दुआ-9
तलबे मग़फ़ेरत के इश्तियाक़ में हज़रत (अ0) की दुआ
ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमारी ताज्जो उस तौबा की तरफ़ मबज़ूल कर दे जो तुझे पसन्द है और गुनाह के इसरार से हमें दूर रख जो तुझे नापसन्द है। बारे इलाहा! जब हमारा मौक़ूफ़ कुछ ऐसा हो के (हमारी किसी कोताही के बाएस) दीन का ज़याल होता हो या दुनिया का तू नुक़सान (दुनिया में) क़रार दे के जो जल्द फ़ना पज़ीद है आर अफ़ो व दरगुज़र को (दीन के मामले में) क़रार दे जो बाक़ी व बरक़रार रहने वाला है और जब हम ऐसे दो कामों का इरादा करें के इनमें से एक तेरी ख़ुशनूदी का और दूसरा तेरी नाराज़ी का बाएस हो तो हमें उस काम की तरफ़ माएल करना जो तुझे ख़ुश करने वाला हो और उस काम से हमें बे दस्त-व-पा कर देना जो तुझे नाराज़ करने वाला हो। और इस मरहले पर हमें इख़्तेयार देकर आज़ाद न छोड़ दे, क्योंकर नफ़्स तो बातिल ही को एख़्तेयार करने वाला है, मगर जहाँ तेरी तौफ़ीक़ शामिले हाल हो और बुराई का हुक्म देने वाला है मगर जहाँ तेरा रहम कारफ़रमा हो।
बारे इलाहा! तूने हमें कमज़ोर और सुस्त बुनियाद पैदा किया है और पानी के एक हक़ीर क़तरे (नुत्फे) से ख़ल्क़ फ़रमाया है, अगर हमें कुछ वक़्त व तसर्रूफ़ हासिल है तो तेरी क़ूवत की बदौलत, और इख़्तेयार है तो तो तेरी मदद के सहारे से, लेहाज़ा अपनी तौफ़ीक़ से हमारी दस्तगीरी फ़रमा और अपनी रहनुमाई से इस्तेहकाम व क़ूवत बख़्श और हमारे वीदाए दिल को उन बातों से जो तेरी मोहब्बत के खि़लाफ़ हैं नाबीना कर दे और हमारे आज़ा के किसी हिस्से में मासियत के सरायत करने की गुन्जाइश पैदा न कर। बारे इलाहा! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमारे दिल के ख़यालों, आज़ा की जुम्बिशों, आँख के इशारों और ज़बान के कलमों को उन चीज़ों में सर्फ़ करने की तौफ़ीक़ दे जो तेरे सवाब का बाएस होँ यहाँ तक के हमसे कोई ऐसी नेकी छूटने न पाये जिससे हम तेरे अज्र व सवाब के मुस्तहक़ क़रार पाएँ और न हम में कोई बुराई रह जाए जिससे तेरे अज़ाब के सज़ावार ठहरें।
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