Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 29th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


 उन्तीसवीं दुआ
जब रिज़्क़ की तंगी होती तो यह दुआ पढ़ते
 
 
ऐ अल्लाह! तूने रिज़्क़ के बारे में बेयक़ीनी से और ज़िन्दगी के बारे में तूले अमल से हमारी आज़माइश की है। यहाँ तक के हम उनसे रिज़्क़ तलब करने लगे जो तुझसे रिज़्क़ पाने वाले हैं और उम्र रसीदा लोगों की उम्रे देखकर हम भी दराज़िए उम्र की आरज़ूएं करने लगे। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें ऐसा पुख़्ता यक़ीन अता कर जिसके ज़रिये तो हमें तलब व जुस्तजू की ज़हमत से बचा ले और ख़ालिस इत्मीनानी कैफ़ियत हमारे दिलों में पैदा कर दे जो हमें रंज व सख़्ती से छुड़ा ले और वही के ज़रिये जो वाज़ेह और साफ़ वादा तूने फ़रमाया है और अपनी किताब में उसके साथ साथ क़सम भी खाई है। उसे इस रोज़ी के एहतेमाम से जिसका तू ज़ामिन है। सुबुकदोशी का सबब क़रार दे और जिस रोज़ी का ज़िम्मा तूने लिया है उसकी मशग़ूलियतों से अलाहेदगी का वसीला बना दे। चुनांचे तूने फ़रमाया है और तेरा क़ौल हक़ और बहुत सच्चा है और तूने क़सम खाई है और तेरी क़सम सच्ची और पूरी होने वाली है के ‘‘तुम्हारी रोज़ी और वह जिसका तुमसे वादा किया जाता है आसमान में है’’ फिर तेरा इरशाद हैः- "ज़मीन व आसमान के मालिक की क़सम यह अम्र यक़ीनी व क़तई है जैसे यह के तुम बोल रहे हो।’’

No comments:

Post a Comment