Wednesday 8 February 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 13th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.

तेरहवीं दुआ
 ख़ुदावन्द आलम से तलबे हाजात के सिलसिले में हज़रत की दुआ

ऐ माबूद! ऐ वह जो तलबे हाजात की मन्ज़िले मुन्तहा है ऐ वह जिसके यहां मुरादों तक रसाई होती है। ऐ वह जो अपनी नेमतें क़ीमतों के एवज़ फ़रोख़्त नहीं करता और न अपने अतियें को एहसान जताकर मुकद्दर करता है, ऐ वह जिसके ज़रिये बेनियाज़ी हासिल होती है और जिससे बेनियाज़ नहीं रहा जा सकता। ऐ वह जिसकी ख़्वाहिश व रग़बत की जाती है और जिससे मुंह मोड़ा नहीं जा सकता। ऐ वह जिसके ख़ज़ाने तलब व सवाल से ख़त्म नहीं होते और जिसकी हिकमत व मसलेहत को वसाएल व असबाब के ज़रिये तबदील नहीं किया जा सकता। ऐ वह जिससे हाजतमन्दों का रिश्ताए एहतियाज क़ता नहीं होता और जिसे पुकारने वालों की सदा ख़स्ता व मलोल नहीं करती। तूने ख़ल्क़ से बेनियाज़ होने की सिफ़त का मुज़ाहेरा किया है और तू यक़ीनन इनसे बेनियाज़ है और तूने उनकी तरफ़ फ़क्र व एहतियाज की निस्बत दी है और वह बेशक तेरे मोहताज हैं लेहाज़ा जिसने अपने इफ़लास के रफ़ा करने के लिये तेरा इरादा किया और अपनी एहतियाज के दूर करने के लिये तेरा क़स्द किया उसने अपनी हाजत को उसके महल व मुक़ाम से तलब किया और अपने मक़सद तक पहुंचने का सही रास्ता इख़्तेयार किया। और जो अपनी हाजत को लेकर मख़लूक़ात में से किसी एक की तरफ़ मुतवज्जोह हुआ या तेरे अलावा दूसरे को अपनी हाजत बरआरी का ज़रिया क़रार दिया वह हरमाँनसीबी से दो चार और तेरे एहसान से महरूमी का सज़ावार हुआ। बारे इलाहा। मेरी तुझसे एक हाजत है जिसे पूरा करने से मेरी ताक़त जवाब दे चुकी है और मेरी तदबीर व चाराजोई भी नाकाम होकर रह गई है और मेरे नफ़्स ने मुझे यह बात ख़ुशनुमा सूरत में दिखाई के मैं अपनी हाजत को उसके सामने पेश करूँ जो ख़ुद अपनी हाजतें तेरे सामने पेश करता है और अपने मक़ासिद में तुझसे बेनियाज़ नहीं है। यह सरासर ख़ताकारों की ख़ताओं में से एक ख़ता और गुनाहों की लग़्िज़शों में से एक लग़्िज़श थी लेकिन तेरे याद दिलाने से मैं अपनी ग़फ़लत से होशियार हुआ और तेरी तौफ़ीक़ ने सहारा दिया तो ठोकर खाने से संभल गया और तेरी राहनुमाई की बदौलत ग़लत एक़दाम से बाज़ आया और वापस पलट आया और मैंने कहा वाह सुबहान अल्लाह। किस तरह एक मोहताज दूसरे मोहताज से सवाल कर सकता है, और कहां एक रादार दूसरे नादार से रूजू कर सकता है (जब यह हक़ीक़त वाज़ेह हो गई) तो मैंने ऐ मेरे माबूद। पूरी रग़बत के साथ तेरा इरादा किया और तुझ पर भरोसा करते हुए अपनी उम्मीदें तेरे पास लाया हूँ और मैंने इस अम्र को बख़ूबी जान लिया है के मेरी कसीर हाजतें तेरी वुसअते रहमत के सामने हैच हैं, तेरे दामने करम की वुसअत किसी के सवाल करने से तंग नहीं होती और तेरा दस्ते करम अता व बख़्शिश में हर हाथ से बलन्द है। ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपने करम से मेरे साथ तफ़ज़्ज़ल व एहसान की रविश इख़्तेयार और अपने अद्ल से काम लेते हुए मेरे इस्तेहक़ाक़ की रू से फ़ैसला न कर क्योंके मैं पहला वह हाजतमन्द नहीं हूँ जो तेरी तरफ़ मुतवज्जोह हुआ और तूने उसे अता किया हो हालांके वह दर किये जाने का मुस्तहेक़ हो और पहला वह साएल नहीं हूं जिसने तुझसे मांगा हो और तूने उस पर अपना फ़ज़्ल किया हो हालांके वह महरूम किये जाने के क़ाबिल हो। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी दुआ का क़ुबूल करने वाला, मेरी पुकार पर इत्तेफ़ात फ़रमाने वाला, मेरी अज्ज़वज़ारी पर रहम करने वाला और मेरी आवाज़ का सुनने वाला साबित हो और मेरी उम्मीद जो तुझसे वाबस्ता है उसे न तोड़ और मेरा वसीला अपने से क़ता न कर। और मुझे इस मक़सद और दूसरे मक़ासिद में अपने सिवा दूसरे की तरफ़ मुतवज्जोह न होने दे। और इस मक़ाम से अलग होने से पहले मेरी मुश्किल कुशाई और मुआमलात में हुस्ने तक़दीर की कारफ़रमाई से मेरे मक़सद के बर लाने, मेरी हाजत के रवा करने और मेरे सवाल के पूरा करने का ख़ुद ज़िम्मा ले। और मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा। ऐसी रहमत जो दाएमी और रोज़ाफ़्ज़ो हो, जिस का ज़माना ग़ैर मोहतमिम और जिसकी मुद्दत बेपायां हो। और उसे मेरे लिये मुअय्यन और मक़सद बरआरी का ज़रिया क़रार दे। बेशक तू वसीअ रहमत और जूद व करम की सिफ़त का मालिक है। ऐ मेरे परवरदिगार! मेरी कुछ हाजतें यह हैं (इस मक़ाम पर अपनी हाजतें बयान करो, फिर सजदा करो और सजदे की हालत में यह कहो) तेरे फ़ज़्ल व करम ने मेरी दिले जमई और तेरे एहसान ने रहनुमाई की, इस वजह से मैं तुझसे तेरे ही वसीले से मोहम्मद (स0) व आले मोहम्मद अलैहिस्सलातो वस्सलाम के ज़रिये सवाल करता हूं के मुझे (अपने दर से) नाकाम व नामुराद न फेर।

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