Thursday 20 September 2012

sahifa-e-kamila--sajjadia-64th-dua--urdu-tarjuma-in-hindi--by-imam-zainul-abedin-a.s



चौसठवीं दुआ
दुआए रोज़े सेशम्बा


सब तारीफ़ अल्लाह के लिये है और वही तारीफ़ का हक़दार और वही इसका मुस्तहेक़ है। ऐसी तारीफ़ जोकसीर व फ़रावां हो और मैं अपने ज़मीर की बुराई से उसके दामन में पनाह मांगता हूं और बेशक नफ़्स बहुत ज़्यादा बुराई पर उभारने वाला है मगर यह के मेरा परवरदिगार रहम करे और मैं अल्लाह ही के ज़रिये इस शैतान के शर व फ़साद से पनाह चाहता हूं जो मेरे लिये गुनाह पर गुनाह बढ़ाता जा रहा है और मैं हर सरकश, बदकार और ज़ालिम बादशाह और चीरादस्त दुश्मन से उसके दामने हिमायत में पनाह गुज़ीन हूं।
बारे इलाहा! मुझे अपने लश्कर में क़रार दे क्योंके तेरा लश्कर ही ग़ालिब व फ़तेहमन्द है और मुझे अपने गिरोह में क़रार दे क्योंके तेरा गिरोह ही हर लेहाज़ से बेहतरी पाने वाला है और मुझे अपने दोस्तों में से क़रार दे क्योंके तेरे दोस्तों को न कोई अन्देशा होता है और न वह अफ़सर्दा व ग़मगीन होते हैं। ऐ अल्लाह! मेरे लिये मेरे दीन को आरास्ता कर दे इसलिये के वह मेरे हर मामले में हिफ़ाज़त का ज़रिया है और मेरी आख़ेरत को भी संवार दे क्योंके वह मेरी मुस्तक़िल मन्ज़िल और दिनी व फ़रोमाया लोगों से (पीछा छुड़ाकर) निकल भागने की जगह है और मेरी ज़िन्दगी को हर नेकी में इज़ाफ़े का बाएस और मेरी मौत को हर रन्ज व तकलीफ़ से राहत व सुकून का ज़रिया क़रार दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) जो नबीयों (अ0) के ख़ातम और पैग़म्बरों के सिलसिले के फ़र्दे आखि़र हैं उन पर और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ0) और बरगुज़ीदा असहाब पर रहमत नाज़िल फरमा और मुझे इस रोज़े सेशम्बाा में तीन चीज़ें अता फ़रमा। वह यह के मेरे किसी गुनाह को बाक़ी न रहने दे मगर यह के उसे बख़्श दे, और न किसी ग़म को मगर यह के उसे बरतरफ़ कर दे और न किसी दुश्मन को मगर यह के उसे दूर कर दे। बिस्मिल्लाह के वास्ते से जो (अल्लाह तआला के) तमाम नामों में से बेहतर नाम (पर मुश्तमिल) है और अल्लाह तआला के नाम के वास्ते से जो ज़मीन व आसमान का परवरदिगार है, मैं तमाम नापसन्दीदा चीज़ों का दफ़िया चाहता हूं। जिनमें अव्वल दर्जे पर उसकी नाराज़गी है और तमाम पसन्दीदा चीज़ों को समेट लेना चाहता हूं। जिनमें सबसे मुक़द्दम उसकी रज़ामन्दी है ऐ फ़ज़्ल व एहसान के मालिक तू अपनी जानिब से मेरा ख़ातेमा बख़्शिश व मग़फ़ेरत पर फ़रमा।

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