Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 27th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


सत्ताईसवीं दुआ
सरहदों की निगेहबानी करने वालों के लिये हज़रत (अ0) की दुआ

बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपने ग़लबे व इक़तेदार से मुसलमानों की सरहदों को महफ़ूज़ रख, और अपनी क़ूवत व तवानाई से उनकी हिफ़ाज़त करने वालों को तक़वीयत दे और अपने ख़ज़ाने बेपायां से उन्हें मालामाल कर दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और उनकी तादाद बढ़ा दे। उनके हथियारों को तेज़ कर दे, उनके हुदूद व इतराफ़ और मरकज़ी मक़ामात की हिफ़ाज़त व निगेहदाश्त कर। उनकी जमइयत में उन्स व यकजहती पैदा कर, उनके उमूर की दुरूस्ती फ़रमा, रसद रसानी के ज़राए मुसलसल क़ायम रख। उनकी मुश्किलात के हल करने का ख़ुद ज़िम्मा फ़रमा। उनके बाज़ू क़वी कर। सब्र के ज़रिये उनकी एआनत फ़रमा। और दुष्मन से छिपी तदबीरों में उन्हें बारीक निगाही अता कर।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और जिस षै को वह नहीं पहचानते वह उन्हें पहचनवा दे और जिस बात का इल्म नीं रखते वह उन्हें बता दे। और जिस चीज़ की बसीरत उन्हें नहीं है वह उन्हें सुझा दे।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और दुष्मन से मद्दे मुक़ाबिल होते वक़्त ग़द्दार व फ़रेबकार दुनिया की याद उनके ज़ेहनों से मिटा दे। और गुमराह करने वाले माल के अन्देषे उनके दिलों से निकाल दे और जन्नत को उनकी निगाहों के सामने कर दे। और जो दाएमी क़यामगा हमें इज़्ज़त व षरफ़ की मन्ज़िलें और (पानी, दूध) शराब और साफ़ व शफ़्फाफ़ शहद की) बहती हुई नहरें और तरह तरह के फलों (के बार) से झुके हुए अशजार वहां फ़राहेम किये है।ं उन्हें दिखा दे ताके उनमें से कोई पीठ फिराने का इरादा और अपने हरीफ़ के सामने से भागने का ख़याल न करे।

ऐ अल्लाह! इस ज़रिये से उनके दुश्मनों के हरबे कुन्द और उन्हें बे दस्त व पा कर दे और उनमें और उनके हथियारों में तफ़रिक़ा डाल दे, (यानी हथियार छोड़कर भाग जाएं) और उनके रगे दिल की तनाबें तोड़ दे और उनमें और उनके आज़ोक़ा में दूरी पैदा कर दे और उनकी राहों में उन्हें भटकने के लिये छोड़ दे और उनके मक़सद से उन्हें बे राह कर दे। उनकी कमक का सिलसिला मकक का सिलसिला क़ता कर दे उनकी गिनती कम कर दे, उनके दिलों में दहशत भर दे, उनकी दराज़ दस्तियों को कोताह कर दे, उनकी ज़बानों में गिरह लगा दे के बोल न सकें, और उन्हें सज़ा देकर उनके साथ साथ उन लोगों को भी तितर बितर कर दे जो उनके पसे पुश्त, हैं और पसे पुश्त वालों को ऐसी शिकस्त दे के जो उनके पुश्त पर हैं उन्हें इबरत हासिल हो और उनकी हज़ीमत व रूसवाई से उनके पीछे वालोें के हौसले तोड़ दे।

ऐ अल्लाह! उनकी औरतों के शिकम बांझ, उनके मर्दों के सल्ब ख़ुश्क और उनके घोड़ों, ऊंटों, गायों, बकरियों की नस्ल क़ता कर दे और उनके आसमान को बरसने की और ज़मीन को रवीदगी की इजाज़त न दे। बारे इलाहा। इस ज़रिये से अहले इस्लाम की तदबीरों को मज़बूत, उनके शहरों को महफ़ूज़ और उनकी दौलत व सरवत को ज़्यादा कर दे और उन्हें इबादत व ख़लवत गज़ीनी के लिये जंग व जेदाल और लड़ाई झगड़े से फ़ारिग़ कर दे ताके रूए ज़मीन पर तेरे अलावा किसी की परस्तिश न हो और तेरे सिवा किसी के आगे ख़ाक पर पेशानी न रखी जाए।

ऐ अल्लाह! तू मुसलमानों को उनके हर हर इलाक़े में बरसरे पैकार होने वाले मशरिकों पर ग़लबा दे और सफ़ दर सफ़ फ़रिश्तों के ज़रिये इनकी इमदाद फ़रमा। ताके इस खि़त्तए ज़मीन में उन्हें क़त्ल व असीर करते हुए उसके आखि़री हुदूद तक पस्पा कर दें या के वह इक़रार करें के तू वह ख़ुदा है जिसके अलावा कोई माबूद नहीं और यकता व लाशरीक है। ख़ुदाया! मुख़्तलिफ़ एतराफ़ व जवानिब के दुश्मनाने दीन को भी इस क़त्ल व ग़ारत की लपेट में ले ले। वह हिन्दी हों या रूमी, तुर्की हों या खि़ज़्री, हबशी हों या नूबी, रंगी हों या सक़लबी व दलीमी, नीज़ उन मुषरिक जमाअतों को जिनके नाम और सिफ़ात हमें मालूम नहीं और तू अपने इल्म से उन पर मोहीत और अपनी क़ुदरत से उन पर मुतलअ है।

ऐ अल्लाह! मुषरिकों को मुषरिकों से उलझा कर मुसलमानों के हुदूदे ममलेकत पर दस्त दराज़ी से बाज़ रख और उनमें कमी वाक़ेअ करके मुसलमानों में कमी करने से रोक दे और उनमें फूट डलवा कर अहले इस्लाम के मुक़ाबले में सफ़आराई से बिठा दे। ऐ अल्लाह! उनके दिलों को तस्कीन व बेख़ौफ़ी से, उनके जिस्मों को क़ूवत व तवानाई से ख़ाली कर दे। उनकी फ़िक्रों को तदबीर व चाराजोई से ग़ाफ़िल और मरदान कारज़ार के मुक़ाबले में उनके दस्त व बाज़ू को कमज़ोर कर दे और दिलेराने इस्लाम से टक्कर लेने में उन्हें बुज़दिल बना दे और अपने अज़ाबों में से एक अज़ाब के साथ उन पर फ़रिष्तों की सिपाह भेज। जैसा के तूने बद्र के दिन किया था। उसी तरह तू उनकी जड़े बुनियादें काट दे, उनकी षान व षौकत मिटा दे और उनकी जमीअत को परागन्दा कर दे। ऐ अल्लाह! उनके पानी में वबा और उनके खानों में इमराज़ (के जरासीम) की आमेज़िष कर दे, उनके षहरों को ज़मीन में धंसा दे, उन्हें हमेषा पत्थरों का निषाना बना और क़हतसाली उन पर मुसल्लत कर दे। उनकी रोज़ी ऐसी सरज़मीन में क़रार दे जो बन्जर और उनसे कोसों दूर हो। ज़मीन के महफ़ूज़ क़िले उनके लिये बन्द कर दे। और उन्हें हमेषा की भूक और तकलीफ़देह बीमारियों में मुब्तिला रख। बारे इलाहा! तेरे दीन व मिल्लत वालों में से जो ग़ाज़ी उनसे आमादाए जंग हो या तेरे तरीक़े की पैरवी करने वालों में से जो मुजाहिद क़स्दे जेहाद करे इस ग़रज़ से के तेरा दीन बलन्द, तेरा गिरोह क़वी और तेरा हिस्सा व नसीब कामिलतर हो तो उसके लिये आसानियां पैदा कर। तकमीलकार के सामान फ़राहेम कर, उसकी कामयाबी का ज़िम्मा ले, उसके लिये बेहतरीन हमराही इन्तेख़ाब फ़रमा। क़वी व मज़बूत सवारी का बन्दोबस्त कर, ज़रूरियात पूरा करने के लिये वुसअत व फ़राख़ी दे। दिलजमई व निषाते ख़ातिर से बहरामन्द फ़रमा। इसके इष्तेयाक़े (वतन) का वलवला ठण्डा कर दे तन्हाई के ग़म का उसे एहसास न होने दे, ज़न व फ़रज़न्द की याद उसे भुला दे। क़स्दे ख़ैर की तरफ़ रहनुमाई फ़रमा उसकी आफ़ियत का ज़िम्मा ले। सलामती को उसका साथी क़रार दे। बुज़दिली को उसके पास न फटकने दे। उसके दिल में जराएत पैदा कर, ज़ोर व क़ूवत उसे अता फ़रमा। अपनी मददगारी से उसे तवानाई बख़्श, राह व रविश (जेहाद) की तालीम दे और हुक्म में सही तरीक़ेकार की हिदायत फ़रमा। रिया व नमूद को उससे दूर रख। हवस, शोहरत का कोई शाएबा उसमें न रहने दे, उसके ज़िक्र व फ़िक्र और सफ़र व क़याम को अपनी राह में और अपने लिये क़रार दे और जब वह तेरे दुष्मनों और अपने दुश्मनों से मद्दे मुक़ाबिल हो तो उसकी नज़रों में उनकी तादाद थोड़ी करके दिखा। उसके दिल में उनके मक़ाम व मन्ज़िलत को पस्त कर दे। ऐ उसे उन पर ग़लबा दे और उनको उस पर ग़ालिब न होने दे। अगर तूने उस मर्दे मुजाहिद के ख़ातमे बिल ख़ैर और शहादत का फ़ैसला कर दिया है तो यह षहादत उस वक़्त वाक़ेअ हो जब वह तेरे दुश्मनों को क़त्ल करके कैफ़र किरदार तक पहुंचा दे। या असीरी उन्हें बे हाल कर दे और मुसलमानों के एतराफ़े ममलेकत में अमन बरक़रार हो जाए और दुश्मन पीठ फिराकर चल दे। बारे इलाहा! वह मुसलमान जो किसी मुजाहिद या निगेहबान सरहद के घर का निगरान हो या उसके अहल व अयाल की ख़बरगीरी करे या थोड़ी बहुत माली एआनत करे या आलाते जंग से मदद दे। या जेहाद पर उभारे या उसके मक़सद के सिलसिले में दुआए ख़ैर करे या उसके पसे पुश्त उसकी इज़्ज़त व नामूस का ख़याल रखे तो उसे भी उसके अज्र के बराबर बे कम व कास्त अज्र और उसके अमल का हाथों हाथ बदला दे जिससे वह अपने पेश किये हुए अमल का नफ़ा और अपने बजा लाए हुए काम की मसर्रत दुनिया में फ़ौरी तौर से हासिल कर ले यहां तक के ज़िन्दगी की साअतें उसे तेरे फ़ज़्ल व एहसान की उस नेमत तक जो तूने उसके लिये जारी की है और इस इज़्ज़त व करामत तक जो तूने उसके लिये मुहय्या की है पहुंचा दें। परवरदिगार! जिस मुसलमान को इस्लाम की फ़िक्रे परेशान और मुसलमानों के खि़लाफ़ मुशरिकों की जत्थाबन्दी ग़मगीन करे इस हद तक के वह जंग की नीयत और जेहाद का इरादा करे मगर कमज़ोरी उसे बिठा दे या बेसरो सामानी उसे क़दम न उठाने दे या कोई हादसा इस मक़सद से या ख़ैर में डाल दे या कोई मानेअ उसके इरादे में हाएल हो जाए तो उसका नाम इबादत गुज़ारों में लिख और उसे मुजाहिदों का सवाब अता कर और उसे शहीदों और नेकोकारों के ज़मरह में शुमार फ़रमा। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) पर जो तेरे अब्दे ख़ास और रसूल हैं और उनकी औलाद (अ0) पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जो शरफ़ व रूतबे में तमाम रहमतों से बलन्दतर और तमाम दूरूदों से बालातर हो। ऐसी रहमत जिसकी मुद्दत एख़तेतामपज़ीद न हो, जिसकी गिनती का सिलसिला कहीं क़ता न हो। ऐसी कामिल व अकमल रहमत जो तेरे दोस्तों में से किसी एक पर नाज़िल हुई हो इसलिये के तू अता व बख़्शिश करने वाला, हर हाल में क़ाबिले सताइश पहली दफ़ा पैदा करने वाला, और दोबारा ज़िन्दा करने वाला और जो चाहे वह करने वाला है।

No comments:

Post a Comment