Wednesday 11 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 7th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.



सातवीं दुआ


जब कोई मुहिम दरपेश होती या कोई मुसीबत नाज़िल होती या किसी क़िस्म की बेचैनी होती तो हज़रत यह दुआ पढ़ते थे-

 
ऐ वह जिसके ज़रिये मुसीबतों के बन्धन खुल जाते हैं, ऐ वह जिसके बाएस सख़्तियों की बाढ़ कुन्द हो जाती है। ऐ वह जिससे (तंगी व दुश्वारी से) वुसअत व फ़राख़ी की आसाइश की तरफ़ निकाल ले जाने की इल्तिजा की जाती है। तू वह है के तेरी क़ुदरत के आगे दुश्वारियां आसान हो गईं, तेरे लुत्फ़ से सिलसिलए असबाब बरक़रार रहा और तेरी क़ुदरत से क़ज़ा का निफ़ाज़ हुआ और तमाम चीज़ें तेरे इरादे के रूख़ पर गामज़न हैं। वह बिन कहे तेरी मशीयत की पाबन्द और बिन रोके ख़ुद ही तेरे इरादे से रूकी हुई हैं। मुश्किलात में तुझे ही पुकारा जाता है और बल्लियात में तू ही जा-ए-पनाह है, इनमें से कोई मुसीबत टल नहीं सकती मगर जिसे तू टाल दे और कोई मुश्किल हल नहीं हो सकती मगर जिसे तू हल कर दे। परवरदिगार मुझ पर एक ऐसी मुसीबत नाज़िल हुई है जिसकी संगीनी ने मुझे गरांबार कर दिया है और एक ऐसी आफ़त आ पड़ी है जिससे मेरी क़ूवते बरदाश्त आजिज़ हो चुकी है। तूने अपनी क़ुदरत से इस मुसीबत को मुझ पर वारिद किया है और अपने इक़्तेदार से मेरी तरफ़ मुतवज्जेह किया है। तू जिसे वारिद करे, उसे कोई हटाने वाला, और जिसे तू मुतवज्जेह करे उसे कोई पलटाने वाला और जिसे तू बन्द करे उसे कोई खोलने वाला और जिसे तू खोले उसे कोई बन्द करने वाला और जिसे तू दुश्वार बनाए उसे कोई आसान करने वाला और जिसे तू नज़रअन्दाज़ करे उसे कोई मदद देने वाला नहीं है। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी करम फ़रमाई से ऐ मेरे पालने वाले मेरे लिये आसाइश का दरवाज़ा खोल दे और अपनी क़ूवत व तवानाई से ग़म व अन्दोह का ज़ोर तोड़ दे और मेरे इस शिकवे के पेशे नज़र अपनी निगाहे करम का रूख़ मेरी तरफ़ मोड़ दे और मेरी हाजत को पूरा करके शीरीनी एहसान से मुझे लज़्ज़त अन्दोज़ कर। और अपनी तरफ़ से रहमत और ख़ुशगवार आसूदगी मरहमत फ़रमा और मेरे लिये अपने लुत्फ़े ख़ास से जल्द छुटकारे की राह पैदा कर और इस ग़म व अन्दोह की वजह से अपने फ़राएज़ की पाबन्दी और मुस्तहेबात की बजाआवरी से ग़फ़लत में न डाल दे। क्योंके मैं इस मुसीबत के हाथों तंग आ चुका हूँ और इस हादसे के टूट पड़ने से दिल रन्ज व अन्दोह से भर गया है जिस मुसीबत में मुब्तिला हों उसके दूर करने और जिस बला में फंसा हुआ हूं उससे निकालने पर तू ही क़ादिर है लेहाज़ा अपनी क़ुदरत को मेरे हक़ में कार-फ़रमा-कर। अगरचे तेरी तरफ़ से मैं इसका सज़ावार न क़रार पा सकूँ। ऐ अर्शे अज़ीम के मालिक।

 
Discussion
 
जब ज़हरे ग़म रग व पै में उतरता और कर्ब व अन्दोह के शरारों से दिल व दिमाग़ फुंकता है तो दर्दो-अलम की टीस सुकून व क़रार छीन लेती हैं और मिम्बर व शकीब का दामन हाथ से छूट जाता है न तसल्ली व तस्कीन का कोई सामान नज़र आता है न सब्र व ज़ब्त की कोई सूरत। ऐसी हालत में यास व नाउम्मीदी कभी जुनून व दीवानगी में मुब्तिला और कभी मौत का सहारा ढूंढने पर मजबूर कर देती है। अगर इन्सान इस मौक़े पर बलन्द नज़री से काम ले तो उसे एक ऐसा सहारा मिल सकता है जो हवादिस व आलाम के भंवर और रंज व अन्दोह के सैलाब से निकाल ले जा सकता है। और वह सहारा अल्लाह है जो इज़्तेराब की तसल्ली और दर्द व कर्ब का चारा कर सकता है। चुनांचे अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम का इरशाद है - ‘‘जब बेचैनी हद से बढ़ जाए तो फिर अल्लाह ही तस्कीन का मरकज़ है। और अगर अल्लाह की हस्ती पर ईमान न भी हो जब भी फ़ितरते ख़्वाबीदा करवट लेकर लेकर इसका रास्ता दिखा देती है और मुसीबत व बेचारगी किसी अनदेखी हस्ती के आगे झुकने और उसका सहारा लेने के लिये पुकारती है।’’ चुनांचे एक शख़्स ने इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से वजूदे बारी के सिलसिले में गुफ़्तगू की तो आपने उससे दरयाफ़्त फ़रमाया के तुम्हें किश्ती पर सवार होने का कभी इत्तेफ़ाक़ हुआ है। उसने कहा हाँ, फ़रमाया कभी ऐसा इत्तेफ़ाक़ भी पेश आया है के किश्ती भंवर में घिर गई हो और समन्दर की तिलमिलाती लहरों ने तुम्हें अपनी लपेट में ले लिया? उसने कहा के जी हाँ, ऐसा भी हुआ है, फ़रमाया के उस वक़्त तुम्हारे दिल में कोई ख़याल पैदा हुआ था, कहा के हाँ, जब हर तरफ़ से मायूसी ही मायूसी नज़र आने लगी तो मेरा दिल कहता था के एक ऐसी बालादस्त क़ूवत भी मौजूद है जो चाहे तो इस भंवर से मुझे निकाल ले जा सकती है। फ़रमाया बस वही तो ख़ुदा था जो इन्तेहाई मायूसकुन हालातों में भी मायूस नहीं होने देता। और जब कोई सहारा न रहे तो वह सहारा साबित होता है। चुनांचे जब इन्सान अल्लाह तआला पर मुकम्मल यक़ीन व एतेमाद पैदा करके उस पर अपने उमूर को छोड़ देता है तो वह अपनी ज़ेहनी क़ूवतों को मुन्तशिर होने से बचा ले जाता है और जब हमह तन उसकी याद में खो जाता है तो उलझनें और परेशानियां उसका साथ छोड़ देती हैं। क्योंकि ज़ेहन का सुकून और क़ल्ब की तमानियत उसके ज़िक्र का लाज़मी नतीजा है। जैसा के इरशादे इलाही है: -‘‘अला बेज़िक्रिल्लाह.......... क़ोलूब’’   (दिल तो अल्लाह के ज़िक्र से मुतमइन हो जाता है।) वह लोग जो इत्मीनान को बज़ाहिर ग़म-ग़लत करने वाली कैफ़ अंगेज़ व मसर्रत अफ़ज़ा चीज़ों में तलाश करने की कोशिश करते हैं वह कभी सुकून व इत्मीनान हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकते। क्योंके न इशरत कदों में इत्मीनान नज़र आता है, न ताज व दनहीम के सायों में। न नग़मा व सुरूर की महफ़िलों में सुकून व क़रार बटता है न नावूद नोश की मजलिसों में। बेशक हर मौक़ै पर ज़िक्र व इबादत के लिये दिल आमादा और तबीयत हाज़िर नहीं होती ख़ुसूसन जब के इन्सान किसी मुसीबत की वजह से ज़ेहनी कशमकश में मुब्तिला हो। इसलिये के मुसीबत ब-हर सूरत मुसीबत और इससे मुतास्सिर होना तिबई व फ़ितरी है। तो ऐसे मौक़े पर नवाफ़िल से दस्तकश हुवा जा सकता है मगर बहुत से लोग ऐसे भी मिलेंगे जो परेशानकुन हालात में फ़राएज़ तक से ग़ाफ़िल हो जाते हैं तो उन्हें इमाम अलैहिस्सलाम की इस दुआ पर नज़र करना चाहिये के वह बारगाहे इलाही में यह दुआ करते हुए नज़र आते हैं के ख़्वाह कितने जानकाह हवादिस व आलाम से साबक़ा पड़ेगा मगर तेरे फ़राएज़ व नवाफ़िल से ग़फ़लत न होने पाए क्योंके फ़राएज़ ब-हर सूरत फ़राएज़ हैं और नवाफ़िल उबूदियत का तक़ाज़ा हैं और ऐसा न हो के मसाएब व आलाम के तास्सुराते उबूदियत के इज़हार पर ग़ालिब आ जाएं।

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