Thursday 20 September 2012

Sahifa-e-Kamila, Sajjadia 25th dua (urdu tarjuma in HINDI) by imam zainul abedin a.s.


 पच्चीसवीं दुआ
औलाद के हक़ में हज़रत (अ0) की दुआ
 
ऐ मेरे माबूद! मेरी औलाद की बक़ा और उनकी इस्लाह और उनसे मेहरामन्दी के सामान मुहय्या करके मुझे ममनूने एहसान फ़रमा और मेरे सहारे के लिये उनकी उम्रों में बरकत और उनकी ज़िन्दगियों में तूल दे और उनमें से छोटों की परवरिश फ़रमा और कमज़ोरों को तवानाई दे और उनकी जिस्मानी, ईमानी और एख़लाक़ी हालत को दुरूस्त फ़रमा और उनके जिस्म व जान और उनके दूसरे मुआमलात में जिनमें मुझे एहतेमाम करना पड़े उन्हें आफ़ियत से हमकिनार रख, और मेरे लिये और मेरे ज़रिये उनके लिये रिज़्क़े फ़रावाँ जारी कर और उन्हें नेकोकार उन्हें नेकोकार, परहेज़गार, रौशन दिल, हक़ शिनास और अपना फ़रमाबरदार और अपने दोस्तों का दोस्त व ख़ैरख़्वाह और अपने तमाम दुश्मनों का दुश्मन व बदख़्वाह क़रार दे- आमीन।
 
 
ऐ अल्लाह! उनके ज़रिये मेरे बाज़ुओं को क़वी और मेरी परेशांहाली की इस्लाह और उनकी वजह से मेरी जमीअत में इज़ाफ़ा और मेरी मजलिस की रौनक़ दोबाला फ़रमा और उनकी बदौलत मेरा नाम ज़िन्दा रख और मेरी अदम मौजूदगी में उन्हें मेरा क़ायम मुक़ाम क़रार दे और उनके वसीले से मेरी हाजतों में मेरी मदद फ़रमा और उन्हें मेरे लिये दोस्त, मेहरबान, हमहतन, मुतवज्जेह, साबित क़दम और फ़रमाबरदार क़रार दे। वह नाफ़रमान, सरकश, मुख़ालेफ़त व ख़ताकार न हों और उनकी तरबीयत व तादीब और उनसे अच्छे बरताव में मेरी मदद फ़रमा और उनके अलावा भी मुझे अपने ख़ज़ानए रहमत से नरीनए औलाद अता कर और उन्हें मेरे लिये सरापा ख़ैर व बरकत क़रार दे और उन्हें उन चीज़ों में जिनका मैं तलबगार हूँ। मेरा मददगार बना और मुझे और मेरी ज़ुर्रियत को शैतान मरदूद से पनाह दे। इसलिये के तूने हमें पैदा किया और अम्र व नहीं की और जो हुक्म दिया उसके सवाब की तरफ़ राग़िब किया और जिससे मना किया उसके अज़ाब से डराया और हमारा एक दुश्मन बनाया जो हमसे मक्र करता है और जितना हमारी चीज़ों पर उसे तसल्लत देता है उतना हमें उसकी किसी चीज़ पर तसल्लत नहीं दिया। इस तरह के उसे हमारे सीनों में ठहरा दिया और हमारे रग व पै में दौड़ा दिया। हम ग़ाफ़िल हो जाएं मग रवह ग़ाफ़िल नहीं होता, हम भूल जाएं मगर वह नहीं भूलता, वह हमें तेरे अज़ाब से मुतमईन करता और तेरे अलावा दूसरों से डराता है। अगर हम किसी बुराई का इरादा करते हैं तो वह हमारी हिम्मत बन्धाता है और अगर किसी अमले ख़ैर का इरादा करते हैं तो हमें उससे बाज़ रखता है और गुनाहों की दावत देता और हमारे सामने शुबहे खड़े कर देता है अगर वादा करता है तो झूटा और उम्मीद दिलाता है तो खि़लाफ़वर्ज़ी करता है अगर तू उसके मक्र को न हटाए तो वह हमें गुमराह करके छोड़ेगा और उसके फ़ित्नों से न बचाए तो वह हमें डगमगा देगा।
 
ख़ुदाया! उस लईन के तसल्लुत को अपनी क़ूवत व तवानाई के ज़रिये हमसे दफ़ा कर दे और कसरते दुआ के वसीले से उसे हमारी राह ही से हटा दे ताके हम उसकी मक्कारियों से महफ़ूज़ हो जाएं।
 
ऐ अल्लाह! मेरी हर दरख़्वास्त को क़ुबूल फ़रमा और मेरी हाजतें बर ला जबके तूने इस्तेजाबते दुआ का ज़िम्मा लिया है तू मेरी दुआ को रद न कर और जबके तूने मुझे दुआ का हुक्म दिया है तो मेरी दुआ को अपनी बारगाह से रोक न दे। और जिन चीज़ों से मेरा दीनी व दुनियवी मफ़ाद वाबस्ता है उनकी तकमील से मुझ पर एहसान फ़रमा। जो याद हों और जो भूल गया हूँ ज़ाहिर की हों या पोशीदा रहने दी हों, एलानिया तलब की हों या दरपरदा इनत माम सूरतों में इस वजह से के तुझसे सवाल किया है (नीयत व अमल की) इस्लाह करने वालों और इस बिना पर के तुझसे तलब किया है कामयाब होने वालों और इस सबब से के तुझ पर भरोसा किया है ग़ैर मुस्तर्द होने वालों में से क़रार दे और (उन लोगों में शुमार कर) जो तेरे दामन में पनाह लेने के ख़ूगर, तुझसे ब्योपार में फ़ायदा उठाने वाले और तेरे दामने इज़्ज़त में पनाह गुज़ीं हैं। जिन्हें तेरे हमहगीर फ़ज़ल और जूद व करम से रिज़्क़े हलाल में फ़रावानी हासिल हुई है और तेरी वजह से ज़िल्लत से इज़्ज़त तक पहुंचे हैं और तेरे अद्ल व इन्साफ़ के दामन में ज़ुल्म से पनाह ली है और रहमत के ज़रिये बला व मुसीबत से महफ़ूज़ हैं और तेरी बेनियाज़ी की वजह से फ़क़ीर से ग़नी हो चुके हैं और तेरे तक़वा की वजह से गुनाहों, लग़्िज़शों और ख़ताओं से मासूम हैं और तेरी इताअत की वजह से ख़ैर व रश्द व सवाब की तौफ़ीक़ उन्हें हासिल है और तेरी क़ुदरत से उनके और गुनाहों के दरम्यान पर्दा हाएल है और जो तमाम गुनाहों से दस्त बरदार और तेरे जवारे रहमत में मुक़ीम हैं। बारे इलाहा! अपनी तौफ़ीक़ व रहमत से यह तमाम चीज़ें हमें अता फ़रमा और दोज़ख़ के आज़ार से पनाह दे और जिन चीज़ों का मैंने अपने लिये और अपनी औलाद के लिये सवाल किया है ऐसी ही चीज़ें तमाम मुसलेमीन व मुसलेमात और मोमेनीन और मोमेनात को दुनिया व आख़ेरत में मरहमत फ़रमा। इसलिये के तू नज़दीक और दुआ का क़ुबूल करने वाला है, सुनने वाला और जानने वाला है, माफ़ करने वाला और बख़्शने वाला और शफ़ीक़ व मेहरबान है। और हमें दुनिया में नेकी (तौफ़ीक़े इबादत) और आख़ेरत में नेकी (बेहिश्ते जावेद) अता कर, और दोज़ख़ के अज़ाब से बचाए रख।

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