Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 31st dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s



इकत्तीसवीं दुआ
दुआए तौबा

ऐ माबूद! ऐ वह जिसकी तौसीफ़ से वस्फ़ करने वालों के तौसीफ़ी अल्फ़ाज़ क़ासिर हैं। ऐ वह जो उम्मीदवारों की उम्मीदों का मरकज़ है। ऐ वह जिसके हाँ नेकोकारों का अज्र ज़ाया नहीं होता। ऐ वह जो इबादतगुज़ारों के ख़ौफ़ की मन्ज़िले मुन्तहा है। ऐ वह जो परहेज़गारों के बीम व हेरास की हद्दे आखि़र है यह उस षख़्स का मौक़ुफ़ है जो गुनाहों के हाथों में खेलता है और ख़ताओं की बागों ने जिसे खींच लिया है और जिस पर ग़ालिब आ गया है। इसलिये तेरे हुक्म से लापरवही करते हुए उसने (अदाए फ़र्ज़) में कोताही की और फ़रेबख़ोर्दगी की वजह से तेरे मुनहेयात का मुरतकब होता है। गोया वह अपने को तेरे क़ब्ज़ए क़ुदरत में समझता ही नहीं है और तेरे फ़ज़्ल व एहसान को जो तूने उस पर किये हैं मानता ही नहीं है मगर जब उसकी चष्मे बसीरत वा हुई और उस कोरी व बे बसरी के बादल उसके सामने से छटे तो उसने अपने नफ़्स पर किये हुए ज़ुल्में का जाएज़ा लिया अैर जिन जिन मवारिद पर अपने परवरदिगार की मुख़ालफ़तें की थी उन पर नज़र दौड़ाई तो अपने बड़े गुनाहों को (वाक़ेअन) बड़ा और अपनी अज़ीम मुख़ालफ़तों को (हक़ीक़तन) अज़ीम पाया तो वह इस हालत में के तुझसे उम्मीदवार भी है और षर्मसार भी, तेरी जानिब मुतवज्जो हुआ और तुझ पर एतमाद करते हुए तेरी तरफ़ राग़िब हुआ और यक़ीन व इतमीनान के साथ अपनी ख़्वहिश व आरज़ू को लेकर तेरा क़स्द किया और (दिल में) तेरा ख़ौफ़ लिये हुए ख़ुलूस के साथ तेरी बारगाह का इरादा किया इस हालत में के तेरे अलावा उसे किसी से ग़रज़ न थी और तेरे सिवा उसे किसी का ख़ौफ़ न था। चुनांचे वह आजिज़ाना सूरत में तेरे सामने आ खड़ा हुअ और फ़रवतनी से अपनी आंखें ज़मीन में गााड़ लीं और तज़ल्लुल व इन्केसा र से तेरी अज़मत के आगे सर झुका लिया अैर अज्ज़ व नियाज़मन्दी से अपने राज़ हाए दरदने परदा जिन्हें तू उससे बेहतर जनता है तेरे आगे खोल दिये और आजिज़ी से अपने वह गुनाह जिनका तू उससे ज़्यादा हिसाब रखताहै एक एक करके शुमार किये और इन बड़े गुनाहों से जो तेरे इल्म में उसके लिये मोहलक और बदआमालियोंसे जो तेरे फ़ैसले के मुताबिक़ उसके लिये रूसवाकुन हैं, दाद व फ़रयाद करता है। वह गुनाह के जिनकी लज़्ज़त जाती रही है और उनका वबाल हमेषा के लिये बाक़ी रह गया है।

ऐ मेरे माबूद! अगर तू उस पर अज़ाब करे तो वह तेरे अद्ल का मुनकिर नहीं होगा। और अगर उससे दरगुज़र करे और तरस खाए तो वह तेरे अफ़ो को कोई अजीब और बड़ी बात नहीं समझेगा। इसलिये के तू वह परवरदिगारे करीम है जिसके नज़दीक बड़े से बड़े गुनाह को भी बख़्ष देना कोई बड़ी बात नहीं है। अच्छा तो ऐ मेरे माबूद! मैं तेरी बारगाह में हाज़िर हूं तेरे हुक्मे दुआ की इताअत करते हुए और तेरे वादे का ईफ़ा चाहते हुए जो क़ुबूलियते दुआ के मुताल्लिक़ तूने अपने उस इरषाद में किया है- ‘‘मुझसे दुआ मांगो तो मैं तुम्हारी दुआ क़ुबूल करूंगा।’’ ख़ुदावन्दा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और अपनी मग़फ़ेरत मेरे षामिले हाल कर, जिस तरह मैं (अपने गुनाहों का) इक़रार करते हुए तेरी तरफ़ मुतवज्जेह हुआ हूं और उन मक़ामात से जहां गुनाहों से मग़लूब होना पड़ता है मुझे (सहारा देकर) ऊपर उठा ले जिस तरह मैंने अपने नफ़्स को तेरे आगे (ख़ाके मज़िल्लत) पर डाल दिया है और अपने दामने रहमत से मेरी परदापोशी फ़रमा जिस तरह मुझसे इन्तेक़ाम लेने में सब्र व हिल्म से काम लिया है।

ऐ अल्लाह! अपनी इताअत में मेरी नीयत को इसतेवार और अपनी इबादत में मेरी बसीरत को क़वी कर और मुझे उन आमाल के बजा लाने की तौफ़ीक़ दे जिनके ज़रिये तू मेरे गुनाहों के मैल को धो डाले और जब मुझे दुनिया से उठाए तो अपने दीन और अपनी नबी मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के आईन पर उठा।
ऐ माबूद! मैं इस मक़ाम पर अपने छोटे बड़े गुनाहों, पोषीदा व आषकारा मासियतों और गुज़िष्ता व मौजूदा लग़्िज़षों से तौबा करता हूँ उस षख़्स की सी तौबा जो दिल में  मासियत क ख़याल भी न लाए और गुनाह की तरफ़ पलटने का तसव्वुर भी न करे। ख़ुदावन्दा! तने अपनी मोहकम किताब में फ़रमाया है के तू बन्दों की तौबा क़ुबूल करता है और गुनाहों को माफ़ करता है और तौबा करने वालों को दोस्त रखता है। लेहाज़ा तू मेरी तौबा क़ुबूल फ़रमा जैसा के तूने वादा किया है, और मेरे गुनाहों को माफ़ कर दे जैसा के तूने ज़िम्मा लिया है। और हस्बे क़रारदाद अपनी मोहब्बत को मेरे  लिये ज़रूरी क़रार दे और मैं तुझसे ऐ मेरे परवरदिगार यह इक़रार करता हूँ के तेरी नापसन्दीदा बातों की तरफ़ रूख़ नहीं करूंगा और यह क़ौल व क़रार करता हूँ के क़ाबिले मज़म्मत चीज़ों की तरफ़ रूजू न करूंगा और यह अहद करता हूँ के तेरी तमाम नाफ़रमानियों को यकसर छोड़ दूंगा।

बारे इलाहा! तू मेरे अमल व किरदार से  ख़ूब आगाह है, अब जो भी तू जानता है उसे  बख़्श दे और अपनी क़ुदरते कामेला से पसन्दीदा चीज़ों की तरफ़ मुझे मोड़ दे। ऐ अल्लाह! मेरे ज़िम्मे कितने ऐसे हुक़ूक़ हैं जो मुझे याद हैं, और कितने ऐसे मज़लिमे हैं जिन पर निसयान का पर्दा पड़ा हुआ है। लेकिन वह सब के सब तेरी आांखोंके सामने हैं। ऐसी आंखें जो ख़्वाब आालूदा नहीं होतीं और तेरे इल्म में हैं ऐसा इल्म जिसमें फ़रोगज़ाष्त नहीं होती। लेहाज़ा जिन लोगों का मुझ पर कोई हक़ है उसका उन्हें एवज़ देकर इसका बोझ मुझसे बरतरफ़ और इसका बार हल्का कर दे, और मुझे फिर वैसे गुनाहों के इरतेकाब से महफ़ूज़ रख। ऐ अल्लाह! मैं तौबा पर क़ायम नहीं रह सकता मगर तेरी ही निगरानी से, और गुनाहों से बाज़ नहीं आ सकता मगर तेरी ही क़ूवत व तवानाई से, लेहाज़ा मुझे बेनियाज़ करने वाली क़ूवत से तक़वीयत दे और (गुनाहों से) रोकने वाली निगरानी का ज़िम्मा ले।

ऐ अल्लाह! वह बन्दा जो तुझसे  तौबा करे और तेरे इल्मे ग़ैब में वह तौबा शिकनी करने वालों और गुनाह व मासियत की तरफ़ दोबारा पलटने वाला हो तो मैं तुझसे पनाह माांगता हूं के उस जैसा हूं। मेरी तौबा को ऐसी तौबा क़रार दे के उसके बाद फ़िर तौबा की एहतियाज न रहे जिससे गुज़िष्ता गुनाह महो हो जाएं अैर ज़िन्दगी के बाक़ी दिनों में (गुनाहों से) सलामती का सामान हो। ऐ अल्लाह! मैं अपनी जेहालतों से उज़्ा्र ख़्वाह और अपनी बदआमालियों से बख़्षिष का तलबगार हूँ। लेहाज़ा अपने लुत्फ़ व एहसान से  मुझे  पनाहगाह रहमत में जगह दे और अपने तफ़ज़्ज़ुल से अपनी आफ़ियत के परदे में छुपा ले। ऐ अल्लाह! मैं दिल में गुज़रने वाले ख़यालात और आंख के इषारों और ज़बान की गुफ़्तगुओं, ग़रज़ हर उस चीज़ से जो तेरे इरादे व रेज़ा के खि़लाफ़ हो और तेरी मोहब्बत के हुदूद से बाहर हे, तेरी बारगाह में तौबा करता हूं। ऐसी तौबा जिससे मेरा हर हर अज़ो अपनी जगह पर तेरी अक़ूबतों से बचा रहे और उन तकलीफ़ देह अज़ाबों से जिनसे सरकष लोग ख़ाएफ़ रहते हैं महफ़ूज़ रहे। ऐ माबूद! यह तेरे सामने मेरा आलमे तन्हाई, तेरे ख़ौफ़ से मेरे दिल की धड़कन, तेरी हैबत से मेरे आज़ा की थरथरी, इन हालतों पर रहम फ़रमा। परवरदिगारा मुझे गुनाहों ने तेरी बारगाह में रूसवाई की मन्ज़िल पर ला खड़ा किया है। अब अगर चुप रहूं तो मेरी तरफ़ से कोई बोलने वाला नहीं है और कोई वसीला लाऊं तो शिफ़ाअत का सज़ावार नहीं हूं। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमाा और अपने करम व बख़्षिष को मेरी ख़ताओं का शफ़ीअ क़रार दे और अने फ़ज़्ल से मेरे गुनाहों को बख़्ष दे और जिस सज़ा काा मैं सज़ावार हूं वह सज़ा न दे और अपना दामने करम मुझ पर फैला दे और अपने परदए अफ़ो व रहमत में मुझे ढांप ले और मुझसे  इस ज़ी इक़्तेदार षख़्स का सा बरताव कर जिसके आगे कोई बन्दाए ज़लील गिड़गिड़ाए तो वह उस पर तरस खाए या इस दौलत मन्द का सा जिससे कोई बन्दाए मोहताज लिपटे तो वह उसे सहारा देकर उठा ले।

बारे इलाहा! मुझे तेरे (अज़ाब) से कोई पनाह देने वाला नहीं है। अब तेरी क़ूवत व तवानाई ही पनाह दे तो दे। और तेरे यहाँ कोई मेरी सिफ़ारिश करने वाला नहीं अब तेरा फ़ज़्ल ही सिफ़ारिश करे तो करे। और मेरे गुनाहों ने मुझे हरासां  कर दिया है। अब तेरा अफ़ो व दरगुज़र ही मुझे मुतमईन करे तो करे। यह जो कुछ मैं कह रहा हूँ इसलिये नही ंके मैं अपनी बद आमालियों से नावाक़िफ़ और अपनी गुज़िश्ता बदकिरदारियों को फ़रामोश कर चुका हूं बल्कि इसलिये के तेरा आसमान और जो उसमें रहते सहते हैं और तेरी ज़मीन और जो उस पर आबाद हैं। मेरी निदामत को जिसका मैंने तेरे सामने इज़हार किया है, और मेरी तौबा को जिसके ज़रिये तुझसे पनाह मांगी है सुन लें। ताके तेरी रहमत की कारफ़रमाई की वजह से किसी को मेरे हाले ज़ार पर रहम आ जाए या मेरी परेशाँहाली पर उसका दिल पसीजे तो मेरे हक़ में दुआ करे जिसकी तेरे हाँ  मेरी दुआ से ज़्यादा सुनवाई हो। या केई ऐसी सिफ़ारिश हासिल कर लूं जो तेरे हाँ मेरी दरख़्वास्त से ज़्यादा मोअस्सर हो और इस तरह तेरे ग़ज़ब से निजात की दस्तावेज़ और तेरी ख़ुशनूदी का परवाना हासिल कर सकूं।

ऐ अल्लाह! अगर तेरी बारगाह में निदामत व पशेमानी ही तौबा है तो मैं पशेमान हूंँ। और अगर तर्के मासियत ही तौबा व अनाबत है तो मैं तौबा करने वालों में अव्वल दर्जा पर हूँ। और अगर तलबे मग़फ़ेरत गुनाहों को ज़ाएल करने का सबब है तो मग़फ़ेरत करने वालों में से एक मैं भी हूं। ख़ुदाया जबके तूने तौबा का हुक्म दिया है और क़ुबूल करने का ज़िम्मा लिया है और दुआ पर आमादा किया है और क़ुबूलियत का वादा फ़रमाया है तो रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और मेरी तौबा को क़ुबूल फ़रमा और मुझे अपनी रहमत से नाउम्मीदी के साथ न पलटा क्योंके तू गुनहगारों की तौबा क़ुबूल करने वाला और रूजू होने वाले ख़ताकारों पर रहम करने वाला है।

ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा जिस तरह तूने उनके वसीले से हमारी हिदायत फ़रमाई है। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल कर, जिस  तरह उनके ज़रिये हमें (गुमराही के भंवर से) निकाला है। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल कर, ऐसी रहमत जो क़यामत के रोज़ और तुझसे एहतियाज के दिन हमारी सिफ़ारिश करे इसलिये के तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है और यह अम्र तेरे लिये सहल व आसान है।

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