Wednesday 8 February 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 14th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

चौदहवीं दुआ
जब आप पर कोई ज़्यादती होती या ज़ालिमों से कोई नागवार बात देखते तो यह दुआ पढ़ते थे
ऐ वह जिससे फ़रियाद करने वालों की फ़रयादें पोशीदा नहीं हैं। ऐ वह जो उनकी सरगुज़िश्तों के सिलसिले में गवाहों की गवाही का मोहताज नहीं है, ऐ वह जिसकी नुसरत मज़लूमों के हम रकाब और जिसकी मदद ज़ालिमों से कोसों दूर है। ऐ मेरे माबूद! तेरे इल्म में हैं वह ईज़ाएं जो मुझे फ़लाँ इब्ने फ़लाँ से उसके तेरी नेमतों पर इतराने और तेरी गिरफ़्त से ग़ाफ़िल होने के बाएस पहुँची हैं। जिन्हें तूने उस पर हराम किया था और मेरी हतके इज़्ज़त का मुरतकिब हुआ, जिससे तूने उसे रोका था। ऐ अल्लाह रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी क़ूवत व तवानाई से मुझ पर ज़ुल्म करने वाले और मुझसे दुश्मनी करने वाले को ज़ुल्म व सितम से रोक दे और अपने इक़्तेदार के ज़रिये उसके हरबे कुन्द कर दे और उसे अपने ही कामांे में उलझाए रख और जिससे आमादा दुश्मनी है उसके मुक़ाबले में उसे बेदस्त व पा कर दे। ऐ माबूद! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और उसे मुझ पर ज़ुल्म करने की खुली छूट न दे और उसके मुक़ाबले में अच्छे असलूब से मेरी मदद फ़रमा और उसके बुरे कामों जैसे कामों से मुझे महफ़ूज़ रख और उसकी हालत ऐसी हालत न होने दे। ऐ अल्लाह मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और उसके मुक़ाबले में ऐसी बरवक़्त मदद फ़रमा जो मेरे ग़ुस्से को ठण्डा कर दे और मेरे ग़ैज़ व ग़ज़ब का बदला चुकाए। ऐ अल्लाह रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और उसके ज़ुल्म व सितम के एवज़ अपनी मुआफ़ी और उसकी बदसुलूकी के बदले में अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा क्योंके हर नागवार चीज़ तेरी नाराज़गी के मुक़ाबले में हैच है और तेरी नाराज़गी न हो तो हर (छोटी बड़ी) मुसीबत आसान है। बारे इलाहा! जिस तरह ज़ुल्म सहना तूने मेरी नज़रों में नापसन्द किया है, यूँ ही ज़ुल्म करने से भी मुझे बचाए रख। ऐ अल्लाह! मैं तेरे सिवा किसी से शिकवा नहीं करता और तेरे अलावा किसी हाकिम से मदद नहीं चाहता। हाशा के मैं ऐसा चाहूँ तो रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मेरी दुआ को क़ुबूलियत से और मेरे शिकवे को सूरते हाल की तबदीली से जल्दी हमकिनार कर और मेरा इस तरह इम्तेहान न करना के तेरे अद्ल व इन्साफ़ से मायूस हो जाऊँ और मेरे दुश्मन को इस तरह न आज़माना के वह तेरी सज़ा से बेख़ौफ़ होकर मुझ पर बराबर ज़ुल्म करता रहे और मेरे हक़ पर छाया रहे और उसे जल्द अज़ जल्द उस अज़ाब से रू शिनास कर जिससे तूने सितमगारों को डराया धमकाया है और मुझे क़ुबूलियते दुआ का वह असर दिखा जिसका तूने बेबसों से वादा किया है। ऐ अल्लाह मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे तौफ़ीक़ दे के जो सूद-ओ-ज़ियां तूने मेरे लिये मुक़द्दर कर दिया है उसे (बतय्यब ख़ातिर) क़ुबूल करूं और जो कुछ तूने दिया है और जो कुछ लिया है उस पर मुझे राज़ी व ख़ुशनूद रख और मुझे सीधे रास्ते पर लगा और ऐसे काम में मसरूफ़ रख जो आफ़त व ज़ियाँ से बरी हों। ऐ अल्लाह! अगर तेरे नज़दीक मेरे लिये यही बेहतर हो के मेरी दादरसी को ताख़ीर में डाल दे और मुझ पर ज़ुल्म ढाने वाले से इन्तेक़ाम लेने को फ़ैसले के दिन और दावेदारों के महले इजतेमाअ के लिये उठा रखे तो फिर मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल कर और अपनी जानिब से नीयत की सच्चाई और सब्र की पाएदारी से मेरी मदद फ़रमा और बुरी ख़्वाहिश और हरीसों की बेसब्री से बचाए रख और जो सवाब तूने मेरे लिये ज़ख़ीरा किया है और जो सज़ा व उक़ूबत मेरे दुश्मन के लिये मुहय्या की है उसका नक़्शा मेरे दिल में जमा दे और उसे अपने फ़ैसले क़ज़ा व क़द्र पर राज़ी रहने का ज़रिया और अपनी पसन्दीदा चीज़ों पर इत्मीनान व वसूक़ का सबब क़रार दे। मेरी दुआ को क़ुबूल फ़रमा ऐ तमाम जहान के पालने वाले। बेशक तू फ़ज़्ले अज़ीम का मालिक है और तेरी क़ुदरत से कोई चीज़ बाहर नहीं है।

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