मुसीबत नाज़िल होती या किसी क़िस्म की बेचैनी होती तो हज़रत यह दुआ पढ़ते थे-

 
ऐ वह जिसके ज़रिये मुसीबतों के बन्धन खुल जाते हैं, ऐ वह जिसके बाएस सख़्तियों की बाढ़ कुन्द हो जाती है। ऐ वह जिससे (तंगी व दुश्वारी से) वुसअत व फ़राख़ी की आसाइश की तरफ़ निकाल ले जाने की इल्तिजा की जाती है। तू वह है के तेरी क़ुदरत के आगे दुश्वारियां आसान हो गईं, तेरे लुत्फ़ से सिलसिलए असबाब बरक़रार रहा और तेरी क़ुदरत से क़ज़ा का निफ़ाज़ हुआ और तमाम चीज़ें तेरे इरादे के रूख़ पर गामज़न हैं। वह बिन कहे तेरी मशीयत की पाबन्द और बिन रोके ख़ुद ही तेरे इरादे से रूकी हुई हैं। मुश्किलात में तुझे ही पुकारा जाता है और बल्लियात में तू ही जा-ए-पनाह है, इनमें से कोई मुसीबत टल नहीं सकती मगर जिसे तू टाल दे और कोई मुश्किल हल नहीं हो सकती मगर जिसे तू हल कर दे। परवरदिगार मुझ पर एक ऐसी मुसीबत नाज़िल हुई है जिसकी संगीनी ने मुझे गरांबार कर दिया है और एक ऐसी आफ़त आ पड़ी है जिससे मेरी क़ूवते बरदाश्त आजिज़ हो चुकी है। तूने अपनी क़ुदरत से इस मुसीबत को मुझ पर वारिद किया है और अपने इक़्तेदार से मेरी तरफ़ मुतवज्जेह किया है। तू जिसे वारिद करे, उसे कोई हटाने वाला, और जिसे तू मुतवज्जेह करे उसे कोई पलटाने वाला और जिसे तू बन्द करे उसे कोई खोलने वाला और जिसे तू खोले उसे कोई बन्द करने वाला और जिसे तू दुश्वार बनाए उसे कोई आसान करने वाला और जिसे तू नज़रअन्दाज़ करे उसे कोई मदद देने वाला नहीं है। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी करम फ़रमाई से ऐ मेरे पालने वाले मेरे लिये आसाइश का दरवाज़ा खोल दे और अपनी क़ूवत व तवानाई से ग़म व अन्दोह का ज़ोर तोड़ दे और मेरे इस शिकवे के पेशे नज़र अपनी निगाहे करम का रूख़ मेरी तरफ़ मोड़ दे और मेरी हाजत को पूरा करके शीरीनी एहसान से मुझे लज़्ज़त अन्दोज़ कर। और अपनी तरफ़ से रहमत और ख़ुशगवार आसूदगी मरहमत फ़रमा और मेरे लिये अपने लुत्फ़े ख़ास से जल्द छुटकारे की राह पैदा कर और इस ग़म व अन्दोह की वजह से अपने फ़राएज़ की पाबन्दी और मुस्तहेबात की बजाआवरी से ग़फ़लत में न डाल दे। क्योंके मैं इस मुसीबत के हाथों तंग आ चुका हूँ और इस हादसे के टूट पड़ने से दिल रन्ज व अन्दोह से भर गया है जिस मुसीबत में मुब्तिला हों उसके दूर करने और जिस बला में फंसा हुआ हूं उससे निकालने पर तू ही क़ादिर है लेहाज़ा अपनी क़ुदरत को मेरे हक़ में कार-फ़रमा-कर। अगरचे तेरी तरफ़ से मैं इसका सज़ावार न क़रार पा सकूँ। ऐ अर्शे अज़ीम के मालिक।

 
Discussion
 
जब ज़हरे ग़म रग व पै में उतरता और कर्ब व अन्दोह के शरारों से दिल व दिमाग़ फुंकता है तो दर्दो-अलम की टीस सुकून व क़रार छीन लेती हैं और मिम्बर व शकीब का दामन हाथ से छूट जाता है न तसल्ली व तस्कीन का कोई सामान नज़र आता है न सब्र व ज़ब्त की कोई सूरत। ऐसी हालत में यास व नाउम्मीदी कभी जुनून व दीवानगी में मुब्तिला और कभी मौत का सहारा ढूंढने पर मजबूर कर देती है। अगर इन्सान इस मौक़े पर बलन्द नज़री से काम ले तो उसे एक ऐसा सहारा मिल सकता है जो हवादिस व आलाम के भंवर और रंज व अन्दोह के सैलाब से निकाल ले जा सकता है। और वह सहारा अल्लाह है जो इज़्तेराब की तसल्ली और दर्द व कर्ब का चारा कर सकता है। चुनांचे अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम का इरशाद है - ‘‘जब बेचैनी हद से बढ़ जाए तो फिर अल्लाह ही तस्कीन का मरकज़ है। और अगर अल्लाह की हस्ती पर ईमान न भी हो जब भी फ़ितरते ख़्वाबीदा करवट लेकर लेकर इसका रास्ता दिखा देती है और मुसीबत व बेचारगी किसी अनदेखी हस्ती के आगे झुकने और उसका सहारा लेने के लिये पुकारती है।’’ चुनांचे एक शख़्स ने इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से वजूदे बारी के सिलसिले में गुफ़्तगू की तो आपने उससे दरयाफ़्त फ़रमाया के तुम्हें किश्ती पर सवार होने का कभी इत्तेफ़ाक़ हुआ है। उसने कहा हाँ, फ़रमाया कभी ऐसा इत्तेफ़ाक़ भी पेश आया है के किश्ती भंवर में घिर गई हो और समन्दर की तिलमिलाती लहरों ने तुम्हें अपनी लपेट में ले लिया? उसने कहा के जी हाँ, ऐसा भी हुआ है, फ़रमाया के उस वक़्त तुम्हारे दिल में कोई ख़याल पैदा हुआ था, कहा के हाँ, जब हर तरफ़ से मायूसी ही मायूसी नज़र आने लगी तो मेरा दिल कहता था के एक ऐसी बालादस्त क़ूवत भी मौजूद है जो चाहे तो इस भंवर से मुझे निकाल ले जा सकती है। फ़रमाया बस वही तो ख़ुदा था जो इन्तेहाई मायूसकुन हालातों में भी मायूस नहीं होने देता। और जब कोई सहारा न रहे तो वह सहारा साबित होता है। चुनांचे जब इन्सान अल्लाह तआला पर मुकम्मल यक़ीन व एतेमाद पैदा करके उस पर अपने उमूर को छोड़ देता है तो वह अपनी ज़ेहनी क़ूवतों को मुन्तशिर होने से बचा ले जाता है और जब हमह तन उसकी याद में खो जाता है तो उलझनें और परेशानियां उसका साथ छोड़ देती हैं। क्योंकि ज़ेहन का सुकून और क़ल्ब की तमानियत उसके ज़िक्र का लाज़मी नतीजा है। जैसा के इरशादे इलाही है: -‘‘अला बेज़िक्रिल्लाह.......... क़ोलूब’’   (दिल तो अल्लाह के ज़िक्र से मुतमइन हो जाता है।) वह लोग जो इत्मीनान को बज़ाहिर ग़म-ग़लत करने वाली कैफ़ अंगेज़ व मसर्रत अफ़ज़ा चीज़ों में तलाश करने की कोशिश करते हैं वह कभी सुकून व इत्मीनान हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकते। क्योंके न इशरत कदों में इत्मीनान नज़र आता है, न ताज व दनहीम के सायों में। न नग़मा व सुरूर की महफ़िलों में सुकून व क़रार बटता है न नावूद नोश की मजलिसों में। बेशक हर मौक़ै पर ज़िक्र व इबादत के लिये दिल आमादा और तबीयत हाज़िर नहीं होती ख़ुसूसन जब के इन्सान किसी मुसीबत की वजह से ज़ेहनी कशमकश में मुब्तिला हो। इसलिये के मुसीबत ब-हर सूरत मुसीबत और इससे मुतास्सिर होना तिबई व फ़ितरी है। तो ऐसे मौक़े पर नवाफ़िल से दस्तकश हुवा जा सकता है मगर बहुत से लोग ऐसे भी मिलेंगे जो परेशानकुन हालात में फ़राएज़ तक से ग़ाफ़िल हो जाते हैं तो उन्हें इमाम अलैहिस्सलाम की इस दुआ पर नज़र करना चाहिये के वह बारगाहे इलाही में यह दुआ करते हुए नज़र आते हैं के ख़्वाह कितने जानकाह हवादिस व आलाम से साबक़ा पड़ेगा मगर तेरे फ़राएज़ व नवाफ़िल से ग़फ़लत न होने पाए क्योंके फ़राएज़ ब-हर सूरत फ़राएज़ हैं और नवाफ़िल उबूदियत का तक़ाज़ा हैं और ऐसा न हो के मसाएब व आलाम के तास्सुराते उबूदियत के इज़हार पर ग़ालिब आ जाएं।

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 6th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


छठी दुआ 
दुआए सुबह व शाम

सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसने अपनी क़ूवत व तवानाई से शब व रोज़ को ख़ल्क़ फ़रमाया और अपनी क़ुदरत की कारफ़रमाई से उन दोनों में इम्तियाज़ क़ायम है और उनमें से हर एक को मुअय्यना हुदूद व मुक़र्ररा औक़ात का पाबन्द बनाया। और उनके कम व बेश होने का जो अन्दाज़ा मुक़र्रर किया उसके मुताबिक़ रात की जगह पर दिन और दिन की जगह पर रात को लाता है ताके इस ज़रिये से बन्दों की रोज़ी और उनकी परवरिश का सरो सामान करे। चुनान्चे उसने उनके लिये रात बनाई ताके वह उसमें थका देने वाले कामों और ख़स्ता कर देने वाली कलफ़तों के बाद आराम करें, और उसे परदा उसे क़रार दिया ताके सुकून की चादर तानकर आराम से सोएँ और यह उनके लिये राहत व निशात और तबई क़ूवतो ंके बहाल होने और लज़्ज़त व कैफ़ अन्दोज़ी का ज़रिया हो और दिन को उनके लिये रौशन व रख़्शाँ पैदा किया ताके इसमें कार-व-कस्ब में सरगर्मे अमल होकर) इसके फ़ज़्ल की जुस्तजू करें और रोज़ी का वसीला ढूंढें और दुनियावी मुनाफ़े और उख़रवी फ़वाएद के वसाएल तलाश करने के लिये उसकी ज़मीन में चलें फ़रीं। इनत माम कारफ़रमाइयों से वह उनके हालात सँवारता और उनके आमाल की जांच करता और यह देखता है के वह लोग इताअत की घड़ियों, फ़राएज़ की मंज़िलों और तामीले एहकाम के मौक़ों पर कैसे साबित होते हैं ताके बुरों को उनकी बदआमालियों की सज़ा और नेकोकारों को अच्छा बदला दे। ऐ अल्लाह! तेरे ही लिये तमाम तारीफ़ व तौसीफ़ है के तूने हमारे लिये (रात का दामन चाक करके) सुबह का उजाला किया और इसी तरह दिन की रोशनी से हमें फ़ायदा पहुंचाया और तलबे रिज़्क़ के मवाक़े हमें दिखाए और इसमें आफ़ात व बल्लियात से हमें बचाया। हम और हमारे अलावा सब चीज़ें तेरी हैं । आसमान भी और ज़मीन भी और वह सब चीज़ें जिन्हें तूने इनमें फैलाया है, वह साकिन हूँ या मुतहर्रिक मुक़ीम हूँ या राहे नूर व फ़िज़ा में बलन्द हूँ या ज़मीन की तहों में पोशीदा, हम तेरे क़ब्ज़ए क़ुदरत में हैं और तेरा इक़्तेदार और तेरी बादशाहत हम पर हावी है और तेरी मशीयत का मुहीत हमें घेरे हुए है, तेरे हुक्म से हम तसर्रूफ़ करते और तेरी तदबीर व कारसाज़ी के तहत हम एक हालत से दूसरी हालत की तरफ़ पलटते हैं। जो अम्र तूने हमारे लिये नाफ़िज़ किया और जो ख़ैर और भलाई तूने बख़्शी उसके अलावा हमारे इख़्तेयार में कुछ नहीं है और यह दिन नया और ताज़ा वारिद है जो हम पर ऐसा गवाह है जो हमहवक़्त हाज़िर है। अगर हमने अच्छे काम किये तो वह तौसीफ़ व सना करते हुए हमें रूख़सत करेगा और अगर बुरे काम किये तो बुराई करता हुआ हमसे अलाहीदा होगा। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें उस दिन की अच्छी रिफ़ाक़त नसीब करना और किसी ख़ता के इरतेका करने या सग़ीरा व कबीरा गुनाह में मुब्तिला होने की वजह से उसके चीँ ब जबीं होकर रूख़सत होने से हमें बचाए रखना और उस दिन में हमारी नेकियों का हिस्सा ज़्यादा कर और बुराइयों से हमारा दामन ख़ाली रख। और हमारे लिये उसके आग़ाज़ व अन्जाम को हम्द व सपास, सवाब व ज़ख़ीरए आख़ेरत और बख़्शिश व एहसान से भर दे। ऐ अल्लाह! करामन कातेबीन पर (हमारे गुनाह क़लमबन्द करने की) ज़हमत कम कर दे और हमारा नामाए आमाल नेकियों से भर दे और बद आमालियों की वजह से हमें उनके सामने रूसवा न कर। बारे इलाहा! तू उस दिन के लम्हों में से हर लम्हा व साअत में अपने ख़ास बन्दों का ख़त व नसीब और अपने शुक्र का एक हिस्सा और फ़रिश्तों में से एक सच्चा गवाह हमारे लिये क़रार दे। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और आगे पीछे, दाहिने और बांये और तमाम एतराफ़ व जवानिब से हमारी हिफ़ाज़त कर ऐसी हिफ़ाज़त जो हमारे लिये गुनाह व मासियत से सद्दे राह हो। तेरी इताअत की तरफ़ रहनुमाई करे और तेरी मोहब्बत में सर्फ़ हो। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें आज के दिन आज की रात और ज़िन्दगी के तमाम दिनों में तौफ़ीक़ अता फ़रमा के हम नेकियों पर अमल करें, बुराइयों को छोड़ें, नेमतों पर शुक्र और सुन्नतों पर अमल करें, बिदअतों से अलग-थलग रहें और नेक कामों का हुक्म दें। और बुरे कामों से रोकें, इस्लाम की हिमायत व तरफ़दारी करें, बातिल को कुचलें और उसे ज़लील करें, हक़ की नुसरत करें और उसे सरबलन्द करें, गुमराहों की रहनुमाई, कमज़ोरों की एआनत और दर्दमन्दों की चाराजोई करें। बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और आज के दिन को उन तमाम दिनों से जो हमने गुज़ारे ज़्यादा मुबारक दिन और उन तमाम साथियों से जिनका हमने साथ दिया इसको बेहतरीन रफ़ीक़ और उन तमाम वक़्तों से जिनके ज़ेरे साया हमने ज़िन्दगी बसर की इसको बेहतरीन वक़्त क़रार दे और हमें उन तमाम मख़लूक़ात में से ज़्यादा राज़ी व ख़ुशनूद रख जिन पर शब व रोज़ के चक्कर चलते रहे हैं और इन सबसे ज़्यादा अपनी अता की हुई नेमतों का शुक्रगुज़ार और उन सबसे ज़़्यादा अपने जारी किये हुए एहकाम का पाबन्द और उन सबसे ज़्यादा उन चीज़ों से किनाराकशी करने वाला क़रार दे जिनसे तूने ख़ौफ़ दिलाकर मना किया है। ऐ ख़ुदा! मैं तुझे गवाह करता हूँ और तू गवाही के लिये काफ़ी है और तेरे आसमान और तेरी ज़मीन को और उनमें जिन जिन फ़रिश्तों और जिस जिस मख़लूक़ को तूने बसाया है, आज के दिन और उस घड़ी और उस रात में और उस मुक़ाम पर गवाह करता हूँ के मैं इस बात का मोतरफ़ हूँ के सिर्फ़ तू ही वह माबूद है जिसके अलावा कोई माबूद नहीं। इन्साफ़ का क़ायम करने वाला, हुक्म में अद्ल मलहोज़ रखने वाला, बन्दों पर मेहरबान, इक़्तेदार का मालिक और कायनात पर रहम करने वाला है और इस बात की भी शहादत देता हूँ के मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम तेरे ख़ास बन्दे, रसूल और बरगुज़ीदाए कायनात हैं। उन पर तूने रिसालत की ज़िम्मेदारियां आयद की ंतो उन्होंने उसे पहुंचाया और अपनी उम्मत को पन्द व नसीहत करने का हुक्म दिया तो उन्होंने नसीहत फ़रमाई। हमारी तरफ़ से उन्हें वह बेहतरीन तोहफ़ा अता कर जो तेरे हर उस इनआम से बढ़ा हुआ हो जो अपने बन्दों में से तूने किसी एक को दिया हो और हमारी तरफ़ से उन्हें वह जज़ा दे जो हर उस जज़ा से बेहतर व बरतर हो जो अम्बिया (अ0) में से किसी एक को तूने उसकी उम्मत की तरफ़ से अता फ़रमाई हो। बेशक तू बड़ी नेमतों का बख़्शने वाला और बड़े गुनाहों से दरगुज़र करने वाला और हर रहीम से ज़्यादा रहम करने वाला है लेहाज़ा तू मोहम्मद (स0) और उनकी पाक व पाकीज़ा और शरीफ़ व नजीब औलाद (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा।

इस दुआ का सरनामा ‘‘दुआए सुबह व शाम’’ है जिसमें इख़्तेलाफ़े शब व रोज़ की करिश्मासाज़ी, औक़ात की तब्दीली व तनव्वअ की हिकमत और क़ुदरत के इरादे व मशीयत की कार फ़रमाई का ज़िक्र फ़रमाया है और हुस्ने अमल, शुक्रे नेमत, इत्तेबाए सुन्नत, तर्के बिदअत, अम्रे बिलमारूफ़ व नही अनिल मुनकिर, इस्लाम की तरफ़दारी व हिफ़ाज़त, बातिल की तज़लील व सरकोबी, हक़ की नुसरत रिआयत, इरशाद व हिदायत में सरगर्मी और कमज़ोर व नातवाँ की ख़बरगीरी के लिये तौफ़ीक़े इलाही के शामिले हाल होने की दुआ फ़रमाई है ताके दुआ के तास्सुरात अमली इस्तेहकाम का पेशख़ेमा साबित हों और ज़िन्दगी के लम्हात मक़सदे हयात की तकमील में सर्फ़ हों।

यह औक़ात का तबद्दुल, तुलूअ व ग़ुरूब का तसलसुल और सुबह के बाद शाम और शाम के बाद सपीदह सहर की नमूद और कार फ़रमाइए फ़ितरत की वह हसीन कारफ़रमाई है जो निगाहों के लिये हिज़ व कैफ़ और क़ल्ब व रूह के लिये सर्द रू निशात का सामान होने के अलावा बेशुमार मसालेह व फ़वाएद की भी हामिल है। चुनांचे शब व रोज़ की तअय्यिन महीनों और सालों का इन्ज़बात और कारोबार मईशत और आराम व इस्तराहत के औक़ात की हदबन्दी उसी से वाबस्ता है और फिर इसमें ज़िन्दगी की तस्कीन व राहत का भी सामान है क्योंके वक़्त अगर हमेशा एक हालत पर रहता और लैल व नहार के सियाह व सफ़ेद वरक़ निगाहों के सामने उलटे न जाते तो तबीअतें बेकैफ़, दिल सेर और ज़िन्दगी के लिये दिलबस्तगी के तमाम ज़राए ख़त्म हो जाते और हुस्ने यकरंग आंखों में खटकने लगता और नग़मा बे ज़ेर व बमोबाल गोश हो जाता क्योंके इन्सान की तनव्वोअ पसन्द तबीयत यकसानी व यकरंगी की हालत से जल्द उकता जाती है इसलिये क़ुदरत ने इन्सानी तबीयत के ख़्वास के मुताबिक़ शब व रोज़ की तफ़रीक़ क़ायम कर दी ताके शाम के बाद सुबह और सुबह के बाद शाम का इन्तेज़ार ज़िन्दगी की ख़स्तगियों और इसकी मुसलसल उलझनों और परेशानियों से सहारा देता रहे चुनांचे क़ुदरत ने इख़्तेलाफ़े शब व रोज़ की मसलेहत की तरफ़ मुतवज्जोह करते हुए इरशाद फ़रमाया है। - 

‘‘अन जअल............. तशकोरून’’ (अगर ख़ुदा तुम्हारे लिये क़यामत के दिन तक दि नही रखता तो अल्लाह के अलावा और कौन है जो तुम्हारे लिये रात लाता के तुम इसमें आराम करो। क्या तुम इतना भी नहीं देखते और उसने अपनी रहमत से तुम्हारे लिये रात और दिन क़रार दिये हैं ताके रात को आराम करो और दिन को इसका रिज़्क़ तलाश करो ताके इसके नतीजे में तुम शुक्र अदा करो।) 

इसी नज़्मे औक़ात का नतीजा है के जब सुबह नमूदार होती है और सूरज की ताबनाक किरनें फ़िज़ा में फैल कर कारगाहे हस्ती के गोशा गोशा को जगमगा देती हैं तो ख़ामोश व पुरसुकून फ़िज़ा में गहमा गहमी शुरू हो जाती है। परिन्दे आशियानों से हैवान भटों और खोओं से, कीड़े-मकोड़े बिलों और सूराख़ों से और इन्सान झोपड़ों और मकानों से निकल खड़े होते हैं। हरकत व अमल की दुनिया आबाद हो जाती है और हर सिन्फ़ अपने कार-व-कस्ब में मारूफ़ और अपने मशाग़ेल में सरगर्मे अमल नज़र आने लगती है। परिन्दे फ़िज़ा में, हैवान ज़मीन के ऊपर से और कीड़े मकोड़े ज़मीन के अन्दर से अपनी रोज़ी ढूंढने लगते हैं। और च्यूंटियां भी अपनी मुख़्तसर जसामत के बावजूद  सई पैहम व जेहद मुसलसल का वह मुज़ाहेरा करती हैं के इन्सानी अक़्लें दंग रह जाती हैं धूप हो या साया, न मेहनत से जी चुराती हैं न मशक़्क़त से मुंह मोड़ती हैं और हर वक़्त दौड़ धूप करती और तलब व तलाश में मसरूफ़ नज़र आती हैं। ग़रज़ कायनात की हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी मख़लूक़ मेहनत व काविश को अपना दस्तूरे हयात बनाए हुए पेट पालने के लिये भाग दौड़ करती है और कमज़ोर से कमज़ोर हैवान भी यह गवारा नहीं करता के जब तक उसके हाथ पांव में सकत है, बेकार पड़ा रहे और अपने हम जिन्सों से भीक मांगे और इनके आगे हाथ फैलाए। यह हैवानी सीरत इन्सानी ग़ैरत के लिये एक ताज़ियाना है और इन्सान के लिये एक दाइयाए फ़िक्र है के जब हैवान इसकी सतह से कहीं पस्ततर होने के बावजूद सवाल में आर महसूस करता है तो वह अपने हम जिन्सों के आगे किस तरह हाथ फैलाना गवारा कर लेता है। इन्सानी बलन्दी का तक़ाज़ा तो यह है के अपने क़ूवते बाज़ू से कमाए और सवाल की ज़िल्लत और एहतियाज की निकबत से इज़्ज़ते नफ़्स पर हर्फ़ न आने दे।

वह अफ़राद जो तने आसानी की वजह से बेकार पड़े रहते हैं वह आराम व सुकून की हक़ीक़ी लज़्ज़त से यकसर महरूम रहते हैं। सच्ची राहत और असली सुकून तो मेहनत व मशक़्क़त के बाद ही हासिल होता है। साये की क़द्र व क़ीमत को वही जान सकता है जो सूरज की तमाज़त और धूप की तपिश में मसरूफ़े कार हो और ठण्डी हवा के झोंकों से वही कैफ़अन्दोज़ हो सकता है जो गर्मी व हिद्दत की शोलाबारियों में पसीने से शराबोर हो और रात के पुरसुकून लम्हात उसी के लिये सुकून व राहत का पैग़ाम साबित हो सकते हैं जिसका दिन मेहनत व जफ़ाकशी का हामिल हो। चुनांचे एक टोकरी ढोने वाला मज़दूर और चिलचिलाती धूप में हल चलाने वाला किसान जब दिन के कामों से फ़ारिग़ होता है तो फ़ितरत पूरी फ़राख़ हौसलगी से उसके लिये सरो सामाने राहत मुहय्या कर देती है। सूरज का चिराग़ गुल हो जाता है, चान्द की हल्की और ठण्डी शुआओं का शामियाना तन जाता है सितारों की क़न्दीलें टिमटिमाने लगती हैं, शफ़क़ के रंगीन परदे आवेज़ां हो जाते हैं। हरी भरी घास का मख़मली फ़र्श बिछ जाता है, शाख़ें झूमकर मुर्दहे जन्बाती करती हैं और पत्ते हवा के झोंकों से टकराकर फ़िज़ा के दामन को ख़्वाब और नग़मों से भर देते हैं और फ़र्शे ज़मीन के ऊपर और शामियानाए फ़लक के नीचे सोने वाला रात की स्याह चादर ओढ़ कर आराम से सो जाता है क्या उसके मुक़ाबले में वह काहिल व आराम तलब जिसके हाँ नर्म व गुदाज़ गद्दे, आरामदेह मसहरियां, हवाएं, लहरें पैदा करने वाले बिजली के पंखे और आंखों को ख़ैरगी से बचाने वाले हल्के सब्ज़ रंग के क़मक़मे और दूसरे मसनूई व ख़ुदसाख़्ता सामाने आसाइश मुहय्या हों ज़्यादा पुरसुकून व पुरकैफ़ रात बसर कर सकता है? बहरहाल कारख़ानाए नीस्त व बूद की बू क़लमोनियां और फ़ितरत की तनव्वाएअ रअनाइयां इन्सान के हयात की तस्कीन और ज़िन्दगी की दिलबस्तगी व आसाइश का मुकम्मल सरो सामान लिये हुए हैं। लेकिन यह आलम के दिल आवेज़ नुक़ूश और राहत व आसाइश के सामान किस लिये हैं? क्या इसलिये हैं के इन्सान चन्द दिन खाए पिये, घूमे फिरे और फिर क़ब्र में जा सोए। अगर ऐसा हो तो ज़िन्दगी का कोई मक़सद ही नहीं रहता। हालांके दुनियाए कायनात की हर चीज़ का एक मक़सद और एक मुद्दआ है तो फिर ज़िन्दगी और ज़िन्दगी के सदो सामान बग़ैर मक़सद के क्योंकर हो सकते हैं, इसका भी कोई मक़सद होना चाहिये और वह मक़सद सिर्फ़ आख़ेरत की ज़िन्दगी है। जिसकी सआदतों और कामरानियों को हासिल करने के लिये दुनिया को एक ज़रिया और इम्तेहान गाह क़रार दिया गया है। चुनांचे इरशादे इलाही है- ‘‘वलाकिन ........... ख़ैरात’’ (लेकिन जो उसने तुम्हें दिया है उसमें तुम्हें आज़माना चाहता है लेहाज़ा नेकियों की तरफ़ बढ़ने में एक दूसरे से सबक़त ले जाने की कोशिष करो) 

यह आज़माइश इसी सूरत में आज़माइश रह सकती है जब इन नेकियों पर अमलपैरा होने और इनमें सबक़त ले जाने में इन्सानी इख़्तेयार का अमल दख़ल हो और अगर वह ईमान व अमले सालेह पर मजबूर हो तो आज़माइश के मानी ही क्या ऐसी सूरत में तो हर एक को ईमान लाना पड़ता और आमाल बजा लाने पड़ते क्योंके क़ुदरत अपनी बात के मनवाने में मजबूर व क़ासिर नहीं है चुनांचे इरशादे इलाही है- ‘‘व लौ शाअ........... जमीअन’’ (और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो ज़मीन में बसने वाले सब के सब उस पर ईमान ले आते।) 

बेशक कायनात का हर ज़र्रा उसकी मशीयत के ताबेअ है। इस तरह के कोई उसके महीते इक़्तेदार से बाहर नहीं है। वह ज़मीन हो या उस पर चलने फिरने वाली मख़लूक़, पहाड़ हों या उनके दामन में मादनियात, दरया हों या उनमें रहने वाली मछलियां समन्दर हों या उनमें अम्बर, मूंगे और मोतियों के ख़ज़ाने, फ़िज़़ा हो या उसमें परवाज़ करने वाले परिन्दे, बादलों के लक्के हों या उनमें उमड़ते हुए पानी के ज़ख़ीरे, चान्द सूरज हों या उनकी जौहरी शुआएं, सितारे हों या उनकी मख़सूस तासीरें, फ़रिश्ते हों या उनकी सरगर्मियाँ सब ही तो उसकी मशीयत के अन्दर जकड़ी बन्धी हुई हैं। अगर इन्सान भी एतक़ाद व आमाल मे इसी तरह बेबस होता और मशीयत हर एक को एक मख़सूस तरीक़ेकार का पाबन्द बना देती तो जज़ा व सज़ा बेकार हो जाती। हालांके क़ानूने मकाफात की रू से जज़ा व सज़ा से दोचार होना ज़रूरी है जैसा के इरशादे इलाही है-  ‘‘लहा मा कसबत........मकतसबत’’ (अगर उसने अच्छा काम किया तो अपने फ़ायदे के लिये और बुरा काम किया तो उसका वबाल उसके सर पड़ेगा)

तो जब अपने ही आमाल सामने आते हैं तो वही औक़ात व लम्हात ज़िन्दगी का सरमाया हैं जिनमें आमाल ख़ैर के ज़रिये आख़ेरत का सरमाया महम पहुंचा लिया गया हो और वही शब व रोज़ मुबारक व मसऊद हैं जिनमें अख़रवी हलाकत व तबाही से बचने का सामान कर लिया गया हो। यह दिन और यह रातें हमारे अच्छे और बुरे आमाल की निगरान हैं। अगर उनके सामने हमारी नेकियां आती हैं तो उनकी पेशानी की गिरहें खुल जाती हैं और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट फैल जाती है और वह हमसे ख़ुश ख़ुश रूख़सत होते हैं और अगर बुराइयों को देखते हैं तो उनकी जबीन पर शिकनें पड़ जाती हैं और बुराई करते हुए रूख़सत होते हैं। चुनांचे हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम का इरशाद है-

‘‘इन्सान की ज़िन्दगी का जो दिन गुज़रता है वह (ज़बाने हाल से) खि़ताब करते हुए उससे कहता है के मैं तेरे लिये नया दिन और तेरे आमाल का गवाह हूँ। लेहाज़ा ज़बान और आज़ा से नेक अमल करो, मैं उसकी क़यामत के दिन गवाही दूँगा।’’

लेहाज़ा सुबह की पुरसुकून फ़िज़ा और सितारों की ठण्डी छाँव में आने वाले दिन का इस्तेक़बाल इस दुआ से किया जाए ताके कम अज़ कम इस दिन तो उसके तास्सुरात हमारी ज़िन्दगी पर छाए रहें और फ़िक्र व अमल की पाकीज़गी हमारे तसव्वुरात पर मोहीता रहे और यही इस दुआ का मरकज़ी नुक़्ताए निगाह है।

Tuesday 10 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 5th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


पांचवी दुआ
अपने लिये और अपने दोस्तों के लिये हज़रत की दुआः-

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

ऐ वह जिसकी बुज़ुर्गी व अज़मत के अजाएब ख़त्म होने वाले नहीं। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें अपनी अज़मत के परदों में छुपाकर कज अन्देशियों से बचा ले। ऐ वह जिसकी शाही व फ़रमाँरवाई की मुद्दत ख़त्म होने वाली नहीं तू रहमत नाज़िल कर मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमारी गर्दनों को अपने ग़ज़ब व अज़ाब (के बन्धनों) से आज़ाद रख। ऐ वह जिसकी रहमत के ख़ज़ाने ख़त्म होने वाले नहीं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी रहमत में हमारा भी हिस्सा क़रार दे। ऐ वह जिसके मुशाहिदे से आँखें क़ासिर हैं, रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी बारगाह से हमको क़रीब कर ले। ऐ वह जिसकी अज़मत के सामने तमाम अज़मतें पस्त व हक़ीर हैं, रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें अपने हाँ इज़्ज़त अता कर। ऐ वह जिसके सामने राज़हाए सरबस्ता ज़ाहिर हैं रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें अपने सामने रूसवा न कर। बारे इलाहा! हमें अपनी बख़्शिश व अता की बदौलत बख़्शिश करने वालों की बख़्शिश से बेनियाज़ कर दे और अपनी पोस्तगी के ज़रिये क़तअ ताअल्लुक़ करने वालों की बेताअल्लुक़ी व दूरी की तलाफ़ी कर दे ताके तेरी बख़्शिष व अता के होते हुए दूसरे से सवाल न करें और तेरे फ़ज़्ल व एहसान के होते हुए किसी से हरासाँ न हों। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे नफ़े की तदबीर कर और हमारे नुक़सान की तदबीर न कर और हमसे मक्र करने वाले दुश्मनों को अपने मक्र का निशाना बना और हमें उसकी ज़द पर न रख। और हमें दुश्मनों पर ग़लबा दे, दुश्मनों को हम पर ग़लबा न दे। बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें अपने नाराज़गी से महफ़ूज़ रख और अपने फ़ज़्ल व करम से हमारी निगेहदाश्त फ़रमा और अपनी जानिब हमें हिदायत कर और अपनी रहमत से दूर न कर के जिसे तू अपनी नाराज़गी से बचाएगा वही बचेगा। और जिसे तू हिदायत करेगा वही (हक़ाएक़ पर) मुत्तेलअ होगा और जिसे तू (अपनी रहमत से) क़रीब करेगा वही फ़ायदे में रहेगा। ऐ माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें ज़माने के हवादिस की सख़्ती और शैतान के हथकण्डों की फ़ित्ना अंगेज़ी और सुलतान के क़हर व ग़लबे की तल्ख़ कलामी से अपनी पनाह में रख। बारे इलाहा! बेनियाज़ होने वाले तेरे ही कमाले क़ूवत व इक़्तेदार के सहारे बे नियाज़ होते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें बेनियाज़ कर दे और अता करने वाले तेरी ही अता व बख़्शिश के हिस्सए दाफ़र में से अता करते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें भी (अपने ख़ज़ानए रहमत से) अता फ़रमा। और हिदायत पाने वाले तेरी ही ज़ात की दर की दरख़्शिन्दगियों से हिदायत पाते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें हिदायत फ़रमा। बारे इलाहा! जिसकी तूने मदद की उसे मदद न करने वालों का मदद से महरूम रखना कुछ नुक़सान नहीं पहुंचा सकता और जिसे तू अता करे उसके हाँ रोकने वालों के रोकने से कुछ कमी नहीं हो जाती। और जिसकी तू ख़ुसूसी हिदायत करे उसे गुमराह करने वालों का गुमराह करना बे राह नहीं कर सकता। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपने ग़लबे व क़ूवत के ज़रिये बन्दों (के शर) से हमें बचाए रख और अपनी अता व बख़्शिश के ज़रिये दूसरों से बेनियाज़ कर दे और अपनी रहनुमाई से हमें राहे हक़ पर चला। ऐ माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे दिलों की सलामती अपनी अज़मत की याद में क़रार दे और हमारी जिस्मानी फ़राग़त (के लम्हों) को अपनी नेमत के शुक्रिया में सर्फ़ कर दे और हमारी ज़बानों की गोयाई को अपने एहसान की तौसीफ़ के लिये वक़्फ़ कर दे ऐ अल्लाह! तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें उन लोगों में से क़रार दे जो तेरी तरफ़ दावत देने वाले और तेरी तरफ़ का रास्ता बताने वाले हैं और अपने ख़ासुल ख़ास मुक़र्रेबीन में से क़रार दे ऐ सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले।

Monday 9 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 4th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


चौथी दुआ
अम्बिया व ताबेईन और उन पर ईमान वालों के हक़ में हज़रत की दुआ
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
ऐ अल्लाह! तू अहले ज़मीन से रसूलों की पैरवी करने वालों और उन मोमेनीन को अपनी मग़फ़ेरत और ख़ुशनूदी के साथ याद फ़रमा जो ग़ैब की रू से उन पर ईमान लाए। उस वक़्त के जब दुश्मन उनके झुठलाने के दरपै थे और उस वक़्त के जब वह ईमान की हक़ीक़तों की रोशनी में उनके (ज़ुहूर के) मुश्ताक़ थे। हर उस दौर और हर उस ज़माने में जिसमें तूने कोई रसूल भेजा और वक़्त के लोगों के लिये कोई रहनुमा मुक़र्रर किया। हज़रत आदम (अ0) के वक़्त से लेकर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के अहद तक जो हिदायत के पेशवा और साहेबाने तक़वा के सरबराह थे (उन सब पर सलाम हो) बारे इलाहा! ख़ुसूसियत से असहाबे मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम में से वह अफ़राद जिन्होंने पूरी तरह पैग़म्बर (स0) का साथ दिया और उनकी नुसरत में पूरी शुजाअत का मुज़ाहेरा किया और उनकी मदद पर कमरबस्ता रहे और उन पर ईमान लाने में जल्दी और उनकी दावत की तरफ़ सबक़त की, और जब पैग़म्बर (स0) ने अपनी रिसालत की दलीलें उनके गोशगुज़ार की ंतो उन्होंने लब्बैक कहा और उनका बोलबाला करने के लिये बीवी बच्चों को छोड़ दिया और अम्रे नबूवत के इस्तेहकाम के लिये बाप और बेटों तक से जंगें कीं और नबी-ए-अकरम (स0) के वजूद की बरकत से काम याबी हासिल की, इस हालत में के उनकी मोहब्बत दिल के हर रग व रेशे में लिये हुए थे और उनकी मोहब्बत व दोस्ती में ऐसी नफ़ा बख़्श तिजारत के मुतवक़्क़ो थे जिसमें कभी नुक़सान न हो। और जब उनके दीन के बन्धन से वाबस्ता हुए तो उनके क़ौम क़बीले ने उन्हें छोड़ दिया। और जब उनके सायए क़र्ब में सन्ज़िल की तो अपने बेगाने हो गए। तो ऐ मेरे माबूद! उन्होंने तेरी ख़ातिर और तेरी राह में जो सब को छोड़ दिया तो (जज़ा के मौक़े पर) उन्हें फ़रामोश न कीजो और उनकी इस फ़िदाकारी और ख़ल्क़े ख़ुदा को तेरे दीन पर जमा करने और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के साथ दाई हक़ बन कर खड़ा होने के सिले में उन्हें अपनी ख़ुशनूदी से सरफ़राज़ व शाद काम फ़रमा और उन्हें इस अम्र पर भी जज़ा दे के उन्होंने तेरी ख़ातिर अपने क़ौम क़बीले के शहरों से हिजरत की और वुसअते मआश से तंगीए मआश में जा पड़े और यूं ही उन मज़लूमों की ख़ुशनूदी का सामान करके जिनकी तादाद को तूने अपने दीन को ग़लबा देने के लिये बढ़ाया बारे इलाहा! जिन्होंने असहाबे रसूल (स0) की अहसन तरीक़ से पैरवी की उन्हें बेहतरीन जज़ाए ख़ैर दे जो हमेशा यह दुआ करते रहे के ‘‘ऐ हमारे परवरदिगार! तू हमें और हमारे उन भाइयों को बख़्श दे जो ईमान लाने में हमसे सबक़त ले गये’’ और जिनका सतहे नज़र असहाब का तरीक़ रहा और उन्हीं का तौर तरीक़ा इख़्तेयार किया औन उन्हीं की रविश पर गामज़न हुए। उनकी बसीरत में कभी शुबह का गुज़र नहीं हुआ के उन्हें (राहे हक़ से) मुन्हरिफ़ करता और उनके नक़शे क़दम पर गाम फ़रमाई और उनके रौशन तर्ज़े अमल की इक़्तेदार में उन्हीं की शक व तरद्दुद ने परेशान नहीं किया वह असहाबे नबी (स0) के मआवुन व दोस्तगीर और दीन में उनके पैरोकार और सीरत व इख़लाक़ में उनसे दर्स आमोज़ रहे और हमेशा उनके हमनवा रहे और उनके पहँुचाए हुए एहकाम में उन पर कोई इल्ज़ाम न वुसरा।   बारे इलाहा! उन ताबेईन और उनकी अज़वाज और आल व औलाद और उनमें से जो तेरे फ़रमाँबरदार व मुतीअ हैं उनपर आज से लेकर रोज़े क़यामत तक दूरूद व रहमत भेज। ऐसी रहमत जिसके ज़रिये तू उन्हें मासियत से बचाए। जन्नत के गुलज़ारों में फ़राख़ी व वुसअत दे। शैतान के मक्र से महफ़ूज़ा रखे और जिस कारे ख़ैर में तुझसे मदद चाहें उनकी मदद करे और शब व रोज़ के हवादिस से सिवाए किसी नवीदे ख़ैर के इनकी निगेहदाश्त करे और इस बात पर उन्हें आमादा करे के वह तुझसे हुस्ने उम्मीद का अक़ीदा वाबस्ता रखें और तेरे हाँ की नेमतों की ख़्वाहिश करें और बन्दों के हाथों में फ़राख़ी नेमत को देखकर तुझ पर (बे इन्साफ़ी का) इल्ज़ाम न धरें ताके उनका रूख़ अपने उम्मीद व बीम  की तरफ़ फेर दे और दुनिया की वुसअत व फ़राख़ी से बे तअल्लुक़ कर दे और अमले आख़ेरत और मौत के बाद की मन्ज़िल का साज़ व बर्ग मुहय्या करना उनकी निगाहों में ख़ुश आईन्द बना दे और रूहों के जिस्मों से जुदा होने के दिन हर कर्ब व अन्दोह जो उन पर वारिद हो आसान कर दे और फ़ित्ना व आज़माईश से पैदा होने वाले ख़तरात और जहन्नुम की शिद्दत और इसमें हमेशा पड़े रहने से निजात दे और उन्हें जा-ए अमन की तरफ़ जो परहेज़गारों की आसाइशगाह है, मुन्तक़िल कर दे।



हज़रत ने इस दुआ में सहाबा व ताबेईन बिलएहसान और साबेक़ीन बिल ईमान  के लिये कलेमात तरहम इरशाद फ़रमाए हैं और हस्बे इरशादे इलाही के अहले ईमान गुज़रे हुए अहद के मोमेनीन के लिये दुआ करते हुए कहते हैं के ‘‘रब्बेनग़ फ़िरलना .............बिल ईमान’’। ऐ हमारे परवरदिगार! तू हमें और हमारे उन भाईयों को बख़्श दे जो ईमान लाने में हमसे सबक़त ले गये’’ उनके लिये दुआए अफ़ो व मग़फ़ेरत फ़रमाते हैं। इमाम अलैहिस्सलाम के तर्ज़े अमल और इस आयाए क़ुरानी से हमें यह दर्स हासिल होता है के जो मोमेनीन रहमते इलाही के जवार में पहुंच चुके हैं उनके लिये हमारी ज़बान से कलेमाते तरह्हम निकलें और उनकी सबक़ते ईमानी के पेशे नज़र उनके लिये दुआए मग़फ़ेरत करें और यह हक़ीक़त भी वाज़ेह हो जाती है के ईमान में सबक़त हासिल करना भी फ़ज़ीलत का एक बड़ा दरजा है। तो इस लिहाज़ से सबक़त ले जाने वालों में सबसे ज़्यादा फ़ज़ीलत का हामिल वह होगा जो उन सबसे साबिक़ हो और यह मुसल्लेमए अम्र है के सबसे पहले ईमान में सबक़त करने वाले अमीरूल मोमेनीन अली (अ0) इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम थे। चुनांचे इब्ने अब्दुल बरीकी ने तहरीर किया है--
’’रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के बाद जो सबसे पहले अल्लाह तआला पर ईमान लाया वह अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम थे’’
ख़ुदावन्दे आलम ने अपने इरशाद - ‘‘ऐ हमारे परवरदिगार! तू हमें और हमारे उन भाईयों को जो ईमान में हमसे साबिक़ थे बख़्श दे, की रू से हर मुसलमान पर अपने कलाम में यह फ़रीज़ा आयद कर दिया है के वह अली (अ0) इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम के लिये दुआए मग़फ़ेरत व रहमत करता रहे। लेहाज़ा हर वह शख़्स जो अली (अ0) इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम के बाद ईमान लाए वह आप (अ0) के हक़ में दुआए मग़फ़ेरत करे। (शरह इब्ने अबी अल हदीद जि0 3, स0 256)
बहरहाल जिन सहाबा और साबेक़ीन बिल ईमान का इस दुआ में तज़किरा है वह असहाब थे जिन्होंने मरहले पर फ़िदाकारी के जौहर दिखाए, बातिल की ताग़ूती क़ूवतो ंके सामने सीना सिपर रहे।  रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के असवए हुस्ना के सांचे में अपनी ज़िन्दगियों को ढाल के दूसरों के लिये मिनारे हिदायत क़ायम कर गए और जादहो हक़ की निशानदेही और इस्लाम की सही तालीमात की तरफ़ रहनुमाई करते रहे, दीन की ख़ातिर हर क़ुर्बानी पर आमादा नज़र आये। क़ौम क़बीले को छोड़ा। बीवी बच्चों से मुंह मोड़ा, घर से बेघर हुए, जंग की शाद फ़िशानियों में तलवारों के वार सहे और सब्रो इस्तेक़लाल के साथ दुश्मन के मुक़ाबले में जम कर लड़े, जिससे इस्लाम इनका दहीने मन्नत और अहले इस्लाम इनके  ज़ेरे एहसान हैं क्या सलमान, अबूज़र, मिक़दाद, अम्मार इब्ने यासिर, ख़बाब इब्ने अरत, बिलाल इब्ने रबाह, क़ैस इब्ने सअद, जारिया इब्ने क़दामा, हज्र इब्ने अदमी, हज़ीफ़ा इब्ने अलयमान, हुन्ज़ला इब्ने नामान, ख़ज़ीमा इब्ने साबित, अहनफ़ इब्ने क़ैस, अम्रो इब्ने अलहमक़, उस्मान बिन हनीफ़ ऐसे जलील अलक़द्र सहाबा को अहले इस्लाम फ़रामोश कर सकते हैं जिनकी जान फ़रोशाना खि़दमात के तज़किरों से तारीख़ का दामन छलक रहा है।
यह ज़ाहिर है के यह दुआ अहदे नबवी (स0) के तमाम मुसलमानों को शामिल नहीं है क्योंके इनमें ऐसे भी थे जो बन्से क़ुरानी फ़ासिक़ थे जैसे वलीद इब्ने अक़बा। ऐसे भी थे जिन्हें पैग़म्बर (स0) ने फ़ित्ना परवरी व शरअंगेज़ी की वजह से शहर बदर कर दिया गया था जैसे हकम इब्ने आस और उसका बेटा मरवान। ऐसे भी थे जिन्होंने महज़ हुसूले इक़्तेदार व तलब व जाह के लिये अहलेबैत (अ0) रसूल (स0) से जंगें कीं। जैसे माविया, अम्रो इब्ने आस, बसर इब्ने अबी इरतात, जीब इब्ने मुसलमह, अम्रो इब्ने सअद वग़ैरह। ऐसे भी थे जो पैग़म्बर (स0) को मस्जिद में तन्हा छोड़कर अलग हो जाते थे। चुनांचे इरशादे बारे हैः- ‘‘वएज़ा ........................... क़ाएमन’’ (यह वह हैं के जब कोई तिजारत या बेहूदगी की बात देखते हैं तो उसकी तरफ़ टूट पड़ते हैं और तुमको खड़ा हुआ छोड़ जाते हैं)  और ऐसे भी थे जिनके दिमाग़ों में जाहेलीयत की बू बसी हुई थी और पैग़म्बर (स0) अकरम की रेहलत के बाद अपनी साबेक़ा सीरत की तरफ़ पलट गए, चुनांचे मुहम्मद इब्ने इस्माईल बुख़ारी यह हदीस तहरीर करते हैं-
‘‘फ़रमाया के क़यामत के दिन मेरे असहाब की एक जमाअत मेरे पास आएगी। जिसे हौज़े कौसर से हटा दिया जाएगा। मैं इस मौक़े पर कहूंगा के ऐ मेरे परवरदिगार। यह तो मेरे हैं इरशाद होगा के तुम्हें ख़बर नहीं है के इन्होंने तुम्हारे बाद दीन में क्या क्या बिदअतें कीं। यह तो उलटे पाँव अपने साबेक़ा मज़हब की तरफ़ पलट गए थे।’’  (सही बुख़ारी बाबुल हौज़)
इन हालात में उन सबके मुताल्लिक़ हुस्ने अक़ीदत रखना और उन सबको एक सा आदिल क़रार दे लेना एक तक़लीदी अक़बेदत का नतीजा तो हो सकता है मगर वाक़ेआत व हक़ाएक़ की रौशनी में परखने के बाद इस अक़ीदे पर बरक़रार रहना बहुत मुश्किल है। आखि़र एक होशमन्द इन्सान यह सोचने पर मजबूर होगा के पैग़म्बर (स0) के रेहलत फ़रमाते ही यह एकदम इन्क़ेलाब कैसे रूनुमा हो गया के उनकी ज़िन्दगी में तो उनके मरातिब व दरजात, में इम्तियाज़ हो और अब सबके सब एक सतह पर आकर आदिल क़रार पा जाएं और उन्हें हर तरह के नक़्द व जिरह से बालातर समझते हुए अपनी अक़ीदत का मरकज़ बना लिया जाए। आखि़र क्यों? बेशक बैअत रिज़वान के मौक़े पर अल्लाह तआला ने उनके मुताल्लिक़ अपनी ख़ुशनूदी का इज़हार किया चुनांचे इरशादे इलाही है- ‘‘लक़द ...................... शजरता’’ (जिस वक़्त ईमान लाने वाले तुमसे दरख़्त के नीचे बैअत कर रहे थे तो ख़ुदा उनकी इस बात से ज़रूर ख़ुश हुआ) - तो इस एक बात से ख़ुशनूद होने के मानी यह नहीं होंगे के बस अब उनका हर अमल और हर एक़दाम रज़ामन्दी ही का तर्जुमान होगा और अब वह जो चाहें करें यह ख़ुशनूदी उनके शरीके हाल ही रहेगी, और फिर यह के ख़ुदा वन्दे आलम ने इस आयत में अपनी रज़ामन्दी को सिर्फ़ बैअत से वाबस्ता नहीं किया बल्कि बैअत और ईमान दोनों के मजमूए से वाबस्ता किया है। लेहाज़ा यह रज़ामन्दी सिर्फ़ उनसे मुताल्लिक़ होगी जो दिल से ईमान लाए हों। और अगर कोई मुनाफ़िक़त के साथ इज़हारे इस्लाम करके बैअत करे तो उससे रज़ामन्दी का ताअल्लुक़ साबित नहीं होगा। और फिर जहां यह रज़ामन्दी साबित हो वहाँ यह कहाँ ज़रूरी है के वह बाक़ी व बरक़रार रहेगी। क्योंके यह ख़ुशनूदी तो इस मुआहेदे पर मबनी थी के वह दुश्मन के मुक़ाबले में पैग़म्बर (स0) अकरम का साथ नहीं छोड़ेंगे और जेहाद के मौक़े पर जम कर हरीफ़ का मुक़ाबला करेंगे। तो अगर वह इस मुआहेदे के तक़ाज़ों को नज़रअन्दाज़ करके मैदान से मुंह मोड़ लें और बैअत के मातहत किये हुए क़ौल व क़रार को पूरा न करें तो यह ख़ुशनूदी कहां बाक़ी रह सकती है। और वाक़ेआत यह बताते हैं के इनमें से ऐसे अफ़राद भी थे जिन्होंने इस मुआहेदे को दरख़ोरे अक़ना नहीं समझा और हिमायते पैग़म्बर (स0) के फ़रीज़े को नज़रअन्दाज़ कर दिया। चुनांचे जंगे हनीन इसकी शाहिद है के जो इस्लाम की आखि़री जंग थी। अगरचे इसके बाद ग़ज़वए ताएफ़ व ग़ज़वए तबूक पेश आया। मगर इन गज़वों में जंग की नौबत नहीं आई। इस आखि़री मारेके में मुसलमानों की तादाद चार हज़ार से ज़्यादा थी जो दुश्मन की फ़ौज से कहीं ज़्यादा थी मगर इतनी बड़ी फ़ौज में से सिर्फ़ सात आदमी निकले जो मैदान में जमे रहे और बाक़ी दुश्मनों के मुक़ाबले में छोड़कर चले गये। चुनांचे क़ुरान मजीद है- ‘‘वज़ाक़त .............. मुदब्बेरीन’’ (ज़मीन अपनी वुसअत के बावजूद तुम पर तंग हो गई फिर तुम पीठ फिराकर चल दिये यह कोई और न थे बल्कि वही लोग थे जो बैअते रिज़वान में शरीक थे) चुनांचे पैग़म्बर (स0) ने इस मुआहेदे का ज़िक्र करते हुए अब्बास (र0) से फ़रमाया - ‘‘उन दरख़्त के नीचे बैअत करने वाले मुहाजिरों को पुकारो और उन पनाह देने वाले और मदद करने वाले अन्सार को ललकारो’’
क्या इस मौक़े पर यह तसव्वुर किया जा सकता है के अल्लाह की ख़ुशनूदी उनके शामिले हाल रही होगी, हरगिज़ नहीं, क्योंके वह ख़ुशनूदी तो सिर्फ़ मुआहेदे से वाबस्ता थी और जब इस मुआहेदे की पाबन्दी न की जा सकी तो ख़ुशनूदी के क्या मानी, और बैअते रिज़वान में शामिल होने वाले भी यह समझते थे के अल्लाह की ख़ुशनूदी बशर्ते इस्तवारी ही बाक़ी रह सकती थी, चुनांचे मोहम्मद इब्ने इस्माईल बुख़ारी तहरीर करते हैं -
हिलाल इब्ने मुसय्यब अपने बाप से रिवायत करते हैं के उन्होंने कहा के मैंने बरा इब्ने आज़िब से मुलाक़ात की और उनसे कहा के ख़ुशानसीब तुम्हारे के तुम नबी (स0) की सोहबत में रहे और दरख़्त के नीचे उनके हाथ पर बैअत की। फ़रमाया के ऐ बरादर ज़ादे। तुमने नहीं जानते के हमने उनके बाद क्या-क्या बिदअतें पैदा कीं’’ (सही बुख़ारी जि0 3- सफ़ा 30)
लेहाज़ा महज़ सहाबियत कोई दलीले अदालत है और न बैअते रिज़वान से उनकी अदालत पर दलील लाई जा सकती है।

Friday 6 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 3rd dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


तीसरी दुआ

हामेलाने अर्श और दूसरे मुक़र्रब फ़रिश्तों पर दुरूदो सलवात के सिलसिले में आप (अ0) की दुआः-

ऐ अल्लाह! तेरे अर्श के उठाने वाले फ़रिश्ते जो तेरी तस्बीह से उकताते नहीं हैं और तेरी पाकीज़गी के बयान से थकते नहीं और न तेरी इबादत से ख़स्ता व मलूल होते हैं और न तेरे तामीले अम्र में सई व कोशिश के बजाए कोताही बरतते हैं और न तुझसे लौ लगाने से ग़ाफ़िल होते हैं और इसराफ़ील (अ0) साहेबे सूर जो नज़र उठाए हुए तेरी इजाज़त और निफ़ाज़े हुक्म के मुन्तज़िर हैं ताके सूर फूंक कर क़ब्रों में पड़े हुए मुर्दों को होशियार करें और मीकाईल (अ0) जो तेरे यहाँ मरतबे वाले और तेरी इताअत की वजह से बलन्द मन्ज़िलत हैं और जिबरील (अ0) जो तेरी वही के अमानतदार और अहले आसमान जिनके मुतीअ व फ़रमाँबरदार हैं और तेरी बारगाह में मक़ामे बलन्द और तक़र्रूबे ख़ास रखते हैं और वह रूह जो फ़रिश्तगाने हिजाब पर मोक्किल है और वह रूह जिसकी खि़लक़त तेरे आलमे अम्र से है इन सब पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा और इसी तरह उन फ़रिश्तों पर जो उनसे कम दरजा और आसमानों में साकिन और तेरे पैग़ामों के अमीन हैं और उन फ़रिश्तों पर जिनमें किसी सई व कोशिष से बद्दिली और किसी मशक़्क़त से ख़स्तगी व दरमान्दगी पैदा नहीं होती और न तेरी तस्बीह से नफ़सानी ख़्वाहिशें उन्हें रोकती हैं और न उनमें ग़फ़लत की रू से ऐसी भूल चूक पैदा होती है जो उन्हें तेरी ताज़ीम से बाज़ रखे। वह आँखें झुकाए हुए हैं के (तेरे नूरे अज़मत की तरफ़ निगाह उठाने का भी इरादा नहीं करते और ठोड़ियों के बल गिरे हुए हैं और तेरे यहाँ के दरजात की तरफ़ उनका इश्तियाक़ बेहद व बेनिहायत है और तेरी नेमतों की याद में खोए हुए हैं और तेरी अज़मत व जलाले किबरियाई के सामने सराफ़गन्दा हैं, और उन फ़रिश्तों पर जो जहन्नुम को गुनहगारों पर शोलावर देखते हैं तो कहते हैंः-

पाक है तेरी ज़ात! हमने तेरी इबादत जैसा हक़ था वैसी नहीं की। (ऐ अल्लाह!) तू उन पर और फ़रिश्तगाने रहमत पर और उन पर जिन्हें तेरी बारगाह में तक़र्रूब हासिल है और तेरे पैग़म्बरों (अ0) की तरफ़ छिपी हुई ख़बरें ले जाने वाले और तेरी वही के अमानतदार हैं और उन क़िस्म-क़िस्म के फ़रिश्तों पर जिन्हें तूने अपने लिये मख़सूस कर लिया है और जिन्हें तस्बीह व तक़दीस के ज़रिये खाने पीने से बेनियाज़ कर दिया है और जिन्हें आसमानी तबक़ात के अन्दरूनी हिस्सों में बसाया है और उन फ़रिश्तों पर जो आसमानों के किनारों में तौक़ुफ़ करेंगे जबके तेरा हुक्म वादे के पूरा करने के सिलसिले में सादिर होगा। और बारिश के ख़ज़ीनेदारों और बादलों के हंकाने वालों पर और उस पर जिसके झिड़कने से राद की कड़क सुनाई देती है और जब इस डांट डपट पर गरजने वाले बादल रवाँ होते हैं तो बिजली के कून्दे तड़पने लगते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो बर्फ़ और ओलों के साथ-साथ उतरते हैं और हवा के ज़ख़ीरों की देखभाल करते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो पहाड़ों पर मोवक्किल हैं ताके वह अपनी जगह से हटने न पाएं और उन फ़रिश्तों पर जिन्हें तूने पानी के वज़न और मूसलाधार और तलातुम अफ़ज़ा बारिशों की मिक़दार पर मुतलेअ किया है और उन फ़रिश्तों पर जो नागवार इब्तिलाओं और ख़ुश आइन्द आसाइशों को लेकर अहले ज़मीन की जानिब तेरे फ़र्सतादा हैं और उन पर जो आमाल का अहाता करने वाले गरामी मन्ज़िलत और नेकोकार हैं और उन पर जो निगेहबानी करने वाले करामन कातेबीन हैं और मलके अमलूत और उसके आवान व अन्सार और मुनकिर नकीर और अहले क़ुबूर की आज़माइश करने वाले रूमान पर और बैतुलउमूर का तवाफ़ करने वालों पर और मालिक और जहन्नम के दरबानों पर और रिज़वान और जन्नत के दूसरे पासबानों पर और उन फ़रिश्तों पर जो ख़ुदा के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म उन्हें दिया जाता है उसे बजा लाते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो (आख़ेरत में) सलाम अलैकुम के बाद कहेंगे के दुनिया में तुमने सब्र किया (यह उसी का बदला है) देखो तो आख़ेरत का घर कैसा अच्छा है और दोज़ख़ के उन पासबानों पर के जब उनसे कहा जाएगा के उसे गिरफ़्तार करके तौक़ व ज़न्जीर पहना दो फिर उसे जहन्नुम में झोंक दो तो वह उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ेंगे और उसे ज़रा मोहलत न देंगे।

और हर उस फ़रिश्ते पर जिसका नाम हमने नहीं लिया और न हमें मालूम है के उसका तेरे हाँ क्या मरतबा है और यह के तूने किस काम पर उसे मुअय्यन किया है और हवा, ज़मीन और पानी में रहने वाले फ़रिश्तों पर और उन पर जो मख़लूक़ात पर मुअय्यन हैं उन सब पर रहमत नाज़िल कर उस दिन के जब हर शख़्स इस तरह आएगा के उसके साथ एक हंकाने वाला होगा और एक गवाही देने वाला और उन सब पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जो उनके लिये इज़्ज़त बालाए इज़्ज़त और तहारत बालाए तहारत का बाएस हो। ऐ अल्लाह! जब तू अपने फ़रिश्तों और रसूलों पर रहमत नाज़िल करे और हमारे सलवात व सलाम को उन तक पहुंचाए तो हम पर भी अपनी रहमत नाज़िल करना इसलिये के तूने हमें उनके ज़िक्रे ख़ैर की तौफ़ीक़ बख़्शी। बेशक तू बख़्शने वाला और करीम है।

Tuesday 3 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 2nd dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


दूसरी दुआ

तम्हीद व सताइश के बाद रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम पर दुरूदो सलाम के सिलसिले में आपकी दुआ।

तमाम तारीफ़ उस अल्लाह तआला के लिये हैं जिसने अपने पैग़म्बर (स0) मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की बअसत से हम पर वह एहसान फ़रमाया जो न गुज़िश्ता उम्मतों पर किया और न पहले लोगों पर अपनी इस क़ुदरत की कार फ़रमाई है जो किसी शै से आजिज़ व दरमान्दा नहीं होती अगरचे वह कितनी ही बड़ी हो। और कोई चीज़ उसके क़ब्ज़े से निकलने नहीं पाती अगरचे वह कितनी ही लतीफ़ व नाज़ुक हो, उसने अपने मख़लूक़ात में हमें आखि़री उम्मत क़रार दिया, और इन्कार करने वालों पर गवाह बनाया, और अपने लुत्फ़ व करम से कम तादाद वालों के मुक़ाबले में हमें कसरत दी। ऐ अल्लाह! तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर जो तेरी वही के अमानतदार तमाम मख़लूक़ात में तेरे बरगुज़ीदा, तेरे बन्दों में पसन्दीदा रहमत के पेशवा, ख़ैर व सआदत के पेशरौ और बरकत का सरचश्मा थे जिस तरह उन्होंने तेरी शरीयत की ख़ातिर अपने को मज़बूती से जमाया और तेरी राह में अपने जिस्म को हर तरह के आज़ार का निशाना बनाया और तेरी तरफ़ दावत देने के सिलसिले में अपने अज़ीज़ों से दुश्मनी का मुज़ाहिरा किया, और तेरी रज़ामन्दी के लिये अपने क़ौम क़बीले से जंग की और तेरे दीन को ज़िन्दा करने के लिये सब रिश्ते नाते क़ता कर लिये, नज़दीक के रिश्तेदारों को इन्कार की वजह से दूर कर दिया और दूर वालों को इक़रार की वजह से क़रीब किया, और तेरी वजह से दूर वालों से दोस्ती और नज़दीक वालों से दुश्मनी रखी और तेरा पैग़ाम पहुंचाने के लिये तकलीफ़ें उठाईं और दीन की तरफ़ दावत देने के सिलसिले में ज़हमतें बरदाश्त कीं और अपने नफ़्स को उन लोगों के पन्द व नसीहत करने में मसरूफ़ रखा जिन्होंने तेरी दावत को क़ुबूल किया, और अपने महल सुकूनत व मक़ामे रिहाइश और जाए विलादत व वतन मालूफ़ से परदेस की सरज़मीन और दूर दराज़ मक़ाम की तरफ़ महज़ इस मक़सद से हिजरत की के तेरे दीन को मज़बूत करें और तुझसे कुफ्र इख़्तिेयार करने वालों पर ग़लबा पाएं, यहाँ तक के तेरे दुश्मनों के बारे में जो उन्होंने चाहा था वह मुकम्मल हो गया और तेरे दोस्तों (को जंग व जेहाद पर आमादा करने) की तदबीरें कामिल हो गईं तो वह तेरी नुसरत से फतेह व कामरानी चाहते हुए और अपनी कमज़ोरी के बावजूद तेरी मदद की पुश्तपनाही पर दुश्मनों के मुक़ाबले के लिये उठ खड़े हुए और उनके घरों के हुदूद में उनसे लड़े और उनकी क़यामगाहों के वुसत में उन पर टूट पड़े। यहाँ तक के तेरा दीन ग़ालिब और तेरा कलमा बलन्द होकर रहा। अगरचे मुशरिक उसे नापसन्द करते रहे। ऐ अल्लाह! उन्होंने तेरी ख़ातिर जो कोशिशें कीं हैं उनके एवज़ उन्हें जन्नत में ऐसा बलन्द दरजा अता कर के कोई मरतबे में उनके बराबर न हो सके और न मन्ज़िलत में उनका हमपाया क़रार पा सके, और न कोई मुक़र्रब बारगाह फ़रिश्ते और न कोई फर्सतादा पैग़म्बर तेरे नज़दीक उनका हमसर हो सके और उनके अहलेबैत (अ0) अतहार और मोमेनीन की जमाअत के बारे में जिस क़ाबिले क़ुबूल शिफ़ाअत का तूने उनसे वादा फ़रमाया है उस वादे से बढ़कर उन्हें अता फ़रमा, ऐ वादे के नाफ़िज़ करने वाले क़ौल के पूरा करने और बुराइयों को कई गुना ज़ायद अच्छाइयों से बदल देने वाले बेशक तू फ़ज़्ले अज़ीम का मालिक है।
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Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 1st dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

जब आप दुआ मांगते तो उसकी इब्तिदा ख़ुदाए बुज़ुर्ग व बरतर की हम्द व सताइश से फ़रमाते, चुनांचे इस सिलसिले में फ़रमाया-

सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जो ऐसा अव्वल है जिसके पहले कोई अव्वल न था और ऐसा आखि़र है जिसके बाद कोई आखि़र न होगा। वह ख़ुदा जिसके देखने से देखने वालों की आंखें आजिज़ और जिसकी तौसीफ़ व सना से वसफ़ बयान करने वालों की अक़्लें क़ासिर हैं। उसने कायनात को अपनी क़ुदरत से पैदा किया, और अपने मन्शाए अज़मी से जैसा चाहा उन्हें ईजाद किया। फिर उन्हें अपने इरादे के रास्ते पर चलाया और अपनी मोहब्बत की राह पर उभारा। जिन हुदूद की तरफ़ उन्हें आगे बढ़ाया है उनसे पीछे रहना और जिनसे पीछे रखा है उनसे आगे बढ़ना उनके क़ब्ज़ा व इख़्तेयार से बाहर है। उसी ने हर (ज़ी) रूह के लिये अपने (पैदा कर्दा) रिज़्क़ से मुअय्यन व मालूम रोज़ी मुक़र्रर कर दी है जिसे ज़्यादा दिया है उसे कोई घटाने वाला घटा नहीं सकता और जिसे कम दिया है उसे कोई बढ़ाने वाला बढ़ा नहीं सकता। फ़िर यह के उसी ने उसकी ज़िन्दगी का एक वक़्त मुक़र्रर कर दिया और एक मुअय्यना मुद्दत उसके लिये ठहरा दी। जिस मुद्दत की तरफ़ वह अपनी ज़िन्दगी के दिनों से बढ़ता और अपने ज़मानाए ज़ीस्त के सालों से उसके नज़दीक होता है यहाँ तक के जब ज़िन्दगी की इन्तेहा को पहुँच जाता है और अपनी उम्र का हिसाब पूरा कर लेता है तो अल्लाह उसे अपने सवाब बे पायाँ  तक जिसकी तरफ़ उसे बुलाया था या ख़ौफ़नाक अज़ाब की जानिब जिसे बयान कर दिया था क़ब्ज़े रूह के बाद पहुंचा देता है ताके अपने अद्ल की बुनियाद पर बुरों को उनकी बद आमालियों की सज़ा और नेकोकारों को अच्छा बदला दे। उसके नाम पाकीज़ा और उसकी नेमतों का सिलसिला लगातार है। वह जो करता है उसकी पूछगछ उससे नहीं हो सकती और लोगों से बहरहाल बाज़पुर्श होगी।


तमाम तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं के अगर वह अपने बन्दों को हम्द व शुक्र की मारेफ़त से महरूम रखता उन पैहम अतीयों (अता) पर जो उसने दिये हैं और उन पै दर पै नेमतों पर जो उसने फरावानी से बख़्शी हैं तो वह उसकी नेमतों में तसर्रूफ़ तो करते मगर उसकी हम्द न करते और उसके रिज़्क़ में फ़ारिग़लबाली से बसर तो करते मगर उसका शुक्र न बजा लाते और ऐसे होते तो इन्सानियत की हदों से निकल कर चौपायों की हद में आ जाते, और उस तौसीफ़ के मिस्दाक़ होते जो उसने अपनी मोहकम किताब में की है के वह तो बस चौपायों के मानिन्द हैं बल्कि उनसे भी ज़्यादा राहे रास्त से भटके हुए।’’


तमाम तारीफ़ अल्लाह के लिये हैं के उसने अपनी ज़ात को हमें पहचनवाया और हम्द व शुक्र का तरीक़ा समझाया और अपनी परवरदिगारी पर इल्म व इत्तेलाअ के दरवाज़े हमारे लिये खोल दिये और तौहीद में तन्ज़िया व इख़लास की तरफ़ रहनुमाई की और अपने मुआमले में शिर्क व कजरवी से हमें बचाया। ऐसी हम्द जिसके ज़रिये हम उसकी मख़लूक़ात में से हम्दगुज़ारों में ज़िन्दगी बसर करें और उसकी ख़ुशनूदी व बख़्शिश की तरफ़ बढ़ने वालों से सबक़त ले जाएं। ऐसी हम्द जिसकी बदौलत हमारे लिये बरज़क़ की तारीकियां छट जाएं और जो हमारे लिये क़यामत की राहों को आसान कर दे और हश्र के मजमए आम में हमारी क़द्र व मन्ज़िलत को बलन्द कर दे जिस दिन हर एक को उसके किये काम का सिला मिलेगा और उन पर किसी तरह का ज़ुल्म न होगा। जिस दिन दोस्त किसी दोस्त के कुछ काम न आएगा और न उनकी मदद की जाएगी। ऐसी हम्द हो एक लिखी हुई किताब में है जिसकी मुक़र्रब फ़रिश्ते निगेहदाश्त करते हैं हमारी तरफ़ से बेहिश्त बरीं के बलन्द तरीन दरजात तक बलन्द हो, ऐसी हम्द जिससे हमारी आँखों में ठण्डक आए जबके तमाम आँखें हैरत व दहशत से फटी की फटी रह जाएंगी और हमारे चेहरे रौशन व दरख़्शाँ हों जबके तमाम चेहरे सियाह होंगे। ऐसी हम्द जिसके ज़रिये हम अल्लाह तआला की भड़काई हुई अज़ीयतदेह आग से आज़ादी पाकर उसके जवारे रहमत में आ जाएं। ऐसी हम्द जिसके ज़रिये हम इसके मुक़र्रब फ़रिश्तों के साथ शाना ब शाना बैठते हुए टकराएं और उस मन्ज़िले जावेद व मक़ामे इज़्ज़त व रिफ़अत में जिसे तग़य्युर व ज़वाल नहीं उसके फ़र्सतावा पैग़म्बरों के साथ यकजा हों। 


तमाम तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसने खि़लक़त व आफ़रीन्श की तमाम ख़ूबियाँ हमारे लिये मुन्तख़ब कीं और पाक व पाकीज़ा रिज़्क़ का सिलसिला हमारे लिये जारी किया और हमें ग़लबा व तसल्लत देकर तमाम मख़लूक़ात पर बरतरी अता की। चुनांचे तमाम कायनात उसकी क़ुदरत से हमारे ज़ेरे फ़रमान और उसकी क़ूवते सरबलन्दी की बदौलत हमारी इताअत पर आमादा है। तमाम तारीफ़ उस अल्लाह तआला के लिये हैं जिसने अपने सिवा तलब व हाजत का हर दरवाज़ा हमारे लिये बन्द कर दिया तो हम (उस हाजत व एहतियाज के होते हुए) कैसे उसकी हम्द से ओहदा बरआ हो सकते हैं और कब उसका शुक्र अदा कर सकते हैं। नहीं! किसी वक़्त भी उसका शुक्र अदा नहीं हो सकता। तमाम तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसने हमारे (जिस्मों में) फैलने वाले आसाब और सिमटने वाले अज़लात तरतीब दिये और ज़िन्दगी की आसाइशों से बहरामन्द किया और कार व कसब के आज़ा हमारे अन्दर वदीअत फ़रमाए और पाक व पाकीज़ा रोज़ी से हमारी परवरिश की और अपने फ़ज़्ल व करम के ज़रिये हमें बेनियाज़ कर दिया और अपने लुत्फ़ व एहसान से हमें (नेमतों का) सरमाया बख़्शा। फिर उसने अपने अवाम्र की पैरवी का हुक्म दिया ताके फ़रमाबरदारी में हमको आज़माए और नवाही के इरतेकाब से मना किया ताके हमारे शुक्र को जांचे मगर हमने उसके हुक्म की राह से इन्हेराफ़ किया और नवाही के मरकब पर सवार हो लिये। फिर भी उसने अज़ाब में जल्दी नहीं की, और सज़ा देने में ताजील से काम नहीं लिया बल्कि अपने करम व रहमत से हमारे साथ नरमी का बरताव किया और हिल्म व राफ़्त से हमारे बाज़ आ जाने का मुन्तज़िर रहा।


तमाम तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसने हमें तौबा की राह बताई के जिसे हमने सिर्फ़ उसके फ़ज़्ल व करम की बदौलत हासिल किया है। तो अगर हम उसकी बख़्शिशों में से इस तौबा के सिवा और कोई नेमत शुमार में न लाएं तो यही तौबा हमारे हक़ में इसका उमदा इनआम, बड़ा एहसान और अज़ीम फ़ज़्ल है इसलिये के हमसे पहले लोगों के लिये तौबा के बारे में उसका यह रवय्या न था। उसने तो जिस चीज़ के बरदाश्त करने की हकमें ताक़त नहीं है वह हमसे हटा ली और हमारी ताक़त से बढ़कर हम पर ज़िम्मादारी आएद नहीं की और सिर्फ़ सहल व आसान चीज़ों की हमें तकलीफ़ दी है और हम में से किसी एक के लिये हील व हुज्जत की गुन्जाइश नहीं रहने दी। लेहाज़ा वही तबाह होने वाला है। जो उसकी मन्शा के खि़लाफ़ अपनी तबाही का सामान करे और वही ख़ुशनसीब है जो उसकी तरफ़ तवज्जो व रग़बत करे।

अल्लाह के लिये हम्द व सताइश है ह रवह हम्द जो उसके मुक़र्रब फ़रिश्ते बुज़ुर्गतरीन मख़लूक़ात और पसन्दीदा हम्द करने वाले बजा लाते हैं। ऐसी सताइश जो दूसरी सताइशों से बढ़ी चढ़ी हुई हो जिस तरह हमारा परवरदिगार तमाम मख़लूक़ात से बढ़ा हुआ है। फिर उसी के लिये हम्द व सना है उसकी हर हर नेमत के बदले में हो उसने हमें और तमाम गुज़िश्ता व बाक़ीमान्दा बन्दों को बख़्शी है उन तमाम चीज़ों के शुमार के बराबर जिन पर उसका इल्म हावी है और हर नेमत के मुक़ाबले में दो गुनी चौगुनी जो क़यामत के दिन तक दाएमी व अबदी हों। ऐसी हम्द जिसका कोई आखि़री कुफ़्फार और जिसकी गिनती का कोई शुमार न हो। जिसकी हद व निहायत दस्तरस से बाहर और जिसकी मुद्दत ग़ैर मुख़्तमिम हो। ऐसी हम्द जो उसकी इताअत व बख़्शिष का वसीला, उसकी रज़ामन्दी का सबब, उसकी मग़फ़ेरत का ज़रिया, जन्नत का रास्ता, उसके अज़ाब से पनाह, उसके ग़ज़ब से अमान, उसकी इताअत में मुअय्यन, उसकी मासियत से मानेअ और उसके हुक़ूक़ व वाजेबात की अदायगी में मददगार हो। ऐसी हम्द जिसके ज़रिये उसके ख़ुशनसीब दोस्तों में शामिल होकर ख़ुश नसीब क़रार पाएं और शहीदों के ज़मरह में शुमार हों जो उसके दुश्मनों की तलवारों से शहीद हुए, बेशक वही मालिक मुख़्तार और क़ाबिले सताइश है।