अठारहवीं दुआ
जब कोई मुसीबत बरतरफ़ होती या कोई हाजत पूरी होती तो यह दुआ पढ़ते
ऐ अल्लाह! तेरे ही लिये हम्दो सताइश है तेरे बेहतरीन फै़सले पर और इस बात पर के तूने बलाओं का रूख़ मुझसे मोड़ दिया। तू मेरा हिस्सा अपनी रहमत में से सिर्फ़ उस दुनियवी तन्दरूस्ती में मुनहसिर न कर दे के मैं अपनी इस पसन्दीदा चीज़ की वजह से (आख़ेरत की) सआदतों से महरूम रहूँ और दूसरा मेरी नापसन्दीदा चीज़ की वजह से ख़ूशबख़्ती व सआदत हासिल कर ले जाए और अगर यह तन्दरूस्ती के जिसमें दिन गुज़ारा है या रात बसर की है किसी लाज़वाल मुसीबत का पेशख़ेमा और किसी दाएमी वबाल की तम्हीद बन जाए तो जिस (रहमत व अन्दोह) को तूने मोअख़्ख़र किया है उसे मुक़द्दम कर दे और जिस (सेहत व आफ़ियत को मुक़द्दम किया उसे मोअख़्ख़र कर दे क्योंके जिस चीज़ का नतीजा फ़ना हो वह ज़्यादा नहीं और जिसका अन्जाम बक़ा हो वह कम नहीं। ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा।
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