Wednesday 8 February 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 10th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

 दसवीं दुआ
अल्लाह तआला से पनाह तलब करने के सिलसिले में हज़रत (अ0) की दुआ 
बारे इलाहा! अगर तू चाहे के हमें माफ़ कर दे तो यह तेरे फ़ज़्ल के सबब से है और अगर तू चाहे के हमें सज़ा दे तो यह तेरे अद्ल की रू से है। तू अपने शेवए एहसान के पेशे नज़र हमें पूरी माफ़ी दे और हमारे गुनाहों से दरगुज़र करके अपने अज़ाब से बचा ले। इसलिये के हमें तेरे अद्ल की ताब नहीं है और तेरे अफ़ो के बग़ैर हम में से किसी एक की भी निजात नहीं हो सकती।
ऐ बे नियाज़ों के बे नियाज़! हाँ तो फिर हम सब तेरे बन्दे हैं जो तेरे हुज़ूर खड़े हैं। और मैं सब मोहताजों से बढ़ कर तेरा मोहताज हूँ। लेहाज़ा अपने भरे ख़ज़ाने से हमारे दामने फ़क्ऱ व एहतियाज को भर दे, और अपने दरवाज़े से रद्द करके हमारी उम्मीदों को क़तअ न कर, वरना जो तुझसे ख़ुशहाली का तालिब था वह तेरे हाँ से हरमाँनसीब होगा और जो तेरे फ़ज़्ल से बख़्शिश व अता का ख़्वास्तगार था वह तेरे दर से महरूम रहेगा।
तो अब हम तुझे छोड़कर किसके पास जाएँ और तेरा दर छोड़कर किधर का रूख़ करें। तू इससे मुनज़्ज़ा है (के हमें ठुकरा दे जबके) हम ही वह आजिज़ व बेबस हैं जिनकी दुआएं क़ुबूल करना तूने अपने ऊपर लाज़िम कर लिया है और वह दर्दमन्द हैं जिनके दुख दूर करने का तूने वादा किया है, और तमाम चीज़ों में तेरे मक़तज़ाए मशीयत के मनासिब और तमाम उमूर में तेरी बुज़ुर्गी व अज़मत के शायान यह है के तुझसे रहम की दरख़्वास्त करे तू उस पर रहम फ़रमाए और जो तुझसे फ़रयादरसी चाहे तू उसकी फ़रयाद रसी करे। तू अब अपनी बारगाह में हमारी तज़र्रूअ वज़ारी पर रहम फ़रमा। और जबके हमने अपने को तेरे आगे (ख़ाके मुज़ल्लत पर) डाल दिया है तो हमें (फ़िक्र व ग़म से) निजात दे।
बारे इलाहा! जब हमने तेरी मासीयत में शैतान की पैरवी की तो उसने (हमारी इस कमज़ोरी पर)  इज़हारे मसर्रत किया। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आले (अ0) अतहर पर दुरूद भेज। और जब हमने तेरी ख़ातिर उसे छोड़ दिया और उससे रूगर्दानी करके तुझसे लौ लगा चुके हैं तो कोई ऐसी उफ़ताद न पड़े के वह हम पर शमातत करे।’’

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