Tuesday 10 January 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 5th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


पांचवी दुआ
अपने लिये और अपने दोस्तों के लिये हज़रत की दुआः-

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

ऐ वह जिसकी बुज़ुर्गी व अज़मत के अजाएब ख़त्म होने वाले नहीं। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें अपनी अज़मत के परदों में छुपाकर कज अन्देशियों से बचा ले। ऐ वह जिसकी शाही व फ़रमाँरवाई की मुद्दत ख़त्म होने वाली नहीं तू रहमत नाज़िल कर मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमारी गर्दनों को अपने ग़ज़ब व अज़ाब (के बन्धनों) से आज़ाद रख। ऐ वह जिसकी रहमत के ख़ज़ाने ख़त्म होने वाले नहीं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी रहमत में हमारा भी हिस्सा क़रार दे। ऐ वह जिसके मुशाहिदे से आँखें क़ासिर हैं, रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी बारगाह से हमको क़रीब कर ले। ऐ वह जिसकी अज़मत के सामने तमाम अज़मतें पस्त व हक़ीर हैं, रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें अपने हाँ इज़्ज़त अता कर। ऐ वह जिसके सामने राज़हाए सरबस्ता ज़ाहिर हैं रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें अपने सामने रूसवा न कर। बारे इलाहा! हमें अपनी बख़्शिश व अता की बदौलत बख़्शिश करने वालों की बख़्शिश से बेनियाज़ कर दे और अपनी पोस्तगी के ज़रिये क़तअ ताअल्लुक़ करने वालों की बेताअल्लुक़ी व दूरी की तलाफ़ी कर दे ताके तेरी बख़्शिष व अता के होते हुए दूसरे से सवाल न करें और तेरे फ़ज़्ल व एहसान के होते हुए किसी से हरासाँ न हों। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे नफ़े की तदबीर कर और हमारे नुक़सान की तदबीर न कर और हमसे मक्र करने वाले दुश्मनों को अपने मक्र का निशाना बना और हमें उसकी ज़द पर न रख। और हमें दुश्मनों पर ग़लबा दे, दुश्मनों को हम पर ग़लबा न दे। बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें अपने नाराज़गी से महफ़ूज़ रख और अपने फ़ज़्ल व करम से हमारी निगेहदाश्त फ़रमा और अपनी जानिब हमें हिदायत कर और अपनी रहमत से दूर न कर के जिसे तू अपनी नाराज़गी से बचाएगा वही बचेगा। और जिसे तू हिदायत करेगा वही (हक़ाएक़ पर) मुत्तेलअ होगा और जिसे तू (अपनी रहमत से) क़रीब करेगा वही फ़ायदे में रहेगा। ऐ माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें ज़माने के हवादिस की सख़्ती और शैतान के हथकण्डों की फ़ित्ना अंगेज़ी और सुलतान के क़हर व ग़लबे की तल्ख़ कलामी से अपनी पनाह में रख। बारे इलाहा! बेनियाज़ होने वाले तेरे ही कमाले क़ूवत व इक़्तेदार के सहारे बे नियाज़ होते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें बेनियाज़ कर दे और अता करने वाले तेरी ही अता व बख़्शिश के हिस्सए दाफ़र में से अता करते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें भी (अपने ख़ज़ानए रहमत से) अता फ़रमा। और हिदायत पाने वाले तेरी ही ज़ात की दर की दरख़्शिन्दगियों से हिदायत पाते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें हिदायत फ़रमा। बारे इलाहा! जिसकी तूने मदद की उसे मदद न करने वालों का मदद से महरूम रखना कुछ नुक़सान नहीं पहुंचा सकता और जिसे तू अता करे उसके हाँ रोकने वालों के रोकने से कुछ कमी नहीं हो जाती। और जिसकी तू ख़ुसूसी हिदायत करे उसे गुमराह करने वालों का गुमराह करना बे राह नहीं कर सकता। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपने ग़लबे व क़ूवत के ज़रिये बन्दों (के शर) से हमें बचाए रख और अपनी अता व बख़्शिश के ज़रिये दूसरों से बेनियाज़ कर दे और अपनी रहनुमाई से हमें राहे हक़ पर चला। ऐ माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे दिलों की सलामती अपनी अज़मत की याद में क़रार दे और हमारी जिस्मानी फ़राग़त (के लम्हों) को अपनी नेमत के शुक्रिया में सर्फ़ कर दे और हमारी ज़बानों की गोयाई को अपने एहसान की तौसीफ़ के लिये वक़्फ़ कर दे ऐ अल्लाह! तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें उन लोगों में से क़रार दे जो तेरी तरफ़ दावत देने वाले और तेरी तरफ़ का रास्ता बताने वाले हैं और अपने ख़ासुल ख़ास मुक़र्रेबीन में से क़रार दे ऐ सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले।




यह दुआ जिसकी इब्तिदा अज़मते इलाही के तज़किरे से है बन्दों को अल्लाह की अज़मत व रिफ़अत के आगे झुकने और सिर्फ़ उसी से सवाल करने की तालीम देती है। अगर इन्सान हर दरवाज़े से अपनी हाजतें वाबस्ता करेगा तो यह चीज़ इज़्ज़ते नफ़्स व ख़ुददारी के मनाफ़ी होने के अलावा ज़ेहनी इन्तेशार का बाएस बन कर उसे हमेशा परेशानियों और उलझनों में मुब्तिला रखेगी और जो शख़्स क़दम-क़दम पर दूसरों का सहारा सहारा ढूंढता है और हर वक़्त यह आस लगाए बैठा है के यह मक़सद फ़लाँ से पूरा होगा और यह काम फ़लाँ शख़्स के ज़रिये अन्जाम पाएगा तो कभी किसी की चौखट पर झुकेगा और कभी किसी के आस्ताने पर सरे नियाज़ ख़म करेगा, कभी किसी से तवक़्क़ो रखेगा और कभी किसी से उम्मीद बांधेगा। कहीं मायूसी का सामना होगा कहीं ज़िल्लत का और नतीजे में ज़ेहन मुनतशिर और ख़यालात परागन्दा हो जाएंगे। न सूकूने क़ल्ब नसीब होगा न ज़ेहनी यकसूई हासिल होगी और उसकी तमाम उम्मीदों, आरज़ूओं और हाजतों का एक ही महवर हो तो वह अपने को इन्तेशारे ज़ेहनी से बचा ले जा सकता है। उसे यूँ समझना चाहिये के अगर कोई शख़्स छोटी-छोटी रक़मों का बहुत से आदमियों का मक़रूज़ हो और सुबह से शाम तक उसे मुख़्तलिफ़ क़र्ज़ ख़्वाहों से निमटना पड़ता हो तो वह यह चाहेगा के मुताअद्दद आदमियों का मक़रूज़ होने के बजाए एक ही आदमी का मक़रूज़ हो। अगरचे उससे क़़र्ज़े की मिक़दार में कमी वाक़े नहीं होगी मगर मुताअद्दद क़र्ज़ ख़्वाहों के तक़ाज़ों से तो बच जाएगा। अब तक़ाज़ा होगा तो एक का और ज़ेरबारी होगी तो एक की। और अगर यह मालूम हो के वह क़र्ज़ ख़्वाह या वह तक़ाज़ा करने वाला नहीं है और न होने की सूरत में दरगुज़र करने वाला भी है तो उससे ज़ेहनी बार और हलका हो जाएगा। इसी तरह अगर कोई अपनी हाजतों और तलबगारियों का एक ही मरकज़ क़रार दे ले और सिर्फ़ उसी से अपने तवक़्क़ोआत वाबस्ता कर ले और तमाम मुतफ़र्रिक़ व पाशाँ और नाक़ाबिले इत्मीनान मरकज़ों से रूख़ मोड़ ले तो उसके नतीजे में ज़ेहनी आसूदगी हासिल कर सकता है और दिल व दिमाग़ को परेशान ख़याली से बचा ले जा सकता है। गोया के वह मुताअद्दद क़र्ज़ख़्वाहों के चंगुल से छूटकर अब सिर्फ़ एक का ज़ेरेबार और हलक़ा बगोश है।-

 ‘‘इक दर पे बैठ गर है तवक्कल करीम पर,, अल्लाह के फ़क़ीर को फेरा न चाहिये’’

इस दुआ में हर जुमले के बाद दुरूद की तकरार इस्तेजाबते दुआ के लिये है क्योंके दुआ में मोहम्मद (स0) व आले मोहम्मद (अ0) पर दुरूद भेजना इस्तेजाबते दुआ का ज़िम्मेदार और इसकी मक़बूलियत का ज़ामिन है और वह दुआ जिसका तकमिला दुरूद न हो वह बाबे क़ुबूलियत तक नहीं पहुंचती। चुनांचे इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम का इरशाद हैः-  ‘‘दुआ उस वक़्त तक रूकी रहती है जब तक मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर दुरूद न भेजा जाए’’।

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