Thursday 20 September 2012

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साठवीं दुआ
कर्ब व मुसीबत से तहफ़्फ़ुज़ और लग़्िज़श व ख़ता से मुआफ़ी के लिये हज़रत (अ0) की दुआ


ऐ मेरे माबूद! मेरे दुश्मनों के मेरी हालत पर दिल में ख़ुश होने का मौक़ा न दे और मेरी वजह से मेरे किसी मुख़लिस व दोस्त को रन्जीदा ख़ातिर न कर। बारे इलाहा! अपनी नज़रे इनायात में से ऐसी नज़रे तवज्जो मेरे शामिले हाल फ़रमा जिससे तू इन मुसीबतों को मुझसे टाल दे जिनमें मुझे मुब्तिला किया है और उन एहसानात की तरफ़ मुझे पलटा दे जिनका मुझे ख़ूगर बनाया है और मेरी दुआ और हर उस शख़्स की दुआ को जो सिद्क़े नीयत से तुझे पुकारे क़ुबूल फ़रमा। क्योंके मेरी क़ूवत कमज़ोर, चाराजोई की सूरत नापैद, और हालत सख़्त से सख़्त तर हो गई है और जो कुछ तेरे मख़लूक़ात के पास है उससे मैं बिलकुल ना उम्मीद हूं। अब तो तेरी पहली नेमतों के दोबारा हासिल होने में तेरी उम्मीद के अलावा कोई सूरत बाक़ी नहीं रही। ऐ मेरे माबूद! जिन रन्ज व आलाम में गिरफ़्तार हूं उनके छुटकारा दिलाने पर तू ऐसा ही क़ादिर है जैसा उन चीज़ों पर क़ुदरत रखता है जिनमें मुझे मुब्तिला किया है। बेशक तेरे एहसानात की याद मेरा दिल बहलाती और तेरे इनआम व तफ़ज़्ज़ुल की उम्मीद मेरी हिम्मत बन्धाती है। इसलिये के जबसे तूने मुझे पैदा किया है मैं तेरी नेमतों से महरूम नहीं रहा। और तू ही मेरे माबूद! मेरी पनाहगाह, मेरा मुलजा, मेरा मुहाफ़िज़ व पुश्त पनाह, मेरे हाल पर शफ़ीक़ व मेहरबान और मेरे रिज़्क़ का ज़िम्मादार है, जो मुसीबत मुझ पर वारिद हुई है वह तेरे फ़ैसलए क़ज़ा व क़द्र में और जो मेरी मौजूदा हालत है वह तेरे इल्म में गुज़र चुकी थी। तो ऐ मेरे मालिम व सरदार! जिन चीज़ों को तेरे फ़ैसलए क़ज़ा व क़द्र ने मेरे हक़ में तै किया और लाज़िम व ज़रूरी क़रार दिया है उन चीज़ों में से मेरी इताअत और वह चीज़ जिससे मेरी बहबूदी और जिस हालत में हूं उस से रिहाई वाबस्ता है क़रार दे। क्योंके मैं इस मुसीबत के टालने में किसी से उम्मीद नहीं रखता और न इस सिलसिले में तेरे अलावा किसी पर भरोसा करता हूं तो ऐ जलालत व बुज़ुर्गी के मालिक मेरे इस हुस्ने ज़न के मुताबिक़ साबित हो जो मुझे तेरे बारे में है और मेरी कमज़ोरी व बेचारगी पर रहम फ़रमा। मेरी बेचैनी को दूर कर। मेरी दुआ क़ुबूल फ़रमाा। मेरी ख़ता व लग़्िज़श को माफ़ कर दे और मुझ पर और जो कुछ भी तुझसे दुआा मांगे अफ़ो व दरगुज़र करके एहसान फ़रमा। ऐ मेरे मालिक! तूने मुझे दुआ का हुक्म दिया और क़ुबूलियते दुआा का ज़िम्मा लिया, और तेरा वादा ऐसा सच्चा है जिसमें खि़लाफ़वर्ज़ी व तबदीली की गुन्जाइश नहीं है। तू अपने नबी (स0) और अब्दे ख़ास मोहम्मद (स0) और उनके अहले बैते अतहार (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा। और मेरी  फ़रयाद को पहुंच क्योंके तू उनका फ़रयादरस है जिनका कोई फ़रयादरस न हो। और उनके लिये पनाह है जिनके लिये कोई पनाह न हो। मैं ही वह मुज़तर व लाचार हूं जिसकी दुआ क़ुबूल करने और उसके दुख दर्द दूर करने का तूने इलतेज़ाम किया है। लेहाज़ा मेरी दुआ को क़ुबूल फ़रमा, मेरे ग़म को दूर और मेरे रन्ज व अन्दोह को बरतरफ़ फ़रमा और मेरी हालत को पहली हालत से भी बेहतर हालत की तरफ़ पलटा दे और मुझे इस्तेहक़ाक़ के बक़द्र अज्र न दे बल्कि अपनी उस रहमत के लेहाज़ से जज़ा दे जो तमाम चीज़ों पर छाई हुई है। ऐ जलालत व बुज़ुर्गी के मालिक तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और आले मोहम्मद (स0) पर और मेरी दुआ को सुन और उसे क़ुबूल फ़रमा। ऐ ग़ालिब! ऐ साहेबे इक़्तेदार।

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