Friday 6 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 3rd dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


तीसरी दुआ

हामेलाने अर्श और दूसरे मुक़र्रब फ़रिश्तों पर दुरूदो सलवात के सिलसिले में आप (अ0) की दुआः-

ऐ अल्लाह! तेरे अर्श के उठाने वाले फ़रिश्ते जो तेरी तस्बीह से उकताते नहीं हैं और तेरी पाकीज़गी के बयान से थकते नहीं और न तेरी इबादत से ख़स्ता व मलूल होते हैं और न तेरे तामीले अम्र में सई व कोशिश के बजाए कोताही बरतते हैं और न तुझसे लौ लगाने से ग़ाफ़िल होते हैं और इसराफ़ील (अ0) साहेबे सूर जो नज़र उठाए हुए तेरी इजाज़त और निफ़ाज़े हुक्म के मुन्तज़िर हैं ताके सूर फूंक कर क़ब्रों में पड़े हुए मुर्दों को होशियार करें और मीकाईल (अ0) जो तेरे यहाँ मरतबे वाले और तेरी इताअत की वजह से बलन्द मन्ज़िलत हैं और जिबरील (अ0) जो तेरी वही के अमानतदार और अहले आसमान जिनके मुतीअ व फ़रमाँबरदार हैं और तेरी बारगाह में मक़ामे बलन्द और तक़र्रूबे ख़ास रखते हैं और वह रूह जो फ़रिश्तगाने हिजाब पर मोक्किल है और वह रूह जिसकी खि़लक़त तेरे आलमे अम्र से है इन सब पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा और इसी तरह उन फ़रिश्तों पर जो उनसे कम दरजा और आसमानों में साकिन और तेरे पैग़ामों के अमीन हैं और उन फ़रिश्तों पर जिनमें किसी सई व कोशिष से बद्दिली और किसी मशक़्क़त से ख़स्तगी व दरमान्दगी पैदा नहीं होती और न तेरी तस्बीह से नफ़सानी ख़्वाहिशें उन्हें रोकती हैं और न उनमें ग़फ़लत की रू से ऐसी भूल चूक पैदा होती है जो उन्हें तेरी ताज़ीम से बाज़ रखे। वह आँखें झुकाए हुए हैं के (तेरे नूरे अज़मत की तरफ़ निगाह उठाने का भी इरादा नहीं करते और ठोड़ियों के बल गिरे हुए हैं और तेरे यहाँ के दरजात की तरफ़ उनका इश्तियाक़ बेहद व बेनिहायत है और तेरी नेमतों की याद में खोए हुए हैं और तेरी अज़मत व जलाले किबरियाई के सामने सराफ़गन्दा हैं, और उन फ़रिश्तों पर जो जहन्नुम को गुनहगारों पर शोलावर देखते हैं तो कहते हैंः-

पाक है तेरी ज़ात! हमने तेरी इबादत जैसा हक़ था वैसी नहीं की। (ऐ अल्लाह!) तू उन पर और फ़रिश्तगाने रहमत पर और उन पर जिन्हें तेरी बारगाह में तक़र्रूब हासिल है और तेरे पैग़म्बरों (अ0) की तरफ़ छिपी हुई ख़बरें ले जाने वाले और तेरी वही के अमानतदार हैं और उन क़िस्म-क़िस्म के फ़रिश्तों पर जिन्हें तूने अपने लिये मख़सूस कर लिया है और जिन्हें तस्बीह व तक़दीस के ज़रिये खाने पीने से बेनियाज़ कर दिया है और जिन्हें आसमानी तबक़ात के अन्दरूनी हिस्सों में बसाया है और उन फ़रिश्तों पर जो आसमानों के किनारों में तौक़ुफ़ करेंगे जबके तेरा हुक्म वादे के पूरा करने के सिलसिले में सादिर होगा। और बारिश के ख़ज़ीनेदारों और बादलों के हंकाने वालों पर और उस पर जिसके झिड़कने से राद की कड़क सुनाई देती है और जब इस डांट डपट पर गरजने वाले बादल रवाँ होते हैं तो बिजली के कून्दे तड़पने लगते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो बर्फ़ और ओलों के साथ-साथ उतरते हैं और हवा के ज़ख़ीरों की देखभाल करते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो पहाड़ों पर मोवक्किल हैं ताके वह अपनी जगह से हटने न पाएं और उन फ़रिश्तों पर जिन्हें तूने पानी के वज़न और मूसलाधार और तलातुम अफ़ज़ा बारिशों की मिक़दार पर मुतलेअ किया है और उन फ़रिश्तों पर जो नागवार इब्तिलाओं और ख़ुश आइन्द आसाइशों को लेकर अहले ज़मीन की जानिब तेरे फ़र्सतादा हैं और उन पर जो आमाल का अहाता करने वाले गरामी मन्ज़िलत और नेकोकार हैं और उन पर जो निगेहबानी करने वाले करामन कातेबीन हैं और मलके अमलूत और उसके आवान व अन्सार और मुनकिर नकीर और अहले क़ुबूर की आज़माइश करने वाले रूमान पर और बैतुलउमूर का तवाफ़ करने वालों पर और मालिक और जहन्नम के दरबानों पर और रिज़वान और जन्नत के दूसरे पासबानों पर और उन फ़रिश्तों पर जो ख़ुदा के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म उन्हें दिया जाता है उसे बजा लाते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो (आख़ेरत में) सलाम अलैकुम के बाद कहेंगे के दुनिया में तुमने सब्र किया (यह उसी का बदला है) देखो तो आख़ेरत का घर कैसा अच्छा है और दोज़ख़ के उन पासबानों पर के जब उनसे कहा जाएगा के उसे गिरफ़्तार करके तौक़ व ज़न्जीर पहना दो फिर उसे जहन्नुम में झोंक दो तो वह उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ेंगे और उसे ज़रा मोहलत न देंगे।

और हर उस फ़रिश्ते पर जिसका नाम हमने नहीं लिया और न हमें मालूम है के उसका तेरे हाँ क्या मरतबा है और यह के तूने किस काम पर उसे मुअय्यन किया है और हवा, ज़मीन और पानी में रहने वाले फ़रिश्तों पर और उन पर जो मख़लूक़ात पर मुअय्यन हैं उन सब पर रहमत नाज़िल कर उस दिन के जब हर शख़्स इस तरह आएगा के उसके साथ एक हंकाने वाला होगा और एक गवाही देने वाला और उन सब पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जो उनके लिये इज़्ज़त बालाए इज़्ज़त और तहारत बालाए तहारत का बाएस हो। ऐ अल्लाह! जब तू अपने फ़रिश्तों और रसूलों पर रहमत नाज़िल करे और हमारे सलवात व सलाम को उन तक पहुंचाए तो हम पर भी अपनी रहमत नाज़िल करना इसलिये के तूने हमें उनके ज़िक्रे ख़ैर की तौफ़ीक़ बख़्शी। बेशक तू बख़्शने वाला और करीम है।

Discussion

इस दुआ में इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रिश्तों और मला, आला के रहने वालों पर दुरूदो सलवात के सिलसिले में उनके औसाफ़ व इक़साम और मेज़ारज और तबक़ात का ज़िक्र फ़रमाया है और यह हक़ीक़त है के मलाएका के बारे में वही कुछ कह सकता है जिसकी निगाहें आलमे मलकूत की मन्ज़िलों से आशना हों। चुनान्चे इस सिलसिले में सबसे पहले जिसने तफ़सील से रोशनी डाली वह हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलात वस्सलाम हैं और इसके लिये आपके ख़ुतबात शाहिद हैं जिनमें मलाएका के सूर व इशकाले सिफ़ात व ख़ुसूसियात और अल्लाह से उनकी वालेहाना मोहब्बत व शीफ़्तगी और उनकी इबादत व दारफ़्तगी की मुकम्मल तस्वीरकशी की है। जिसकी नज़ीर न अगलों के कलाम में मिलती है न पिछलों के इस्लाम से क़ब्ल अगरचे कुछ अफ़राद ऐसे मौजूद थे जो हक़ाएक़ व मआरिफ़ से वाबस्तगी रखते थे। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम, उमय्या इब्ने अबुलसलत, दरक़ा इब्ने नोफ़ल, क़लस बिन्दे साअद, अकशम इब्ने सैफ़ी वग़ैरा। मगर इस सिलसिले में वह ज़बान व क़लम को हरकत न दे सके और अगर कुछ कहते भी तो वह तर्ज़े बयान और कलाम पर इक़्तेदार उन्हें कहां नसीब था जो परवरदाए आग़ोशे नबूवत अमीरूल मोमेनीन (अ0) को हासिल था। और दूसरे अदबा व शोअराए अरब थे तो उनका मौज़ूए कलाम अमूमन घोड़ा, बैल, गाय, ऊँट वग़ैरा होता था या हर्ब व पैकार के ख़ूनी हंगामों और ख़ुदसेताई व तफ़ाख़ुर के तज़किरों पर मुश्तमिल होता था या उसमें बादोबारां के मनाज़िरे इश्क़ व मोहब्बत के वारदात और खण्डरों और वीरानों के निशानात  का ज़िक्र था और माद्दियात से बलन्दतर चीज़ों तक उनके ज़ेहनों की रसाई ही न थी के उनके मुताल्लिक़ वह कुछ कह सकते अगरचे वह फ़रिश्तों के वजूद के क़ायल थे मगर उन्हें ख़ुदा की चहेती और लाडली बेटियां तसव्वुर किया करते थे, चुनांचे क़ुराने मजीद में उनके ग़लत अक़ीदे का तज़किरा इस तरह हैः- फ़स तफ़तहुम..........शाहेदून ((ऐ रसूल (स0)! इनसे पूछो के क्या तुम्हारे परवरदिगार की बेटियां हैं और उनके बेटे हैं, क्या हमने फ़रिश्तों को तबक़ुन्नास से पैदा किया तो वह देख रहे थे।)

अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के बाद हज़रत अली बिन अलहुसैन अलैहिस्सलाम ने मलाएका के असनाफ़, उनके दरजात व मरातेब के तफ़ावत और उनके फ़राएज़ व मुज़ाहेरए उबूदियत पर तफ़सील से रोशनी डाली है।

मज़ाहेबे आलम में फ़रिश्तों के मुताल्लिक़ मुख़्तलिफ़ नज़रिये पाए जाते हैं। कुछ तो उन्हें नूर का मज़हर क़रार देते हैं और कुछ साद सितारों को मलाएका रहमत और नहस सितारों को मलाएकाए अज़ाब तसव्वुर करते हैं और कुछ का ख़याल है के वह अक़ूले मजरूह व नुफ़ूसे फ़लकिया हैं और कुछ का मजऊमा यह है के वह तबाए व क़वा हैं या देफ़ा व जज़्ब की क़ूवतें हैं। और फिर जो उन्हें किसी मुस्तक़िल हैसियत से मानते हैं उनमें भी इख़्तेलाफ़ात हैं के आया वह रूहानी महज़ हैं या जिस्मानी महज़ या जिस्म व रूह से मुरक्कब हैं, और अगर जिस्मानी हैं तो जिस्मे लतीफ़ रखते हैं या जिस्मे ग़ैर लतीफ़, और लतीफ़ हैं तो अज़ क़बीले नूर हैं या अज़ क़बीले हवा, या इनमें से बाज़ अज़ क़बीले नूर हैं और बाज़ अज़ क़बीले हवा। बहरहाल इनकी हक़ीक़त कुछ भी हो हमें यह अक़ीदा रखना लाज़िम है के वह अल्लाह की एक ज़ी अक़्ल मख़लूक़ हैं जो गुनाहों से बरी और अम्बिया व रसूल की जानिब इलाही एहकाम के पहचानने पर मामूर हैं, चुनांचे इन पर ईमान लाने के सिलसिले में क़ुदरत का इरशाद है-- आमनुर्रसूल.......... व मलाएकते  (हमारे) पैग़म्बर (स0) जो कुछ उन पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाए और मोमेनीन भी सब के सब ख़ुदा पर और उसके फ़रिश्तों पर ईमान लाए।

हज़रत (अ0) ने इस दुआ में दस फ़रिश्तों को नाम के साथ याद किया है जो यह हैं-  जिबरील (अ0), मीकाईल (अ0), इसराफ़ील (अ0), मलकुल मौत (इज़राईल) (अ0), रूह (अलक़ुद्स)(अ0),  मुन्किर (अ0), नकीर (अ0), रूमान (अ0), रिज़वान (अ0), मालिक (अ0)। इनमें पहले चार फ़रिश्ते जिनके नाम का आखि़री जुज़ ईल है जिसके मानी इबरानी या सुरयानी ज़बान में ‘‘अल्लाह’’ के होते हैं, सब मलाएका से अफ़ज़ल व बरतर हैं, और मीकाईल (अ0), के मुताल्लिक़ यह भी कहा गया है के यह कील से मुश्तक़ हैं जिसके मानी नापने के होते हैं और यह चूंके पानी की पैमाइश पर मुअय्यन हैं इसलिये इन्हें मीकाईल कहा जाता है। इस सूरत में उनके नाम का आखि़री जुज़ ईल मबनी ‘‘अल्लाह’ नहीं होगा। और रूह के मुताल्लिक़ मुख़्तलिफ़ रिवायात हैं बाज़ रिवायात से यह मालूम होता है के यह एक फ़रिश्ते का नाम है जो तमाम फ़रिश्तों से ज़्यादा क़द्र व मन्ज़िलत का मालिक है और बाज़ रिवायात से यह ज़ाहिर होता है के जिबरील (अ0) ही का दूसरा नाम रूह है और बाज़ रिवायात में यह है के रूह एक नौअ है जिसका कशीरूत्तादाद मलाएका पर इतलाक़ होता है और मुनकिर नकीर और रूमान क़ब्र के सवाल व जवाब से ताल्लुक़ रखते हैं। चुनान्चे रूमान, मुनकिर नकीर से पहले क़ब्र में आता है और हर आदमी को जांचता है और फिर मुनकिर व नकीर को उसकी अच्छाई या बुराई से आगाह करता है और रिज़वान जन्नत के पासबानों का उ0प्र0 राज्य सेतु निगम लि0 व रईस और मालिके जहन्नम के दरबानों का सरख़ील है जिनकी तादाद अनीस है। चुनांचे क़ुदरत का इरशाद है- ‘‘व अलैहा तसअता अश्र’’ जहन्नुम पर अनीस फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं। उनके अलावा जब ज़ैल असनाफ़े मलाएका का तज़किरा फ़रमाया है-

1. हामेलाने अर्श - यह वह फ़रिश्ते हैं जो अर्शे इलाही को उठाए हुए हैं चुनांचे उनके मुताल्लिक़ इरशादे इलाही है - ‘‘अल्लज़ीना ............. बेहम्बे रब्बेहिम’’ (जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए हैं और जो उसके गिर्दागिर्द हैं, अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तस्बीह करते हैं।’’
2. मलाएकाए हजबः इससे मुराद वह फ़रिश्ते हैं जो इस आलमे अनवार व तजल्लियात से ताल्लुक़ रखते हैं जिसके गिर्द सरादक़ जलाल व हिजाबे अज़मत के पहले हैं और इन्सानी इल्म व इदराक से बालातर हैं।
3. मलाएकाए समावात- इससे मुराद वह फ़रिश्ते हैं जो तबक़ाते आसमानी में पाए जाते हैं, चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘व अना.......... शदीद......’’ (हमने आसमानों को टटोला तो उसे क़वी निगहबानों से भरा हुआ पाया।)
4. मलाएकाए रूहानेयीन- इससे मुराद वह फ़रिश्ते हैं जो आसमाने हफ़्तुम में हज़ीरतुल क़ुद्स के अन्दर मुक़ीम हैं और शबे क़द्र में ज़मीन पर उतरते हैं, चुनान्चे इरशादे इलाही है-  ‘‘तनज़्ज़लुल मलाएकतो............. कुल्ले अम्र’’ (इस रात फ़रिश्ते और रूह (अल क़ुद्स) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार की इजाज़त से उतरते हैं)
5. मलाएकाए मुक़र्रेबीन- यह वह फ़रिश्ते हैं जिन्हें बारगाहे इलाही में ख़ास तक़र्रूब हासिल है और उन्हें कर्रोबय्यन से भी याद किया जाता है जो कर्ब मबनी क़र्ब से माख़ोज है। इनके मुताल्लिक़ इरशादे क़ुदरत है - ‘‘लन यसतनकफ़................. मलाएकतल मुक़र्रबून’’ (मसीह अ0 को इसमें आर नही ंके वह अल्लाह का बन्दा हो और न उसके मुक़र्रब फ़रिश्तों को)
6. मलाएकाए रस्ल - यह वह फ़रिश्ते हैं जो पैग़ाम्बरी का काम अन्जाम देने पर मामूर हैं- चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘अल्हम्दो लिल्लाह.................. मलाएकतेरसला’’ (सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिये जो आसमान व ज़मीन का बनाने वाला और फ़रिश्तों को अपना क़ासिद बनाकर भेजने वाला है’’
7. मलाएकए मुदब्बेरात - यह वह फ़रिश्ते हैं जो अनासिरे बसीत व एहसामे मुरक्कबा जैसे पानी, हवा, बर्क़, बादो बाराँ, रअद और जमादात व नबातात व हैवान पर मुक़र्रर हैं। चुनान्चे क़ुरआन मजीद में है ‘‘ फलमुदब्बेराते अमरन’’ (उन फ़रिश्तों की क़सम जो उमूरे आलम के इन्तेज़ाम में लगे हुए हैं) फिर इरशाद है- ‘‘वज़्ज़ाजेराते ज़जरन’’ (झिड़क कर डाँटने वालों की क़सम)। इब्ने अब्बास का क़ौल है के इससे वह फ़रिश्ते मुराद हैं जो बादलों पर मुक़र्रर हैं।
8. मलाएकाए हिफ़्ज़ा - यह वह फ़रिश्ते हैं जो अफ़रादे इन्सानी की हिफ़ाज़त पर मामूर हैं, चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘लह ...............अम्रिल्लाह’’ (इसके लिये इसके आगे और पीछे हिफ़ाज़त करने वाले फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं जो ख़ुदा के हुक्म से उसकी हिफ़ाज़त व निगरानी करते हैं)
9. मलाएकए कातेबीन- वह फ़रिश्ते जो बन्दों के आमाल ज़ब्ते तहरीर में लाते हैं। चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है (जब वह कोई काम करता है तो दो लिखने वाले जो उसके दाएं, बाएं हैं लिख लेते हैं और वह कोई बात नहीं कहता मगर एक निगराँ उसके पास तैयार रहता है)
10. मलाएकए मौत- वह फ़रिश्ते जो मौत का पैग़ाम लाते और रूह को क़ब्ज़ करते हैं, चुनान्चे इरशादे इलाही है -( उन फ़रिश्तों की क़सम जो ढूब कर इन्तेहाई शिद्दत से काफ़िरों की की रूह खींच लेते हैं, और उनकी क़सम जो बड़ी आसानी से मोमिनों की रूह क़ब्ज़ करते हैं’’)
11. मलाएकाए ताएफ़ीन - वह फ़रिश्ते जो अर्श और अर्श के नीचे बैतुल मामूर का तवाफ़ करते रहते हैं चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है ‘‘वतरी..... अर्श’’ (तुम अर्श के गिर्दागिर्द फ़रिश्तों को घेरा डाले हुए देखोगे)
12. मलाएकाए हश्र- वह फ़रिश्ते जो मैदाने हश्र में इन्सानों को लाएंगे और उनके आमाल व अफ़आल की गवाही देंगे, चुनांचे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘वजाअत ................ शहीद’’ (और हर शख़्स हमारे पास आएगा और इसके साथ एक फ़रिश्ता हंकाने वाला और एक आमाल की शहादत देने वाला होगा)
13. मलाएकाए जहन्नुम -वह फ़रिश्ते जो दोज़ख़ की पासबानी पर मुक़र्रर हैं चुनांचे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘ अलैहा.................शद्ाद’’ (जहन्नुम पर वह फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं जो तन्द ख़ू और तेज़ मिज़ाज हैं)
14. मलाएकाए बहिश्त- वह फ़रिश्ते जो जन्नत के दरवाज़ों पर मुक़र्रर हैं, चुनांचे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘हत्ता................................ ख़ालेदीन’’ (यहाँ तक के ज बवह जन्नत के पास पहुंचेंगे और उसके दरवाज़े खोल दिये जाएंगे और उसके निगेहबान उनसे कहेंगे सलाम अलैकुम तुम ख़ैर व ख़ूबी से रहे लेहाज़ा बहिश्त में हमेशा के लिये दाखि़ल हो जाओ)

यह वह असनाफ़े मलाएका हैं जिनका इस दुआ में तज़किरा है और इनके अलावा और कितने एक़साम व असनाफ़ हैं तो उनका अहाता अल्लाह के सिवा कौन कर सकता है - (तुम्हारे परवरदिगार के लश्करों को उसके अलावा कोई नहीं जानता)


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