Wednesday 11 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 6th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


छठी दुआ 
दुआए सुबह व शाम

सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसने अपनी क़ूवत व तवानाई से शब व रोज़ को ख़ल्क़ फ़रमाया और अपनी क़ुदरत की कारफ़रमाई से उन दोनों में इम्तियाज़ क़ायम है और उनमें से हर एक को मुअय्यना हुदूद व मुक़र्ररा औक़ात का पाबन्द बनाया। और उनके कम व बेश होने का जो अन्दाज़ा मुक़र्रर किया उसके मुताबिक़ रात की जगह पर दिन और दिन की जगह पर रात को लाता है ताके इस ज़रिये से बन्दों की रोज़ी और उनकी परवरिश का सरो सामान करे। चुनान्चे उसने उनके लिये रात बनाई ताके वह उसमें थका देने वाले कामों और ख़स्ता कर देने वाली कलफ़तों के बाद आराम करें, और उसे परदा उसे क़रार दिया ताके सुकून की चादर तानकर आराम से सोएँ और यह उनके लिये राहत व निशात और तबई क़ूवतो ंके बहाल होने और लज़्ज़त व कैफ़ अन्दोज़ी का ज़रिया हो और दिन को उनके लिये रौशन व रख़्शाँ पैदा किया ताके इसमें कार-व-कस्ब में सरगर्मे अमल होकर) इसके फ़ज़्ल की जुस्तजू करें और रोज़ी का वसीला ढूंढें और दुनियावी मुनाफ़े और उख़रवी फ़वाएद के वसाएल तलाश करने के लिये उसकी ज़मीन में चलें फ़रीं। इनत माम कारफ़रमाइयों से वह उनके हालात सँवारता और उनके आमाल की जांच करता और यह देखता है के वह लोग इताअत की घड़ियों, फ़राएज़ की मंज़िलों और तामीले एहकाम के मौक़ों पर कैसे साबित होते हैं ताके बुरों को उनकी बदआमालियों की सज़ा और नेकोकारों को अच्छा बदला दे। ऐ अल्लाह! तेरे ही लिये तमाम तारीफ़ व तौसीफ़ है के तूने हमारे लिये (रात का दामन चाक करके) सुबह का उजाला किया और इसी तरह दिन की रोशनी से हमें फ़ायदा पहुंचाया और तलबे रिज़्क़ के मवाक़े हमें दिखाए और इसमें आफ़ात व बल्लियात से हमें बचाया। हम और हमारे अलावा सब चीज़ें तेरी हैं । आसमान भी और ज़मीन भी और वह सब चीज़ें जिन्हें तूने इनमें फैलाया है, वह साकिन हूँ या मुतहर्रिक मुक़ीम हूँ या राहे नूर व फ़िज़ा में बलन्द हूँ या ज़मीन की तहों में पोशीदा, हम तेरे क़ब्ज़ए क़ुदरत में हैं और तेरा इक़्तेदार और तेरी बादशाहत हम पर हावी है और तेरी मशीयत का मुहीत हमें घेरे हुए है, तेरे हुक्म से हम तसर्रूफ़ करते और तेरी तदबीर व कारसाज़ी के तहत हम एक हालत से दूसरी हालत की तरफ़ पलटते हैं। जो अम्र तूने हमारे लिये नाफ़िज़ किया और जो ख़ैर और भलाई तूने बख़्शी उसके अलावा हमारे इख़्तेयार में कुछ नहीं है और यह दिन नया और ताज़ा वारिद है जो हम पर ऐसा गवाह है जो हमहवक़्त हाज़िर है। अगर हमने अच्छे काम किये तो वह तौसीफ़ व सना करते हुए हमें रूख़सत करेगा और अगर बुरे काम किये तो बुराई करता हुआ हमसे अलाहीदा होगा। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें उस दिन की अच्छी रिफ़ाक़त नसीब करना और किसी ख़ता के इरतेका करने या सग़ीरा व कबीरा गुनाह में मुब्तिला होने की वजह से उसके चीँ ब जबीं होकर रूख़सत होने से हमें बचाए रखना और उस दिन में हमारी नेकियों का हिस्सा ज़्यादा कर और बुराइयों से हमारा दामन ख़ाली रख। और हमारे लिये उसके आग़ाज़ व अन्जाम को हम्द व सपास, सवाब व ज़ख़ीरए आख़ेरत और बख़्शिश व एहसान से भर दे। ऐ अल्लाह! करामन कातेबीन पर (हमारे गुनाह क़लमबन्द करने की) ज़हमत कम कर दे और हमारा नामाए आमाल नेकियों से भर दे और बद आमालियों की वजह से हमें उनके सामने रूसवा न कर। बारे इलाहा! तू उस दिन के लम्हों में से हर लम्हा व साअत में अपने ख़ास बन्दों का ख़त व नसीब और अपने शुक्र का एक हिस्सा और फ़रिश्तों में से एक सच्चा गवाह हमारे लिये क़रार दे। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और आगे पीछे, दाहिने और बांये और तमाम एतराफ़ व जवानिब से हमारी हिफ़ाज़त कर ऐसी हिफ़ाज़त जो हमारे लिये गुनाह व मासियत से सद्दे राह हो। तेरी इताअत की तरफ़ रहनुमाई करे और तेरी मोहब्बत में सर्फ़ हो। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें आज के दिन आज की रात और ज़िन्दगी के तमाम दिनों में तौफ़ीक़ अता फ़रमा के हम नेकियों पर अमल करें, बुराइयों को छोड़ें, नेमतों पर शुक्र और सुन्नतों पर अमल करें, बिदअतों से अलग-थलग रहें और नेक कामों का हुक्म दें। और बुरे कामों से रोकें, इस्लाम की हिमायत व तरफ़दारी करें, बातिल को कुचलें और उसे ज़लील करें, हक़ की नुसरत करें और उसे सरबलन्द करें, गुमराहों की रहनुमाई, कमज़ोरों की एआनत और दर्दमन्दों की चाराजोई करें। बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और आज के दिन को उन तमाम दिनों से जो हमने गुज़ारे ज़्यादा मुबारक दिन और उन तमाम साथियों से जिनका हमने साथ दिया इसको बेहतरीन रफ़ीक़ और उन तमाम वक़्तों से जिनके ज़ेरे साया हमने ज़िन्दगी बसर की इसको बेहतरीन वक़्त क़रार दे और हमें उन तमाम मख़लूक़ात में से ज़्यादा राज़ी व ख़ुशनूद रख जिन पर शब व रोज़ के चक्कर चलते रहे हैं और इन सबसे ज़्यादा अपनी अता की हुई नेमतों का शुक्रगुज़ार और उन सबसे ज़़्यादा अपने जारी किये हुए एहकाम का पाबन्द और उन सबसे ज़्यादा उन चीज़ों से किनाराकशी करने वाला क़रार दे जिनसे तूने ख़ौफ़ दिलाकर मना किया है। ऐ ख़ुदा! मैं तुझे गवाह करता हूँ और तू गवाही के लिये काफ़ी है और तेरे आसमान और तेरी ज़मीन को और उनमें जिन जिन फ़रिश्तों और जिस जिस मख़लूक़ को तूने बसाया है, आज के दिन और उस घड़ी और उस रात में और उस मुक़ाम पर गवाह करता हूँ के मैं इस बात का मोतरफ़ हूँ के सिर्फ़ तू ही वह माबूद है जिसके अलावा कोई माबूद नहीं। इन्साफ़ का क़ायम करने वाला, हुक्म में अद्ल मलहोज़ रखने वाला, बन्दों पर मेहरबान, इक़्तेदार का मालिक और कायनात पर रहम करने वाला है और इस बात की भी शहादत देता हूँ के मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम तेरे ख़ास बन्दे, रसूल और बरगुज़ीदाए कायनात हैं। उन पर तूने रिसालत की ज़िम्मेदारियां आयद की ंतो उन्होंने उसे पहुंचाया और अपनी उम्मत को पन्द व नसीहत करने का हुक्म दिया तो उन्होंने नसीहत फ़रमाई। हमारी तरफ़ से उन्हें वह बेहतरीन तोहफ़ा अता कर जो तेरे हर उस इनआम से बढ़ा हुआ हो जो अपने बन्दों में से तूने किसी एक को दिया हो और हमारी तरफ़ से उन्हें वह जज़ा दे जो हर उस जज़ा से बेहतर व बरतर हो जो अम्बिया (अ0) में से किसी एक को तूने उसकी उम्मत की तरफ़ से अता फ़रमाई हो। बेशक तू बड़ी नेमतों का बख़्शने वाला और बड़े गुनाहों से दरगुज़र करने वाला और हर रहीम से ज़्यादा रहम करने वाला है लेहाज़ा तू मोहम्मद (स0) और उनकी पाक व पाकीज़ा और शरीफ़ व नजीब औलाद (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा।

इस दुआ का सरनामा ‘‘दुआए सुबह व शाम’’ है जिसमें इख़्तेलाफ़े शब व रोज़ की करिश्मासाज़ी, औक़ात की तब्दीली व तनव्वअ की हिकमत और क़ुदरत के इरादे व मशीयत की कार फ़रमाई का ज़िक्र फ़रमाया है और हुस्ने अमल, शुक्रे नेमत, इत्तेबाए सुन्नत, तर्के बिदअत, अम्रे बिलमारूफ़ व नही अनिल मुनकिर, इस्लाम की तरफ़दारी व हिफ़ाज़त, बातिल की तज़लील व सरकोबी, हक़ की नुसरत रिआयत, इरशाद व हिदायत में सरगर्मी और कमज़ोर व नातवाँ की ख़बरगीरी के लिये तौफ़ीक़े इलाही के शामिले हाल होने की दुआ फ़रमाई है ताके दुआ के तास्सुरात अमली इस्तेहकाम का पेशख़ेमा साबित हों और ज़िन्दगी के लम्हात मक़सदे हयात की तकमील में सर्फ़ हों।

यह औक़ात का तबद्दुल, तुलूअ व ग़ुरूब का तसलसुल और सुबह के बाद शाम और शाम के बाद सपीदह सहर की नमूद और कार फ़रमाइए फ़ितरत की वह हसीन कारफ़रमाई है जो निगाहों के लिये हिज़ व कैफ़ और क़ल्ब व रूह के लिये सर्द रू निशात का सामान होने के अलावा बेशुमार मसालेह व फ़वाएद की भी हामिल है। चुनांचे शब व रोज़ की तअय्यिन महीनों और सालों का इन्ज़बात और कारोबार मईशत और आराम व इस्तराहत के औक़ात की हदबन्दी उसी से वाबस्ता है और फिर इसमें ज़िन्दगी की तस्कीन व राहत का भी सामान है क्योंके वक़्त अगर हमेशा एक हालत पर रहता और लैल व नहार के सियाह व सफ़ेद वरक़ निगाहों के सामने उलटे न जाते तो तबीअतें बेकैफ़, दिल सेर और ज़िन्दगी के लिये दिलबस्तगी के तमाम ज़राए ख़त्म हो जाते और हुस्ने यकरंग आंखों में खटकने लगता और नग़मा बे ज़ेर व बमोबाल गोश हो जाता क्योंके इन्सान की तनव्वोअ पसन्द तबीयत यकसानी व यकरंगी की हालत से जल्द उकता जाती है इसलिये क़ुदरत ने इन्सानी तबीयत के ख़्वास के मुताबिक़ शब व रोज़ की तफ़रीक़ क़ायम कर दी ताके शाम के बाद सुबह और सुबह के बाद शाम का इन्तेज़ार ज़िन्दगी की ख़स्तगियों और इसकी मुसलसल उलझनों और परेशानियों से सहारा देता रहे चुनांचे क़ुदरत ने इख़्तेलाफ़े शब व रोज़ की मसलेहत की तरफ़ मुतवज्जोह करते हुए इरशाद फ़रमाया है। - 

‘‘अन जअल............. तशकोरून’’ (अगर ख़ुदा तुम्हारे लिये क़यामत के दिन तक दि नही रखता तो अल्लाह के अलावा और कौन है जो तुम्हारे लिये रात लाता के तुम इसमें आराम करो। क्या तुम इतना भी नहीं देखते और उसने अपनी रहमत से तुम्हारे लिये रात और दिन क़रार दिये हैं ताके रात को आराम करो और दिन को इसका रिज़्क़ तलाश करो ताके इसके नतीजे में तुम शुक्र अदा करो।) 

इसी नज़्मे औक़ात का नतीजा है के जब सुबह नमूदार होती है और सूरज की ताबनाक किरनें फ़िज़ा में फैल कर कारगाहे हस्ती के गोशा गोशा को जगमगा देती हैं तो ख़ामोश व पुरसुकून फ़िज़ा में गहमा गहमी शुरू हो जाती है। परिन्दे आशियानों से हैवान भटों और खोओं से, कीड़े-मकोड़े बिलों और सूराख़ों से और इन्सान झोपड़ों और मकानों से निकल खड़े होते हैं। हरकत व अमल की दुनिया आबाद हो जाती है और हर सिन्फ़ अपने कार-व-कस्ब में मारूफ़ और अपने मशाग़ेल में सरगर्मे अमल नज़र आने लगती है। परिन्दे फ़िज़ा में, हैवान ज़मीन के ऊपर से और कीड़े मकोड़े ज़मीन के अन्दर से अपनी रोज़ी ढूंढने लगते हैं। और च्यूंटियां भी अपनी मुख़्तसर जसामत के बावजूद  सई पैहम व जेहद मुसलसल का वह मुज़ाहेरा करती हैं के इन्सानी अक़्लें दंग रह जाती हैं धूप हो या साया, न मेहनत से जी चुराती हैं न मशक़्क़त से मुंह मोड़ती हैं और हर वक़्त दौड़ धूप करती और तलब व तलाश में मसरूफ़ नज़र आती हैं। ग़रज़ कायनात की हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी मख़लूक़ मेहनत व काविश को अपना दस्तूरे हयात बनाए हुए पेट पालने के लिये भाग दौड़ करती है और कमज़ोर से कमज़ोर हैवान भी यह गवारा नहीं करता के जब तक उसके हाथ पांव में सकत है, बेकार पड़ा रहे और अपने हम जिन्सों से भीक मांगे और इनके आगे हाथ फैलाए। यह हैवानी सीरत इन्सानी ग़ैरत के लिये एक ताज़ियाना है और इन्सान के लिये एक दाइयाए फ़िक्र है के जब हैवान इसकी सतह से कहीं पस्ततर होने के बावजूद सवाल में आर महसूस करता है तो वह अपने हम जिन्सों के आगे किस तरह हाथ फैलाना गवारा कर लेता है। इन्सानी बलन्दी का तक़ाज़ा तो यह है के अपने क़ूवते बाज़ू से कमाए और सवाल की ज़िल्लत और एहतियाज की निकबत से इज़्ज़ते नफ़्स पर हर्फ़ न आने दे।

वह अफ़राद जो तने आसानी की वजह से बेकार पड़े रहते हैं वह आराम व सुकून की हक़ीक़ी लज़्ज़त से यकसर महरूम रहते हैं। सच्ची राहत और असली सुकून तो मेहनत व मशक़्क़त के बाद ही हासिल होता है। साये की क़द्र व क़ीमत को वही जान सकता है जो सूरज की तमाज़त और धूप की तपिश में मसरूफ़े कार हो और ठण्डी हवा के झोंकों से वही कैफ़अन्दोज़ हो सकता है जो गर्मी व हिद्दत की शोलाबारियों में पसीने से शराबोर हो और रात के पुरसुकून लम्हात उसी के लिये सुकून व राहत का पैग़ाम साबित हो सकते हैं जिसका दिन मेहनत व जफ़ाकशी का हामिल हो। चुनांचे एक टोकरी ढोने वाला मज़दूर और चिलचिलाती धूप में हल चलाने वाला किसान जब दिन के कामों से फ़ारिग़ होता है तो फ़ितरत पूरी फ़राख़ हौसलगी से उसके लिये सरो सामाने राहत मुहय्या कर देती है। सूरज का चिराग़ गुल हो जाता है, चान्द की हल्की और ठण्डी शुआओं का शामियाना तन जाता है सितारों की क़न्दीलें टिमटिमाने लगती हैं, शफ़क़ के रंगीन परदे आवेज़ां हो जाते हैं। हरी भरी घास का मख़मली फ़र्श बिछ जाता है, शाख़ें झूमकर मुर्दहे जन्बाती करती हैं और पत्ते हवा के झोंकों से टकराकर फ़िज़ा के दामन को ख़्वाब और नग़मों से भर देते हैं और फ़र्शे ज़मीन के ऊपर और शामियानाए फ़लक के नीचे सोने वाला रात की स्याह चादर ओढ़ कर आराम से सो जाता है क्या उसके मुक़ाबले में वह काहिल व आराम तलब जिसके हाँ नर्म व गुदाज़ गद्दे, आरामदेह मसहरियां, हवाएं, लहरें पैदा करने वाले बिजली के पंखे और आंखों को ख़ैरगी से बचाने वाले हल्के सब्ज़ रंग के क़मक़मे और दूसरे मसनूई व ख़ुदसाख़्ता सामाने आसाइश मुहय्या हों ज़्यादा पुरसुकून व पुरकैफ़ रात बसर कर सकता है? बहरहाल कारख़ानाए नीस्त व बूद की बू क़लमोनियां और फ़ितरत की तनव्वाएअ रअनाइयां इन्सान के हयात की तस्कीन और ज़िन्दगी की दिलबस्तगी व आसाइश का मुकम्मल सरो सामान लिये हुए हैं। लेकिन यह आलम के दिल आवेज़ नुक़ूश और राहत व आसाइश के सामान किस लिये हैं? क्या इसलिये हैं के इन्सान चन्द दिन खाए पिये, घूमे फिरे और फिर क़ब्र में जा सोए। अगर ऐसा हो तो ज़िन्दगी का कोई मक़सद ही नहीं रहता। हालांके दुनियाए कायनात की हर चीज़ का एक मक़सद और एक मुद्दआ है तो फिर ज़िन्दगी और ज़िन्दगी के सदो सामान बग़ैर मक़सद के क्योंकर हो सकते हैं, इसका भी कोई मक़सद होना चाहिये और वह मक़सद सिर्फ़ आख़ेरत की ज़िन्दगी है। जिसकी सआदतों और कामरानियों को हासिल करने के लिये दुनिया को एक ज़रिया और इम्तेहान गाह क़रार दिया गया है। चुनांचे इरशादे इलाही है- ‘‘वलाकिन ........... ख़ैरात’’ (लेकिन जो उसने तुम्हें दिया है उसमें तुम्हें आज़माना चाहता है लेहाज़ा नेकियों की तरफ़ बढ़ने में एक दूसरे से सबक़त ले जाने की कोशिष करो) 

यह आज़माइश इसी सूरत में आज़माइश रह सकती है जब इन नेकियों पर अमलपैरा होने और इनमें सबक़त ले जाने में इन्सानी इख़्तेयार का अमल दख़ल हो और अगर वह ईमान व अमले सालेह पर मजबूर हो तो आज़माइश के मानी ही क्या ऐसी सूरत में तो हर एक को ईमान लाना पड़ता और आमाल बजा लाने पड़ते क्योंके क़ुदरत अपनी बात के मनवाने में मजबूर व क़ासिर नहीं है चुनांचे इरशादे इलाही है- ‘‘व लौ शाअ........... जमीअन’’ (और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो ज़मीन में बसने वाले सब के सब उस पर ईमान ले आते।) 

बेशक कायनात का हर ज़र्रा उसकी मशीयत के ताबेअ है। इस तरह के कोई उसके महीते इक़्तेदार से बाहर नहीं है। वह ज़मीन हो या उस पर चलने फिरने वाली मख़लूक़, पहाड़ हों या उनके दामन में मादनियात, दरया हों या उनमें रहने वाली मछलियां समन्दर हों या उनमें अम्बर, मूंगे और मोतियों के ख़ज़ाने, फ़िज़़ा हो या उसमें परवाज़ करने वाले परिन्दे, बादलों के लक्के हों या उनमें उमड़ते हुए पानी के ज़ख़ीरे, चान्द सूरज हों या उनकी जौहरी शुआएं, सितारे हों या उनकी मख़सूस तासीरें, फ़रिश्ते हों या उनकी सरगर्मियाँ सब ही तो उसकी मशीयत के अन्दर जकड़ी बन्धी हुई हैं। अगर इन्सान भी एतक़ाद व आमाल मे इसी तरह बेबस होता और मशीयत हर एक को एक मख़सूस तरीक़ेकार का पाबन्द बना देती तो जज़ा व सज़ा बेकार हो जाती। हालांके क़ानूने मकाफात की रू से जज़ा व सज़ा से दोचार होना ज़रूरी है जैसा के इरशादे इलाही है-  ‘‘लहा मा कसबत........मकतसबत’’ (अगर उसने अच्छा काम किया तो अपने फ़ायदे के लिये और बुरा काम किया तो उसका वबाल उसके सर पड़ेगा)

तो जब अपने ही आमाल सामने आते हैं तो वही औक़ात व लम्हात ज़िन्दगी का सरमाया हैं जिनमें आमाल ख़ैर के ज़रिये आख़ेरत का सरमाया महम पहुंचा लिया गया हो और वही शब व रोज़ मुबारक व मसऊद हैं जिनमें अख़रवी हलाकत व तबाही से बचने का सामान कर लिया गया हो। यह दिन और यह रातें हमारे अच्छे और बुरे आमाल की निगरान हैं। अगर उनके सामने हमारी नेकियां आती हैं तो उनकी पेशानी की गिरहें खुल जाती हैं और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट फैल जाती है और वह हमसे ख़ुश ख़ुश रूख़सत होते हैं और अगर बुराइयों को देखते हैं तो उनकी जबीन पर शिकनें पड़ जाती हैं और बुराई करते हुए रूख़सत होते हैं। चुनांचे हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम का इरशाद है-

‘‘इन्सान की ज़िन्दगी का जो दिन गुज़रता है वह (ज़बाने हाल से) खि़ताब करते हुए उससे कहता है के मैं तेरे लिये नया दिन और तेरे आमाल का गवाह हूँ। लेहाज़ा ज़बान और आज़ा से नेक अमल करो, मैं उसकी क़यामत के दिन गवाही दूँगा।’’

लेहाज़ा सुबह की पुरसुकून फ़िज़ा और सितारों की ठण्डी छाँव में आने वाले दिन का इस्तेक़बाल इस दुआ से किया जाए ताके कम अज़ कम इस दिन तो उसके तास्सुरात हमारी ज़िन्दगी पर छाए रहें और फ़िक्र व अमल की पाकीज़गी हमारे तसव्वुरात पर मोहीता रहे और यही इस दुआ का मरकज़ी नुक़्ताए निगाह है।

No comments:

Post a Comment