Thursday 20 September 2012

sahifa-e-kamila sajjadia 42nd dua urdu tarjuma-in-hindi--by-imam-zainul-abedin-a.s..html



बयालीसवीं दुआ
दुआए ख़त्मुल क़ुरान


बारे इलाहा! तूने अपनी किताब के ख़त्म करने पर मेरी मदद फ़रमाई। वह किताब जिसे तूने नूर बनाकर उतारा और तमाम किताबे समाविया पर उसे गवाह बनाया और हर उस कलाम पर जिसे तूने बयान फ़रमाया उसे फ़ौक़ीयत बख़्शी और (हक़ व बातिल में) हद्दे फ़ासिल क़रार दिया जिसके ज़रिये हलाल व हराम अलग-अलग कर दिया। वह क़ुरान जिसके ज़रिये शरीयत के एहकाम वाज़ेह किये वह किताब जिसे तूने अपने बन्दों के लिये शरह व तफ़सील से बयान किया और वह वही (आसमानी) जिसे अपने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे वालेहीवसल्लम पर नाज़िल फ़रमाया जिसे वह नूर बनाया जिसकी पैरवी से हम गुमराही व जेहालत की तारीकियों हिदायत हासिल करते हैं और उस शख़्स के लिये शिफ़ा क़रार दिया जो उस पर एतबार रखते हुए उसे समझना चाहते हैं और ख़ामोशी के साथ उसे सुने और वह अद्ल व इन्साफ़ का तराज़ू बनाया जिसका कांटा हक़ से इधर-उधर नहीं होता और वह नूरे हिदायत क़रार दिया जिसकी दलील व बुरहान की रोषनी (तौहीद व नबूवत की) गवाही देने वालों के लिये बुझती नहीं और वह निजात का निशान बनाया के जो उसके सीधे तरीक़े पर चलने का इरादा करे वह गुमराह नहीं होता और जो उसकी दीसमान के बन्धन से वाबस्ता हो वह (ख़ौफ़ व फ़क्र व अज़ाब की) हलाकतों की दस्तरसी से बाहर हो जाता है। बारे इलाहा! जबके तूने उसकी तिलावत के सिलसिले में हमें मदद पहुंचाई और उसके हुस्ने अदायगी के लिये हमारी ज़बान की गिरहें खोल दीं तो फिर हमें उन लोगों में से क़रार दे जो उसकी पूरी तरह हिफ़ाज़त व निगेहदाश्त करते हों और उसकी मोहकम आयतों के एतराफ़ व तस्लीम की पुख़्तगी के साथ तेरी इताअत करते हों और मुतशाबेह आयतों और रोशन व वाज़ेह दलीलों के इक़रार के साये में पनाह लेते हों।

ऐ अल्लाह! तूने उसे अपने पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह वआलेही वसल्लम पर इजमाल के तौर पर उतारा और उसके अजाएब व इसरार का पूरा-पूरा आलम उन्हें अलक़ा किया और उसके इल्मे तफ़सीली का हमें वारिस क़रार दिया, और जो इसका इल्म नहीं रखते उन पर हमें फ़ज़ीलत दी। और उसके मुक़तज़ीयात पर अमल करने की क़ूवत बख़्शी ताके जो उसके हक़ाएक़ के मुतहम्मिल नहीं हो सकते उन पर हमारी फ़ौक़ीयत व बरतरी साबित कर दे।

ऐ अल्लाह! जिस तरह तूने हमारे दिलों को क़ुरान का हामिल बनाया और अपनी रहमत से उसके फ़ज़्ल व शरफ़ से आगाह किया यूँ ही मोहम्मद (स0) पर जो क़ुरान के ख़ुत्बा ख़्वाँ, और उनकी आल (अ0) पर जो क़ुरान के ख़ज़ीनेदार हैं रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें उन लोगों में से क़रार दे जो यह इक़रार करते हैं के यह तेरी जानिब से है ताके इसकी तस्दीक़ में हमें शक व शुबह लाहक़ न हो और उसके सीधे रास्ते से रूगर्दानी का ख़याल भी न आने पाए। 
ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें उन लोगों में से क़रार दे जो उसकी रीसमान से वाबस्ता उमूर में उसकी मोहकम पनाहगाह का सहारा लेते और उसके परों के ज़ेरे साया मन्ज़िल करते, इसकी सुबह दरख़्शां की रोशनी से हिदायत पाते और उसके नूर की दरख़्शन्दगी पैरवी करते और उसके चिराग़ से चिराग़ जलाते हैं और उसके अलावा किसी से हिदायत के तालिब नहीं होते।

बारे इलाहा! जिस तरह तूने इस क़ुरान के ज़रिये मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह वआलेही वसल्लम को अपनी रहनुमाई का निशान बनाया है और उनकी आल (अ0) के ज़रिये अपनी रज़ा व ख़ुशनूदी की राहें आशकार की हैं यूंही मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे लिये क़ुरान को इज़्ज़त व बुज़ुर्गी की बलन्दपाया मन्ज़िलों तक पहुंचने का वसीला और सलामती के मक़ाम तक बलन्द होने का ज़ीना और मैदाने हश्र में निजात को जज़ा में पाने का सबब और महल्ले क़याम (जन्नत) की नेमतों तक पहुंचने का ज़रिया क़रार दे।

ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और क़ुरान के ज़रिये गुनाहों का भारी बोझ हमारे सर से उतार दे और नेकोकारों के अच्छे ख़साएल व आदात हमें मरहमत फ़रमा और उन लोगों के नक़्शे क़दम पर चला जो तेरे लिये रात के लम्हों और सुबह व शाम (की साअतों) में उसे अपना दस्तूरूल अमल बनाते हैं ताके उसकी ततहीर के वसीले से तू हमें हर आलूदगी से पाक कर दे और इन लोगों के नक़्शे क़दम पर चलाए, जिन्होंने उसके नूर से रोशनी हासिल की है। और उम्मीदों ने उन्हें अमल से ग़ाफ़िल नहीं होने दिया के उन्हें अपने क़रीब की नैरंगियों से तबाह कर दें।

ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और क़ुरान को रात की तारीकियों में हमारा मोनिस और शैतान के मफ़सनदों और दिल में गुज़रने वाले वसवसों से निगेहबानी करने और हमारे क़दमों को नाफ़रमानियों की तरफ़ बढ़ने से रोक देने वाला और हमारी ज़बानों को बातिल पैमाइयों से बग़ैर किसी मर्ज़ के गंग कर देने वाला और हमारे आज़ा को इरतेकाब गुनाह से बाज़ रखने वाला और हमारी ग़फ़लत व मदहोशी ने जिस दफ़्तरे इबरत व पन्द अन्दोज़ी को तह कर रखा है, उसे फैलाने वाला क़रार दे ताके उसके अजाएब व रमूज़ की हक़ीक़तों और उसकी मुतनब्बेह करने वाली मिसालों को के जिन्हें उठाने से पहाड़ अपने इस्तेहकाम के बावजूद आजिज़ आ चुके हैं हमारे दिलों में उतार दे।

ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और क़ुरान के ज़रिये हमारे ज़ाहिर को हमेशा सलाह व रशद से आरास्ता रख और हमारे ज़मीर की फ़ितरी सलामती से ग़लत तसव्वुरात की दख़ल दरान्दाज़ी को रोक दे और हमारे दिलों की कसाफ़तों और गुनाहों की आलूदगियों को धो दे और उसके ज़रिये हमारे परागन्दा उमूर की शीराज़ा बन्दी कर और मैदाने हश्र में हमारी झुलसती हुई दोपहरों की तपिश व तशनगी बुझा दे और सख़्त ख़ौफ़ व हेरास के दिन जब क़ब्रों से उठें तो हमें अम्न व आफ़ियत के जामे पहना दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और क़ुरान के ज़रिये फ़क्ऱो एहतियाज की वजह से हमारी ख़स्तगी व बदहाली का तदारूक फ़रमा और ज़िन्दगी की कशाइश और फ़राख़ रोज़ी की आसूदगी का रूख़ हमारे जानिब फेर दे और बुरी आदात और पस्त इख़लाक़ से हमें दूर कर दे और कुफ्ऱ के गढ़े (में गिरने) और निफ़ाक़ अंगेज़ चीज़ों से बचा ले ताके वह हमें क़यामत में तेरी ख़ुशनूदी व जन्नत की तरफ़ बढ़ाने वाला और दुनिया में तेरी नाराज़गी और हुदूद शिकनी से रोकने वाला हो और इस अम्र पर गवाह हो के जो चीज़ तेरे नज़दीक हलाल थी उसे हलाल जाना और जो हराम थी उसे हराम समझा।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और क़ुरान के वसीले से मौत के हंगामे नज़अ की अज़ीयतों, कराहने की सख़्तियों और जाँकनी की लगातार हिचकियों को हम पर आसान फ़रमा जबके जान गले तक पहुंच जाए और कहा जाए के कोई झाड़ फूंक करने वाला है (जो कुछ तदारूक करे) और मलकुल मौत ग़ैब के पर्दे चीर कर क़ब्ज़े रूह के लिये सामने आए और मौत की कमान में फ़िराक़ की दहशत के तीर जोड़कर अपने निशाने की ज़द पर रख ले और मौत के ज़हरीले जाम में ज़हरे हलाहल घोल दे और आख़ेरत की तरफ़ हमारा चल-चलाव और कूच क़रीब हो और हमारे आमाल हमारी गर्दन का तौक़ बन जाएं और क़ब्रें रोज़े हष्र की साअत तक आरामगाह क़रार पाएं।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और कहन्गी व बोसीदगी के घर में उतरने और मिट्टी की तहों में मुद्दत तक पड़े रहने को हमारे लिये मुबारक करना और दुनिया से मुंह मोड़ने के बाद क़ब्रों को हमारा अच्छा घर बनाना और अपनी रहमत से हमारे लिये गौर की तंगी को कुशादा कर देना और हश्र के आम इज्तेमाअ के सामने हमारे मोहलक गुनाहों की वजह से हमें रूसवा न करना और आमाल के पेश होने के मक़ाम पर हमारी ज़िल्लत व ख़्वारी की वज़ा पर रहम फ़रमाना और जिस दिन जहन्नम के पुल पर से गुज़रना होगा, तो उसके लड़खड़ाने के वक़्त हमारे डगमगाते हुए क़दमों को जमा देना और क़यामत के दिन हमें उसके ज़रिये हर अन्दोह और रोज़े हश्र की सख़्त हौलनाकियों से निजात देना और जब के हसरत व निदामत के दिन ज़ालिमों के चेहरे सियाह होंगे हमारे चेहरों को नूरानी करना और मोमेनीन के दिलों में हमारी मोहब्बत पैदा कर दे और ज़िन्दगी को हमारे लिये दुश्वारगुज़ार न बना।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) जो तेरे ख़ास बन्दे और रसूल (स0) हैं उन पर रहमत नाज़िल फ़रमा जिस तरह उन्होंने तेरा पैग़ाम पहुंचाया, तेरी शरीयत को वाज़ेह तौर से पेश किया और तेरे बन्दों को पन्द व नसीहत की। ऐ अल्लाह! हमारे नबी सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम को क़यामत के दिन तमाम नबियों से मन्ज़िलत के लेहाज़ से मुक़र्रबतर शिफ़ाअत के लेहाज़ से बरतर, क़द्र व मन्ज़िलत के लेहाज़ से बुज़ुर्गतर और जाह व मरतबत के एतबार से मुमताज़तर क़रार दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और उनके ऐवान (अज़्ज़ व शरफ़) को बलन्द, उनकी दलील व बुरहान को अज़ीम और उनके मीज़ान (अमल के पल्ले) को भारी कर दे। उनकी शिफ़ाअत को क़ुबूल फ़रमा और उनकी मन्ज़िलत को अपने से क़रीब कर, उनके चेहरे को रौशन, उनके नूर को कामिल और उनके दरजे को बलन्द फ़रमा। और हमें उन्हीं के आईन पर ज़िन्दा रख और उन्हीं के दीन पर मौत दे और उन्हीं की षाहेराह पर गामज़न कर और उन्हीं के रास्ते पर चला और हमें उनके फ़रमाबरदारों में से क़रार दे और उनकी जमाअत में महशूर कर और उनके हौज़ पर उतार और उनके साग़र से सेराब फ़रमा।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जिसके ज़रिये उन्हें बेहतरीन नेकी, फ़ज़्ल और इज़्ज़त तक पहुंचा दे जिसके वह उम्मीदवार हैं। इसलिये के तू वसीअ रहमत और अज़ीम फ़ज़्ल व एहसान का मालिक है। ऐ अल्लाह! उन्होंने जो तेरे पैग़ामात की तबलीग़ की, तेरी आयतों को पहुचाया, तेरे बन्दों को पन्द व नसीहत की और तेरी राह में जेहाद किया। इन सबकी उन्हें जज़ा दे जो हर उस जज़ा से बेहतर हो जो तूने मुक़र्रब फ़रिश्तों और बरगुज़ीदा मुरसल नबीयों को अता की हो। उन पर और उनकी पाक व पाकीज़ा आल (अ0) पर सलाम हो और अल्लाह तआला की रहमतें और बरकतें उनके शामिले हाल हों।

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